बोधगया, बिहार, भारत - आज प्रातः परम पावन दलाई लामा पुनः नमज्ञल विहार से ७ बजे से पहले कालचक्र मंदिर के लिए रवाना हुए। प्रातः उन्होंने कालचक्र के आत्म-सर्जन का अनुष्ठान किया और प्रारंभिक अनुष्ठान में लगे रहे। कल, शिष्यों को सुरक्षा प्रदान करने की विधियों के अतिरिक्त, जिस पर मंडल का निर्माण होना है और अभिषेक प्रदान किया जाना है, उस भूमि से संबंधित अनुष्ठान प्रारंभ हो चुके थे। इनमें भूमि की प्राप्ति तथा उसके उपयोग की अनुज्ञा शामिल थी।
आज, जिस भूमि पर मंडल का निर्माण किया जाना है उस से संबद्धित किसी संभावित बाधाओं को दूर करने के लिए अनुष्ठान किए गए। इन का समापन पूर्वाह्न में नमज्ञल विहार के १५ भिक्षुओं द्वारा समारोहीय भूमि अनुष्ठान नृत्य से हुआ। अलंकृत रेशमी परिधानों को धारण किए, पञ्च पर्ण के मुकुट पहने तथा वज्र और घंटा हाथों में रखे उन्होंने लगभग डेढ़ घंटे तक सस्वर पाठ तथा नृत्य किया और जो कुछ भी बाधा वहाँ संभावित थी उसे शांत किया। प्रत्येक नर्तक कालचक्र के रौद्र सुरक्षात्मक रूप, वज्र वेग होने का दिव्य गौरव बनाए रखता है। नृत्य के समाप्त होने से पूर्व परम पावन मंदिर में लौट आए और पुनः अपना आसन ग्रहण किया।
मध्याह्न की वेला में पवित्रीकृत चाक में डुबाए हुए धागे से मंडल के रूपरेखा की प्रथम रेखाएँ खींची गईं। वज्राचार्य और इस अवसर पर परम पावन ने प्रतिनियुक्त किये नमज्ञल विहार के उपाध्याय ठोमथोग रिनपोछे ने प्रारंभिक रेखाएँ अंकित करने के लिए चाक से भरे धागे को मंडल के आधार पर उसे छेड़ा। तत्पश्चात भिक्षुओं ने पट्टी और चाक के साथ शेष पंक्तियाँ खींचने की जटिल प्रक्रिया प्रारंभ की। इस खाके को क्रियान्वित करने का काम कल जारी रहेगा, जिसके बाद रंगीन रेत से मंडल सृजन प्रारंभ होगा।