दिसकित, नुबरा घाटी, जम्मू और कश्मीर - १३ जुलाई, २०१७ कल शाम वर्षा के बाद, आज की प्रातः शीतल थी जब परम पावन दलाई लामा ने दिसकित विहार फोडंग से दिसकित फोडंग तक एक छोटी दूरी तय की। उन्होंने घोषणा की कि वह 'बोधिसत्व के सैंतीस अभ्यास', का पाठ जारी रखेंगे और साथ ही श्वेत तारा दीर्घायु अभिषेक प्रदान करेंगे। उन्होंने सुझाया कि जब वे प्रारम्भिक अनुष्ठान कर रहे हैं तो श्रोता 'नालंदा के सत्रह पंडितों की स्तुति' और तारा मंत्र का पाठ करें।
जब मक्खन की चाय दी जा रही थी तो परम पावन ने भिक्षुओं से विनोदपूर्वक पूछा कि क्या वे गेशे रिगज़िन तेनपा जैसे अपने चेहरे पर मक्खन लगाना पसंद करेंगे, जैसा कि वे करते थे। उन्होंने आगे कहा कि यह शिक्षक एकमात्र तिब्बती गेशे थे, जो महात्मा गांधी से मिले जब १९४७ में उन्हें भारत के तिब्बती प्रतिनिधिमंडल के लिए हिंदी अनुवादक के रूप में नियुक्त करने के लिए आमंत्रित किया गया था। गांधी ने उनसे बौद्ध धर्म के विषय में पूछा और उन्होंने उन्हें 'मार्ग के तीन प्रमुख आकार', की संक्षिप्त व्याख्या दी।
'सैंतीस अभ्यास' की प्रस्तावना
'बोधिसत्व के सैंतीस अभ्यास' का पाठ करते अपनी प्रस्तावना में परम पावन ने नालंदा विश्वविद्यालय और वहाँ के संस्कृत ज्ञान के उच्च स्तर की बात की जो वहाँ फलती फूलती थी। उन्होंने स्मरण किया कि किस तरह चालीस वर्ष पूर्व उन्होंने एक विख्यात पंडित, उपाध्याय को नागार्जुन की 'मूलमध्यमकारिका' और चन्द्रकीर्ति के 'मध्मकावतार' के प्रारंभिक श्लोकों का संस्कृत में पाठ करने के लिए आमंत्रित किया था। उसे सुनते हुए वे अतीत के महान आचार्यों की उपलब्धियों पर चिंतन करने के लिए प्रेरित हुए थे जो अब उस देश में विस्मरित हो चुके हैं जो उनका मूल उद्गम स्थल था।
उन्होंने अतीश का भी उल्लेख किया, जिसे ङारी के राजा ने तिब्बत आमंत्रित किया और एक ऐसे ग्रंथ की रचना करने का अनुरोध किया जो तिब्बत के सभी लोगों के लिए लाभकर हो। परिणाम था 'पथ प्रदीप'। परम पावन ने उल्लेख किया कि ञिङमा आचार्य लोंगछेनपा ने अपनी ग्रंथत्रयी की रचना की 'सुख व सहजता' और कग्युपा, दगपो ल्हाजे ने अपना 'मुक्ति रत्नालंकार' लिखा। जिसका पाठ हम पढ़ रहे हैं, ङुल्छु के थोंगमे संगपो के ग्रंथ की रचना उसी काल में हुई थी।
दोलज्ञल के संबंध में चेतावनी
छंद ७ का पाठ जारी रखते हुए परम पावन ने टिप्पणी की कि वास्तविक शरण धर्म रत्न है, क्योंकि यह दस अकुशल कर्मों का परित्याग करना है जो हमें वास्तविक सुरक्षा प्रदान करता है। यह पंक्ति कि 'कौन सा सांसारिक ईश्वर आपको सुरक्षा प्रदान कर सकता है?' ने परम पावन को इस पर ध्यान देने के लिए प्रेरित किया कि पांच राज्य संरक्षक, जिनमें से नेछुंग एक है, सांसारिक देवता हैं। उन्होंने आगे पञ्चम दलाई लामा के समय से शुगदेन से जुड़े ऐतिहासिक विवाद पर टिप्पणी की।
"डगपा ज्ञलछेन पञ्चम दलाई लामा के करीबी थे, पर उनके बीच समस्याएं उभरीं। बाद में, पञ्चम दलाई लामा ने कहा कि डगपा ज्ञलछेन टुल्कू सोनम गेलेग पलज़ंग के प्रामाणिक पुनरावतार नहीं थे। उनके लेखों का एक खंड शुगदेन का कारण गलत प्रार्थनाओं को मानता है, कि उसकी प्रकृति एक विनाशकारी आत्मा की थी और उसकी गतिविधि धर्म तथा सत्वों का अहित करना था। यदि कोई पञ्चम दलाई लामा के अधिकार को नकारना चाहें तो वे इसे चुनौती दे सकते हैं - पर मुझे नहीं लगता कि वे कर सकते हैं? क्या वे कर सकते हैं?
