इम्फाल, मणिपुर, भारत, कल प्रातः जब परम पावन दलाई लामा इम्फाल पहुँचे, तो मणिपुर विधान सभा के अध्यक्ष, माननीय वाई खेमचंद सिंह, मणिपुर के मुख्य मंत्री, एन बीरेन सिंह साथ ही, मुख्य सचिव और पुलिस महानिदेशक ने उनका स्वागत किया। राजभवन में, मणिपुर की राज्यपाल नजमा हेपतुल्ला ने परम पावन को मध्याह्न भोजनार्थ आमंत्रित किया ।
आज प्रातः सर्वप्रथम परम पावन ने सिटी कन्वेंशन सेंटर में मीडिया के सदस्यों के साथ भेंट की।
"जब से मैं बच्चा था तब से मैं मणिपुर के बारे में जानता हूँ, "अपने परिचय में उन्होंने उन्हें बताया।" और अब मैं वास्तव में आपके बीच आकर अत्यंत प्रसन्न हूँ।
"जहाँ भी मैं जाता हूँ इस बात पर सदैव बल देता हूँ कि मनुष्य के रूप में हम सभी समान हैं। हम सभी एक सुखी जीवन जीना चाहते हैं, जो हमारा अधिकार है, और ऐसा करने की कुंजी दूसरों के प्रति करुणा विकसित करना है।
"एक बौद्ध भिक्षु के रूप में, मेरा विश्वास है कि सभी प्रमुख धार्मिक परम्पराएँ लोगों को आंतरिक शांति प्राप्त कराने में सहायक हो सकती हैं। हो सकता है वे विभिन्न तरीके तथा उपाय अपनाएँ, पर उनमें से प्रत्येक में हमें बेहतर मानव बनने में सहायता करने की क्षमता है। अतः यह महत्वपूर्ण है कि उनके बीच सद्भाव और सम्मान हो। भारत एक जीवंत उदाहरण है कि यह संभव है। स्वदेशी धर्मों और अन्य स्थानों की परम्पराएँ यहाँ शताब्दियों से साथ साथ सद्भावनापूर्वक रहती हैं।"
परम पावन ने मीडिया के सदस्यों को भी सुझाव दिया कि उन पर भी केवल नकारात्मक समाचारों पर ध्यान न देते हुए सकारात्मक दृष्टिकोण को बढ़ावा देने का उत्तरदायित्व है।
उन्होंने उनसे कहा कि जहाँ कहीं भी भ्रष्टाचार व शक्ति का दुरुपयोग हो उसे उजागर करना महत्वपूर्ण है। यद्यपि उन्हें लोगों को यह समझने में भी सहायता करनी चाहिए कि हमारी आधारभूत मानव प्रकृति करुणाशील है और हमारे अस्तित्व के लिए स्नेह आवश्यक है।
यह पूछे जाने पर कि क्या १५ वें दलाई लामा होंगे, परम पावन ने उत्तर दिया,
"१५ वें दलाई लामा को मान्यता मिले अथवा नहीं उससे मेरा सारोकार नहीं है। १९६९ में ही मैंने स्पष्ट किया था कि मेरे उपरांत दलाई लामा की संस्था जारी रहती है अथवा नहीं, उसका निर्णय तिब्बती लोगों पर निर्भर होगा। मैंने यह भी स्पष्ट किया है कि जब मैं ८५ से ९९ का होऊँगा तो मैं तिब्बत के अन्य आध्यात्मिक नेताओं के साथ उत्तराधिकार के भविष्य पर चर्चा करूँगा।"
"जहाँ तक राजनीतिक उत्तरदायित्व का प्रश्न है, मैं २००१ के बाद से अर्ध-सेवानिवृत्त हूँ और २०११ के पश्चात पूर्णरूपेण सेवानिवृत्त हो गया हूँ, क्योंकि अब हमारे लोकतांत्रिक ढंग से निर्वाचित राजनीतिक नेता हैं। इतना ही नहीं, मैंने गर्व से, स्वेच्छा से और खुशी से दलाई लामा के लौकिक व आध्यात्मिक दोनों का नेतृत्व करने की लगभग चार सदियों की प्राचीन परंपरा को समाप्त कर दिया है।"
धार्मिक मतांतरण के प्रश्न पर, परम पावन ने कहा कि प्रत्येक धर्म को जीवित रहने का अधिकार है, पर वे एक धर्म के लोगों द्वारा दूसरे धर्म में परिवर्तन होने से सहमत नहीं हैं। इस संबंध में उन्होंने समझाया कि उन स्थानों पर जहाँ परम्परागत रूप से अन्य धर्मों का पालन किया जाता है वे बौद्ध धर्म का प्रचार न करने को लेकर सावधानी बरतते हैं।"
