दिल्ली, भारत - आज प्रातः तवांग विहार का प्रांगण उन लोगों से खचाखच भरा था जो परम पावन दलाई लामा को विदा देने आए थे। बरामदे की सीढ़ियों से उन्होंने उनसे संक्षेप में बात की। सर्वप्रथम उन्होंने मोन से फिर भूटान से आए लोगों से अपने हाथ ऊपर उठाने को कहा।
"विगत तीन दिनों में आप में से इतने लोगों को देख, आपकी श्रद्धा तथा भक्ति ने मेरे मर्म को स्पर्श किया है। लामा का उत्तरदायित्व शिक्षा देना है, जो मैंने किया है और शिष्य का, जो उसने सीखा है उसे व्यवहृत करना है, जो मुझे विश्वास है कि आप करेंगे। जैसा कि मैंने कल कहा था, मुझे लगता है कि दो सत्यों और त्रिरत्न में शरण लेने की समझ पर ध्यान केंद्रित करना महत्वपूर्ण है।
"जो बुद्ध ने देशना दी, उसके १०० खंड कांग्यूर में हमारे पास हैं। प्रज्ञा पारमिता पर नागार्जुन और उनके अनुयायियों ने व्यापक स्तर पर व्याख्या की और उनके लेखन तेंग्यूर के २०० से अधिक खंडों में पाए जा सकते हैं। और तो और हमारे पास तिब्बती आचार्यों द्वारा अतिरिक्त रचित भाष्यों के २०,००० खंड। मैं सक्या पंडित ने जो कहा उससे पूर्ण रूपेण सहमत हूँ - कि 'भले ही आपकी मृत्यु कल होने वाली हो, तो भी आज कुछ अध्ययन करना और सीखना है'। जब भी संभव हो मैं अध्ययन करता हूँ, आपको भी करना चाहिए।
"आप में से कई आज यहाँ भूटान से आये हैं, वह देश जो कुछ ही स्वतंत्र बौद्ध देशों में से एक है, आप सब को मेरी शुभकामनाएँ। बहुत हद तक तिब्बत और भूटान ने ऐतिहासिक रूप से एक दूसरे के साथ अच्छा संबंध बना रखा है। धन्यवाद, टाशी देलेग, फिर मिलेंगे।"
श्रद्धालु लोग तवांग हेलीपैड तक परम पावन को विदा देने के लिए मार्ग पर पंक्तिबद्ध खड़े थे। वहाँ से उन्होंने उड़ान भरी और हेलीकाप्टर मेघ विहीन आकाश में सरलता से ऊपर उठ गया। प्रारंभ में पायलट ने लुमला के ऊपर से उड़ान भरी, जो परम पावन का पूर्व निर्धारित कार्यक्रम था और गुवाहाटी की ओर नीचे जाने से पहले आर्य तारा की विशाल नई मूर्ति के चारों ओर उड़ान भरी। गुवाहाटी आगमन पर वहाँ असम और अरुणाचल सरकारों के प्रतिनिधियों ने उनका स्वागत किया। दिल्ली के लिए उड़ान भरने से पूर्व उन्होंने हवाई अड्डे में मध्याह्न का भोजन किया और वे दिल्ली देर दोपहर पहुंचे।
कल प्रातः परम पावन धर्मशाला के लिए उड़ान भरेंगे।