लेह, लद्दाख, जम्मू-कश्मीर, भारत, आज प्रातः लद्दाख की वर्तमान यात्रा के दौरान कार्यक्रमों के अंतिम दिन, परम पावन दलाई लामा पुराने महल के पीछे लेह क्षेत्र तक गए। उन्हें अंजुमन मोइन-उल-इस्लाम द्वारा जुमा बाग में बनाए गए सार्वजनिक बगीचे का उद्घाटन करने के लिए आमंत्रित किया गया था। सम्पूर्ण मार्ग में लोगों के समूह उनका अभिवादन करने के लिए मार्ग पर पंक्तिबद्ध होकर खड़े थे। जुमा बाग में आगमन पर डॉ अब्दुल क्वायम ने उनका स्वागत किया, जिन्होंने उनसे बगीचे का उद्घाटन करने के लिए एक स्मारक पट्टिका का अनावरण करने का अनुरोध किया।
परम पावन और अन्य अतिथियों के आसन ग्रहण करने के पश्चात डॉ क्वायम ने उनका अभिनन्दन "अस-सलामु अलयकुम, टाशी देलेक, जुले और स्वागत " करते हुए किया। उन्होंने समझाया कि जहां वे उस स्थान पर एक होटल या व्यापार केंद्र बना सकते थे पर इसके बजाय अंजुमन मोइन-उल-इस्लाम ने एक बगीचा बनाने का फैसला किया जहां परिवार एक साथ चैन से समय बिता सकते थे - एक स्थान जो सार्वजनिक रूप से ज़्यादा कीमत रखता हो। बगीचे में खाने के लिए कई जगहें, एक जिम और एक तीरंदाजी केंद्र शामिल हैं। भविष्य की योजनाओं में लद्दाख के हर हिस्से से प्रदर्शन शामिल हैं। डॉ क्वायम ने जनाब इकबाल द्वारा स्थापित एक दुकान की ओर परम पावन का ध्यान खींचा, जिन्होंने स्वयं अपाहिज होते हुए अन्य अपाहिजों के लिए पुनरावर्तित सामग्री से सामान बनाने का रोजगार उपलब्ध किया है।
नाश्ता परोसा गया। परम पावन से उन लोगों को खातग देने के लिए कहा गया जिन्होंने बगीचे की स्थापना में योगदान दिया था। सबसे पहले जनाब इकबाल सामने आए, जिन्हें एक दोस्त अपनी पीठ पर लेकर आया था। समुदाय की ओर से परम पावन को सलाम करते हुए, डॉ क्वायम ने उनसे सभा को संबोधित करने का निवेदन किया।
"प्रिय भाइयों और बहनों," उत्तर देते उन्होंने कहा, "मैं यहाँ आकर और आपसे मिलकर वास्तव में बहुत खुश हूं और सम्मानित हूं और देख रहा हूँ कि आपने क्या किया है। अपाहिज लोगों के लिए आपने जो मौके बनाए हैं उन्हें देखकर खास तौर पर प्रभावित हूँ। मुझसे अक्सर अपाहिज बच्चों और बूढ़ों को आशीर्वाद देने के लिए कहा जाता है और मुझे दुख होता है कि मैं वास्तव उनकी मदद के लिए बहुत कम कर सकता हूं। बेशक, मैं मंत्र का पाठ कर सकता हूं और उन पर फूंक सकता हूं, पर केवल वही समय है जब मेरी इच्छा होती है कि मेरे पास सच में जादुई शक्ति होती जिसका कुछ लोग मुझे श्रेय देते हैं।
"मुझे बाबा आमटे के आश्रम में किए गए दौरे की याद आती है। उन्होंने उन लोगों के एक समुदाय को इकट्ठा किया, जो कुष्ठ रोग का शिकार हुए थे जिनके कारण कई अपाहिज हो गए थे। और इसके बावजूद मैं उनके आत्मविश्वास और उत्साह से बेहद प्रभावित हुआ, जो मुझे यकीन है कि यह उनके प्रति करुणा और प्रोत्साहन दिखाए जाने का सीधा नतीजा था।
