थेगछेन छोलिंग, धर्मशाला, हि. प्र., भारत, परम पावन दलाई लामा ने वियतनामी व्यापार के नेताओं, कलाकारों, बुद्धिजीवियों और युवा प्रतिनिधियों के सदस्यों से आज दूसरी बार भेंट की। सर्वप्रथम उन्होंने श्वेत मंजुश्री अनुज्ञा हेतु प्रारंभिक अनुष्ठान किया, जबकि श्रोता बुद्ध शाक्यमुनि के मंत्र का पाठ कर रहे थे।
परम पावन ने समझाया, "आज जीवित ७ अरब मनुष्यों को तीन समूहों में वर्गीकृत किया जा सकता है," एक जो आंतरिक मूल्यों पर अधिक ध्यान नहीं देता, दूसरा जो धर्म को नकारात्मक मानता है और एक अन्य जो आध्यात्मिक अभ्यास का सम्मान करता है। सब को सुखी होने का एक समान अधिकार है, परन्तु ऐसा प्रतीत होता है कि कठिनाइयों या हताश परिस्थितियों का सामना करते समय जिन लोगों में धार्मिक आस्था होती है, वे इतनी सरलता से हताश नहीं होते।
"जैन धर्म, सांख्य और बौद्ध धर्म की एक शाखा एक सृजनकर्ता में विश्वास नहीं रखती। बौद्ध धर्म के अतिरिक्त अन्य सभी धार्मिक परम्पराएँ एक स्वतंत्र, स्थायी आत्म या अात्मा की धारणा को स्वीकार करती हैं। प्रतीत्य समुत्पाद का अर्थ है कि स्वतंत्र आत्मा का यह विचार असमर्थनीय है।
"बुद्ध ने शिक्षा दी कि वस्तुएँ जिस रूप में प्रतीत होती हैं उस रूप में अस्तित्व नहीं रखतीं। बाद में, बौद्ध धर्म के भीतर ही चार प्रमुख विचारधाराओं का विकास हुआ जिनमें से हर चार आर्य सत्य, सत्य द्वय और नैरात्म्य की धारणा को स्पष्ट करती है, पर उन सब में मध्यम मार्ग (मध्यमक) प्रस्तुति है जो सबसे अधिक वैज्ञानिक है।"
परम पावन ने समझाया कि क्लेशों की उत्पत्ति वस्तुओं की परम प्रकृति की भ्रांत समझ के आधार पर उत्पन्न होती हैं तथा शून्यता की समझ से उनका आमूल विनाश संभव है।
परम पावन ने टिप्पणी की, "यह स्पष्ट रूप से समझने के लिए कि किस तरह शून्यता को समझने वाली प्रज्ञा से क्लेशों का प्रतिकार संभव है, जिस रूप में वह भारतीय शास्त्रीय बौद्ध ग्रंथों में समझाया गया है मनोविज्ञान का अध्ययन करना महत्वपूर्ण है।"
यह स्पष्ट करते हुए कि शून्यता की अनुभूति का संबंध निर्वाण से है परम पावन ने नागार्जुन की ''प्रज्ञानाममूलमध्यमकारिका' को उद्धृत किया:
कर्म और क्लेशों के क्षय में मोक्ष है;
कर्म और क्लेश विकल्प से आते हैं,
विकल्प मानसिक प्रपञ्च से आते हैं,
शून्यता में प्रपञ्च का अंत होता है।
परम पावन ने आर्यदेव के चतुःशतक का भी उद्धरण दिया:
जिस तरह स्पर्श भावना शरीर में व्याप्त है उन सभी में भ्रम मौजूद है।
भ्रम पर काबू पाकर आप भी सभी क्लेशों पर काबू पाएँगे।
जब प्रतीत्य समुत्पाद दृष्टिगत होता है भ्रम नहीं होगा इस प्रकार इस विषय को सटीक रूप से समझाने के लिए यहाँ हर प्रयास किया गया है।
परम पावन ने यह भी समझाया कि निर्वाण तथा प्रबुद्धता की प्राप्ति के लिए शून्यता की समझ आवश्यक है। उन्होंने आगे इंगित किया कि दुःख का वास्तविक स्रोत अति स्वकेंद्रित दृष्टिकोण और एक स्वतंत्र आत्मा की गलत धारणा को बनाए रखना है। उन्होंने समझाया कि किस तरह दूसरों के प्रति सोच की भावना क्रोध का प्रतिकार करने में संभव है।
बुद्ध की शिक्षाओं के सिंहावलोकन को पूरा करने के उपरांत परम पावन ने श्वेत मंजुश्री की अनुज्ञा दी, जिसके बारे में उन्होंने सूचित किया जब वे तिब्बत में युवा ही थे, यह उन्हें तगडग रिनपोछे से प्राप्त हुई थी। अंत में, उन्होंने वियतनामियों से अपनी भाषा में हृदय सूत्र का पाठ करने के लिए कहा। जैसे ही सत्र का समापन हुआ, उन्होंने समूह को आश्वासित किया कि वे आगामी वर्ष उनसे भेंट करेंगे।