"इसके बाद प्रतीत होता है कि कुछ लोग इस संबंध में उदासीन हो गए। सातवें दलाई लामा के शिक्षक, ङवंग छोगदेन के समय से, जो गदेन ठिपा भी बने, ऐसे लामा व टुल्कु थे जो दोलज्ञल की तुष्टि करते थे। उन्होंने इस पर रोक लगा दी और गदेन महाविहार की सीमा के भीतर उनके स्तूप हटवा दिए।
"यहाँ तक कि बाद में भी, तेरहवें दलाई लामा के समय में ऐसे लामा थे जो इस दुष्ट आत्मा की तुष्टि किया करते थे, पर अन्य ऐसे लामा और विद्वान भी थे जिन्होंने इसका प्रबल विरोध किया। ठिजंग रिनपोछे के पूर्ववर्ती ने दोलज्ञल को तुष्ट किया और इसी तरह फबोंगखा रिनपोछे ने भी। अपने प्रारंभिक जीवन में, फबोंगखा गैर-सांप्रदायिक थे। ठिजंग रिनपोछे ने मुझे बताया कि उन्हें स्मरण है कि फबोंगका हयग्रीव के अभ्यास से जुड़ी औषधीय गोलियां बनाने की तैयारी कर रहे थे। वे कुछ ञिङ्मा शिक्षाओं को प्राप्त करने की योजना बना रहे थे, परन्तु दोलज्ञल ने उनके मार्ग में बाधा खड़ी कर दी।
"क्यब्जे फबोंगखा लामरिम के एक महान आचार्य थे, पर वे भय के कारण दोलज्ञल को पुष्ट करने लगे। ऐसा नहीं है कि दोलज्ञल कभी भी धर्म की रक्षा के लिए वचनबद्ध था। अपनी युवावस्था में फबोंगखा गैर-सांप्रदायिक थे। वे तेरहवें दलाई लामा के चहेते थे जिन्होंने गदेन ठिपा के स्थान पर उन्हें शिक्षा देने के लिए बुलाया पर जब फबोंगखा ने दोलज्ञल प्रारंभ किया तो वे अप्रसन्न हुए। उन्होंने उन्हें चेतावनी दी कि उन्होंने अपनी शरण प्रतिबद्धताओं को तोड़ने का खतरा उठाया है। जब तेरहवें दलाई लामा जीवित थे, फबोंगखा भय में जिए। तेरहवें पत्र लिखते थे जिन्हें वे एक विश्वस्त गेशे से देने को कहते थे। ऐसा कहा जाता है कि जब इस गेशे के आते हुए घोड़े की घंटियाँ सुनते तो फबोंगखा भयभीत हो जाते थे।
"कुछ समय तक मैं भी दोलज्ञल को तुष्ट करता था। नेछुंग ने मुझे इसका विरोध करते हुए सलाह दी पर मैंने उन्हें चुप रहने के लिए कहा क्योंकि इतने सारे लोग जुड़े थे। एक बार जब मैं इसे छोड़ने का निर्णय लिया तो मैंने यह पूछने के लिए आटे की गेंद की भविष्यवाणी की कि क्या मुझे तत्काल ही बंद करना चाहिए कि नव वर्ष के बाद - उत्तर तत्काल ही बंद करने का था।
"मैं बाद में गदेन में था जब मुझे मेरे एक अंगरक्षक का स्वप्न आया कि मुझे उस कर्मचारी को नष्ट करना चाहिए जो दोलज्ञल की जीवन शक्ति का समर्थक था। मैं न जानता था कि यह महत्वपूर्ण था। मैं उस दिन गदेन से रवाना होने वाला था और मैं सभागार गया जहाँ मैंने धर्मराजा के समक्ष भविष्यवाणी की प्रक्रिया की, यह स्थापित करने के लिए कि क्या इसका दोलज्ञल की मूर्ति के साथ कुछ संबंध था जो वहाँ रखी गई थी और अगर ऐसा था तो क्या उसका हटाया जाना आवश्यक था और यदि ऐसा था तो क्या उसे तुरन्त करना था या क्या उसके लिए भवन की योजनाबद्ध नवीनीकरण तक प्रतीक्षा की जा सकती थी। उत्तर था कि प्रतिमा को तुरंत दूर किया जाना चाहिए। मैंने गदेन उपाध्यायों को बताया।
