नई दिल्ली, भारत, दिन का प्रारंभ करते हुए, परम पावन दलाई लामा ने सितंबर में नीदरलैंड की संभावित यात्रा के संबंध में डच टेलीविजन के लिए एड्रियान वैन डिस को एक साक्षात्कार दिया। वैन डिस ने यह पूछते हुए प्रारंभ किया कि क्या परम पावन कभी क्रोधित होते हैं और परम पावन ने उन्हें बताया कि कभी-कभी उन्हें क्रोध आता है, पर वह बहुत देर तक बना नहीं रहता। उन्होंने उन अन्य लोगों के बारे में बात की जिन्हें क्रोध आता है तथा अमीरों और गरीबों के बीच भेदभाव पर बात की। परम पावन ने टिप्पणी की, कि इतिहास स्पष्ट करता है अमीर ऊपरी वर्गों ने गरीबों का शोषण किया है, जो यद्यपि समान अधिकार रखते हैं, पर जिन्हें आत्मविश्वास निर्मित करना कठिन लगता है।
वान डिस ने युवा तिब्बती लेखकों द्वारा व्यक्त किए गए क्रोध का उल्लेख किया। परम पावन ने समझाया कि तिब्बत पर न केवल भौतिक रूप से कब्ज़ा हुआ है पर यह भी कि चीनी अधिकारियों के बीच कट्टरपंथी भी किसी विशिष्ट तिब्बती गुणवत्ता जैसे तिब्बती संस्कृति और भाषा को अलगाववाद की अभिव्यक्ति के रूप में देखते हैं। परिणामस्वरूप बौद्ध धर्म और तिब्बती का अध्ययन प्रतिबंधित है।
"कुछ ऐसे भी हैं, जो मुझसे क्रोधित हैं क्योंकि १९७४ से मैंने स्वतंत्रता के लिए प्रचार नहीं किया। भौतिक विकास के संबंध में हम चीन के जनवादी गणराज्य के साथ रहते हुए लाभान्वित हो सकते हैं, पर हमें अपनी भाषा और संस्कृति को संरक्षित करने और अपनी मातृभूमि के प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा करने में सक्षम होना चाहिए। यह आखिरी बिंदु न केवल तिब्बती लोगों के लिए रुचि का विषय है क्योंकि एशिया की प्रमुख नदियां तिब्बती पठार से उद्भूत होती हैं और एक अरब से अधिक लोग उनके जल पर निर्भर करते हैं।"
संवाद चित्त तथा मस्तिष्क के वैज्ञानिक रूप में परिवर्तित हो गया।
परम पावन ने समझाया, "हमारी दो प्रकार की भावनाएं हैं," एक जो विनाशकारी हैं, जैसे क्रोध व ईर्ष्या, जो हमारे चित्त की शांति को नष्ट कर देते हैं और हमारे स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाती हैं। लेकिन हमारे पास करुणा की तरह अन्य सृजनात्मक भावनाएँ भी हैं, जो हममें आंतरिक शक्ति लाती हैं।"
यह पूछे जाने पर कि हम नकारात्मक भावनाओं से कैसे छुटकारा पा सकते हैं, परम पावन ने उत्तर दिया, "उनका विश्लेषण करें। भावनाओं की अपनी व्यवस्था की सामान्य समझ विकसित करें, उदाहरण के लिए, किस तरह आत्म-केंद्रितता और चिंता क्रोध को जन्म देती है। लोगों को इन बातों की बेहतर समझ की आवश्यकता है कि वास्तव में वस्तुएं कैसी होती हैं, मानसिक प्रक्षेपण की भूमिका और धर्मनिरपेक्ष नैतिकता की आवश्यकता।"
अपने स्वयं के पुनर्जन्म के संबंध में परम पावन ने माना कि बुद्ध या नागार्जुन का कोई मान्यता प्राप्त पुनर्जन्म नहीं हुआ। उन्होंने सुझाया कि कुछ मामलों में व्यवस्था सामंती प्रथाओं में घुली मिली है जिसमें लामा के कर्मचारी उनकी संपत्ति और विशेषाधिकार का आनंद लेने के लिए अधिक चिंतित हैं। उन्होंने दोहराया कि १९६९ के प्रारंभ में ही उन्होंने यह स्पष्ट कर दिया था कि १५वें दलाई लामा होंगे अथवा नहीं, यह तिब्बती लोगों पर निर्भर करेगा। उन्होंने टिप्प्णी की, कि वर्ष के अंत में इस प्रश्न पर चर्चा करने के लिए तिब्बती धार्मिक नेताओं की पुनः एक बैठक होगी। उन्होंने इंगित किया कि कुछ मामलों में एक विकल्प का पालन किया गया है जिसके लिए पूर्ववर्ती की मृत्यु से पूर्व उत्तराधिकारी को नामांकित किया जाना चाहिए। परम पावन ने योग्य व्यक्तियों में से एक को पोप चुने जाने के तरीके को भी स्वीकार किया।
