बोधगया, बिहार, भारत - कई उज्जवल दिनों के उपरांत आज भोर की धुंध और बादल का पुनरागमन जैसा प्रतीत हुआ, जब परम पावन दलाई लामा ने नमज्ञल विहार से कालचक्र मंदिर की छोटी दूरी तय की। उन्होंने तैयारी अनुष्ठानों के अपेक्षाकृत लम्बे सत्र में भाग लिया, जिसमें उनके साथ सहयोग करते हुए सदा की तरह भिक्षुओं का दल था। उसी समय लामाओं की एक सभा मंदिर के दूसरे भाग में एकत्रित थी है, जहाँ वे कल से परम पावन की दीर्घायु के लिए तारा प्रार्थना और मंत्र का सस्वर पाठ कर रहे हैं। मंत्रों व प्रार्थनाओं का यह संभार समारोहीय दीर्घायु समर्पण तक जारी रहेगा जो कि १४ जनवरी को किया जाने वाला है।
कालचक्र मंदिर से, परम पावन नूतन गदेन थेगछेनलिंग मंगोलियायी विहार का उद्घाटन करने के लिए गाड़ी से गए। आगमन पर खम्बो लामा द्वारा स्वागत किए जाने के बाद परम पावन सीढ़ियाँ चढ़े गए और प्रवेश द्वार का फीता काट कर औपचारिक रूप से इसका उद्घाटन किया। उत्सुक मंगोलियाई - ६०० भिक्षु और १,२०० साधारण लोगों के बीच से ऊपर विहार में अपना रास्ता बनाते हुए उन्होंने बुद्ध शाक्यमुनि, जे चोंखापा और प्रथम खलखा जेचुन दमपा की मूर्तियों के समक्ष अपनी श्रद्धा अर्पित की और सिंहासन पर अपना आसन ग्रहण किया।
खम्बो लामा ने सभी मंगोलियाई भिक्षुओं और भक्तों की ओर से परम पावन का विहार में पवित्रीकरण हेतु आने के लिए समय निकालने के लिए धन्यवाद ज्ञापित किया। उन्होंने उल्लेख किया कि किस प्रकार २०वीं शताब्दी के पूर्वार्ध तक मंगोलिया में बौद्ध धर्म फला फूला था जब तक कि इसे कठोर रूप से प्रतिबंधित नहीं कर दिया गया था। लोकतंत्र की पुनर्स्थापना ने उसके पुनर्जीवन को संभव कर दिया है। उन्होंने इच्छा व्यक्त की कि बट्टसगान मंदिर उस पुनरुद्धार में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाए और बोधगया मंगोलियाई तीर्थयात्रियों के लिए शरण प्रदान करे।
परम पावन ने सभी भिक्षुओं से उच्च स्वर में एक छंद मंडल समर्पण का पाठ करने को कहा, जो उन्होंने किया और उनके स्वरों से भवन गुंजायमान हो गया। तत्पश्चात उन्होंने गदेन ल्हज्ञा की प्रार्थना की।
अपनी टिप्पणी में परम पावन ने दीर्घ काल से अस्तित्व रखते तिब्बत और मंगोलिया के बीच के अनूठे संबंध को स्वीकार किया।
"मेरे धर्म भाइयों और बहनों, आपने इस मंदिर का निर्माण किया है, इसके पवित्रीकरण संस्कार के लिए मुझे आमंत्रित किया है और मैं यहाँ आकर बहुत खुश हूँ। मैंने मंगोलिया की कई यात्राएँ की हैं और मेरा यह अवलोकन है कि हमारे द्वारा बौद्ध धर्म को अपनाने से पहले ही हमारे देशों के बीच निकट के आपसी संबंध थे। जैसा खम्बो लामा ने अपने संबोधन में स्मरण किया, कि ऐसी मान्यता है कि बुद्ध ने भविष्यवाणी की थी, कि उनकी शिक्षा का प्रसार उत्तर से उत्तर में होगा। इसको व्याख्याख्यित किया गया है कि तिब्बत में प्रसरित होगा और उसके बाद मंगोलिया में।
