"सबसे पहले तो जो कार्य ये विभिन्न संगठन और संस्थाएँ कर रही हैं उनसे मैं अत्यंत प्रोत्साहित हूँ। मुझे नहीं लगता कि मेरे कार्यालय में एक मान्य बोर्ड की आवश्यकता है जितना कि ज्ञात विशेषज्ञों के एक समूह की, जो आप कर रहे हैं वहाँ जाकर देख कर रिपोर्ट दे सकते हैं।
"आज हम जिन समस्याओं का सामना करते हैं, वे हमारे मूल मानव स्वभाव और बुद्धि को ठीक से उपयोग करने की विफलता से जन्म लेते हैं। हमें देखना है कि हम लोगों को किस तरह शिक्षित करें। केवल धन और बल के बारे में बात करने से काम न होगा। कहीं अधिक महत्वपूर्ण मानवता की एकता की भावना को प्रोत्साहित करना है, एक भावना कि हम सभी एक मानव परिवार से संबंध रखते हैं।
"अन्य जानवर युद्ध नहीं उकसाते, यह केवल मनुष्य ही करते हैं। यदि मूल मानव प्रकृति क्रोध की होती तो कोई आशा न होगी। अभी हम अपने समक्ष जिस अभाव का अनुभव कर रहे हैं वह हमारी वर्तमान शिक्षा व्यवस्था की अपर्याप्तता है। इसे ठीक करने के लिए आप जो कार्य कर रहे हैं, मैं उससे प्रभावित हूँ। आपको शीघ्रता से इसे अंतिम रूप देने की आवश्यकता नहीं है, बस काम करते रहें।
"सबसे पहले तो जो कार्य ये विभिन्न संगठन और संस्थाएँ कर रही हैं उनसे मैं अत्यंत प्रोत्साहित हूँ। मुझे नहीं लगता कि मेरे कार्यालय में एक मान्य बोर्ड की आवश्यकता है जितना कि ज्ञात विशेषज्ञों के एक समूह की, जो आप कर रहे हैं वहाँ जाकर देख कर रिपोर्ट दे सकते हैं।
"आज हम जिन समस्याओं का सामना करते हैं, वे हमारे मूल मानव स्वभाव और बुद्धि को ठीक से उपयोग करने की विफलता से जन्म लेते हैं। हमें देखना है कि हम लोगों को किस तरह शिक्षित करें। केवल धन और बल के बारे में बात करने से काम न होगा। कहीं अधिक महत्वपूर्ण मानवता की एकता की भावना को प्रोत्साहित करना है, एक भावना कि हम सभी एक मानव परिवार से संबंध रखते हैं।
"अन्य जानवर युद्ध नहीं उकसाते, यह केवल मनुष्य ही करते हैं। यदि मूल मानव प्रकृति क्रोध की होती तो कोई आशा न होगी। अभी हम अपने समक्ष जिस अभाव का अनुभव कर रहे हैं वह हमारी वर्तमान शिक्षा व्यवस्था की अपर्याप्तता है। इसे ठीक करने के लिए आप जो कार्य कर रहे हैं, मैं उससे प्रभावित हूँ। आपको शीघ्रता से इसे अंतिम रूप देने की आवश्यकता नहीं है, बस काम करते रहें।
अंत में, दिल्ली विश्वविद्यालय की प्रोफेसर मीनाक्षी थापन ने ऋषि वैली स्कूल के साथ नैतिकता और शिक्षा पर किए काम पर अपनी रिपोर्ट दी। उन्होंने ध्यान आकर्षित करते हुए कहा कि यद्यपि बच्चों के जीवन के केन्द्र शिक्षक हैं, पर भारत में प्रायः शिक्षक स्वयं का न्यून रूप से आकलन करते हैं।