इस बात की सिफारिश करते हुए कि किस तरह एक बेहतर विश्व बनाया जाए, परम पावन ने घोषणा की कि मुख्य बात मानवता की एकता की अधिक सामान्य मान्यता थी-यह समझते हुए कि आज जीवित ७ अरब मनुष्य वास्तव में भाई और बहन हैं।
दक्षिण दिल्ली में एक छोटी ड्राइव के बाद परम पावन को त्यागराज स्टेडियम पहुँचे, जहां दिल्ली के पब्लिक विद्यालयों के ५००० से अधिक प्रधानाध्यापकों और शिक्षक एक नए 'सुख के पाठ्यक्रम' के प्रारंभ की प्रतीक्षा कर रहे थे। उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने उऩका स्वागत किया और भवन के अन्दर उनका अनुपालन किया, जहाँ शीघ्र ही मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल भी उनके साथ आ गए। जब उन्होंने सभागार में प्रवेश किया और मंच पर पहुंचे तो उत्साहपूर्व तालियों की गड़गड़ाहट से उनका स्वागत हुआ।
संक्षिप्त परिचय हो जाने के उपरांत परम पावन और उनके मेजबानों से दीप प्रज्ज्वलन का आग्रह किया गया, जो कि प्रज्ञा के प्रकाश द्वारा अज्ञानता के अंधकार पर विजय प्राप्त करने का प्रतीक था। संगीत शिक्षकों के एक समूह ने एक स्वागत गीत गाया जिसकी रचना उन्होंने स्वयं की थी और छात्रों ने प्रत्येक गणमान्य व्यक्तियों को पौधे प्रस्तुत किए।
अपने संबोधन में, श्री सिसोदिया ने 'सुख का पाठ्यक्रम' तैयार करने की प्रेरणा के लिए परम पावन का धन्यवाद किया। उन्होंने कहा कि बुनियादी ढांचे में सुधार और शिक्षकों से अपेक्षित लिपिक कार्य को कम करने के बाद वे और उनके सहयोगी छात्रों को खुश रहने के लिए सहायता कर बेहतर शिक्षा सुनिश्चित करना चाहते थे। उन्होंने परम पावन की सलाह का उदाहरण दिया कि किस तरह भारत नकारात्मक भावनाओं से निपटने के तरीके के बारे में प्राचीन ज्ञान के साथ आधुनिक शिक्षा को जोड़ने की अनूठी स्थिति में है। 'सुख के पाठ्यक्रम' में ध्यान, जागरूकता और सार्वभौमिक मानव मूल्यों के प्रशिक्षण के समय सम्मिलित होंगे। उन्होंने परम पावन को बताया कि शिक्षक उनके विचार सुनने के लिए उत्साहित थे। उन्होंने एक शिक्षक का उल्लेख किया जिसने आज पदोन्नति के लिए आवश्यक परीक्षा में बैठने के बजाय उन्हें सुनने का निश्चय किया था।
मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने अंग्रेजों द्वारा छोड़ी गई शिक्षा की प्रणाली की आलोचना की, जो मात्र परीक्षा उत्तीर्ण करने की तैयारी के रूप में थी। उन्होंने कहा कि वे छात्रों को शिक्षित करना चाहते थे जो कि देश को आगे ले जाने में सक्षम हों। उस आधार पर, उन्होंने आगे कहा, दिल्ली सरकार ने शिक्षा बजट को दुगुना कर दिया है। उन्होंने बेहतर मूल्यों के साथ नए पाठ्यक्रम को बेहतर तथा सुखी इंसान बनाने के एक सुदृढ़ कदम के रूप में वर्णित किया।
