बोधगया, बिहार, भारत - परम पावन दलाई लामा आज पुनः प्रातः कालचक्र अभिषेक की आनुष्ठानिक तैयारी में सम्मिलित हुए जैसा कि वह हर दिन करेंगे जब तक अभिषेक पूरा नहीं हो जाता। मंडल के निर्माण में अत्यंत प्रगति हुई थी। आज प्रातः तक, जैसा प्रवचन क्षेत्र के भीतर वीडियो फ़ीड पर स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है, राजप्रासाद का प्रमुख भाग और उसके आस पास का भाग पूरा हो गया है। जो शेष रहता है वह संस्कृत अक्षरों की लड़ी है जो बाह्य परिधि को घेरती है।
भिक्षुओं का एक सशक्त दल, जो मुख्य रूप से नमज्ञल विहार से सम्बद्धित है कालचक्र अभिषेक प्रदान करने में परम पावन का सहायता करता है। अनुभवी भिक्षु, जो उनके साथ बैठते हैं और प्रतिदिन आत्मसर्जन तथा अन्य अनुष्ठान करते हैं उनकी संख्या २५ है। इनमें उपाध्याय ठोमथोग रिनपोछे और पूर्व उपाध्याय जदो रिनपोछे, दो पूर्व मंत्राचार्य के अलावा वर्तमान अवलंबी शामिल हैं। इस अवसर पर आठ जोनंगपा भिक्षु और चार मंगोलियाई भिक्षु भी इस दल में सम्मिलित हुए हैं। चार भिक्षुओं पर रेत मंडल बनाने का उत्तरदायित्व है। उन्हें चार सहायक सहयोग दे रहे हैं जिनका संचालन एक पर्यवेक्षक द्वारा किया जा रहा है। सात भिक्षु सभी आवश्यक आनुष्ठानिक रोटियाँ बनाने के लिए उत्तरदायी हैं। दो अनुष्ठान के आचार्य हैं और परम पावन के चार निजी सहायक हैं। इसके अतिरिक्त छह परिचारक सिंहासन की देखभाल करते हैं, इत्यादि। इसके अतिरिक्त दो रसोई परिचारिक और चाय की सेवा हेतु आठ युवा भिक्षु भी हैं।
आज मङ्गल सुत्त के पालि सस्वर पाठ के उपरांत, वियतनामी में 'हृदय सूत्र' का पाठ हुआ। गदेन ठि रिनपोछे जेचुन लोबसंग तेनज़िन ने मंडल और बुद्ध के काय, वाक् और चित्त के प्रतीक समर्पित किए।
"यह बुद्ध ही थे जिन्होंने प्रतीत्य समुत्पाद की शिक्षा दी, "परम पावन ने प्रारंभ किया। "और वे २५०० वर्षों से अधिक पूर्व भारत में रहते थे, फिर भी उनकी देशना जीवंत बनी हुई है। जो महत्वपूर्ण है वह यह कि उन्होंने दिन प्रतिदिन के जीवन में जो उपयोगी है उसकी शिक्षा दी। यद्यपि धर्म को साधारणतया आस्था से जोड़ा जाता है जो परीक्षण के अधीन नहीं, पर आज बहुत से लोग जिनमें वैज्ञानिक भी हैं, यह जानकर आश्चर्यचकित हैं कि बुद्ध की देशनाओं में चित्त विज्ञान शामिल है।
"मैं यह नहीं कहता बौद्ध धर्म सर्वश्रेष्ठ है और न ही कि हर किसी को बौद्ध बनना चाहिए। हमारे पास विभिन्न धार्मिक परम्पराएँ हैं, जो विभिन्न लोगों के अनुकूल है, ठीक उसी प्रकार जैसे हमारे पास अलग-अलग रोगों के लिए उपयुक्त विभिन्न औषधियाँ हैं। तिब्बतियों ने पीढ़ियों से बौद्ध धर्म का पालन किया है, पर पश्चिम में और अन्य स्थानों पर हम यहूदी, ईसाई और मुसलमान पाते हैं। यही कारण है कि मैं आम तौर पर सुझाता हूँ कि लोगों ने जिस धर्म में जन्म लिया है वे उसी से जुड़े रहें।"
बौद्ध शिक्षाओँ की समझ के लिए परम पावन ने चार प्रतिशरणों को स्वीकार करने की बात की: पुद्गल प्रतिशरणता नहीं अपितु धर्म प्रतिशरणता, अर्थ प्रतिशरणता न कि व्यंजन प्रतिशरणता, नीतार्थ प्रतिशरणता न कि नेयार्थ प्रतिशरणता और ऐन्द्रिक साक्ष्य की प्रतिशरणता नहीं पर चित्त की प्रतिशरणता। उन्होंने कहा कि लक्ष्य क्लेशों को पराजित करने और इसको समझने की कुंजी शून्यता की समझ है, ऐसी समझ कि वस्तुएँ जिस रूप में दृश्य होती हैं वे वैसा अस्तित्व नहीं रखतीं।
