दिल्ली - ३ अगस्त २०१७, आज प्रातः सिनर्जी बिजनेस स्कूल मॉस्को के रेक्टर, ग्रेगरी एवितोव और पत्रकार डिमिट्री पोर्टन्यगिन परम पावन दलाई लामा से बात करने आए। उन्होंने एक साक्षात्कार दर्ज किया जो कि अंग्रेजी में हुआ पर उसका साथ ही साथ रूसी में अनुवाद किया गया।
एवितोव ने परम पावन को बताया, "हम नवंबर में रूस में सिनर्जी ग्लोबल फोरम आयोजित कर रहे हैं और उसमें १५,००० लोगों के सम्मिलित होने की आशा करते हैं। हम उन्हें आज आपके साथ हुए इस वार्तालाप का अंश दिखाएँगे।"
स्वयं का परिचय देते हुए, डिमिट्री पोर्टन्यगिन ने परम पावन को बताया कि वह उनसे साक्षात मिलकर कितने प्रसन्न थे। उन्होंने कहा कि वह उनके चेहरे से उस समय से परिचित थे जब वह मात्र एक बालक थे क्योंकि उनके दादाजी ने परम पावन की एक तस्वीर बहुत संभाल कर रखी थी। उन्होंने परम पावन के साथ वार्तालाप का प्रारंभ करते हुए पूछा कि वे आध्यात्मिक लक्ष्यों के साथ भौतिक लक्ष्यों को संतुलित करने के संबंध में क्या सलाह देंगे।
उत्तर में परम पावन ने पूछा "आज का विश्व सुखी है अथवा नहीं?।" "अभी भी विश्व में बहुत हिंसा है। यहाँ तक कि उन स्थानों पर भी जो शांतिपूर्ण हैं, अमीर और गरीब के बीच एक बढ़ती खाई है।
"हम जिन कई समस्याओं का सामना करते हैं, वे हमारी अपनी बनाई हुई हैं, जिसमें एक विरोधाभास प्रतीत होता है। आज जीवित ७ अरब लोगों में से कोई भी समस्याओं का सामना नहीं करना चाहता पर फिर भी हम अपने लिए समस्याएँ निर्मित करते हैं। ऐसा क्यों होता है? यह हमारा जानबूझकर किया हुआ उद्देश्य नहीं है। अनुभव और सामान्य ज्ञान हमें बताता है कि अगर हमारा चित्त शांत है तो हम चित्त और शरीर में अच्छा अनुभव करते हैं। पर फिर भी हमारी वर्तमान शिक्षा प्रणाली का रुझान भौतिक लक्ष्यों की ओर है। जिन लोगों का इस रूप में पालन पोषण हुआ है, वे भौतिक सफलता की कामना करते हैं और इस के प्रति अल्प प्रशंसा भाव रखते हैं कि आंतरिक शांति चित्त में आती है। जो भी हो केवल भौतिक विकास मानवता को सुखी नहीं करेगा।
"यदि हमारी आधारभूत प्रकृति क्रोध की होती तो कोई आशा न होती, पर चूँकि यह अधिकांश रूप से करुणाशील है, आशा है। दूसरों के कल्याण की सोच हमारे अस्तित्व का आधार है। यथार्थ यह है कि हमें एक दूसरे की आवश्यकता है और हम अन्योन्याश्रित हैं, अतः मिलकर काम करने का समय आ गया है। हमें मानवता की एकता को ध्यान में रखना चाहिए।
"वास्तविकता परिवर्तित हो गई है, पर हमारी सोच का ढंग, 'हम' और 'उन' के अंतर से चिपकने वाला स्वरूप, अभी भी २०वीं सदी में अटका हुआ है। उसी के साथ विनाश की हमारी क्षमता अत्यंत गंभीर है।"