"दोलज्ञल लोग बल देकर कहते हैं कि मैंने ये सब ञिङमा की चापलूसी के लिए किया है, पर ऐसा नहीं है। मैं डेपुंग गया जहाँ मैं लिंग रिनपोछे के साथ मध्याह्न का भोजन कर रहा था। मैंने उन्हें बताया कि मैंने उस दिन चीजों को कुरेदा था। उन्होंने पूछा कि मैंने क्या किया था और मैंने उन्हें बताया। उन्होंने इसे अच्छा बताया।
"ठिजंग रिनपोछे उस समय कहीं दूर थे, पर जब वे लौटे तो मैंने जो कुछ हुआ था वह उन्हें समझाया। उनका उत्तर था कि जब भी ऐसे महत्वपूर्ण प्रश्न आए तो नेछुंग सदैव अचूक प्रमाणित हुआ था। जब मैंने ल्हासा छोड़ा तो हम चीनी सेना से घिरे हुए थे। नेछुंग ने हमें नोरबुलिंगा में रहने की सलाह दी थी। १० मार्च का प्रदर्शन हुआ था और १७ मार्च तक स्थिति अत्यंत तनावपूर्ण थी। चीनी भारी शस्त्र लेकर आए थे पर उन्हें छिपाकर रखा था। १७ मार्च को मैंने नेछुंग से परामर्श किया और उन्होंने कहा, "जाओ, आज रात निकल जाओ। क्यीछु नदी पार कर लो, कोई समस्या न होगी।" जैसा ठिजंग रिनपोछे ने बताया था, नेछुंग अचूक प्रमाणित हुआ।
"यही बात तिब्बत के रक्षक पलदेन ल्हामो के संबंध में कही जा सकती है। ठिजंग रिनपोछे ने मुझे बताया कि वे भी अचूक रूप से विश्वसनीय हैं। लिंग रिनपोछे का दोलज्ञल के साथ कुछ लेना देना नहीं था, पर ठिजंग रिनपोछे का था। मुझे चैन का अनुभव हुआ क्योंकि मेरे दोनों शिक्षक मैंने जो कुछ किया था उसे लेकर सहमत थे।
"दोलज्ञल लोग कहते हैं कि मैंने इस अभ्यास को प्रतिबंधित किया है, पर शुरू से ही मैंने नहीं कहा कि कोई भी ऐसा नहीं कर सकता। मैंने इसके विरोध में सलाह दी है। अब सेरा में पोम्पोरा खमछेन के सदस्यों ने अपने स्वयं के विहार की स्थापना की है। कोई प्रतिबंध नहीं है, यह व्यक्ति पर निर्भर है कि वह करता है अथवा नहीं। मैं आपसे खुल कर कह रहा हूँ। दूसरी ओर, ऐसे लोग भी हो सकते हैं जो आपको मनाने का प्रयास करेंगे कि यह अभ्यास आपको सफलता देगा।
"यही मंगोलिया में हो रहा है। गेशे तेनदर, एक अच्छे विद्वान, जिन्हें मैं अच्छी तरह जानता था, ने यह किया। वह दोलज्ञल से संबंधित निधि कलश तैयार करते और उन्हें लोगों को देते हुए यह कहते कि दोलज्ञल पर निर्भर होकर उन्हें व्यापार में सफलता मिलेगी। दुर्भाग्य से उनकी दुखद मृत्यु हुई और कुछ कहते हैं कि उनका भूत के रूप में पुनर्जन्म हुआ है। यह एक जोखिम है - आप के लिए अच्छा होगा कि आप मेरा कहा सुनें। मैंने सोचा कि मुझे आपको यह सब स्मरण कराना चाहिए।"
