बोधगया, बिहार, भारत - आज प्रातः पहले की तरह कालचक्र तैयारी के अनुष्ठान लगातार चल रहे थे जबकि चार भिक्षुओं ने रेत मंडल पर अपना कार्य बनाए रखा था। राजप्रासाद का मूल आकार अब दृष्टिगत है।
इस तरह के रेत मंडल बनाने की परम्परा पूरी तरह भारत से आई है और यह परम्परा का और एक उदाहरण है, जो तिब्बत में बची रही जबकि अपने उद्भूत देश से अदृश्य हो गई। परम पावन दलाई लामा ने प्रातः के अनुष्ठान में भाग लिया और जब उन्होंने समाप्त किया तो निकट से मंडल निर्माण के कार्य का निरीक्षण किया।
परम पावन मध्याह्न भोजनोपरांत शीघ्र ही एक अपूर्वनिर्धारित अंतर्धार्मिक बैठक में स्वामी चिदानन्द सरस्वती और कई धार्मिक परम्पराओं के प्रतिनिधियों का स्वागत करने के लिए कालचक्र मंदिर में लौट आए। इन प्रतिनिधियों ने कल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ पटना में ३५० वर्ष पूर्व वहाँ जन्मे दशम सिख गुरु गोविंद सिंह के जन्मोत्सव समारोह में भाग लिया था। वे आज परम पावन और कालचक्र अभिषेक के प्रतिभागियों का अभिनन्दन करने तथा अंर्तधर्म समझ का उत्सव मनाने आए थे।
कार्यक्रम का परिचय देते हुए दिल्ली में पूर्व तिब्बती प्रतिनिधि तेनपा छेरिंग ने परम पावन की तीन मुख्य प्रतिबद्धताओं की रूप रेखा दी, जो मानवीय मूल्यों को बढ़ावा देने, अंतर्धार्मिक सद्भाव को पोषित करने और तिब्बती भाषा और संस्कृति को जीवित रखना है।
अमृतसर में अकाल तख्त के मुख्य जत्थेदार ज्ञानी गुरबचन सिंह को सर्वप्रथम संबोधन करने हेतु आमंत्रित किया गया। उन्होंने पहले एक प्रार्थना की, अपने सह अतिथियों का अभिनन्दन किया और परम पावन की करुणा और प्रेम के प्रतीक के रूप में प्रशंसा करते हुए एक संक्षिप्त उपदेश दिया। उसके बाद मौलाना रहमान हसनूर आए और उन सबका जो बोधगया आए हैं, स्वागत किया। उन्होंने उल्लेख किया कि इस्लाम में सभी प्राणियों को एक परिवार के बेटे बेटियों के रूप में माना जाता है।
जैन आचार्य लोकेश मुनि ने भगवान और धर्म के प्रति श्रद्धा अभिव्यक्त की अर्पित की, परम पावन, अन्य अतिथियों और कालचक्र शिष्यों का अभिनन्दन किया। उन्होंने अपने साथियों का एक अंतर्धर्म समूह के रूप में वर्णित किया और आपसी अंतर्धर्म कार्यकर्ताओं के बीच परम पावन की एक वरिष्ठ के रूप में प्रशंसा की। स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने विस्तृत रूप से सस्वर पाठ किया और परम पावन की एक विख्यात आध्यात्मिक गुरु, आस्था का सागर लिए सुख के सागर के रूप में प्रशंसा की। उन्होंने उस संवाद की सूचना दी जिसमें परम पावन ने उनसे मानवीय मूल्यों की आवश्यकता, सभी धार्मिक परम्पराओं के प्रति सम्मान और इस विचार को साझा करना कि हम सब एक मानव परिवार के हैं, की बात की थी।
जब परम पावन से बोलने का अनुरोध किया गया तो उन्होंने ऐसा भोट भाषा में किया और श्रद्धेय समदोंग रिनपोछे ने विशुद्ध हिन्दी में उसका अनुवाद किया। उन्होंने कहा:
"आज, हम इस स्थान पर एकत्रित हुए हैं जो यहाँ बुद्ध के प्रबुद्धता प्राप्त होने के कारण पवित्र बन गया है। जब मैं विगत सप्ताह पटना में था तो मुख्यमंत्री ने गुरु गोबिंद सिंह के जन्म से संबंधित आगामी कार्यक्रम के विषय में मुझे बताया था। इस अंतर्धर्म बैठक के प्रतिभागियों ने सुवचित रूप से करुणा के महत्व की बात रखी है। हमारी विभिन्न धार्मिक परम्पराओं के अपने दार्शनिक अंतर हैं, परन्तु वे प्रेम और करुणा का एक आम संदेश संप्रेषित करती हैं।
"यहाँ भारत में विभिन्न धार्मिक परम्पराएँ, कुछ जो इस मिट्टी की हैं और अन्य जो बाहर से आई हैं, सदियों से साथ साथ रहती आई हैं। भारत विभिन्न धार्मिक परम्पराओं के मूल्य को पहचानता है और प्रत्येक के साथ सम्मान का व्यवहार करता है और इस तरह एक उदाहरण प्रस्तुत करता है जिसका अनुपालन अन्य देश कर सकते हैं।"
