थेगछेन छोलिंग चुगलगखंग, धर्मशाला, हि. प्र., आज प्रातः मुख्य तिब्बती मंदिर, चुगलगखंग के प्रांगण को बहुत विस्तृत रूप से अलंकृत किया गया था। ऊपर के शामियाने भारतीय तिरंगे के रंग भगवा, श्वेत और हरे से सजे थे। अतिथि, जिनसे प्रांगण भरा हुआ था प्रतीक्षा में थे जब परम पावन दलाई लामा के निवास का मुख्य द्वार खुला और उनका आगमन हुआ। वे शुभचिन्तकों की ओर देख अभिनन्दन में हाथ हिलाते और यदा कदा किसी से हाथ मिलाने के लिए रुकते हुए सीधे केंद्रीय गलियारे की ओर गए। जब वे मंदिर के नीचे मंच पर पहुंचे तो उनका परिचय अतिथियों और गणमान्य व्यक्तियों के साथ कराया गया और उन्होंने जनमानस की ओर देख मुस्कुराते हुए अपना आसन ग्रहण किया।
केन्द्रीय तिब्बती प्रशासन (सीटीए) के अंतर्राष्ट्रीय संबंध सचिव तथा 'थैंक यू इंडिया (धन्यवाद भारत )' समिति के अध्यक्ष, सोनम दगपो ने अवसर का परिचय दिया। उन्होंने बताया कि ३१ मार्च, परम पावन के १९५९ में तिब्बत से पलायन करने के उपरांत भारत पहुँचने के दिन को चिन्हित करता है। आज उस दिन को मनाने का एक वर्ष के समारोह का प्रारंभ है जिसकी परिणिति आगामी वर्ष साठवें वार्षिकत्सव में होगी। परम पावन का अभिनन्दन करने के अतिरिक्त उन्होंने मुख्य अतिथि भारत के संस्कृति राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार), पर्यटन और नागरिक उड्डयन मंत्री, महेश शर्मा और विशिष्ट अतिथि, भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव राम माधव का स्वागत किया।
तिब्बती इंस्टीट्यूट ऑफ परफॉर्मिंग आर्ट्स (टीआईपीए) के कलाकारों ने 'थैंक यू इंडिया (धन्यवाद भारत )' गीत का भावपूर्ण प्रस्तुतीकरण किया।
स्थानीय कांगड़ा सांसद, पूर्व मुख्यमंत्री और संयोजक, ऑल पार्टी इंडियन संसदीय फोरम फोर तिब्बत (तिब्बत के लिए सर्वदलीय भारतीय संसदीय मंच) के श्री शांता कुमार ने आज के दिन को एक विशिष्ट दिवस के रूप में घोषित किया। उन्होंने स्मरण किया कि जब परम पावन भारत आए तो उनका स्वागत परिवार के एक अन्य सदस्य के रूप में हुआ था। उन्होंने टिप्पणी की कि परम पावन की उपस्थिति के कारण धर्मशाला और कांगड़ा ने विश्व मानचित्र पर एक स्थान अर्जित किया है, जिसके लिए उन्होंने भारत सरकार और परम पावन के प्रति आभार व्यक्त किया। उन्होंने प्रार्थना की कि चीन के अधिकारियों के मन और हृदय में इस तरह का परिवर्तन हो, जिससे वे तिब्बत में परम पावन का सम्मानपूर्वक स्वागत कर सकें। उन्होंने आगे कहा कि "जब वह आनन्द पूर्ण दिवस आएगा तो कृपया कांगड़ा और हिमाचल प्रदेश के लोगों को विस्मृत न करें।"
कोर ग्रुप फोर द टिब्बेटेन कॉज के राष्ट्रीय संयोजक, अरुणाचल के आर. के. खिरमे ने बताया कि जब सिक्योंग डॉ लोबसंग सांगे ने उन्हें इस उत्सव की योजनाओं के बारे में बताया तो उनके मन में एक शांति पद यात्रा समारोह मनाने का विचार आया। उनका विचार था कि जहाँ परम पावन सीमा पार कर तवांग पहुँचे उसी मार्ग पर पुनः चला जाए, इत्यादि। उन्होंने जिन दर्रों पर वे चढ़े और उतरे और मार्ग में जिन लोगों और चमत्कारिक वृक्षों से मिले , की कहानियों से जनमानस का मनोरंजन किया।