जब उन्होंने सभागार में प्रवेश किया तो परम पावन का अभिनन्दन करने के लिए ७०० से अधिक संख्या में श्रोता खड़े हुए। अध्यक्ष खेमचंद सिंह ने पूर्ण मणिपुर राज्य की ओर से उनका स्वागत किया और उन्हें सभा को संबोधित करने के लिए आमंत्रित किया।
"आज जिन कई समस्याओं का सामना हम कर रहे हैं, वे हमारी अपनी निर्मिति है" परम पावन ने प्रारंभ किया।" ऐसा क्यों है? क्योंकि हम अपनी बुद्धि का उचित उपयोग किए बिना भावनाओं के अधीन हैं। मानव आधारभूत रूप से नकारात्मक नहीं हैं, परन्तु क्रोध और भय से प्रभावित होने की प्रवृत्ति रखते हैं। हम इस तरह की भावनाओं के प्रति ध्यान नहीं देते इस को अनुभूत किए बिना कि वे किस प्रकार विनाशकारी हो सकते हैं।"
परम पावन ने कहा कि जलवायु परिवर्तन जैसी चुनौतियाँ हम सभी को प्रभावित करती हैं और यह कि आज की वैश्वीकृत दुनिया में, समुदाय व महाद्वीप अन्योन्याश्रित हैं। मात्र एक पक्ष की विजय जबकि अन्य पक्ष पराजित हो रहा हो अब यथार्थवादी नहीं है। उन्होंने कहा कि बल से समस्याओं को सुलझाने की बजाय, हमें संवाद में संलग्न होना चाहिए।
परम पावन ने आधुनिक भारतीयों से चित्त के प्रकार्य का प्राचीन ज्ञान, जो उनकी धरोहर का अंग है, पर अधिक ध्यान देने हेतु आग्रह किया।
"हमारी वर्मान शिक्षा व्यवस्था भौतिक लक्ष्यों जैसे कि धन और बल पर केंद्रित है। चित्त तथा भावनाओं की प्राचीन भारतीय समझ हमें स्पष्ट करता है कि किस तरह आंतरिक शांति का विकास किया जाए जो जो आज के विश्व में बहुत प्रासंगिक है। मेरा मानना है कि भारत एकमात्र ऐसा राष्ट्र है जो आधुनिक ज्ञान के साथ इस प्राचीन ज्ञान को जोड़ सकता है और इस तरह विश्व शांति में महत्वपूर्ण योगदान दे सकता है।"
श्रोताओं के प्रश्नों के उत्तर देते हुए, परम पावन ने तिब्बत में हो रहे पर्यावरण क्षति को लेकर चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि इसकी अधिक ऊंचाई ने इसे विशेष रूप से नाजुक बनाया है। चूँकि एशिया की प्रमुख नदियों में से अधिकाश का उद्गम तिब्बत में है, अतः निचले प्रवाह के किनारे के देश अपने जल के स्रोत के विषय में चिन्ता व्यक्त करने का पूरा अधिकार रखते हैं।
मणिपुर में सशस्त्र संघर्ष के संबंध में परम पावन ने टिप्पणी की कि वे यूरोपीय संघ की भावना के प्रशंसक हैं, जिसने संकीर्ण राष्ट्रीय चिंताओं की तुलना में व्यापक हित को अधिक महत्वपूर्ण बना दिया है। उन्होंने सुझाव दिया कि दूरदर्शी होने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि चूंकि भारत में लोकतंत्र है अतः इसके नागरिकों को सरकार से प्रश्न करने का पूरा अधिकार है।
कार्यक्रम का समापन मुख्य सचिव द्वारा मणिपुर के लोगों और सरकार की ओर से धन्यवाद के शब्दों के ज्ञापन से हुआ।
राजभवन लौटने से पहले परम पावन ने राजनीतिक और धार्मिक नेताओं के समूह के साथ मध्याह्न का भोजन किया। वह कल प्रातः धर्मशाला जाने के लिए मणिपुर से प्रस्थान करेंगे।