यह पूछने पर कि क्या हम कल्पना कर सकते हैं कि विश्व और अधिक शांतिपूर्ण होगा, परम पावन ने उत्तर दिया कि यह निश्चित रूप से संभव है। उन्होंने द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात सुलह की भावना का स्मरण किया। उन्होंने यूरोपीय संघ की भावना के प्रति अपनी सराहना दोहराई - परिपक्वता के एक अनुकरणीय संकेत के रूप में अतीत के वैर पर काबू पाने हेतु सहयोग से एक साथ काम करने के एक सचेत प्रयास का वर्णन किया।
पूर्व सोवियत संघ के संबंध में उन्होंने घोषणा की कि वह अभी भी अर्थशास्त्र के साम्यवादी दृष्टिकोण को स्वीकार करते हैं, परन्तु लेनिन द्वारा गोपनीयता और संदेह को संस्थागत बनाने के लिए जो युद्ध काल में काम आते हैं, को लेकर खेद जताया। उन्होंने सुझाया कि अधिनायकवाद मार्क्स के आदर्शों को पराजित करता है। रूस के भविष्य के संबंध में परम पावन ने कहा:
"रूस एक महान राष्ट्र है और रूसी लोग सुसंस्कृत हैं। अच्छा यह होगा यदि शक्ति प्रयोग और उससे उत्पन्न हुए भय के स्थान पर उत्तरदायित्व और सहायता करना की इच्छा कायम हो। न केवल वैसा दृष्टिकोण तारीख से बाहर है, परन्तु, भय और विश्वास एक साथ काम नहीं करते।
"रूस में महान क्षमता है और यदि इसे करुणा और मानवता की एकता की भावना के साथ व्यवहृत किया जाए, तो यह हिंसा के एक युग की बजाय इसे संवाद की एक शताब्दी बनाने में योगदान दे सकता है।
उन्होंने इस सुझाव को 'पुरानी सोच' कहकर खारिज कर दिया कि बल प्रयोग स्वरक्षा का एक रूप हो सकता है, यह बल देते हुए कि सर्वश्रेष्ठ बचाव दूसरों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध बनाए रखना है। उन्होंने मैत्री की शक्ति और सभी मनुष्यों के अधिकारों की सराहना करते हुए अपने विश्वास को पुष्ट किया।
ग्रेगरी एवितोव ने उल्लेख किया कि वह और उसके मित्र परम पावन को सिनर्जी ग्लोबल फ़ोरम में सम्मिलित होने के लिए आमंत्रित करने के इच्छुक हैं, यद्यपि विगत प्रयास विफल रहे हैं। उन्होंने पूछा कि क्या यह भविष्य में संभव हो पाएगा। परम पावन हँसे और उनसे कहा कि जब देशों को चीन से उन लोगों के लिए अनुमति लेने की आवश्यकता है जिन्हें वे आमंत्रित करना चाहते हैं और जब कट्टरपंथी उन्हें एक अलगाववादी, एक आतंकवादी और यहाँ तक कि उन्हें दानव कहते हैं तो इसकी बहुत कम संभावना जान पड़ती है। उन्होंने इस पर खेद व्यक्त किया, क्योंकि कम से कम रूस के भीतर, कल्मिकिया, बुर्याशिया और तुवा गणराज्य के लोग तिब्बतियों के समान नालंदा परम्परा का अनुपालन करते हैं।
"मैंने इन लोगों की सेवा करने में सक्षम होने की प्रार्थना की है, लेकिन मेरी प्रार्थनाओं का अभी तक कोई परिणाम नहीं निकला है।"
एवितोव, पोर्टन्यगिन और उनके मित्रों ने परम पावन को कई उपहार प्रदान किए जिसमें एक रूसी सैनिक की टोपी थी जो पोर्टन्यगिन के दादा द्वारा पहनी टोपी के समान थी, एक पुरानी रेत घड़ी, एक रूसी प्रतिरूपों की पुस्तक और कांग्यूर का एक डिजीटल संस्करण - ३० वर्षों के कार्य का परिणाम।
"फिर मिलेंगे" जाते जाते परम पावन ने कहा, "संभवतः एक दिन मॉस्को में।"