सातवें असम राइफल्स के एकमात्र ज्ञात जीवित व्यक्ति, नरेन चंद्र दास, जिन्होंने १९५९ को भारत में परम पावन का स्वागत किया था, को सम्मानित करने के लिए आमंत्रित किए जाने पर परम पावन ने उस वयोवृद्ध व्यक्ति को गले लगाया।
तत्पश्चात उन्होंने सोनम वांगचुग शक्सपो की नई पुस्तक 'कुशोक बकुला रिनपोछे: द आर्किटेक्ट ऑफ मॉर्डर्न लद्दाख (कुशोक बकुला रिनपोछे: आधुनिक लद्दाख के शिल्पकार)' का विमोचन किया।
मध्य प्रदेश का प्रतिनिधित्व करते हुए कांग्रेस नेता और राज्यसभा सदस्य सत्यव्रत चतुर्वेदी ने दिन के कार्यक्रम को मित्रों के प्रति अपनी भावनाओं को व्यक्त करने हेतु एक अनोखा अवसर बताया। उन्होंने कहा कि तिब्बत में बौद्ध धर्म की नालंदा परंपरा की स्थापना के समय से भारत और तिब्बत के संबंध फले फूले थे और एक गहन दीर्घकालिक मैत्री बनी हुई थी। उन्होंने इस भावना को अभिव्यक्ति दी, कि परम पावन और वे तिब्बती जिन्होंने परम पावन का अनुसरण किया था, शरणार्थी नहीं बल्कि अतिथि थे। "आपको अपने बीच देख हम खुश हैं, पर हम यह भी चाहते हैं कि आप स्वदेश लौटने में सक्षम हों, इस आशापूर्ण विश्वास के साथ कि आप हमसे भेंट करने हेतु बार बार आएंगे।"
टीआईपीए के सदस्यों ने भारतीय शास्त्रीय नृत्य भरतनाट्यम का एक प्रभावपूर्ण प्रदर्शन किया, जो पारम्परिक रूप से महिलाओं द्वारा किया जाता था।
निर्वासन में तिब्बती संसद के अध्यक्ष, श्रद्धेय खेनपो सोनम तेनफेल अगले वक्ता थे। उन्होंने स्मरण किया कि १९५९ में सीमा पर पहुँचने पर परम पावन को प्रधान मंत्री नेहरू से भारत में स्वागत का एक संदेश प्राप्त हुआ। अल्प समय में ही मसूरी में उन्होंने निर्वासन में अपनी सरकार बनाई। १९६० में, लोकतांत्रिककरण और निर्वासन में पहली तिब्बती संसद, का प्रारंभ हुआ, जिसके उपरांत १९६३ में तिब्बती संविधान का एक नया मसौदा प्रस्तुत किया गया। परम पावन ने निजी तौर पर प्रशासनिक विभागों की स्थापना और आवास तथा स्कूलों की स्थापना का निरीक्षण किया। उनकी कल्पना भारत की सरकार और भारत की जनता के संवेदनशील समर्थन से साकार हुई। यह दया भाव उस समय परिलक्षित हुआ जब अनुभवी भारतीय राजनीतिज्ञ मोरारजी देसाई ने भारतीय और तिब्बती लोगों के बीच के संबंध को अद्वितीय संबंध के रूप में वर्णित किया। अध्यक्ष ने, भारत ने तिब्बतियों के लिए जो कुछ किया है, उसके लिए धन्यवाद देते हुए समाप्त किया।
तिब्बती गायिका, पसंग डोलमा ने स्वरचित रचना 'ए हिंद तुझको सलाम' के साथ जनमानस का मन मोह लिया।
सम्माननीय विशिष्ट अतिथि राम माधव ने इस विचार के साथ जनमानस को हर्षित कर दिया कि भारत ने सदैव एक उन्मुक्त हृदय से उन्मुक्त हाथ आगे बढ़ाया है। जैसे यहूदियों और परासियों को पहले भारत में शांति और स्नेह प्राप्त हुआ, इसी तरह तिब्बती अपनी संस्कृति और परम्पराओं के संरक्षण में एक जुट होकर खड़े होने में सक्षम हुए हैं। इस बीच, तिब्बत में ६० लाख तिब्बती परम पावन के लौटने की प्रतीक्षा कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि नालंदा और विक्रमशिला विश्वविद्यालयों की समृद्धि के उपरांत भारत और तिब्बत के बीच सशक्त सांस्कृतिक संबंध बने हुए हैं। "तिब्बतियों ने उस समय निज भाषा में अनूदित कर प्राचीन साहित्य की सामग्री का संरक्षण किया है " उन्होंने कहा। "अब, आप इसे भारत में में वापस लाए हैं और हम आपको अपनी बौद्ध विरासत का स्मरण कराने हेतु धन्यवाद करते हैं। हम भारत को बुद्ध, महात्मा गांधी और परम पावन दलाई लामा की भूमि के रूप में मानते हैं, पर अंततः आपकी मातृभूमि को पुनः देखने की आपकी इच्छा की सराहना करते हैं।"
