थेगछेन छोलिंग, धर्मशाला, हि. प्र., भारत - आज, कैलिफोर्निया स्थित 'फ्रेंड्स ऑफ़ दलाई लामा' के निर्देश पर, कैलिफोर्निया स्थित सैन डिएगो विश्वविद्यालय के ३१ छात्र और उनके तीन प्रोफेसर, साथ ही मुंबई के छात्रों के एक समूह से उनके निवास पर भेंट की। बैठक छात्रों के 'पांच सप्ताह के विदेश अध्ययन कार्यक्रम' की परिणति थी, जिस दौरान वे जलवायु परिवर्तन, विकास और निर्धनता उन्मूलन, साथ ही चिकित्सा नृविज्ञान और सार्वजनिक स्वास्थ्य का अध्ययन कर रहे हैं।
दोनों समूहों का अभिनन्दन करने के उपरांत परम पावन ने कहा कि वह पहले मुंबई के लोगों को संबोधित करना चाहते हैं। दीवारों पर १७ नालंदा पण्डितों के चित्रों की ओर संकेत करते हुए उन्होंने समझाया कि ये विद्वान तिब्बत में बौद्ध शिक्षा कार्यक्रम का गठन करने वाले प्रमुख ग्रंथों के प्रणेता थे। उन्होंने कहा कि विवाह द्वारा से चीन के साथ सशक्त संबंधों के बावजूद, तिब्बती धार्मिक सम्राट बौद्ध संस्कृति के स्रोत के रूप में भारत की ओर उन्मुख हुए। साहित्यिक भोट भाषा संस्कृत व्याकरण और देवनागरी लिपि पर आधारित थी।
परम पावन ने संकेतित किया कि नालंदा विश्वविद्यालय से प्राप्त परम्परा का एक अनूठा गुण तर्क तथा कारण का व्यवहार था। उन्होंने तिब्बती बौद्ध धर्म के विकास में गुणवान विद्वान धर्मकीर्ति, शांतरक्षित तथा कमलशील के दूरगामी प्रभाव का उल्लेख किया, जो अब बौद्ध तर्क और ज्ञानमीमांसा के संरक्षण की एकमात्र परम्परा है।
"चूँकि इस ज्ञान का उद्गम भारत में हुआ, हम भारत को अपने आध्यात्मिक गृह के रूप में देखते हैं," परम पावन ने टिप्पणी की, "और यही कारण है कि मेरी प्रतिबद्धताओं में से एक, भारत में इस प्राचीन ज्ञान को पुनर्जीवित करना है। दक्षिण में हमारे महाविहारों में, १०,००० विद्वान भिक्षु व भिक्षुणी विदुषियाँ हैं, जो नालंदा के ग्रंथों की समझ और व्याख्या में पटु हैं।"
अमेरिकी छात्रों की ओर मुड़ते हुए उन्होंने आगे कहा:
"आज के विश्व में, चित्त व भावनाओं के प्रकार्य को समझने की एक तत्कालिक आवश्यकता है, क्रोध व घृणा जैसे नकारात्मक भावनाओं से निपटने में सक्षम होना बेहतर है। चूँकि ये चित्त के पहलू हैं, इसलिए उन्हें चित्त में निपटाया जाना चाहिए।"
परम पावन आगे शिक्षा में धर्मनिरपेक्ष नैतिकता को लागू करने की आवश्यकता की बात की, ताकि लोग आंतरिक मूल्यों के विकास के संबंध में अधिक जागरूक हो सकें।
छात्रों के प्रश्नों के उत्तर देते हुए परम पावन ने उन्हें बताया कि वे जानते हैं कि पर्यावरण की रक्षा तथा जलवायु परिवर्तन को सीमित करने के लिए कदम उठाना बहुत महत्वपूर्ण है, पर वे इस संबंध में विशिष्ट सुझाव देने का कौशल नहीं रखते। अपने स्वयं के जीवन में पानी बचाने के लिए वे टब में नहाने के बजाय नल के नीचे नहाते हैं। जब भी उनसे संभव हो पाता है वे हिमालय क्षेत्र के लोगों को पौधे लगाने और पेड़ों की देखरेख करने के लिए प्रोत्साहित करते हुए गढ़वाली पर्यावरणविद् सुंदरलाल बहुगुणा से किए गए अपने वचन का भी सम्मान करते हैं।
उन्होंने परम्परागत शिक्षा प्रणाली में धर्मनिरपेक्ष नैतिकता को लागू करने के लिए विभिन्न कार्यक्रमों के विकास की बात की और विशेष रूप से हाल ही में टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेस द्वारा प्रारंभ किए गए एक उच्च शिक्षा कार्यक्रम का और एमोरी विश्वविद्यालय द्वारा विकास कर रहे स्कूल कार्यक्रमों का उल्लेख किया।
करुणा को परिभाषित करने के लिए कहे जाने पर परम पावन ने ध्यानाकर्षित किया कि हम सभी में दूसरों के प्रति सोच रखने की एक जैविक प्रवृत्ति हैं, पर ये भावनाएँ हमारे परिवार और मित्रों तक सीमित रहती हैं - जिनके साथ हम जुड़े होते हैं। उन्होंने सुझाव दिया कि तर्क व बुद्धि को व्यवहृत कर हम अपनी करुणा की भावना अन्य सत्वों तक ले जा सकते हैं, यहाँ तक कि उन लोगों के प्रति भी जिन्हें हम वैरी मानते हैं और उसे ही वे वास्तविक करुणा के रूप में परिभाषित करते हैं।
परम पावन ने मानवाधिकार के विचार को स्वतंत्रता और मानव रचनात्मकता के प्रश्न से जोड़ा। उन्होंने १.३ अरब चीनियों के स्वतंत्र सूचना के अधिकार का उल्लेख किया जिस आधार पर वे उचित व अनुचित के बीच अंतर करने में सक्षम होंगे। इस संदर्भ में उन्होंने सेंसरशिप की तुलना शोषण वाले भ्रष्टाचार से की। उन्होंने सुझाया कि चीन में नई सांस्कृतिक क्रांति हो सकती है, पर जब कि पहले वाला घृणा से प्रेरित था, इसे करुणा से प्रेरित होने की आवश्यकता है।
धर्मनिरपेक्ष नैतिकता का प्रश्न पुनः उभरा और परम पावन ने स्पष्ट किया कि अतीत में धर्म में कई लोगों के लिए आंतरिक मूल्यों का स्रोत रहा था, पर आज धर्म के प्रभाव का ह्रास हुआ है। अतः वे धर्मनिरपेक्ष नैतिकता के विचार को बढ़ावा देते हैं, जो वैज्ञानिक निष्कर्षों, आम मानव अनुभव और सामान्य ज्ञान पर आधारित है।