ग्रंथ की ओर लौटकर
अपना पाठ जारी रखते हुए परम पावन ने कहा कि हमें इस या आगामी जीवन के आकर्षण की अतिव्यस्तता से अपने चित्त को शांत करने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा, "यदि आप दूसरों को पोषित करते हैं तो आपको चित्त की शांति, अच्छा स्वास्थ्य और दीर्घायु प्राप्त होगी। यदि आप 'हम' और 'उन' के विभाजनकारी विचारों पर ध्यान देते हैं तो आप एकाकी होंगे। पर यदि आप दयालु तथा सौहार्दपूर्ण हैं तो लोगों को आप की कमी खलेगी और जब आप न होंगे तो उन्हें दुःख होगा।" उन्होंने देने और लेने के अभ्यास को संदर्भित किया और उल्लेख किया कि २००८ में तिब्बत और ल्हासा में प्रदर्शन के समय उन्होंने चीनी अधिकारियों से क्रोध और आक्रामकता लेकर उन्हें प्यार और स्नेह देने की कल्पना की थी। उन्होंने कहा कि इसका आधारभूत स्तर पर अधिक प्रभाव न पड़ा हो पर इससे उनकी व्याकुलता को कम करने में सहायता मिली।
परम पावन ने बताया कि 'सैंतीस अभ्यास' के २१वें छंद तक का संबंध सांवृतिक बोधिचित्त से है, २२वें छंद से वह परमार्थिक बोधिचित्त से संबंध रखता है। अंत में लेखक नम्रता की अभिव्यक्ति के साथ समाप्त करता है।
'मित्रयोगी के तीन महत्त्वपूर्ण बिंदुओं' को लेते हुए, परम पावन ने श्रोताओं को बताया कि उन्हें मूल पाठ का संचरण मिला है, पर इसके द्वितीय दलाई लामा द्वारा किए गए भाष्य की नहीं। परन्तु उन्हें ऐसा अनुभव नहीं हुआ कि जब वे इसे व्याख्यायित करें तो वे इस पर निर्भर न हों।
विगत दलाई लामा
उन्होंने विगत दलाई लामा के गतिविधियों की समीक्षा की। उन्होंने उल्लेख किया कि द्वितीय दलाई लामा टाशी ल्हुन्पो को अपना विहार मानते थे, पर अध्ययन करने के लिए वे डेपुंग गए जहां वे उपाध्याय बने। वे सेरा के भी उपाध्याय बने। उन्होंने ल्हमो लाछो को पलदेन ल्हमो के साथ संबंधित माना और छोखोरज्ञल की स्थापना की। वह लगातार गैर-सांप्रदायिक बने रहे और गैर सांप्रदायिक पीली - टोपी वाले लामे के रूप में जाने गए।
तीसरे दलाई लामा सोनम ज्ञाछो मंगोलिया में सक्रिय थे, जिसके परिणामस्वरूप उस देश में शास्त्रीय ग्रंथों के श्रमसाध्य अध्ययन का प्रसार हुआ। चौथे दलाई लामा का जन्म मंगोलिया में हुआ था। पञ्चम दलाई लामा की व्यापक उपलब्धियाँ अपने पूर्ववर्तियों की उपलब्धियों पर आधारित थीं। संभवतः छठवें एक कुशल आचार्य थे। सातवें इतने स्पष्ट रूप से गैर-सांप्रदायिक नहीं थे, परन्तु तेरहवें ने अपने आध्यात्मिक ग्रंथ के खोजी, लेरब लिंगपा के साथ मिलकर, वज्रकिलय के अभ्यास की रचना की। परिणामस्वरूप लिंग रिनपोछे ने परम पावन को बताया कि पिछले विहार के अधिकारी वज्रभैरव अभ्यास के अतिरिक्त वज्रकिलय का भी अभ्यास करते थे।