टीआईपीए द्वारा स्थानीय गद्दी परम्पराओं के एक नृत्य प्रदर्शन के बाद सिक्योंग डॉ लोबसंग सांगे ने तिब्बती और अंग्रेजी में सभा को संबोधित किया। उन्होंने कहा कि परम पावन द्वारा तिब्बत की राजधानी ल्हासा छोड़े यह साठवें वर्ष का प्रारंभ है। यह चीनी साम्यवादी बलों द्वारा तिब्बत के अवैध कब्जे, जिसके परिणामस्वरूप कई तिब्बती जीवनों की क्षति हुई, का साठवां वर्ष है। हाल ही में इसमें उन लोगों को सम्मिलित किया गया है जिन्होंने आत्म दाह किया। तिब्बत के प्राकृतिक संसाधनों के थोक शोषण के प्रारंभ का भी यह साठवां वर्ष है।
सिक्योंग ने अपने श्रोताओं को स्मरण कराया कि सम्प्रति एक पत्रकार के लिए उत्तर कोरिया की अपेक्षा तिब्बत की यात्रा करने और वहाँ की सूचना देना अधिक कठिन है। इसी तरह, कई लोग सीरिया में हो रहे मानवाधिकारों के उल्लंघन के बारे में जानते हैं, पर बहुत कम लोग तिब्बत में होने वाले शोषण को स्वीकार करते हैं।
साथ ही यह तिब्बती लचीलेपन का भी साठवां वर्ष है। सिक्योंग ने प्रधान मंत्री मोदी के 'मेक इन इंडिया' और तिब्बतियों के भारत में पुनर्जीवित होने के अभियान के बीच तुलना की। उन्होंने कहा, "तिब्बतियों की सफलता भारत की सफलता होगी और आज हम यहाँ 'थैंक यू इंडिया (धन्यवाद भारत )' कहने के लिए हैं।"
भारत और तिब्बत के प्राचीन संबंधों को स्मरण करते हुए मुख्य अतिथि महेश शर्मा ने भारत और तिब्बत के बीच प्राचीन संबंधों को स्मरण करते हुए कहा कि थैंक यू (धन्यवाद) कहने की कोई आवश्यकता नहीं है, "आप हमारे अतिथि हैं और हम आपका स्वागत करते हैं। हम आपकी संस्कृति और परम्पराओं को जीवंत रखने के लिए परम पावन और तिब्बत के लोगों का धन्यवाद करते हैं। आपकी यह कामना कि आप हमें धन्यवाद देना चाहते हैं, ने हमारे मर्म को छू लिया है।"
परम पावन ने उन्हें 'थैंक यू इंडिया (धन्यवाद भारत )' का स्मृति चिन्ह प्रस्तुत किया। सिक्योंग डॉ लोबसंग सांगे ने मंच के अन्य अतिथियों और गणमान्य व्यक्तियों के प्रति भी इसी तरह सम्मान व्यक्त किया।
मंच पर अपना स्थान ग्रहण करते हुए, परम पावन ने सभा को संबोधित करना प्रारंभ किया।
"सदैव की भांति मैं आप सब का अपने भाइयों और बहनों के रूप में अभिनन्दन करना चाहता हूँ। हम नियमित रूप से सभी सत्वों के सुख की कामना करते हैं, पर यदि हम वास्तव में जो कुछ कहते हैं, वह सत्य है तो हमें स्मरण रखना चाहिए कि हम सभी मनुष्य के रूप में समान हैं।
"मैंने कठिन परिस्थितियों में तिब्बत से पलायन किया और तब से समय खुशी और उदासी का मिश्रण रहा है। जब हम पहुँचे तो हमें कुछ पता न था कि हमारे साथ क्या होगा। आज, लगभग ६० वर्षों के बाद हमारे समक्ष स्पष्ट है भविष्य के गर्भ में क्या हो सकता है। मेरे पूर्व वक्ताओं ने भारत और तिब्बत के बीच विशेष संबंधों का उल्लेख किया है। हम स्वयं को छात्र और भारतीयों को अपना गुरु सम मानते हैं। हम भारत को आर्य भूमि मानते हैं और भारत के प्रति सम्मान और प्रशंसा का भाव रखते हैं। हमारे बीच एक प्रबल बंधन है।
