ज़्यूरिख, स्विट्जरलैंड, आज प्रातः जब परम पावन दलाई लामा ने ज़्यूरिख में अपने होटल में मीडिया के सदस्यों से मुलाकात की, तो तिब्बत संस्थान रिकॉन के ट्रस्टी बोर्ड के उपाध्यक्ष रूडोल्फ होगर ने उन्हें आने के लिए धन्यवाद दिया।
"यह मेरा कर्तव्य है," परम पावन ने उत्तर दिया, "मेरे दोनों शिक्षक यूरोप में प्रथम तिब्बती बौद्ध विहार, रिकॉन विहार से जुड़े थे।
"अब, जब भी मुझे मीडिया के सदस्यों से बात करने का अवसर मिलता है, तो मैं उन्हें अपनी मुख्य प्रतिबद्धताओं के बारे में बताता हूँ। सबसे पहले, चूंकि मैं मनुष्य हूं, आज ७ अरब जीवित लोगों में से एक, मैं दूसरों के साथ साझा करने का प्रयास करता हूं कि हमारे सुख का वास्तविक स्रोत चित्त की शांति है। दूसरा, मेरे लिए बौद्ध भिक्षु के रूप में, यह विचार कि हमारे विभिन्न धर्म इस समय विभाजन का कारण बन रहे हैं जो लोगों को एक दूसरे की हत्या करने के लिए प्रेरित करते हैं, अचिन्तनीय है। क्या विभिन्न धर्मों के लिए एक-दूसरे के साथ मिलकर रहना संभव है? भारतीय उदाहरणानुसार, एक हजार बार, हां। तीसरा, एक तिब्बती के रूप में, मैं प्राचीन ज्ञान को जीवित रखने के लिए प्रतिबद्ध हूं जिसे तिब्बतियों ने हजारों वर्षों से अधिक समय तक जीवित रखा है साथ ही भोट भाषा को जिसमें इसे अभिव्यक्त किया गया है। इसके अतिरिक्त मैं तिब्बत के नाजुक पर्यावरण की सुरक्षा को प्रोत्साहित करने के लिए प्रतिबद्ध हूं।
"जब आप कर सकते हैं तो आप सनसनीखेज कहानियों को रिपोर्ट कर सकते हैं, पर मैं आपसे अनुरोध करता हूं कि लोगों को यह भी सूचित करें कि हमें आंतरिक मूल्यों को संभालने की कितनी आवश्यकता है।"
सभा की ओर से प्रथम प्रश्नकर्ता दूसरों के साथ खुशी साझा करने पर सलाह चाहते थे जबकि जीवन पहले से ही इतना तनावपूर्ण है। परम पावन ने उत्तर दिया:
"मेरे चेहरे को देखें; मैं १६ वर्ष का था जब मैंने अपनी स्वतंत्रता खो दी, २४ जब मैंने अपना देश खो दिया। तब से तिब्बत से आते समाचार कष्टप्रद हैं, पर चूंकि मैंने बाल्यकाल से अपने चित्त को प्रशिक्षित किया है, मैं अपनी चित्त की शांति को बनाए रखने में सक्षम हूं। यदि आपके समक्ष कोई समस्या है, तो विश्लेषण करें कि आप इसे दूर कर सकते हैं अथवा नहीं। यदि आप कर सकते हैं, तो आपको वह करना चाहिए। यदि आप नहीं कर सकते, तो उसे लेकर चिंता करने से कोई लाभ न होगा।
एक अन्य पत्रकार ने पूछा कि क्या आंग सान सू की बर्मा में अपने उत्तरदायित्वों पर खरी उतरी हैं, परम पावन ने उत्तर दिया कि जब समस्याएं सामने आईं तो वे आंग सान सू की से मिले थे और उनसे कार्रवाई करने का आग्रह किया था। उन्होंने उन्हें बताया कि यह जटिल प्रश्न था और बाहर के लोगों के लिए सैन्य नेताओं की भूमिका को समझना कठिन है।
परम पावन यह भी समझा पाए कि जब लोग अपने जीवन की सुरक्षा के भय से अपने घरों से पलायन करते हैं, तो हमें उन्हें आश्रय तथा सहायता देनी चाहिए और उनके बच्चों की शिक्षा के लिए भी सहायता करनी चाहिए। जब स्थिति में सुधार होता है तो वे अपने देशों के पुनर्निर्माण के लिए घर लौटने की इच्छा रख सकते हैं। उन्होंने तिब्बती शरणार्थियों का उदाहरण दिया, जिनमें से अधिकांश जब उनके लिए संभव हो तो तिब्बत लौटने की इच्छा रखते हैं, जहां वे पुनर्निर्माण और पुनरुद्धार में भाग ले सकते हैं।