"मुझे यह देखकर खुशी हो रही है कि आपने यहां एक ऐसी जगह बनाई है जहां लोग साथ मिलकर आनंद उठा सकते हैं और खासकर यह सभी लोगों के लिए खुला है। मैं सामान्य रूप से भारत की बहुत सराहना करता हूँ पर जातिवाद का निरंतर रहना बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है। मुझे लगता है कि सभी धर्मों के धार्मिक नेताओं को यह स्पष्ट करना चाहिए कि हम सभी इंसानों के रूप में समान हैं और किसी भी तरह के जाति भेदभाव को समर्थन देने से इनकार करते हैं।"
परम पावन ने जनमानस को बताया कि उसके पास कहने के लिए बहुत कुछ नहीं था। उन्होंने उल्लेख किया कि वह कल दिल्ली जाएंगे और कुछ दिनों में गोवा और बैंगलोर की यात्रा करेंगे जहां वह युवा भारतीयों से चित्त और भावनाओं के प्रकार्य की प्राचीन भारतीय समझ के बारे में सीखने के लाभों के बारे में बात करेंगे।
"कोई भी दुःख नहीं चाहता, पर हम खुद ही अपने पर मुसीबतें लादते हैं क्योंकि हम अपनी नकारात्मक भावनाओं के काबू में आ जाते हैं। मुसीबत का वास्तविक स्रोत हमारे पास रखा कोई हथियार नहीं है, बल्कि हमारे दिल का क्रोध, घृणा और ईर्ष्या है। एक तरफ मेरा मानना है कि अगर हम एक और अधिक शांतिपूर्ण दुनिया में रहना चाहते हैं तो हमें इसका विसैन्यीकरण करने की जरूरत है। वास्तव में, कुछ साल पहले रोम में नोबेल शांति विजेताओं की एक बैठक में, हमने परमाणु हथियार उन्मूलन के लिए समय सारिणी निर्धारित करने की योजनाओं पर गंभीरता से चर्चा की थी।
"परन्तु दूसरी ओर, इस तरह के कदमों में बाहरी निरस्त्रीकरण शामिल है। और यदि इसे कामयाब होना है, तो हमें पहले आंतरिक निरस्त्रीकरण प्राप्त करने की आवश्यकता है। जब क्रोध भड़कता है तो यह हमारी चित्त की शांति को नष्ट कर देता है। यदि हम अगर हर समय क्रोध में रहते हैं तो यह हमारे स्वास्थ्य को नष्ट कर देता है। हमें क्रोध और अन्य विनाशकारी भावनाओं को सीमित करने के लिए यथार्थवादी, व्यावहारिक कदम उठाने होंगे। प्रार्थना के अपने फायदे हैं, पर यदि हम परिवर्तन हासिल करना चाहते हैं तो हमें कार्रवाई करनी होगी।"
जुमा बाग से शिवाछेल लौटते हुए परम पावन थोड़ी देर लेह, सबू और चोगलमसर के तिराहे पर दोर्जे यमक्योंग भविष्यवाणी कर्ता के माध्यम से निर्मित एक नए स्तूप की प्राण प्रतिष्ठा के लिए रुके।
शिवाछेल में कालचक्र मैदान में प्रवचन शामियाने में पहुँचकर, परम पावन ने बुजुर्ग लोगों के कई समूहों को आशीर्वाद दिया जो उनका इंतज़ार कर रहे थे। उन्होंने एक चौकोर के तीन किनारों पर शामियाने के नीचे बैठे लोगों का अभिनन्दन किया और मंच पर अपना आसन ग्रहण किया। टैरपॉलिन से ढंके मैदान में कई सांस्कृतिक कार्यक्रम, गीत और नृत्य हुए।
लद्दाख गोनपा एसोसिएशन के अध्यक्ष गेशे शेडुब जमपा ने एक स्वागत भाषण दिया। उन्होंने टिप्पणी की कि विगत कुछ वर्षों में परम पावन ने लगभग पूरे लद्दाख का दौरा किया है और लद्दाख में तीन बार कालचक्र अभिषेक दिया है। उन्होंने आगे कहा कि परम पावन ने शिक्षा और सलाह के संदर्भ में इतना कुछ दिया है कि उन्होंने वास्तव में कंग्यूर और तेंग्यूर का सार प्रदान किया है। उन्होंने एक प्रार्थना के साथ समाप्त किया कि वह अगले वर्ष पुनः आएं।
