लेह, लद्दाख, जम्मू-कश्मीर, भारत, आज की प्रातः उज्ज्वल थी जब परम पावन दलाई लामा ने शिवाछेल फोडंग, जहाँ वे निवास कर रहे हैं, से ठिकसे विहार के लिए थोड़ी दूरी की यात्रा तय की। चिनार तथा विलो पेड़ से छायादार मार्ग लिपे पुते स्तूपों के समूहों के बीचों बीच शे राजभवन होते हुए ठिकसे की ओर निकल रहा था। आगमन पर पूर्व राज्यसभा सदस्य, ठिकसे रिनपोछे द्वारा उनका स्वागत किया गया और पृथ्वी की सतह से ऊपर निकला चट्टानी अंश, जिस पर ठिकसे विहार खड़ा है, के नीचे प्रवचन शामियाने में उनका अनुरक्षण किया गया। उन्होंने एक मंगल उद्घाटन दीप प्रज्ज्वलित किया और बुद्ध की मूर्ति के समक्ष अपना सम्मान व्यक्त किया।
इसके उपरांत परम पावन को पुस्तकालय तथा शिक्षण केन्द्र का एक प्रारूप और योजना दिखायी गई, जिसके भूमि पूजन को ठिकसे रिनपोछे ने उनसे आशीर्वचित करने के लिए कहा था और उसके बाद उनसे परियोजना के नींव के पत्थर का अनावरण करने का अनुरोध किया गया।
परम पावन ने अनुमानित २५०० की संख्या में जमा लोगों के समक्ष अपना आसन ग्रहण किया, ठिकसे रिनपोछे ने मंडल तथा बुद्ध के काय, वाक और चित्त के प्रतीक समर्पित किए। अवसर का परिचय देते हुए रिनपोछे ने परम पावन, अन्य प्रतिष्ठित अतिथियों, छात्रों और अन्य लोगों के प्रति अपना सम्मान व्यक्त किया। उन्होंने मानव मूल्यों, अंतर्धार्मिक सद्भाव, तिब्बती संस्कृति के संरक्षण और तिब्बत के प्राकृतिक पर्यावरण की सुरक्षा और साथ ही प्राचीन भारतीय ज्ञान को पुनर्जीवित करने की परम पावन की प्रतिबद्धताओं का उल्लेख किया। उन्होंने उन्हें आज के विश्व के लिए लाभकारी और प्रासंगिक होने की घोषणा की। और तो और उन्होंने कहा, उन्होंने कहा, वे उन लक्ष्यों का प्रतिनिधित्व करते हैं जिनके लिए साधारण लोग भी योगदान दे सकते हैं।
परम पावन की धर्मनिरपेक्ष नैतिकता में रूचि को प्रोत्साहित करने और साथ ही नालंदा परम्परा को जीवित रखते की इच्छा के प्रति सजगता रखते हुए ठिकसे रिनपोछे ने कहा कि हम यहाँ पुस्तकालय तथा शिक्षण केन्द्र का प्रस्ताव रखते हैं। हम लद्दाखी विद्यालयों, भिक्षु विहारों और भिक्षुणी विहारों के लिए धर्मनिरपेक्ष नैतिकता पाठ्यक्रम उपलब्ध कराने की भी योजना बना रहे हैं। परम पावन ने हमें सलाह दी है कि जिस तरह हम शारीरिक रूप से ठीक रहने के लिए कदम उठाते हैं, हमें अपने दिमाग को प्रशिक्षित करने की भी आवश्यकता होती है।"
इन परियोजनाओं का समर्थन करने के लिए ठिकसे रिनपोछे ने लद्दाख स्वायत्त पर्वतीय विकास परिषद से आग्रह किया।
सर्व लद्दाख गोमपा संघ के नेता, गेशे शेडुब जमपा ने आज की सभा के स्थान की पवित्रता पर टिप्पणी की, जहाँ न केवल लोकचक्षु रिनछेन ज़ांगपो ने प्रार्थना की थी कि भिक्षुओं को अपने संवर शुद्ध रखने चाहिए और धर्म पनपना चाहिए पर ठिकसे विहार, घाटी के प्रथम विहार की भी स्थापना अंततः यहीं हुई। इसकी स्थापना जे चोंखापा के शिष्य जंगसेम शेरब ज़ांगपो ने की थी। ठिकसे रिनपोछे उनका नौवां पुनर्जन्म हैं।