अज्ञान के उन्मूलन तथा प्रज्ञा के विकास की ओर संकेत करते हुए परम पावन ने पौ फटने के साथ एक सादृश्य दिया। जैसे जैसे सूर्योदय होता है प्रकाश धीरे-धीरे नभ को भर देता है, जब तक दिन प्रकाश से भर नहीं जाता। उन्होंने सुझाया कि इस पद्धति का अनुपालन करना २१वीं शताब्दी का बौद्ध बनना है। उन्होंने जो अभ्यास में सीखें उसे व्यवहार में लागू करने के महत्व पर बल दिया।
परम पावन ने 'बोधिसत्वचर्यावतार' के पाँचवें अध्याय को पढ़ना पुनः जारी किया और टिप्पणी की, कि सोने से पूर्व सद्विचार से आपकी पूरी नींद सकारात्मक हो जाती है। उन्होंने शीघ्रता से उस अध्याय को पूरा किया और छठा अध्याय प्रारंभ किया जिसका संबंध धैर्य (क्षांति) से है। प्रारंभिक श्लोक स्पष्ट करते हैं कि हमें केवल क्रोध को स्वीकार नहीं करना चाहिए। बल्कि हमें इसके नकारात्मक परिणामों की जाँच करनी चाहिए। हमें इसकी भी पहचान कर लेना चाहिए कि एक बार यह फूट पड़ा तो उसे शांत करना कठिन है, तो उचित होगा कि उसके उभरने से पूर्व ही उससे निपटा जाए। उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि जब हम किसी पर क्रोधित होते हैं, तो हमें स्मरण रखना चाहिए कि न केवल उनका किसी रूप में स्वतंत्र अस्तित्व नहीं है, पर वे भी क्लेशों के अधीन हैं।
एक बात रखी गई कि बुद्ध जिनकी हम पूजा करते हैं उनके संबंध में हम धैर्य के विकास अथवा परात्मसमता और परात्मपरिवर्तन के अभ्यास को व्यवहृत नहीं कर सकते - हम ऐसा दुखी सत्वों के साथ ही कर सकते हैं। परम पावन ने टिप्पणी की कि आज विश्व में निर्धन लोगों की बड़ी संख्या है, एक समस्या है जिसका मनुष्य के रूप में हमें समाधान खोजने की आवश्यकता है। उन्होंने छठवें अध्याय के लगभग अंत में एक श्लोक को रेखांकित किया:
मैं क्यों नहीं देखता
कि भविष्य में मेरे बुद्धत्व की प्राप्ति
साथ ही इसी जीवन में सौभाग्य, यश और सुख
सत्वों की आराधना और उन्हें सुखी करने से ही आते हैं?
उन्होंने इस व्यावहारिक सलाह पर टिप्पणी की, कि इसका परीक्षण करें कि जिसे करने की आवश्यकता है वह क्या आप कर सकते हैं। यदि आप नहीं कर सकते, तो बेहतर यह होगा कि शुरू न करें, पर यदि आप कर सकते हैं, तो एक बार प्रारंभ करने पर बेहतर होगा कि आप रुकें नहीं। उन्होंने किसी भी स्थिति की वास्तविकता का कई विभिन्न कोणों से परीक्षण कर आकलन करने की वकालत की।
उन्होंने जहाँ छोड़ा था वहाँ से 'भावना क्रम' का पाठ पुनः प्रारंभ किया, निर्देश का संबंध चित्त के शमथ के विकास से था। परम पावन ने जागते ही चित्त पर ही ध्यान केंद्रित करने की सलाह दी। उन्होंने अपना चेहरा धोने और ध्यान में बैठने, जब चित्त ताजा हो और न अतीत की स्मृतियों में और न ही भविष्य की योजनाओं में खोया हो, सहज रूप से चित्त को उस क्षण में टिकने का सुझाव दिया। उन्होंने कहा कि यदि आप ऐसा करते हैं, तो एक ऐसी अनुभूति उभरेगी और आप सजग हो जाएँगे कि चित्त की प्रकृति स्पष्टता और जागरूकता है। सर्वप्रथम श्वास पर ध्यान केंद्रित करना इस बिंदु तक पहुँचने में सहायक हो सकता है।
ग्रंथ में कथित है कि भव चक्र के सभी अच्छे गुण शमथ और विपश्यना के परिणाम हैं। एकाग्रता युक्त शमथ चित्त स्वयं क्लेशों पर काबू नहीं पा सकता, उसकी प्राप्ति के लिए विपश्यना आवश्यक है।