उन्होंने क्लेशों से निपटने, सकारात्मक दृष्टिकोण उत्पन्न करने तथा चित्त की शांति प्राप्त करने के उपायों को संरक्षित करने में तिब्बती संस्थान के महत्व का वर्णन किया। चूंकि यह उनकी पंद्रहवीं यात्रा है, परम पावन से पूछा गया कि उन्हें स्विट्जरलैंड के बारे में क्या अच्छा लगता है।
उन्होंने उत्तर दिया, "पहली बात तो, स्विट्जरलैंड बहुत सुन्दर है, दूसरा यहां बड़ी संख्या में तिब्बती रह रहे हैं अतः मैं उन्हें 'हैलो' कहने आता हूं और उन्हें स्मरण कराता हूँ कि वे भोट भाषा या हमारी समृद्ध, सांस्कृतिक धरोहर को न विस्मृत करें।"
अंत में, युवा स्विस को सलाह देने के आग्रह किए जाने पर, उनकी प्रतिक्रिया संक्षिप्त और स्पष्ट थी- "प्रेम व करुणा को जन्म दें; मानव मूल्यों का विकास करें।"
ज़्यूरिख से रिकॉन गांव और तिब्बत संस्थान हरियाली युक्त स्विस ग्रामीण क्षेत्र से होते हुए गाड़ी से पच्चीस मिनट का रास्ता था। हर्षित तिब्बती, युवा और वृद्ध परम पावन की एक झलक पाने के लिए मार्ग में पंक्तिबद्ध थे। उन्होंने संस्थान में जाने से पहले जितना संभव था उतने लोगों का हाथ हिलाकर अभिनन्दन किया। तत्पश्चात वे संस्थान की ओर गए जहां नर्तक तथा पारम्परिक तिब्बती स्वागत उनकी प्रतीक्षा कर रहा था। वे संस्थान के मंदिर में प्रवेश करने से पहले, एक नूतन दीपालय के उद्घाटन में सम्मिलित हुए, बुद्ध की प्रतिमा के समक्ष नतमस्तक हुए और अपना आसन ग्रहण किया।
मंत्राचार्य ने परम पावन की दीर्घायु के लिए प्रार्थनाओं का पाठ किया, जिसमें शरण के छंद, चार ब्रह्म विहार, बुद्ध का आह्वान, समर्पण छंद, सोलह अर्हतों के लिए प्रार्थनाएं तथा मंडल समर्पण शामिल थे जिस दौरान परम पावन को दीर्घायु देवों की तीन मूर्तियां समर्पित की गईं। इसके बाद उनके दो शिक्षकों द्वारा रचित परम पावन की दीर्घायु के लिए पाठ और सोलह अर्हतों के आह्वान का पुनः पाठ हुआ जिसके प्रत्येक पद में यह जुड़ा था 'इस के आशीर्वाद से, लामा दीर्घायु हों और धर्म दूर दूर तक प्रसरित हो।'
सभा को संबोधित करते हुए, रिकॉन विहार के उपाध्याय, श्रद्धेय थुबतेन लेगमोन ने स्विस सरकार के प्रतिनिधियों, परम पावन, प्रायोजकों और अन्य अतिथियों का स्वागत किया। उन्होंने कहा, "हमने परम पावन की दीर्घायु के लिए प्रार्थना करने का महत्वपूर्ण समारोह पूरा कर लिया है," और हमने विगत ५० वर्षों में जो पुण्य संभार किया है उसे सभी सत्वों के कल्याणार्थ आप को समर्पित करते हैं। जैसा कि आपने सलाह दी है, हम युवाओं को बौद्ध धर्म के परिचय के साथ-साथ एक धर्मनिरपेक्ष दृष्टिकोण से प्रेम व करुणा की शिक्षा दे रहे हैं।
तिब्बती संस्थान रिकॉन (टीआईआर) के अध्यक्ष डॉ कर्मा डोल्मा लोबसंग ने अपने भाषण में घोषित किया कि टीआईआर के सदस्य अत्यंत खुश थे कि परम पावन ५०वीं वर्षगांठ समारोह में शामिल होने के लिए आ सके। उन्होंने याद किया कि दो फैक्ट्री मालिक हेनरी और जैक्स कुह्न, जिन्होंने मूल रूप से तिब्बतियों को रोजगार देने का प्रस्ताव रखा था, ने पूछा था कि वे तिब्बती संस्कृति और धर्म के संरक्षण में सहायता के लिए क्या कर सकते हैं। इस तरह विहारों की स्थापना हुई। उन्होंने संस्थान की महत्वपूर्ण पुस्तकालय और संस्थान को शिक्षण केंद्र बनाने के लिए उठाए जा रहे कदमों का भी उल्लेख किया।
परम पावन ने स्पष्ट किया, "निर्वासन में हमारे जीवन के संदर्भ में पचास वर्ष लंबे समय की तरह लगते हैं। सबसे पहले रेड क्रॉस था जिसने स्विट्जरलैंड में १००० तिब्बतियों को पुनर्स्थापित करने के लिए आमंत्रित किया और तब वह भारत के बाहर तिब्बती शरणार्थियों का सबसे बड़ा समूह था। जब हम निर्वासन में आए, तो हम मात्र अपनी आजीविका के बारे में नहीं सोचते थे, हम अपनी संस्कृति और धर्म को जीवित रखना चाहते थे। यद्यपि मुझे भिक्षुओं द्वारा सड़क निर्माण करता देखना स्मरण है। हमने भारत सरकार से भिक्षुओं के रहने के लिए किसी अन्य स्थान को खोजने में सहायता का अनुरोध किया।