"तिब्बत में हमारी संस्कृति नालंदा के आचार्यों, जैसे कि शांतरक्षित से हमने जो सीखा था उस पर आधारित थी। उनके मार्गदर्शन में हमने बुद्ध वचनों के कंग्यूर के सौ खंडों और परवर्ती भारतीय आचार्यों के भाष्य ग्रंथों का तेंग्यूर के दो सौ से अधिक खंडों के रूप में अनुवाद किया।
"जब मैं पांच प्रमुख और पांच गौण विज्ञानों के बारे में सोचता हूँ, तो अनुभव करता हूँ कि उनमें तर्क और ज्ञान मीमांसा कितना महत्वपूर्ण है। हमें अंध विश्वास से प्रभावित होने की बजाय शंकाकुल होने की आवश्यकता है। बुद्ध ने स्वयं अपने अनुयायियों को सलाह दी कि उन्होंने जो कुछ कहा उसे जस का तस स्वीकार न करें, पर उसका भली भांति परीक्षण करें, जिस तरह स्वर्णकार सोने की परख करता है। नालंदा आचार्यों ने सत्य की खोज में कारण और तर्क का उपयोग करते हुए इस दृष्टिकोण का अनुसरण किया।
"आज, वैज्ञानिक हमें बताते हैं कि आधारभूत मानव प्रकृति करुणाशील है। तो हम स्वयं के लिए इतनी सारी समस्या क्यों निर्मित करते हैं? जब हममें चित्त और भावनाओं के प्रकार्य की स्पष्ट समझ होती है और हम देखते हैं कि क्या है जो हमारे चित्त को व्याकुल करता है और क्या हमारे चित्त को शांत करता है तो हम देख सकते हैं कि एक अधिक शांतिपूर्ण जीवन कैसे जिया जाए। यही कारण है कि मुझे विश्वास है कि विगत भारतीय आचार्यों ने जो सिखाया वह आज भी प्रासंगिक हैं। इस प्राचीन भारतीय ज्ञान की बहुत उपेक्षा की गई है। परन्तु जिस साहित्य का मैंने उल्लेख किया उसका सार निकालकर शैक्षिक रूप में हम उसकी जांच कर उसे व्यवहृत कर सकते हैं। यह, जो हमने जीवित रखा है उसके आधार पर हम लौटाना चाहते हैं और भारत में पुनर्जीवित करना चाहते हैं।
"अपने अनूठे मस्तिष्क का सर्वोत्तम उपयोग करने के लिए प्राचीन भारत का तर्कशास्त्र, दर्शन और मनोविज्ञान अमूल्य है। हमारे लिए मानवता के कल्याण के लिए इस तरह का योगदान देना एक प्रतिकूल परिस्थिति को लाभ में रूपांतरित करने का अवसर है। हम लगभग साठ वर्षों से निर्वासन में रहते आए हैं, पर हमने अपना समय व्यर्थ नहीं किया और तिब्बत में हमारे भाइयों और बहनों की भावना प्रबल बनी हुई है।
"जब तिब्बत अतीत में एक शक्तिशाली स्वतंत्र देश था, हमारी भावना का बल हमारे एकता की भावना से मेल खाता था। आज, जहाँ भी तिब्बती रहते हैं, हम उसी तरह अपनी संस्कृति और भाषा को जीवित रखने की कामना करते हैं। ऐसा नहीं है कि यह आत्मसंतुष्टि का कोई आधार हो। हमें अपनी दुर्बलताओं को प्रकट करने के प्रयासों को बनाए रखने की आवश्यकता है और सीखें कि हम कहाँ सुधार कर सकते हैं।
"आज जो पहले बोल चुके हैं उनके प्रति धन्यवाद ज्ञापित करते हुए मैं समाप्त करना चाहूँगा।"
तिब्बत के तीनों प्रांतों के लोगों की एकता का प्रतिनिधित्व करते हुए टीपा द्वारा एक गीत और नृत्य के भावप्रवण प्रदर्शन के बाद, सूचना सचिव दडोन शर्लिंग ने धन्यवाद ज्ञापित किया।
एक हल्की शाकाहारी थाली वितरित की गई और परम पावन सहित समस्त अतिथियों ने मध्याह्न का भोजन साथ साथ किया। तत्पश्चात अतिथियों, मित्रों और शुभचिंतकों के साथ बातचीत करने के लिए समय निकालते हुए, परम पावन बिना किसी शीघ्रता के अपने घर के द्वार तक पैदल गए।