उन्होंने इस रमणीय स्थान पर शिक्षण केन्द्र की योजना के लिए ठिकसे रिनपोछे की सराहना की। यह स्थान जो लेह से दूर नहीं जहां बौद्ध धर्म का परिचय, तर्क तथा शास्त्रार्थ में प्रशिक्षण साथ ही ध्यान के लिए निर्देश भी प्रदान किए जाएँगे। उन्होंने वहाँ उपस्थित सभी को इस प्रयास में ठिकसे रिनपोछे का समर्थन करने का आग्रह किया। उन्होंने कहा कि केन्द्र में प्रवेश बिना किसी भेदभाव के प्रत्येक के लिए खुला होगा तथा जातिवाद के विरोध में डिगुङ छेछंग रिनपोछे की हाल की टिप्पणियों का अनुमोदन किया।
लद्दाख बौद्ध संघ के अध्यक्ष छेवंग ठिनले ने ठिकसे रिनपोछे को उनकी पहल के लिए धन्यवाद दिया जिसके बाद उन्होंने घोषणा कि लद्दाख में सांप्रदायिक सौहार्द के संरक्षण के लिए आज प्रातः परम पावन को एक नया प्रस्ताव प्रस्तुत किया गया था। उन्होंने कहा कि लद्दाख बौद्ध संघ इसे स्थायी उपाय करने के लिए यथा संभव प्रयास करेगा। लद्दाख बौद्ध संघ लद्दाख में सांप्रदायिक सद्भाव को बाधित करने के किसी भी प्रयास का विरोध करने का इरादा रखता है। उन्होंने आगे घोषणा की, कि परम पावन ने आज प्रातः के प्रतिनिधिमंडल को बताया कि वे अगले वर्ष पुनः लद्दाख आना चाहते हैं।
लद्दाख स्वायत्त पर्वतीय विकास परिषद के मुख्य कार्यकारी पार्षद, दोर्ज मोटुप ने सभी का अभिनन्दन "जूले" कहते हुए किया। उन्होंने लद्दाख में बौद्धों और अन्य समुदायों के बीच भातृत्व को प्रोत्साहित करने के उनके सकारात्मक प्रभाव के लिए परम पावन के प्रति कृतज्ञता व्यक्त की। यह देखते हुए कि पुस्तकालय तथा शिक्षण केन्द्र कितना लाभकारी होगा, उन्होंने पुष्टि की, कि लद्दाख स्वायत्त पर्वतीय विकास परिषद, परियोजना को जो भी समर्थन चाहिए, वह देगा।
लद्दाख के सांसद थुबतेन छेवांग ने हिमालयी क्षेत्र में मंदिरों, भिक्षु विहारों तथा भिक्षुणी विहारों को शिक्षण केन्द्र में बदलने के पहल के लिए अपना समर्थन दिया। उन्होंने टिप्पणी की, कि जब तक शिक्षा में सुधार के लिए कदम न उठाए जाएँ तब तक लोग अज्ञानी रहते हैं और आगे कहा कि शनैः शनैः आती सांप्रदायिकता को पीछे हटाना होगा।
विधायक, रिगज़िन जोरा ने दर्शकों को बताया कि परम पावन के नियमित उपस्थिति के लिए लद्दाखी कितने भाग्यशाली हैं। और तो और बकुला रिनपोछे के हस्तक्षेप के कारण दक्षिण भारत में पुनर्स्थापित महान तिब्बती महाविहारों में अधिक भिक्षु अध्ययन करने में सक्षम हुए हैं। परिणामस्वरूप विद्वानों और योग्य शिक्षकों की संख्या में बड़ी वृद्धि हुई है जो लद्दाख लौट आए हैं। वे नालंदा परम्परा में प्रशिक्षित हुए हैं जो निर्विवाद आस्था पर कारण तथा शंका का अभिवक्ता है।
एमएलसी, छेरिंग दोर्जे ने कहा कि, जबकि कई विहारों में पहले से ही पुस्तकालय हैं जिनमें कांग्यूर और तेंग्यूर के संग्रह है, ठिकसे में एक आधुनिक पुस्तकालय की संभावना रोमांचक है। उन्होंने श्रोताओं से आग्रह किया कि जब यह पूरा हो जाए तो वे इसका इस्तेमाल करें। उन्होंने प्रार्थनाओं के साथ समाप्त किया कि परम पावन दीर्घायु हों और बार-बार लद्दाख लौटें।