"यह जानते हुए कि पूर्व के दलाई लामा गैर-सांप्रदायिक रहे हैं, मैंने भी ऐसा करने का प्रयास किया है," परम पावन ने घोषित किया। "नेछुंग ने मुझे बताया था कि मुझे गैर-सांप्रदायिक होना चाहिए, अतः मैंने इस संबंध में एक भविष्यवाणी से जानने की कोशिश की कि क्या मुझे यह करना चाहिए था। मैंने ऐसा अपने दो शिक्षकों की उपस्थिति में चेनेरेज़िग वाती संगपो, क्यीरोंग जोवो की प्रतिमा के समक्ष किया जिसे ज़ोङकर छोदे विहार के भिक्षु भारत लाए थे। परिणामस्वरूप मुझे दिलगो खेनचे रिनपोछे से फुरबा का अभ्यास प्राप्त हुआ। मैंने विभिन्न परम्पराओं से प्राप्त सभी शिक्षाओं का विवरण रखा है, उदाहरणार्थ मुझे चोज्ञे ठिछेन रिनपोछे से संचरण प्राप्त हुआ। पंचेन लोबसंग छोज्ञन ने स्पष्ट किया कि एक अनुभवी व्यक्ति देखेगा कि सभी विभिन्न परम्पराएँ अंततः एक ही बिंदु तक आती हैं।"
परम पावन ने 'मित्रयोगी के तीन महत्त्वपूर्ण बिन्दु' गुरु योग, जो अवलोकितेश्वर के अभ्यास और इस पर द्वितीय दलाई लामा के भाष्य से संबंधित है, का पाठ जारी रखा। उन्होंने मृत्यु के समय और बाद में इसके स्मरण में सक्षम होने के लिए इससे अच्छी तरह से परिचित होने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने पूछा कि क्या श्रोताओं में से कोई सुस्पष्ट स्वप्न देखने का अभ्यास कर सकता था और टिप्पणी की कि यदि आप स्वप्नावस्था में बोधिचित्त और शून्यता की समझ पर ध्यान केंद्रित कर सकते हैं तो इसका एक शक्तिशाली प्रभाव होगा।
श्वेत तारा दीर्घायु अभिषेक
श्वेत तारा दीर्घायु अभिषेक के उपरांत परम पावन ने बोधिसत्व संवर दिए। उन्होंने इस अवसर का समापन करते हुए कहा, "हमने दिसकित में यह धर्म प्रवचन पूरा कर लिया है। आपको यह अनुभव करना चाहिए कि आपको एक लम्बा और सार्थक जीवन जीने के आशीर्वाद मिले हैं, जिसका एक महत्वपूर्ण अंग शिक्षा और अध्ययन है।"
स्थानीय विधायक देलदन नमज्ञल और लद्दाख बौद्ध एसोसिएशन के नुबरा अंग के अध्यक्ष ल्हरज्ञल ने परम पावन के नुबरा आने और उनके द्वारा दी गई सलाह के लिए भावुकता पूर्ण धन्यवाद व्यक्त किया। दोनों ने यहाँ मौजूद सद्भाव को सराहा और उनकी ओर से इसे प्रोत्साहित करने में परम पावन को धन्यवाद दिया। स्थानीय मुस्लिम समुदाय के सदस्यों ने उन्हें भेंट दी तथा उनके साथ तस्वीरें लीं। उसके बाद निकट के नुबरा फोडंग में उन्हें मध्याह्न का भोजन कराया गया।
विदेशियों के साथ भेंट
फोडंग बरामदे से लगभग १०० विदेशियों को संबोधित करते हुए परम पावन ने उन्हें बताया,
