थेगछेन छोलिंग, धर्मशाला, हि. प्र., भारत, आज प्रातः जब परम पावन दलाई लामा चुगलगखंग पैदल गए तो सुबह उजली व खिली हुई थी। जैसे ही उन्होंने सिंहासन पर अपना आसन ग्रहण किया, उन्होंने घोषणा की कि कई दिनों के प्रवचन के समापन पर मंगल के लिए वे श्वेत तारा अनुज्ञा प्रदान करेंगे। उन्होंने कहा कि उन्हें प्रारंभिक अनुष्ठान पूरे करने होंगे और कहा कि जब वे ऐसा कर रहे हों तो मंगल सुत्त, हृदय सूत्र और तारा मंत्रों का सस्वर पाठ किया जाए।
परम पावन ने समझाया कि जो अनुज्ञा वे प्रदान करने वाले थे वह पञ्चम दलाई लामा की गुह्य दृष्टि के संग्रह से आया था। उन्होंने सूचित किया कि इस चक्र के सभी २५ वर्ग उन्हें तगडग रिनपोछे से प्राप्त हुए थे जब वे छोटे थे। यह एक ऐसी परम्परा है जो पञ्चम के बाद सभी दलाई लामाओं से सम्बद्धित है। उन्होंने उल्लेख किया कि उन्होंने का-ग्ये, अष्ट हेरुका से संबंधित आवश्यक एकांतवास पूरे कर लिए हैं और चूंकि पञ्चम दलाई लामा की गुह्य दृष्टि की एक हस्तलिखित प्रतिलिपि भारत में उनके पास लाई गई थी, वे उससे इसे पढ़ाने में सक्षम हुए हैं।
अपनी भूमिका में परम पावन ने दोहराते हुए कहा कि बुद्ध की शिक्षाएँ तर्क पर आधारित हैं, अंधी आस्था पर नहीं। उन्होंने सत्य द्वय और चार आर्य सत्य की समझ के महत्व, शील, समाधि व प्रज्ञा के तीन अधिशीलों में लगे रहने तथा क्रमानुसार लघु, मध्यम और महान क्षमता के अभ्यास का अनुपालन पर बात की। उन्होंने कहा कि इस तरह की नींव के आधार पर तंत्र सूक्ष्मतम चित्त प्रभास्वरता को व्यवहृत करता है, ऐसी सजगता जिसमें से चित्त के सभी स्थूल स्तर दूर किए जा चुके हैं।
परम पावन ने सर्वप्रथम उन व्यक्तियों को उपासक संवर प्रदान किए, जो उन्हें ग्रहण करने के इच्छुक थे और फिर श्वेत तारा अनुज्ञा प्रारंभ की। अनुष्ठान में उचित बिंदु पर उन्होंने श्रोताओं का बोधिचित्तोत्पाद में नेतृत्व किया, जिसके बाद बोधिसत्व संवर दिए गए। अनुज्ञा के पूरे हो जाने के पश्चात ताइवानी समूह ने परम पावन की दीर्घायु के लिए प्रार्थना का पाठ किया, जो उनके दो शिक्षकों - लिंग रिनपोछे तथा ठिजंग रिनपोछे द्वारा लिखी गई थी।
प्रवचन की इस श्रृंखला का चीनी, अंग्रेजी, कोरियाई, जापानी, वियतनामी, हिंदी, थाई, फ्रेंच और जर्मन में एक साथ अनुवाद किया गया है। संबंधित दुभाषिए परम पावन को अंतिम मंगलार्पण करते समय प्रवचन के आयोजकों के साथ सम्मिलित हुए।
अंतिम क्षण में, परम पावन को स्मरण आया कि एक भिक्षुणी ने उनसे 'इक्कीस तारा प्रार्थना' का पठन संचरण देने का अनुरोध किया था और उन्होंने इसका मुखरित रूप से पाठ किया।
प्रातः ताइवानी समूह के सदस्यों के परम पावन के साथ उनकी तस्वीरें खिंचवाने के एक अवसर के साथ संपन्न हुआ।