श्री केजरीवाल ने घोषणा की कि परम पावन दलाई लामा की तुलना में 'सुख का पाठ्यक्रम' का उद्घाटन करने के लिए कोई बेहतर व्यक्ति नहीं था। उन्होंने दिल्ली सरकार के निमंत्रण को स्वीकार करने के लिए व्यक्तिगत रूप से उनका धन्यवाद किया। वे, सिसोदिया और परम पावन ने पैकेट को खोला और औपचारिक रूप से परियोजना से संबंधित पुस्तकों का विमोचन किया।
नए कार्यक्रम के उद्देश्यों में छात्रों में आत्म-जागरूकता तथा जागरूकता; महत्वपूर्ण आलोचनात्मक चिन्तन का विकास करना, संचार कौशल में वृद्धि; दूसरों के साथ अधिक सहानुभूति को प्रोत्साहित करना; छात्रों को तनाव से निपटने में सहायता करना और सामाजिक जागरूकता और मानव मूल्यों की एक बड़ी भावना विकसित करना सम्मिलित है।
उनके वक्तव्य के लिए किए गए अनुरोधों के उत्तर में, परम पावन मंच की ओर आए और सभी का अभिनन्दन करते हुए प्रारंभ किया। "मेरे प्रिय सम्मानित मित्रों, दिल्ली के मुख्यमंत्री और उनके उप मंत्री, बड़े भाइयों और बहनों, साथ ही छोटे भाइयों और बहनों, मुझे लगता है कि यह वास्तव में एक सार्थक अवसर है। मैं आपके द्वारा किए गए प्रयासों की सराहना करता हूँ और मैं वास्तव में सम्मान का अनुभव करता हूँ कि आपने मुझे आज आने के लिए आमंत्रित किया। मुझे इस पर पूर्ण विश्वास है कि प्राचीन भारतीय ज्ञान के साथ आधुनिक शिक्षा में जो अच्छा है उसे जोड़ना संभव है।
"मैं स्वयं प्राचीन भारतीय चिन्तन का छात्र हूं। ८वीं शताब्दी में, चीन के साथ दीर्घ कालीन संबंधों के बावजूद, तिब्बती सम्राट ने भारतीय देवनागरी लिपि के आधार पर तिब्बती लेखन को विकसित करना चुना। उन्होंने भारत से बौद्ध धर्म के योग्य शिक्षकों को आमंत्रित करने का भी चयन किया --- एक विशुद्ध भिक्षु शांतरक्षित, एक महान विद्वान, एक दार्शनिक और तर्कज्ञ और उनके छात्र कमलशील नालंदा से आए और तिब्बत में बौद्ध धर्म की स्थापना की। अध्ययन करने के इन आचार्यों के दृष्टिकोण की विशेषता शंका तथा कारण का उपयोग थी। यह एक ऐसी व्यवस्था है जिसमें ३० वर्षों का अध्ययन शामिल है।
"मैंने भी इस तरह से अध्ययन करना सीखा और, यद्यपि जब मैं युवा था तो मैं आलसी और अनिच्छुक था, पर बाद में मैं इसकी सराहना करने लगा कि यह कितना उपयोगी है। एक तिब्बती विद्वान ने उल्लेख किया कि यद्यपि यह हिम भूमि के रूप में जाना जाता था, पर जब तक ज्ञान का प्रकाश भारत से नहीं आया, तिब्बत अंधकार में था।
"हम तिब्बती न केवल अपने आप को भारतीय गुरुओं के चेला या शिष्य के रूप में देखते हैं, बल्कि विश्वसनीय चेलों के रूप में सोचते हैं क्योंकि हमने जो सीखा उसे १००० से अधिक वर्षों से जीवित रखा है।
"मैंने देखा है कि हमारी कई समस्याएं, जिनका कि हम सामना करते हैं, स्व निर्मित हैं। हम क्रोध, घृणा, ईर्ष्या और संदेह से पीड़ित हैं और फिर भी आधुनिक शिक्षा में चित्त की शांति प्राप्त करने को लेकर विचार बहुत कम हैं। यह भौतिक लक्ष्यों की ओर उन्मुख है। मैं जहां भी जाता हूं, आधुनिक शिक्षा की अपर्याप्तता और आंतरिक मूल्यों को बढ़ावा देने की विफलता की ओर ध्यान आकर्षित करता हूं। मैं इंगित करता हूं कि जिस तरह हम शारीरिक स्वच्छता के बारे में सिखाते हैं, हमें भावनात्मक स्वच्छता भी विकसित करने की आवश्यकता है, क्योंकि शारीरिक रूप से ठीक होने के साथ-साथ हमें मानसिक रूप से भी स्वस्थ होना चाहिए।