इस तरह चल रहे कार्य की इन सारांश प्रस्तुतियों के पूरे होने पर, गेशे ल्हगदोर ने कहा कि केन्द्रीय तिब्बती प्रशासन के शिक्षा और धर्म और संस्कृति दोनों विभाग इन कार्यवाहियों में गहन रुचि ले रहे हैं और उनके संबंधित मंत्री उनका प्रतिनिधित्व कर रहे हैं।
चाय के लघु अंतराल के उपरांत अरुण कपूर ने समिति की ठोस कार्य योजना का वर्णन किया। उन्होंने एमरी सी लर्निंग के ढांचे को अंतिम रूप देने और पाठ्यक्रम के विकास के लिए कई योजनाओं के लक्ष्य को रेखांकित किया। लगभग सभी प्रतिभागी इस वर्ष जून और सितंबर के बीच क्रियान्वयन के लिए सामग्री तैयार करने की आशा रखते हैं। उन्होंने शिक्षक प्रशिक्षण के लिए महत्वाकांक्षी योजनाओं को भी रेखांकित किया जिसकी अगुआई आयुर्ज्ञान न्यास तथा एमरी कर रहे हैं।
उन्होंने जो सुना था, उस पर टिप्पणी करने के लिए आमंत्रित किए जाने पर परम पावन ने प्रारंभ किया:
"संयुक्त राज्य अमरीका में मैंने करुणा और दयालुता के शहर देखे हैं और जो महापौर इससे जुड़े हैं, मैं उनसे परिचित हूँ। उन्होंने कार्य में दया और करुणा को प्रोत्साहित करने के लिए कार्यक्रम विकसित किए हैं, जो प्रभावी
सिद्ध हुए हैं और छात्रों और अन्य सम्मिलित लोगों के जीवन में परिवर्तन आया है। उनके परिणाम आपके लिए दिलचस्प हो सकते हैं।"
नई दिल्ली, भारत, २८ अप्रैल २०१७ - आज प्रातः सार्वभौमिक मूल्यों के लिए पाठ्यक्रम पर कार्य कर रही मुख्य कमेटी से मिलने के लिए जाते हुए परम पावन दलाई लामा की गाड़ी को मार्ग में झूमते आ रहे दो पूजा के हाथियों के बीच से रास्ता बनाना पड़ा। द्वार पर मेजबान अनलजीत सिंह और उनके पुत्र वीर ने उनका स्वागत किया और परम पावन ने बैठक का उद्घाटन करने से पूर्व समारोह का दीप प्रज्ज्वलित किया। आज के सत्र का संचालन गेशे ल्हगदोर ने किया, जो कई शैक्षणिक संस्थानों के प्रतिनिधियों द्वारा उनके कल के विचार-विमर्श के बारे में परम पावन को रिपोर्ट देने का अवसर था।
शिक्षक प्रशिक्षण को लेकर एक आम सहमति थी कि शिक्षकों को न केवल दिशानिर्देशों का भली भांति ज्ञान होना चाहिए, पर जिन नैतिक सिद्धांतों की शिक्षा वे दे रहे हैं, उनका उन्हें साकार रूप भी होना चाहिए। सहमति का अगला मुद्दा यह था कि एमरी विश्वविद्यालय में प्रारंभ किए गए सामाजिक, भावनात्मक और नैतिक शिक्षा की रूपरेखा परम पावन की परिकल्पित धर्मनिरपेक्ष नैतिकता या सार्वभौमिक मूल्यों को विकसित करने के लिए किसी भी कार्यक्रम का आधार बनना चाहिए। जिन विषयों को शामिल किया गया उनमें बुनियादी ढांचा, पाठ्यक्रम विकास में प्रगति, गुणवत्ता नियंत्रण के मुद्दे और परम पावन के कार्यालय से मान्यता अनुमोदन शामिल थे।
