थेगछेन छोलिंग, धर्मशाला, हि. प्र., भारत - मानसून की वर्षा से मिले किंचित विराम के समय परम पावन दलाई लामा, आज प्रातः चुगलगखंग पैदल गए, मार्ग में मित्रों तथा श्रोताओं का अभिनन्दन किया और सिंहासन पर अपना आसन ग्रहण किया। थाईलैंड के भिक्षुओं ने एक बार पुनः पालि में मंगल सुत्त का पाठ करते हुए शुभारंभ किया। तत्पश्चात भिक्षुओं और साधारण लोगों के एक समूह ने वियतनामी में 'प्रज्ञा पारमिता सूत्र' का मर्मस्पर्शी पाठ प्रस्तुत किया। भोट भाषा में जाप करते हुए परम पावन ने 'प्रज्ञा पारमिता स्तुति', 'अभिसमयालंकार' से वंदना के यह छंद
जो शांति खोजने वाले श्रावकों को सर्वज्ञता से उपशमन की ओर ले जाती है
जो जगत् हित करने वाले को मार्गज्ञता से लोकार्थ सम्पादित करवाते हैं
जिसके संगत से मुनि द्वारा सभी आकारों से युक्त यह विभिन्नता कह पाते हैं
मैं श्रावकों, बोधिसत्वों की गण और बुद्धों के उन मातृ का नमन करता हूँ।
और नागार्जुन की 'प्रज्ञाज्ञान मूल मध्यम कारिका' से वंदना के छंद दोहराए।
"बौद्धों के रूप में," परम पावन ने कहा, "हमारा अंतिम लक्ष्य प्रबुद्धता की भावना को विकसित करना है, प्रबुद्ध होकर दूसरों की सहायता करने की कामना। नागार्जुन कहते हैं कि प्रबुद्ध होना आकाश जैसे अनंत सत्वों की परम सेवा के लिए तत्पर होना है। पूर्णतया प्रबुद्ध सत्व परार्थ हेतु रूप काय प्रकटित करते हैं और स्वार्थ के लिए धर्म काय। ये दो काय योग्यता पुण्य व ज्ञान के संभार के परिणामस्वरूप हैं।
"हम प्रेम व करुणा को विकसित कर तथा छः पारमिताओं के अभ्यास से पुण्य निर्मित करते हैं। इनमें से सर्वप्रथम दान है, जिसमें सेवा और भौतिक संसाधन प्रदान करना है, संकट में पड़े वालों की सहायता करना, जिसे निर्भयता का दान कहा जाता है, और धर्म का दान जो लोगों को प्रज्ञा के विकास में सहायता देता है। उदारता वह रूप है, हम जिस तरह से सहायता देना प्रारंभ करते हैं और यह शील, क्षांति, वीर्य और ध्यान पारमिताओं से निरंतर रहती है।
"जब प्रज्ञा की बात आती है तो हम अनित्यता तथा चार आर्य सत्यों के सोलह आकारों जैसे नैरात्म्य की समझ का विकास करते हैं। ये वे तरीके हैं जिनसे हम पुण्य व ज्ञान का संभार करते हैं, जो प्रबुद्धता के दो कायों को जन्म देते हैं।"
परम पावन ने नागार्जुन की 'प्रज्ञाज्ञान मूल मध्यम कारिका' पर बुद्धपालित की वृत्ति ली तथा अध्याय दो का पाठ आरंभ किया जिसमें आने व जाने का जटिल परीक्षण है।
अध्याय तीन में आधारों का परीक्षण था, अध्याय चार, स्कंधों के परीक्षण पर केन्द्रित था, अध्याय पांच में धातुओं का परीक्षण था और अध्याय छह में मोह की बात की गई थी तथा ऐसे व्यक्ति के बारे में जिसमें मोह है।
अंतराल के समय परम पावन ने श्रोताओं के प्रश्नों के उत्तर दिए। संपत्ति के बारे में पूछे जाने पर, उन्होंने तुरन्त उत्तर दिया कि आर्थिक नीति के संदर्भ में और सम्पत्ति के सम वितरण की धारणा के बारे में वह स्वयं को मार्क्सवादी मानते हैं।
उन्होंने समझाया कि जिस तरह शारीरिक स्वच्छता आधुनिक विकास का एक पहलू है जिसके परिणामस्वरूप सार्वजनिक स्वास्थ्य में सुधार हुआ है, तो भावनात्मक स्वच्छता की ओर इसी तरह के चरण के फलस्वरूप विश्व में अधिक सुख व शांति होगी।
बच्चों के पालन पोषण के बारे में सलाह देते हुए परम पावन ने माता-पिता के महत्व पर जोर दिया और विशेषकर माँ के लिए जो अपनी बेटियों और पुत्रों के प्रति स्नेह व्यक्त करती है। उन्होंने स्तनपान के प्राकृतिक, शारीरिक और भावनात्मक लाभों पर बल दिया। उन्होंने बाल्यावस्था से वयस्कता में जाते हुए बाल्यावस्था की सहजता और सौहार्दता को बचाने के उपाय ढूँढने का भी सुझाव दिया।
बुद्धपालित के ग्रंथ के छठवें अध्याय को पूरा कर परम पावन ने टिप्पणी की कि वे कल के सत्र के समय बोधिचित्तोत्पाद का समारोह करेंगे। उन्होंने प्रोत्साहित किया कि श्रोता परोपकारिता की अपनी समझ का पुनरावलोकन करें।
उन्होंने कहा, "पूरे ब्रह्मांड में अनंत सत्व हैं," पर हम जिन लोगों को सुख प्राप्त करने में सहायता कर सकते हैं वे ७ अरब मानव हैं, जिनके साथ हम इस विश्व को साझा करते हैं। निस्सन्देह हमारे आसपास जानवर भी हैं, पर हम उनके लिए बहुत कुछ नहीं कर सकते हैं। पर हमारे मानव भाई और बहनें जो भी सहायता हम प्रदान करें, उनसे लाभान्वित हो सकते हैं।
"बोधिचित्तोत्पाद प्रबुद्धता प्राप्ति के उद्देश्य का विकास है। अपने लिए शान्तिदेव के 'बोधिसत्वचर्यावतार' की प्रतिलिपि खोजें और अध्याय एक में बोधिचित्तानुशंसा के लाभ, अध्याय छह में क्षांति और अध्याय आठ में बोधिचित्त का स्वयं को स्मरण कराएँ।
जब परम पावन मंदिर से चले तो सदैव की तरह दोनों ओर खिले चेहरों ने उनका अभिनन्दन किया। उनकी मुस्कान का उत्तर उन्होंने मुस्कान से दिया और कई लोगों की ओर अपना हाथ बढ़ाया, यत्र तत्र मैत्रीपूर्ण शब्दों का आदान-प्रदान किया और गाड़ी में चढ़ गए जो उन्हें उनके निवास ले जाने वाली थी।