तवांग, अरुणाचल प्रदेश, भारत - जब परम पावन दलाई लामा आज प्रातः थुबसुंग दरज्ञेलिंग विहार से प्रस्थान करने के लिए नीचे आए तो दूर पहाड़ी पर सूरज चमक रहा था और आकाश सुहानी नीली आभा लिए था। विहार के बरामदे से उन्होंने उऩकी प्रतीक्षा में नीचे बैठे स्थानीय लोगों के एक समूह का अभिनन्दन किया और उन्हें पुनः एक बार बताया कि बुद्ध ने जो शिक्षा दी उसकी एक ठोस समझ विकसित करना कितना महत्वपूर्ण है। दिरंग जाने से पहले वह शहर में नीचे मंदिर जाने के लिए रुके, जहाँ से उन्होंने १९८३ में ५००० लोगों को कालचक्र अभिषेक दिया था।
दिरंग से सड़क लगातार ४१७० मीटर सेला पास तक ऊपर जाती है जो पश्चिम कामेंग जिला के अंत और तवांग के प्रारंभ को संकेतित करती है। प्रत्येक गांव में मार्ग पर लोग परम पावन का अभिनन्दन करने हेतु एकत्रित हुए थे जब वे वहाँ से गुज़रे। वयस्क अधिकांश रूप से पारम्परिक मोनपा वेशभूषा में सुसज्जित थे जबकि कई बच्चे स्कूल की वर्दी में थे। पास में यहां वहां बर्फ दिखाई पड़ रही थी पर रास्ता साफ था। परम पावन और उनके समूह को उनकी यात्रा जारी रखने से पूर्व चाय और जलपान कराया गया।
पास से उतरते हुए परम पावन एक कर्मा काग्यू विहार मोनपालुंग जंगछुब छोखोरलिंग में मध्याह्न के भोजन के लिए रुके। प्रार्थना ध्वज और अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध ध्वज के अतिरिक्त, ज्ञलवंग करमापा का 'स्वप्न ध्वज' सड़क के किनारे फहरा रहा था। चूँकि इतने सारे लोग उनका स्वागत करने के लिए इकट्ठे हुए थे तो परम पावन ने विहार की सीढ़ियों से उनसे संक्षेप में बात की। उन्होंने उनसे कहा कि वसुबंधु ने लिखा है कि बुद्ध की शिक्षाओं को आगम और अधिगम के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है और उनके संरक्षण करने का एकमात्र तरीका अध्ययन और अभ्यास के माध्यम से है। उन्होंने उनसे यही करने का आग्रह किया।
जंग से परम पावन गाड़ी से तवांग की तरफ आए। जितना वे शहर के निकट पहुँचे उतनी अधिक संख्या में लोग उनका अभिनन्दन करने के लिए मार्ग पर जमा हुए थे। लगभग हर जगह लोगों ने जंकिपी पत्तियों के ढेर जलाकर धुएँ का समर्पण किया। कई जगहों पर टेबल लगाए गए थे जिन पर पारम्परिक भेंट और मूर्तियाँ रखी गई थीं, ताकि परम पावन वहाँ से जाते हुए उनका पवित्रीकरण कर सकें। कई बार अपेक्षित अतिथियों के लिए कुर्सियों की व्यवस्था की गई थी। और गांवों के समूचे रास्ते पर आकर्षक गमले सजे थे जो रंगीन खिले फूलों से भरे थे। शहर के बाहरी इलाके में स्थानीय लोगों के मिश्रित समूह ने नृत्य और गीत प्रस्तुत किया और स्नो लायन नर्तकों ने आनंदमय स्वागत भाव से प्रदर्शन किया।
तवांग विहार पहुँचने पर परम पावन को परम्परागत आतिथ्य प्रदान किया गया। जब उनका एक औपचारिक छत्र के साथ मंदिर में अनुरक्षण किया जा रहा था तो भिक्षुओं ने श्रृंग वाद्य बजाया। जब वे अंदर बैठे तो उन्हें मक्खन की चाय और मीठे चावल दिए गए और उन्होंने संक्षिप्त रूप से बात की।
"हर किसी को टाशी देलेग। आज मैं कई स्थानों से होता हुआ आया हूँ जो पारम्परिक रूप से बौद्ध हैं, जहाँ लोगों ने सड़क पर प्रतीक्षा कर अपनी श्रद्धा व्यक्त की। मैं अगले कुछ दिनों में और प्रवचन देने वाला हूँ इसलिए मुझे अभी बहुत कुछ कहने की कोई आवश्यकता नहीं है। वास्तविक मन्दिर चित्त में बनाया जाना चाहिए - अपने मस्तिष्क में मंजुश्री की प्रज्ञा और अपने हृदय में अवलोकितेश्वर की करुणा के निर्माण का प्रयास करें। यदि आप ऐसा कर सकें तो यह एक वास्तविक आशीर्वाद होगा। ऐसा लगता है कि १९५९ में जब मैं पहली बार इस क्षेत्र से होते हुए गुज़रा तब से शिक्षाओं में रुचि पुनः जागी और विकसित हुई है। "बौद्ध धर्म की विशेषताओं में से एक यह है कि वह तर्क के आधार पर दार्शनिक दृष्टिकोणों को समझने की क्षमता रखता है। यदि हम श्रमसाध्य रूप से अध्ययन करें और बुद्ध ने जो देशना दी है, उसकी समझ को विकसित करें तो उनकी शिक्षा कई शताब्दियों तक जीवित रहेगी। लद्दाख से अरुणाचल प्रदेश तक बुद्ध की शिक्षाओं के बारे में जागरूकता और लोगों की रुचि हाल में बढ़ी है। अतीत में तिब्बत और हिमालय क्षेत्र में कई विहार थे, लेकिन प्रभावी अध्ययन और शिक्षा अधिकतर शिक्षा के महान केंद्रों में होती थी। मैं ऐसे विहारों को कक्षाओं की व्यवस्था के लिए अधिक से अधिक प्रोत्साहित कर रहा हूँ जिसमें जिनकी रुचि हो वे सीख सकें और अपने विश्वास और समझ को सशक्त कर सकें।
"हमारे पास अधिक समय नहीं है, लेकिन मैं नित्य प्रति दूसरों की सेवा के लिए अपना काय, वाक और चित्त समर्पित करता हूँ जैसा नागार्जुन सलाह देते हैं:
पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु
औषधि और जंगली पेड़ों की तरह
सदा सभी सत्त्वों के द्वारा
स्वच्छन्द और बिना हस्तक्षेप के उपयोगी बनूँ।
"तो मैं समझाऊँगा कि अगले तीन दिनों में अभ्यास कैसे करें।”
कल, यिगा छोजिन में, परम पावन कमलशील के 'भावना क्रम' का मध्य भाग और थोगमे संगपो के 'बोधिसत्व के ३७ अभ्यास' पर प्रवचन प्रारंभ करेंगे।