छह शैक्षणिक संगठनों के प्रतिनिधियों ने पाठ्यक्रम विकसित करने में जो प्रगति उन्होंने की है, उसकी प्रस्तुति दी तथा उनकी भविष्य की योजनाओं को रेखांकित किया। गेशे लोबसंग तेनज़िन नेगी ने एमरी विश्वविद्यालय की टीम का प्रतिनिधित्व किया, जो एक कामकाजी पाठ्यक्रम प्रारंभ करने की योजना बना रही है जब इस वर्ष अक्टूबर में परम पावन विश्वविद्यालय की यात्रा करेंगे। मेरठ में सक्रिय एक संगठन, आयुर्ज्ञान न्यास, जो भारत में माइंड एंड लाइफ संस्थान के कार्य को आगे बढ़ाने के लिए स्थापित किया गया है, की ओर से सुश्री दीप्ति गुलाटी ने कहा कि वे जुलाई में ८ भारतीय शहरों के ९ स्कूलों में कार्यान्वयन के लिए दो प्रशिक्षण प्रारूप तैयार करने की आशा रखती हैं।
निदेशक प्रो. एस परशुरामन की अनुपस्थिति में, टाटा इंस्टिट्यूट फॉर सोशियल साइंस के उनके दो सहयोगियों ने धर्मनिरपेक्ष नैतिकता को बढ़ावा देने के अपने कार्य के बारे में बताया। जिन विषयों का उन्होंने उल्लेख किया, उनमें ये शामिल हैं - यह जानना कि मैं कौन हूँ, परिवर्तन लाना रूपांतरण के लिए कार्यान्वयन और ठोस परिणाम को जन्म देना।
उच्च शिक्षा में नीति अनुसंधान केंद्र की डॉ निधि सबरवाल ने स्वतंत्रता, समानता और मानवता के मूल्यों पर ध्यान देते हुए एक सकारात्मक दृष्टिकोण के विकास की बात की। वे अगस्त में प्रशिक्षण प्रारूप तैयार करने का उद्देश्य रखते हैं।
वसंत वैली विद्यालय के निदेशक अरुण कपूर ने बताया कि स्कूल समग्र शिक्षा में अग्रणी रहा है तथा सेंटर फॉर एस्कलेनेशन ऑफ पीस के तत्वावधान में, विकास तथा स्वतंत्रता संग्राम पर केंद्रित है।
"सबसे पहले तो जो कार्य ये विभिन्न संगठन और संस्थाएँ कर रही हैं उनसे मैं अत्यंत प्रोत्साहित हूँ। मुझे नहीं लगता कि मेरे कार्यालय में एक मान्य बोर्ड की आवश्यकता है जितना कि ज्ञात विशेषज्ञों के एक समूह की, जो आप कर रहे हैं वहाँ जाकर देख कर रिपोर्ट दे सकते हैं।
"आज हम जिन समस्याओं का सामना करते हैं, वे हमारे मूल मानव स्वभाव और बुद्धि को ठीक से उपयोग करने की विफलता से जन्म लेते हैं। हमें देखना है कि हम लोगों को किस तरह शिक्षित करें। केवल धन और बल के बारे में बात करने से काम न होगा। कहीं अधिक महत्वपूर्ण मानवता की एकता की भावना को प्रोत्साहित करना है, एक भावना कि हम सभी एक मानव परिवार से संबंध रखते हैं।
"अन्य जानवर युद्ध नहीं उकसाते, यह केवल मनुष्य ही करते हैं। यदि मूल मानव प्रकृति क्रोध की होती तो कोई आशा न होगी। अभी हम अपने समक्ष जिस अभाव का अनुभव कर रहे हैं वह हमारी वर्तमान शिक्षा व्यवस्था की अपर्याप्तता है। इसे ठीक करने के लिए आप जो कार्य कर रहे हैं, मैं उससे प्रभावित हूँ। आपको शीघ्रता से इसे अंतिम रूप देने की आवश्यकता नहीं है, बस काम करते रहें।