एक अनुरोध के उत्तर में कि वे दो शब्द कहें, परम पावन ने लद्दाख बौद्ध संघ और लद्दाख गोनपा एसोसिएशन में अपने मित्रों को एक समारोहीय भोज का आयोजन करने के लिए धन्यवाद दिया।
"मैं यहाँ ३ जुलाई को पहुंचा और आज ३ अगस्त है और इस तरह एक महीना हो गया है," उन्होंने आगे कहा। "इस दौरान मैं लेह, नुबरा, जांस्कर, कारगिल और मुलबेक गया हूँ। लोगों की भक्ति और आस्था अविचल है। और चूंकि मैं कुछ प्रवचन देने में सक्षम रहा हूँ, मुझे लगता है कि मैं धर्म और प्राणियों के कल्याण में थोड़ा योगदान दे सका हूँ।
"मैं जिन जगहों पर भी गया उन सभी जगहों पर, हमारे मुसलमान मित्र हमसे जुड़े जिसकी मैं सराहना करता हूँ। मुझे लगता है कि हम दोनों समुदायों को थोड़ा करीब लाने में सक्षम हैं।
"केमा क्योंगरु के डिगुङ विहार ने मुझे अगले वर्ष जाने के लिए आमंत्रित किया है, पर देखना होगा कि मैं जा सकता हूँ अथवा नहीं। जब धर्मशाला में बारिश और आर्द्रता होती है तो सूखे लद्दाख में आना अच्छा लगता है। पर यह बूढ़ा आदमी लद्दाख में आराम करने के लिए आ रहा है, एक व्यस्त कार्यक्रम का पालन करने के लिए नहीं। मैं नुबरा जाऊं या नहीं, देखना होगा। अगले वर्ष मैं ८४ वर्ष का हो जाऊंगा। क्या आप इस पुराने साथी को थोड़े आराम से जीकर एक लम्बा जीवन जीने देंगे या फिर एक व्यस्त कार्यक्रम का पालन करते हुए एक लघु जीवन? आप यहां और तिब्बत के लोग सभी प्रार्थना करते हैं कि मैं दीर्घायु बनूं, पर मेरा शरीर केवल मांस और हड्डी का है और यदि मैं इसे थका देता हूं तो यह संभावना है कि यह मेरे जीवन को छोटा कर देगा।
"यह लद्दाख की इस यात्रा का आखिरी दिन है और इस महीने के दौरान मैंने जो शांतिदेव कहते हैं उसे ध्यान में रखा है:
"अंतरिक्ष और पृथ्वी जैसे महान तत्व की तरह
मैं सदैव जीवन का समर्थन करूं
सभी असीम प्राणियों का।
"और जब तक वे पीड़ा से दूर नहीं जाते मैं भी जीवन का स्रोत होऊं
सभी लोकों के विभिन्न प्राणियों के लिए
जो आकाश के अंत तक पहुंचता है।
"बस इतना ही, अब, चलिए खाना खाएँ।"
लद्दाख बौद्ध संघ के उपाध्यक्ष, पीटी कुनजंग ने लद्दाख में अपनी गर्मी बिताने के लिए परम पावन को धन्यवाद दिया और उन्हें अगले वर्ष पुनः आने के लिए आमंत्रित किया। उन्होंने उन सभी को धन्यवाद दिया जिन्होंने परम पावन की यात्रा को सफल बनाने में योगदान दिया था जिसमें एलएएचडीसी, डीसी, एसएसपी इत्यादि शामिल थे।
प्रवचन शामियाने में मध्याह्न भोजन के लिए परम पावन के साथ गदेन ठिसूर रिनपोछे, ठिकसे रिनपोछे, थुकसे रिनपोछे, वोसेर रिनपोछे और अन्य लामा और लद्दाख बौद्ध संघ और लद्दाख गोनपा संघ के अधिकारी शामिल हुए। जब भोजन समाप्त हुआ, तो परम पावन शिवाछेल फोडंग लौट गए। कल प्रातः वे दिल्ली के लिए उड़ान भरेंगे।