"उन्होंने बक्सा में शिविर मुहैया कराया, पर हमें ३००, जो हमें सुझाया गया था, की बजाय १५०० भिक्षुओं को भेजने के लिए दबाव डालना पड़ा। मौसम गरम और नमीवाला था, भोजन सरलता से चला जाता था और भिक्षुओं को टीबी का सामना करना पड़ा जिसके प्रतिरोध के लिए उनका शरीर तैयार न था। अंततः वे नए आवासों के नए विहारों में जाने में सक्षम हुए, जहां अब हमारे पास सक्या, कर्ग्यू, गेलुग और ञिङमा संस्थान हैं।
"समय रहते हमने बौद्ध विज्ञान और आधुनिक विज्ञान के बीच चर्चा प्रारंभ की। हम यह इंगित करने में सक्षम हुए कि हमारी पञ्च ऐन्द्रिक चेतानाओं के अतिरिक्त हमारे पास मानसिक चेतना है। इस बीच, आधुनिक वैज्ञानिकों के ब्रह्मांड विज्ञान के स्पष्टीकरण ने स्पष्ट किया कि ब्रह्मांड की धुरी के रूप में मेरु पर्वत का कोई अस्तित्व न था।"
परम पावन ने अतीत के महान भारतीय बौद्ध आचार्य 'षड़ालंकार तथा और परम दो' का सम्मान करने की पुरानी परम्परा को संदर्भित किया। उन्होंने अनुभूत किया कि वे सभी नालंदा विश्वविद्यालय का अंग थे, पर सूची पूरी नहीं थी। इसमें कई आचार्य सम्मिलित नहीं थे जिनके ग्रंथ तिब्बती बौद्ध पाठ्यक्रम के अध्ययन के लिए महत्वपूर्ण हैं। परिणामस्वरूप उन्होंने एक नई थंगका चित्र अधिकृत किया तथा सत्रह नालंदा आचार्यों की स्तुति की रचना की।
शांतरक्षित ने ८वीं शताब्दी में तिब्बती सम्राट के आमंत्रण पर तिब्बत में बौद्ध धर्म की स्थापना की। जो वे मुख्य रूप से लाए थे वह नालंदा परम्परा थी जिसकी विशेषता तर्क और तर्क के आधार पर दर्शन और मनोविज्ञान का श्रमसाध्य अध्ययन है।
हम मोह व क्रोध से भ्रमित हैं, पर हम इन भावनाओं से निपटना सीख सकते हैं। क्रोध को कम किया जा सकता है यदि हम प्रेम व स्नेह उत्पन्न करने के लिए काम करें। परन्तु हमें सबसे पहले क्रोध से जो भी लाभ या हानि हो सकती है उसे समझना होगा। मुख्य रूप से, क्रोध हमारी चित्त की शांति को नष्ट कर देता है; मैत्री करुणा हमें मित्र दिलाती है तथा एकाकी होने का संकट समाप्त करती है।
जनमानस की ओर देख परम पावन ने माना, "मैं आप में से कुछ को लंबे समय से जानता हूं और मैं आपके चेहरे पर आपकी आयु को देख सकता हूं, पर वे मुझे स्मरण कराते हैं कि मैं भी बूढ़ा हो रहा हूं। मैं आप सबको आपके द्वारा दी गई सहायता के लिए धन्यवाद देना चाहता हूं।"
टीआईआर के प्रबंध निदेशक फिलिप हेप ने धन्यवाद के शब्द प्रस्तुत किए। उन्होंने पंद्रहवीं बार तिब्बत संस्थान की यात्रा करने के लिए परम पावन का धन्यवाद किया, टिप्पणी करते हुए कि हर अवसर एक प्रेरणा होता है।
परम पावन ने संस्थान के बाहर खिली धूप में विहार के भिक्षुओं और टीआईआर बोर्ड के सदस्यों के साथ तस्वीरों के लिए पोज़ किया। उसके बाद वे पुनः मध्याह्न के भोजन का आनन्द उठाने के लिए अन्दर एकत्रित हुए। तत्पश्चात, जैसे ही परम पावन अपनी कार में ज़्यूरिख लौटने के लिए बाहर निकले, कई तिब्बती माताएँ अपने बच्चों को उनकी ओर देखने के लिए आग्रह करती हुईं दिखाईं और सुनाईं पड़ीं। वे मुस्कुराए और उनमें से कइयों के सिर थपथपाए।
कल, विंटरथुर के युलाचले में टीआईआर की वर्षगांठ के और समारोह होंगे।