"तृतीय दलाई लामा सोनम ज्ञाछो मंगोलिया गए और दलाई नाम प्राप्त किया, जो वंशावली का है। मेरे पूर्ववर्ती, १३वें दलाई लामा ने भी जब २०वीं सदी के उत्तरार्ध में तिब्बत में संकट मंडरा रहे थे तो मंगोलिया पलायन किया।
"अतीत में कई मंगोलियाई भिक्षु तिब्बत में अध्ययन करने के लिए आए और कई वास्तव में शीर्ष विद्वान बने। पुनः जैसा खम्बो लामा ने उल्लेख किया, चूँकि आपने पुनः अपनी स्वतंत्रता प्राप्त की है और लोकतंत्र की स्थापना की है, आप सशक्त भक्ति के आधार पर धर्म को पुनर्जीवित करने में सक्षम है।
"यह स्थान वज्र-आसन, वास्तविक अर्थों में पवित्र है। यही वह स्थान है जहाँ बुद्ध शाक्यमुनि को प्रबुद्धता प्राप्त हुई और जहाँ बाद में नागार्जुन जैसे आचार्यों और उनके अनुयायियों ने अभ्यास किया। हम यहाँ थाई, बर्मी और जापानी मंदिर देखते हैं, तो यह उचित था कि आप एक मंगोलियाई विहार का भी निर्माण करते।
"चूँकि आप धर्म को पुनर्जीवित करने और संरक्षण का उद्देश्य रखते हैं, इसलिए अध्ययन और अभ्यास करना महत्वपूर्ण है। सिद्धांत में शास्त्र और अनुभूति अपरिहार्य है जिसका संरक्षण तभी होगा यदि आप त्रिपिटकों का अध्ययन करेंगे और तीन अधिशीलों का अभ्यास करेंगे। ऐसा करना २१वीं शताब्दी का बौद्ध होना है। खम्बो लामा और विहार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि ऐसा करने के लिए एक अनुकूल वातावरण हो।"
मध्याह्न भोजनोपरांत पुनः कालचक्र मंदिर में लौटकर, मंच, जिस पर साधारणतया परम पावन का सिंहासन और अन्य लामाओं के सिंहासन के स्थान होते हैं, उन्हें वहाँ से हटा दिया गया था। परम पावन ने एक ओर सिंहासन पर आसन ग्रहण किया। रेत मंडल, जो कालचक्र और संबद्ध देवों के राजप्रासाद का प्रतिनिधित्व करता है, का निर्माण कल पूर्ण हो गया था। आज नमज्ञल विहार के सोलह भिक्षुओं द्वारा समारोहीय पोषाक धारण किए एक आनुष्ठानिक आचार्य के नेतृत्व में, श्रृंग-वाद्य , ढोलक और झांझ के संगीत के संगत साथ एक समर्पण नृत्य प्रस्तुत किया जाना था। नर्तक स्वयं की कल्पना समर्पण देवियों के रूप में करते हैं जो कालचक्र मंडल के एकत्रित देवों को ध्यान का समर्पण प्रस्तुत करती हैं। यह कल प्रारंभ होने वाले अभिषेक के प्रारंभ से पूर्व का उत्सव है।
जबकि भिक्षु अपना भव्य नृत्य प्रदर्शित कर रहे थे, आगे मंच के समक्ष, साधारण लोगों के समूह के लोगों ने अपने वाद्य बजाए, गाया और अपने स्वयं के नृत्यों का प्रदर्शन किया। टिब्बटेन इंस्टिट्यूट ऑफ परफोर्मिंग आर्ट्स (टीअइपीए) तिब्बत के विभिन्न प्रांतों से लिए गए तीन उच्च स्तर के प्रदर्शन किए। उनके बाद सामान्य हिमालय क्षेत्र, शर-खुम्भू, भूटान, मंगोलिया, मोन, स्पीति, किन्नौर, कोरिया और कलमिकिया के समूहों का प्रदर्शन हुआ।
जब नृत्य समाप्त हुए तो परम पावन ने अपने आवास में लौटने से पहले भीतरी मंदिर में दिवस के अनुष्ठान को पूरा करने हेतु अपना आसन ग्रहण किया। कल वास्तविक कालचक्र अभिषेक का प्रारंभ होगा।