"मैंने देखा कि आप यहाँ थे और मैं आपसे मिलना चाहता था। मैं आज जीवित सात अरब मनुष्यों में से मात्र एक हूँ और जहाँ कहीं भी जाता हूँ मैं दूसरों को यह स्पष्ट करने का प्रयास करता हूँ कि मानव होने के नाते हम सब एक हैं। हम एक परिवार के हैं। मानव इतिहास में बहुत कठिनाइयाँ आई हैं और हिंसा हुई है क्योंकि हम एक दूसरे को 'हम' और 'उन' के संदर्भ में देखते हैं। इसके बजाय हमें मानवता की एकता पर विचार करने की आवश्यकता है। जब मैं आप जैसे लोगों से मिलता हूँ तो मैं स्वयं को मात्र एक इंसान के रूप में देखता हूँ, मैं एक बौद्ध, तिब्बती या दलाई लामा होने के बारे में नहीं सोचता - और मुझे लगता है कि इस तरह से मित्र बनाना सरल है। और मुझे लगता है कि मुस्कुराहट मैत्री की सच्ची अभिव्यक्ति है।
"मैं आपके साथ विश्व के लिए अपनी दृष्टि साझा करना चाहूँगा। मैं मानवता की एकता को बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्ध हूँ। एक बौद्ध भिक्षु के रूप में मुझे लगता है कि अंतर्धार्मिक सद्भाव को प्रोत्साहित करना महत्वपूर्ण है जैसा भारत में फलता फूलता है। सभी धर्म प्रेम व करुणा का एक आम संदेश सम्प्रेषित करते हैं और मैं भी कई अभ्यासियों, साधु, ईसाई और मुसलमान शिक्षकों से मिला हूँ जो अपने अभ्यास को व्यवहृत करने में अनुकरणीय हैं।
"एक तिब्बती होने के नाते मुझ पर तिब्बती लोगों का उत्तरदायित्व है, पर २०११ से मैं राजनैतिक भागीदारी से अवकाश ग्रहण कर चुका हूँ और भविष्य के दलाई लामाओं को भी एक राजनैतिक भूमिका निभाने पर रोक लगा चुका हूँ। मैं तिब्बती पर्यावरण की सुरक्षा के संबंध में बोलने के लिए प्रतिबद्ध हूँ। एक ओर यह इसलिए है क्योंकि तिब्बती पठार एशिया की प्रमुख नदियों का स्रोत है जिस पर एक अरब से अधिक लोग जल के लिए निर्भर हैं। दूसरी ओर मैं इस बात को लेकर चिंतित हूँ कि ऊंचाई पर दुर्बल परिवेश को किया जाने वाला नुकसान अधिक दूरगामी है और इसे पुनर्स्थापित करने में अधिक समय लगता है।
"मैं भोट भाषा, धर्म और संस्कृति के संरक्षण को लेकर भी चिंतित हूँ। प्राचीन भारत से प्राप्त चित्त और भावनाओं के प्रकार्यों के तर्क और समझने की परम्पराएं प्रासंगिक हैं जो आज हम विश्व के साथ साझा कर सकते हैं। मुझे लगता है कि इस देश में प्राचीन भारत के ज्ञान को पुनर्जीवित करना महत्वपूर्ण है। इस का एक भाग विगत तीस वर्षों से अधिक समय से वैज्ञानिकों के साथ हो रही पारस्परिक रूप से लाभकारी चर्चाएं हैं।
"अंत में, मैं आपको यह बताना चाहता हूँ कि मैं यूरोपीय संघ की भावना की और ऐतिहासिक शत्रुओं द्वारा शांति और सहयोग के साथ रहने के लिए रास्ता खोजने के प्रयास की सोच की प्रशंसा करता हूँ। मैं अफ्रीका और विश्व के अन्य भागों में ऐसे संघों के लिए प्रयास देखना चाहता हूँ।"
तुरतुक मुसलमानों के साथ भेंट