अंत में, परम पावन ने सभा को संबोधित किया।
"हम सब यहाँ आज हैं क्योंकि ठिकसे रिनपोछे ने पुस्तकालय तथा शिक्षण केन्द्र के निर्माण का निश्चय किया है। जिन कई वर्षों से मैं लद्दाख आ रहा हूँ, उसमें मैंने नए विद्यालयों तथा बेहतर जीवन स्तर के संदर्भ में बहुत विकास देखा है। चूंकि हाल में दक्षिण भारत के हमारे शिक्षण केंद्रों में अध्ययन करने में सक्षम भिक्षुओं और भिक्षुणियों की संख्या में बढ़ोत्तरी हुई है, ज्ञान के स्तर में भी सुधार हुआ है।
"भौतिक विकास बना रहेगा, पर वह अपने आप में हमारी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए पर्याप्त नहीं है। यूरोप, अमेरिका और जापान जैसे अत्यधिक विकसित समाजों में, बहुत से लोग न तो खुश हैं और न ही शांतिपूर्ण हैं। स्वार्थ असंतोषजनक है, जबकि यदि आप दूसरों की आवश्यकताओं के लिए चिंता दिखाते हैं, तो आप उन्हें अपना मित्र बना लेंगे। यही कारण है कि सभी धार्मिक परम्पराएं प्रेम एवम् करुणा के विकास को प्रोत्साहित करती हैं।
"हाल ही में, दिल्ली में, मैंने विभिन्न बौद्ध देशों के प्रतिनिधियों से भेंट की, जो एक साथ बैठक कर रहे थे और मैंने उनसे सीधे पूछा - क्या आध्यात्मिक अभ्यास आज प्रासंगिक है? मैंने इंगित किया कि विश्व के कई भागों में महत्वपूर्ण भौतिक विकास के बावजूद, लोगों की चित्त शांति पाने की असमर्थता उन्हें शराब और नशीली दवाइयों की ओर ले जाती है। जापान जैसे कुछ स्थानों पर आत्महत्या की संख्या बढ़ रही है।
"एक उच्छृखंल चित्त के कारण ही लोग एक-दूसरे, धोखा देने और प्रतिस्पर्धा करने में लगे रहते हैं। ठिकसे रिनपोछे लोगों को धर्मनिरपेक्ष नैतिकता में प्रशिक्षित करने की योजना बना रहे हैं क्योंकि हमें अपने दैनिक जीवन में सौहार्दता की आवश्यकता है। प्रेम व करुणा हमारे स्वास्थ्य के लिए अच्छे हैं; क्रोध और घृणा नहीं। मनोविज्ञान और तर्क शास्त्र का अध्ययन करने का ऐसा अवसर उपयोगी और व्यापक रूप से लाभकारी होगा।
"अंतर्धार्मिक सद्भाव कुछ ऐसा है जो सांप्रदायिक शांति में योगदान देता है। जब मैं जांस्कर में था तो मैंने एक मुस्लिम स्कूल का दौरा किया और बौद्धों और मुस्लिमों के बीच के अनबन को हल करने के महत्व की बात की। आज प्रातः, एक प्रतिनिधिमंडल मुझसे मिलने और एक प्रस्ताव पेश करने आया जो विभिन्न धर्मों के साथ-साथ विभिन्न बौद्ध परम्पराओं के बीच सद्भाव के संरक्षण और सद्भाव के बचाव के लिए था। सफल होने के लिए संकीर्ण सोच पर काबू पाने की आवश्यकता होगी, लेकिन मुझे यह प्रस्ताव प्राप्त कर बहुत खुशी है।
"कभी कभी राजनीतिक मतभेद के कारण विवाद उत्पन्न होता है। अन्य मामलों में ऐसा इसलिए होता है क्योंकि तारीख से परे की सोच स्वीकार्य प्रथा बन गई है। एक उदाहरण तथाकथित 'निम्न जातियों' को हेय दृष्टि से देखना है। इस तरह के भेदभाव को अलग किया जाना चाहिए। इसी तरह, सांप्रदायिकता हानिकारक है क्योंकि आध्यात्मिक परंपराओं का उद्देश्य क्रोध और तिरस्कार जैसी विनाशकारी भावनाओं का प्रतिकार है।