"संयुक्त राज्य अमरीका में मैंने करुणा और दयालुता के शहर देखे हैं और जो महापौर इससे जुड़े हैं, मैं उनसे परिचित हूँ। उन्होंने कार्य में दया और करुणा को प्रोत्साहित करने के लिए कार्यक्रम विकसित किए हैं, जो प्रभावी सिद्ध हुए हैं और छात्रों और अन्य सम्मिलित लोगों के जीवन में परिवर्तन आया है। उनके परिणाम आपके लिए दिलचस्प हो सकते हैं।"
परम पावन ने प्राचीन भारत के ज्ञान को पुनर्जीवित करने की अपनी प्रतिबद्धता का उल्लेख किया विशेषकर जहाँ यह मनोविज्ञान, तर्कशास्त्र और दर्शन से संबंधित है। उन्होंने घोषणा की कि वह साधारणतया रात में नौ घंटे सोते हैं और फिर प्रातः ३ बजे उठते हैं और इस प्रकार के ज्ञान का उपयोग करते हुए ४-५घंटे अपने चित्त को तीक्ष्ण करते हैं।
मानव संसाधन विकास मंत्रालय के एक प्रतिनिधि, जो दोनों दिनों की चर्चाओं में सम्मिलित हुए थे, ने उन्हें आश्वासन दिया कि सैद्धांतिक रूप से मूल्यों पर आधारित शिक्षा का विचार पहले ही स्वीकृत हो चुका है।
प्राचीन भारतीय ज्ञान के प्रश्न पर लौटते हुए, परम पावन ने प्राचीन भारतीय बौद्ध साहित्य के ३०० खंडों की सामग्री को वर्गीकृत करने की बात की, जिसका अनुवाद भोट भाषा में तीन शीर्षकों के अंतर्गत किया गया हैः विज्ञान - उदाहरण के लिए चित्त का विज्ञान, दर्शन शास्त्र और धर्म। उन्होंने बल देते हुए कहा कि शैक्षणिक दृष्टिकोण से विज्ञान और दर्शन शास्त्र में रुचि रखने वाले किसी भी व्यक्ति के लिए सामग्री का अध्ययन करना संभव होना चाहिए, जबकि धार्मिक सामग्री केवल बौद्धों के लिए रुचि का विषय है। उन्होंने ३० से भी अधिक वर्षों से हो रहे वैज्ञानिकों के साथ संवाद की चर्चा की, जिससे पारस्परिक लाभ हुआ है। उन्होंने अपना दृष्टिकोण दोहराया कि प्राचीन भारतीय मनोविज्ञान में प्रकट चित्त और भावनाओं के प्रकार्य की गहन समझ की तुलना में, आधुनिक मनोविज्ञान अभी भी अल्पविकसित है।
धर्मनिरपेक्ष नैतिकता के संबंध में धार्मिक परम्पराओं की भूमिका पर कुछ चर्चा हुई। परम पावन के विचार स्पष्ट थे।
"धर्म जीवित रहेगा। यह आधारभूत मानव मूल्यों को सशक्त करता है, धर्मनिरपेक्ष नैतिकता जिसकी बात हम कर रहे हैं सभी धार्मिक परम्पराओं के लिए आधारभूत हैं। जब मैं धर्मनिरपेक्ष शब्द का उपयोग करता हूँ, तो मैं ऐसा सभी धार्मिक परम्पराओं के लिए एक धर्मनिरपेक्ष सम्मान की भारतीय समझ के अनुसार करता हूँ और साथ ही उनके विचारों के लिए भी करता हूँ जिनकी किसी में आस्था नहीं है।
"संभव है कि धर्मनिरपेक्ष शब्द का फ्रांसीसी और बोल्शेविक क्रांतियों के संदर्भ में धर्म-विरोधी अर्थ रहा हो, जब उत्पीड़न में शामिल धार्मिक संस्थानों का विरोध किया गया था।"