सांसद जगजीत सिंह दरदी ने एक विशेष रूप से ढाला समारोहीय सिक्का जारी किया और साध्वी भगवती सरस्वती ने वॉश, एक अधिक स्वच्छ भारत विशेषकर स्वच्छ जल की चिंता करता एक आंदोलन की ओर से एक अपील की।
प्रतिनिधि मंच से बाहर निकले, परम पावन ने सिंहासन पर आसन ग्रहण किया और प्रारंभिक प्रवचनों का कार्यक्रम पुनः प्रारंभ हुआ। मंङ्गल सुत्त का पालि में, जिसके बाद चीनी भिक्षुओं के एक समूह ने चीनी में हृदय सूत्र का पाठ किया। इससे पहले कि परम पावन अपना प्रवचन प्रारंभ करते, तिब्बती गोलोग समुदाय के दोनों तिब्बत के अंदर और बाहर के प्रतिनिधियों ने उनके लिए एक संक्षिप्त दीर्घायु समर्पण प्रस्तुत किया।
"कल, मैंने काफी विस्तृत भूमिका दी थी," परम पावन ने जनमानस से कहा, "मैं उसे नहीं दोहराऊँगा। आज हम 'बोधिसत्वचर्यावतार' पढ़ रहे हैं।"
उन्होंने द्रुत गति से श्लोकों का पठन किया और वे यहाँ वहाँ टिप्पणी करने के लिए रुके। पहले प्रेरणा के महत्व पर बल देना था और यदि आप बोधिचित्त से प्रेरित हों जो सभी सत्वों की प्रबुद्धता प्राप्ति का उद्देश्य रखता हो, तो सकारात्मक परिणामों का अंत न होगा। दो प्रकार के बोधिचित्त में अंतर किया जाता है, एक जो प्रणिधि बोधिचित्त है, जो इच्छा करता है और दूसरा जो प्रस्थान बोधिचित्त है जो कुछ करने हेतु निकल पड़ता है।
करुणा और साहचर्य के मूल्य के एक उदाहरण के रूप में, परम पावन ने एक वैज्ञानिक प्रयोग का उल्लेख किया जिसमें दो चूहे थे जिन्हें कुछ चोट लगी थी। जो जांचकर्ताओं ने पाया वह यह था कि वह चूहा जिसका एक सहायक साथी था वह जल्दी स्वस्थ होकर साधारण स्थिति में आ गया, उस चूहे की तुलना में जिसे अकेला छोड़ दिया गया था।
आगे यह इंगित करता हुआ एक श्लोक था कि दुःख क्लेशों का परिणाम है और क्लेश को इस रूप में परिभाषित किया गया कि यह ऐसा है जो जैसे ही उत्पन्न होता है चित्त को व्याकुल करता है। एक बार जब यह स्पष्ट हो जाए कि क्लेश और जो संकट वे लाते हैं, उन पर काबू पाया जा सकता है, तो उस लक्ष्य की दिशा में काम करना और दूसरों की भी ऐसा करने में सहायता करना स्वाभाविक हो जाता है। इस को समझने की कुंजी तथता है।
अध्याय तीन के अंत में देवों तथा असुरों के एक संदर्भ ने परम पावन ने दीर्घायु अनुष्ठान में एक पंक्ति को लेकर शंका व्यक्त की, जिसमें ऐसे सत्वों द्वारा आयु छीने जाने और उसे वापिस लेने का उल्लेख है। उन्होंने कहा, "हम सभी सत्वों को अपने अतिथि के रूप में आमंत्रित करने का दावा करते हैं, क्या हमें नहीं चाहिए कि हम उन्हें उसे रखने दें?"
एक प्रमुख श्लोक इंगित करता है कि हमारे वास्तविक और सबसे विनाशकारी शत्रु हमारे बाहर के सत्व नहीं हैं, पर हमारे क्लेश हैं जो हम अपने अंदर पालते हैं। ये ऐसे शत्रु हैं जिनके लिए हमारे पास कोई धैर्य न होना चाहिए।
परम पावन ने टिप्पणी की कि उदाहरण के रूप में 'मुस्लिम आतंकवादी' कहकर संदर्भित करना आम हो गया है जिसे वे गलत समझते हैं। उन्होंने कहा कि इस तरह लेबल लगाना गलत है। जो लोग आतंकवाद में लिप्त होते हैं वे मात्र आतंकवादी हैं। उनके कार्य पूर्ण रूप से धार्मिक शिक्षाओं के विरोध में हैं, तो उन्हें एक धार्मिक लेबल के साथ संबद्ध करना अनुचित है।
चार आर्य सत्यों की एक व्यापक चर्चा में परम पावन ने उल्लेख किया कि नैरात्म्य का एक अंतर्निहित संदर्भ था जब बुद्ध ने उन्हें प्रथम धर्म चक्र प्रवर्तन में सिखाया। राजगीर में गृद्ध कूट पर द्वितीय धर्म चक्र प्रवर्तन में उन्होंने स्पष्ट रूप से सिखाया कि वस्तुओं की कोई स्वभाव सत्ता नहीं होती - उनमें स्वभाव सत्ता का अभाव होता है।
पञ्चम अध्याय 'सम्प्रजन्य रक्षण' के दो तिहाई भाग तक पहुँचकर परम पावन दिन के लिए समाप्त किया और वे कल पुनः जारी रखेंगे।