यह सलाह कि योगियों को मांस से बचना चाहिए, पर कुछ चर्चा निकली। परम पावन ने टिप्पणी की कि अतीश शाकाहारी थे, पर एक श्रीलंकाई भिक्षु ने उन्हें बताया था कि बौद्ध भिक्षु न शाकाहारी हैं और न ही मांसाहारी क्योंकि जब वे भिक्षाटन पर जाते हैं तो जो भी दिया जाए उन्हें वह स्वीकार करना चाहिए। परम पावन ने थाई भिक्षुओं के साथ भिक्षाटन पर जाने का और वे जिस तरह विनय धारण करते हैं उससे प्रभावित होने का स्मरण किया।
उन्होंने स्पष्ट किया, जैसा वह पहले कर चुके हैं, कि ६० के दशक में वे २० महीनों के लिए शाकाहारी बन गए थे, पर गंभीर रूप से बीमार पड़ गए, जिसके परिणामस्वरूप उनके विभिन्न चिकित्सकों ने उन्हें उनके पूर्वाहार पर लौटने की सलाह दी। परन्तु वे यह बताते हुए बहुत खुश हैं कि महाविहारों के आम रसोईघर और तिब्बती समुदाय के कई विद्यालय अब शाकाहारी हैं। उन्होंने निष्कर्ष रूप में कहा कि आप शाकाहारी हैं अथवा नहीं, एक व्यक्तिगत चयन है।
निर्देशों में साष्टांग को लेकर एक और संदर्भ ने परम पावन को यह समझाने के लिए प्रेरित किया कि यद्यपि वे नियमित रूप से यह किया करते थे पर उन्हें अब उनके घुटनों को लेकर जो कठिनाई है वह उन्हें ऐसा करने से रोकता है। उन्होंने आगे कहा कि जहाँ वे पहले रेत मंडल के निर्माण में उठते बैठते थे, चूँकि उन्होंने वह कार्य उपाध्याय को सौंप दिया है और अब निश्चल बैठते हैं, उन्होंने अपनी कल्पना की स्पष्टता में एक सुधार देखा है।
ग्रंथ में वैरोचन का पूर्ण अथवा अर्ध पद्मासन सुझाया गया है, जो ध्यान की स्पष्टता और एकाग्रता में सहायक होता है। परम पावन ने श्वास के नौ चक्र सुझाए - तीन बार दाईं नासिका से श्वास अंदर लेना और बाईं नासिका से श्वास छोड़ना, फिर तीन बार इसके विपरीत करना और फिर दोनों नासिकाओं से तीन बार श्वास लेना और छोड़ना। ध्यान की आम वस्तु बुद्ध की एक छोटी सी मूर्ति भौंहों के स्तर पर आप के समक्ष एक साष्टांग प्रणाम की दूरी पर होगी। चित्त को किसी विचलन या सुस्ती को लेकर सतर्क व सावधान रहना चाहिए। 'बोधिचर्यावतार' में शमथ की व्याख्या के भाग की ओर लौटते हुए उसकी मुख्य बाधा को उत्तेजना के रूप में वर्णित किया गया है जो तुम्हें लक्ष्य वस्तु से विचलित करती है।
परात्मसमता और परात्मपरिवर्तन के अभ्यास को समझाया गया है। हम सब सुखी होना चाहते हैं और हम में से कोई भी दुःख नहीं चाहता। ध्यान करने वाले को कल्पना करनी होगी कि एक तरफ अरबों अन्य सत्व हैं और दूसरी ओर वह स्वयं है और मूल्याकंन करना होगा कि उसे किसकी सहायता करनी चाहिए। परम पावन ने टिप्पणी की, कि "जब मैं छोटा था तो मैं बोधिचित्त के अभ्यास का बहुत बड़ा प्रशंसक था, पर सोचता था कि इसे प्राप्त करना बहुत कठिन है। पर खुनु लामा रिनपोछे से इस ग्रंथ का स्पष्टीकरण प्राप्त करने के बाद मैंने अपने दृष्टिकोण को संशोधित किया है, परन्तु इसके लिए कठोर परिश्रम करना होगा।"
सत्र समाप्त होने से पहले परम पावन अध्याय आठ के श्लोक पढ़े (१४०- १५४) जिसमें स्व और पर की भूमिका पलट दी गई है।
ये प्रारंभिक प्रवचन कल पूरी हो जाएँगें। एक समर्पित ऑडियो-विजुअल टीम विवेकपूर्ण ढंग से रखे कैमरों और मंच के नेपथ्य में मिश्रण डेस्क के साथ आठ भाषाओं अंग्रेजी, चीनी, तिब्बती, वियतनामी, कोरियाई, रूसी, मंगोलियाई और हिन्दी में फेसबुक और लाइवस्ट्रीम पर उन्हें प्रसारित कर रही हैं। अब तक संयुक्त १,०४०,००० व्यूज़ हैं।