"बौद्ध धर्म में पूरी तरह से विभिन्न स्वभाव के लोगों के लिए शिक्षाएं शामिल हैं। परन्तु सभी तिब्बती बौद्ध परम्पराएं नालंदा परम्परा से आई हैं और तेरह शास्त्रीय ग्रंथों का अध्ययन:
१ प्रतिमोक्ष सूत्र,
२ गुणप्रभा द्वारा विनय सूत्र ३ असंग द्वारा अभिधर्मसमुच्चय
४ वसुबंधु द्वारा अभिघर्मकोष
५ नागार्जुन द्वारा मूलमध्यमकारिका
६ चंद्रकीर्ति द्वारा मध्यमकावतार
७ आर्यदेव द्वारा चतुश्शतक
८ शांतिदेव द्वारा बोधिसत्वचर्यावतार
और मैत्रेय / असंग के पांच ग्रंथ,
९ अभिसमयलंकार
१० महायानसूत्रालंकार
११ मध्यांतविभंग,
१२ धर्मधर्मताविभंग
१३ उत्तरतंत्र शास्त्र
"इन पुस्तकों में शिक्षाओं की सामान्य संरचना शामिल है, हमें जिनके पठन व अध्ययन की आवश्यकता है, चूंकि मात्र आस्था पर्याप्त नहीं है। कल और परसों मैं प्रवचन देने जा रहा हूं, इसलिए इस पर कुछ और बात करने का अवसर मिलेगा।"
ठिकसे विहार के कार्यालय के प्रशासक ने धन्यवाद के शब्द प्रस्तुत किए।
ठिकसे से सिंधु नदी के तट पर एक छोटे से एम्फीथिएटर की यात्रा छोटी थी - आमतौर पर सिंधु के नाम से जाने जानी वाली का उद्भव तिब्बत में है जो सिंधु घाट कहलाता है। उन्हें लद्दाख स्वायत्त पर्वतीय विकास परिषद ने मध्याह्न के भोजन के लिए आमंत्रित किया था, जिनके प्रतिनिधि ने उनका स्वागत किया। मध्याह्न भोजन के परोसे जाने से पूर्व लद्दाखी कलाकारों ने बांसुरी, ढोल, ड्राञेन और पिवंग के साथ गीत प्रस्तुत किए।
परम पावन ने निमंत्रण के लिए लद्दाख स्वायत्त पर्वतीय विकास परिषद का धन्यवाद किया और लद्दाख की वर्तमान यात्रा की सफलता में योगदान देने वाले हर किसी के प्रति कृतज्ञता व्यक्त की।
आज, हम उन मित्रों से जुड़े हैं जिनसे मैं अपनी युवावस्था में मिला था। १९५९ के बाद तिब्बत में डिगुङ छेछंग रिनपोछे को बड़ी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, पर अंततः वे निर्वासन में आने में सक्षम हुए। वह पश्चिम में अपने संबंधियों से जुड़े पर अंत में भारत लौट आए, जहाँ उन्होंने अपनी आध्यात्मिक परम्पराओं के अपने उत्तरदायित्वों को निभाने में कठोर परिश्रम किया है।
"लामा लोबसंग को भी मैं उस समय से जानता हूँ जब हम पहली बार १९५६ में मिले। उन दिनों में वे स्थविरवाद भिक्षुओं के चीवर धारण करते थे।
"अब, मेरा पेट मुझसे कह रहा है कि यह मध्याह्न के भोजन का समय है।"
लेह के उपायुक्त, अविनी लवसा ने परम पावन से कहा, "आज हमारे साथ होने के लिए धन्यवाद, सांप्रदायिक सद्भाव का आपका संदेश हम सभी के लिए एक प्रेरणा है, जबकि आपकी ऊर्जा कुछ ऐसी है जिसका अनुकरण करने की हम केवल आशा कर सकते हैं। हम आपके अगले आगमन की प्रतीक्षा करेंगे।"
नदी के तट पर शामियाना के नीचे चुने हुए अतिथियों के साथ आराम से मध्याह्न के भोजन के बाद परम पावन शिवाछेल फोडंग लौट आए। जैसी उन्होंने घोषणा की कि, वह आगामी दो दिन शिवाछेल प्रवचन स्थल से 'बोधिसत्वचर्यावतार' पर प्रवचन देंगे।