दिसकित, नुबरा घाटी, जम्मू और कश्मीर- जुलाई ११, २०१७ आज प्रातः जब परम पावन दलाई लामा का प्रवचन स्थल पर आगमन हुआ तो ठिकसे रिनपोछे उनसे मिले और वे उन्हें उनके सिंहासन तक ले गए। अपना आसन ग्रहण करने से पूर्व परम पावन ने कुछ मिनट भिक्षुणियों के शास्त्रार्थ को सुनने में लगाए। उन्होंने घोषणा की कि वे अवलोकितेश्वर अनुज्ञा देंगे जो सत्वों को दुर्भाग्यपूर्ण दुर्गति से मुक्त करते हैं और वे उसके लिए आवश्यक तैयारी करेंगे, जबकि नुबरा समुदाय उनके लिए दीर्घायु समर्पण करेगा।
बुद्ध शाक्यमुनि की स्तुति, हृदय सूत्र और सत्रह नालंदा पंडितों की स्तुति के पाठ के बाद मंत्राचार्य ने दीर्घायु समर्पण प्रारंभ किया, जो कि टाशी ल्हुन्पो महाविहार द्वारा धारित सूत्र परम्परा के अनुष्ठानों के अनुसार है। यह सोलह अर्हतों के लिए प्रार्थना पर आधारित था, वे स्थविर जिन्होंने बुद्ध शाक्यमुनि के सिद्धांत की रक्षा करने का वचन दिया था।
जब दीर्घायु समर्पण पूर्ण हो गया तो परम पावन ने समझाया कि जो अवलोकितेश्वर अनुज्ञा वे देने वाले थे वह तगफू दोरजे छंग के शुद्ध दृष्टि से लिया गया था। उन्होंने टिप्पणी की कि मित्रयोगी, जिन्होंने ऐसे समान खसरपाणि अवलोकितेश्वर पर निर्भर होकर अपना अभ्यास पूरा किया, ने स्वयं अवलोकितेश्वर से अभिषेक व आशीर्वाद प्राप्त किया था और तगफू दोरजे छंग को महान योगी के भी दर्शन हुए थे।
"परम पावन ने सूचित किया," जब मैं छोटा था, तब मैंने तगडग रिनपोछे से तगफू की दूरदर्शी शिक्षाओं का संग्रह प्राप्त किया था और मैंने उसके लिए आवश्यक एकांत वास किया जिस दौरान मैंने ६००,००० षड़ाक्षर मंत्रों का संभार किया। ऐसा कहा गया है कि हर बार जब आप यह अनुज्ञा प्राप्त करते हैं तो यह दुर्गतियों में से एक को दूर करता है।
"यह उपयुक्त होगा यदि मैं अवलोकितेश्वर से संबंधित एक स्वप्न के बारे में बताऊँ। कई वर्ष पूर्व जब मैं पहले से ही धर्मशाला में रह रहा था और यह सांस्कृतिक क्रांति के फैलने से पहले था। मैंने स्वप्न देखा कि मैं ल्हासा जोखंग में सहस्र शीर्ष, सहस्र बाहु वाली अवलोकितेश्वर की प्रतिमा के समक्ष खड़ा था। उसने अपनी आँखों से मुझे इशारा किया और मैंने आगे बढ़कर उसका आलिंगन किया। उसने मुझे बताया कि हतोत्साहित नहीं होना चाहिए अपितु जितना मैं कर सकता हूँ उतना कार्य करते रहना चाहिए। उसके कुछ ही समय बाद सांस्कृतिक क्रांति हुई और यह प्रतिमा उनमें से एक थी जिन्हें नष्ट कर दिया गया था। इसके कुछ भाग, जिनमें से कुछ सिर के थे, मुझ तक धर्मशाला पहुँचे और अब उन्हें मंदिर में सुरक्षित रूप से रखा गया है।
"तिब्बत और लद्दाख के लोगों का अवलोकितेश्वर के साथ एक विशेष जुड़ाव है और मित्रयोगी के 'तीन आवश्यक बिन्दु' जिसकी शिक्षा मैं कल देने जा रहा हूँ, के आवश्यक प्रारंभ के रूप में मैंने यह अनुज्ञा देने का निश्चय किया है। इन बिंदुओं का संबंध, इस जीवन में कैसे अभ्यास करें, मरणासन्न अवस्था और मध्यवर्ती अवस्था से है। वयोवृद्ध लोग प्रायः मेरे आशीर्वाद की इच्छा करते हैं, पर चूँकि मैं उनके लिए बहुत कुछ नहीं कर सकता, मैंने सोचा था कि इन अभ्यासों की माध्यम से वे स्वयं की सहायता कर सकेंगे। जैसा कि बुद्ध ने कहा- 'आप अपने स्वयं के स्वामी हैं' आपको परिश्रमी होने और लक्ष्य को पूरा करने की आवश्यकता है।"
अनुज्ञा देने के प्रारंभ में परम पावन ने एकत्रित जनमानस में वे लोग जो उपासक और उपासिका के संवर लेने में रुचि रखते थे, उनका संवर ग्रहण करने में नेतृत्व किया और इस तरह भिक्षुओं, भिक्षुणियों और साधारण अभ्यासियों के चार गुना संघ को सुनिश्चित किया। तत्पश्चात उन्होंने प्रणिधि बोधिचित्तोत्पाद का अनुष्ठान किया।
अनुज्ञा की समाप्ति पर परम पावन ने 'भावना क्रम' से पढ़ना जारी किया जिस दौरान उन्होंने दुःख की प्रकृति, सांवृतिक तथा परमार्थिक बोधिचित्त, शमथ और विपश्यना पर भी बात की और अंत में परिणामना के छंदों के साथ समाप्त किया।
उन्होंने बोधिसत्व के ३७ अभ्यास का परिचय १४वीं शताब्दी के तिब्बती विद्वान थोगमे संगपो द्वारा रचित एक ग्रंथ के रूप में दिया, जो एक प्रख्यात बोधिसत्व थे और बुतोन रिनछेन डुब के समकालीन थे। ऐसा कहा जाता है कि उनके बोधिचित की शक्ति के कारण जंगली जानवर जिनमें भेड़िए भी थे जो ङुल्छु में उनके आश्रम के आसपास शांतिपूर्वक रहते थे। परम पावन ने प्रथम छंदों का पाठ किया जो कि प्रारंभिक क्षमता वाले व्यक्ति के अभ्यासों का वर्णन करता है और कहा कि शेष का पाठ वे कल करेंगे।
एक हल्की बारिश हुई जब परम पावन प्रवचन स्थल से शिविर चंपा के लिए रवाना हुए जहाँ ठिकसे रिनपोछे ने दिसकित शहर के आसपास के क्षेत्र में मध्याह्न के भोजन के लिए उन्हें आमंत्रित किया। जैसे ही उनका आगमन हुआ तो निवासी अपने घर के समक्ष उनके स्वागत के लिए और जब वे दिसकित विहार फोडंग लौटे तो उन्हें विदा देने के लिए एकत्रित हुए।