"शमथ और विपश्यना जैसे प्राचीन भारतीय अभ्यासों ने चित्त के प्रकार्य के गहन व सूक्ष्म समझ को जन्म दिया। इसके अतिरिक्त प्राचीन भारतीय ज्ञान ने करुणा और अहिंसा को प्रोत्साहित किया। ये सब भारत के अनूठे धार्मिक बहुलवाद की भावना का आधार हैं, जिसमें कई धार्मिक परम्पराएं सद्भाव से साथ साथ रहती हैं - यह स्पष्ट रूप से प्रदर्शित करते हुए कि ऐसा करना संभव है।
"हमारे जीवन का उद्देश्य सुखी रहना है। हम निरंतर आशा में जीते हैं। ऐन्द्रिक अनुभव पर आधारित सुख अल्पकालिक है, जबकि स्थायी सुख का अंतिम स्रोत चित्त में है।
"यद्यपि इसका विवरण तथा विनाशकारी भावनाओं से निपटने के उपाय बौद्ध ग्रंथों में स्पष्ट किए गए हैं, पर इस बात का कोई कारण नहीं है कि हम उस ज्ञान को निकाल कर धर्मनिरपेक्ष शैक्षणिक तरीके से इसकी जांच नहीं कर सकते। विनाशकारी भावनाओं से निपटने के उपाय आज के विश्व में बहुत प्रासंगिक हैं। उनके लिए मंदिर, अनुष्ठान या प्रार्थनाओं की आवश्यकता नहीं अपितु धर्मनिरपेक्षता के आधार पर एक तर्कसंगत शिक्षा शामिल है।
"एक बार इस देश ने एकीकृत शिक्षा प्रणाली विकसित कर ली, जिसमें आधुनिक और प्राचीन स्रोतों से जो अच्छा है उसे शामिल कर लिया जाए, तो मेरा मानना है कि चीन भी रुचि लेगा। इसका २.५ अरब से अधिक लोगों पर प्रभाव पड़ सकता है और विश्व भर में दूरगामी प्रभाव पड़ सकते हैं। इस संदर्भ में आप भारत की राजधानी में जो प्रयास कर रहे हैं, उसका महत्व अधिक हो जाता है।"
श्रोताओं के प्रश्नों के उत्तर में परम पावन ने इस बात पर सहमति व्यक्त की, कि सम्पन्न होना इस बात को सुनिश्चित नहीं करता कि आप सुखी होंगे। उन्होंने एक अमेरिकी कुलपति का उल्लेख किया जिसे अच्छा वेतन मिलता था और जो सुप्रतिष्ठित था, पर फिर भी तनाव और चिंता ने उन्हें दुखी कर रखा था। इसके विपरीत, परम पावन ने एक ईसाई भिक्षु का उल्लेख किया जिनसे वे स्पेन में मिले थे जिसने प्रेम पर ध्यान करते हुए एक साधु के रूप में पांच वर्ष बिताए थे। उनके पास मात्र बुनियादी सुविधाएं थीं और फिर भी उनकी आंखों की चमक उनके सच्चे सुख के अनुभव को प्रकट करती थीं।
अंत में, यह पूछे जाने पर कि प्रबुद्धता क्या है और इसे कैसे प्राप्त किया जा सकता है, परम पावन ने स्पष्ट किया कि इसे प्रार्थना से कम व चित्त प्रशिक्षिण से अधिक प्राप्त किया जा सकता है। दिन-प्रतिदिन अध्ययन और चिंतन से अज्ञान को दूर करना संभव है। इसे परोपकार के साथ संयोजित कर प्रबुद्धता के मार्ग पर चलना संभव है।
जैसे ही कार्यक्रम समाप्त होने को आया, परम पावन को एक कला शिक्षक द्वारा बनाया गया एक चित्र प्रस्तुत किया गया। परम पावन ने मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री को मंगल प्रतीक और श्वेत स्कार्फ प्रस्तुत किए। शिक्षा सचिव द्वारा धन्यवाद प्रस्ताव के उपरांत हर कोई राष्ट्रीय गान के लिए खड़ा हुआ। परम पावन ने मुख्यमंत्री और उनके मंत्रिमंडल के सदस्यों के साथ मध्याह्न के भोजन का आनन्द लिया, जिसके बाद मुख्यमंत्री केजरीवाल और उपमुख्यमंत्री सिसोदिया परम पावन को विदा देने उनके साथ उनकी गाड़ी तक गए।
कल, परम पावन लद्दाख के लिए उड़ान भरेंगे।