परम पावन ने तुरतुक के मुस्लिम समुदाय के प्रतिनिधियों से भी भेंट की जो उन्हें आमंत्रित करना चाहते थे।
उन्होंने कहा, "मैंने आपके निमंत्रण को स्वीकार करने की आशा रखी थी," उन्होंने समझाया, "पर अप्रत्याशित मौसम की परिस्थिति के कारण हेलिकॉप्टर द्वारा उड़ान भरना कठिन था और सड़क द्वारा यात्रा अव्यावहारिक बताई गई। जैसा कि आप जानते हैं कि ल्हासा में लद्दाखी मुसलमानों का एक समृद्ध समुदाय था। वे बहुत शांतिप्रिय थे, हमें उनका भोजन स्वादिष्ट लगता था और वे एक मनमोहक मीठी ल्हासा बोली बोलते थे।
"११ सितंबर की त्रासदी के पश्चात जब लोग मुस्लिम आतंकवादियों के बारे में बात करते थे, मैंने मुस्लिम समुदाय का बचाव किया। एक वर्ष बाद वॉशिंगटन डीसी में नेशनल कैथेड्रल में एक स्मरणोत्सव सेवा में मैंने स्पष्ट रूप से कहा था कि ऐसी धारणा बनाना कि सभी मुसलमान आतंकवादी थे गलत था। किसी भी देश या आस्था में ऐसे लोग हैं जो गड़बडी पैदा करते हैं। यह एक पूरे समुदाय को काला करने का बहाना नहीं है।
"विगत कुछ वर्षों में मैंने मुसलमान आतंकवादी जैसे शब्दों के उपयोग की आलोचना की है। बर्मा में बौद्ध भिक्षुओं द्वारा मुसलमानों को परेशान करने के बाद, टाइम मैगज़ीन के मुखपृष्ठ पर एक तस्वीर छपी जिसका शीर्षक था 'बौद्ध आतंकवादी'। इससे मुझे असहजता का अनुभव हुआ, जैसा कि मुझे यकीन है कि 'मुस्लिम आतंकवादी' शब्द सुनकर आप महसूस करते हैं। जब कोई आतंकवाद में संलग्न होता है तो वे उचित मुसलमान या बौद्ध भिक्षुओं का व्यवहार नहीं करते। वे मात्र आतंकवादी हैं।
"पिछली बार जब मैं तुरतुक आया तो एक मुल्ला ने मुझे बताया कि रक्तपात करना इस्लाम के खिलाफ है। उन्होंने आगे कहा कि एक मुसलमान को अल्लाह के सभी बन्दों के लिए मुहब्बत होना चाहिए, साथ ही यह स्पष्ट किया कि जिहाद शारीरिक संघर्ष के बारे में इतनी ज्यादा नहीं है जितना अपने क्लेशों से निपटने के लिए आंतरिक संघर्ष है।
"मेरे मुस्लिम भाइयों मुझे आप लोगों से फिर मिल कर बहुत खुशी हुई है। मैंने आपके स्वादिष्ट खाने को साझा करने की उम्मीद रखी थी, पर इस समय यह नहीं हो सका। खुश रहें।"
समतनलिंग के लिए प्रस्थान
दिसकित से परम पावन चौड़ी शोक नदी घाटी से होते हुए, संगम के निकट एक पुल पार कर और सुमुर के गांव के ऊपर नुबरा नदी तक समतनलिंग विहार गाड़ी से गए। स्थानीय लोग पुनः उनके वहाँ से गुज़रते समय उनका अभिनन्दन करने के लिए मार्ग पर पंक्तिबद्ध थे। गदेन ठिसूर रिनपोछे और ठिकसे रिनपोछे ने समतनलिंग में उनका स्वागत किया और साथ बैठकर चाय का आनंद लिया जिसके बाद परम पावन ने विश्राम हेतु दिनांत किया।
कल वह जे चोंखापा की 'प्रतीत्य समुत्पाद स्तुति' पर सार्वजनिक प्रवचन देंगे।