लेह, लद्दाख, जम्मू और कश्मीर - २९ जुलाई २०१७, आज प्रातः जब परम पावन दलाई लामा शिवाछेल मंडप के मंच पर पहुँचे तो टिब्बटेन चिल्डर्न्स विलेज स्कूल के विद्यार्थी शास्त्रार्थ में लद्दाख पब्लिक स्कूल के छात्रों को चुनौती दे रहे थे। उन्होंने श्रोताओं का अभिनन्दन किया बाईं ओर पाश्चात्य देशों के और दाहिनी ओर चीनी वक्ताओं के, लद्दाखियों और तिब्बतियों, लाल चीवर में भिक्षु जिनसे प्रवचन स्थल का बाकी भाग भर गया था।
राहुल द्वारा प्रज्ञा पारमिता स्तुति के पाठ के उपरांत उन्होंने प्रवचन प्रारंभ करने में किंचित विलम्ब न कियाः
प्रज्ञा - पारमिता को नमन
त्रिकाल के सभी बुद्धों की जननी
जो शब्दातीत, अचिन्तनीय, अनिर्वचनीय है,
अनुत्पादित, अबाधित अंतरिक्ष सम
सम्प्रजन्य प्रज्ञा का वस्तुनिष्ठ स्थान
तद्यथा - गते, गते, पारगते, पारसंगते, बोधि स्वाहा
"हम अनगिनत समस्याओं का सामना करते हैं। दिन-दर-दिन लोग मेरे पास अपना दुख और समस्याएँ लेकर आते हैं। ये सब हमारे सभी मनो-भौतिक स्कंधों - काय तथा चित्त का संयोजित रूप, के संबंधों के परिणामस्वरूप उत्पन्न होते हैं। इस पर चर्चा करते हुए कि क्या हमारी समस्याओं पर काबू पाया जा सकता है, बुद्ध ने पूछा कि क्या दुख हमारी आंतरिक प्रकृति का अंग था। यदि ऐसा था तो हम इस पर काबू पाने में असमर्थ होंगे। यह बताते हुए कि दुख चित्त की प्रकृति से भिन्न है, उन्होंने घोषित किया कि इसे दूर किया जा सकता है। हम सही निरोध प्राप्त कर सकते हैं।
"हृदय सूत्र' मंत्र का प्रथम 'गते' पांच मार्गों के प्रथम -संभार के मार्ग को इंगित करता है। सामान्य पथ के संदर्भ में यह तब होता है जब आप दुःख से मुक्त होने के लिए एक दृढ़ संकल्प पैदा करते हैं। महायान के संदर्भ में, जब आप बुद्धत्व प्राप्त करने हेतु एक दृढ़ आकांक्षा उत्पन्न करते हैं तो आप संभार मार्ग पर पहुंचते हैं।
"अपने 'अभिसमयालंकार' में मैत्रेय ने प्रज्ञा पारमिता की स्पष्ट विषय वस्तु को समझाया; मार्ग के चरण। अपने लेखन में, नागार्जुन ने अंतर्निहित विषय वस्तु समझाई - शून्यता को समझने वाली प्रज्ञा। यही है जिसे हमें विकसित करना है, स्वयं को रूपातंरित करने के लिए जो सच्चे निरोध की ओर ले जाएगा। मार्ग के संबंध में, अपने 'चतुश्शतक' में आर्यदेव लिखते हैं:
पहले पुण्यहीन को रोकें
फिर के आत्म को रोकें
इसके बाद में सभी प्रकार की दृष्टि को रोकें।
जो यह जानता है वह बुद्धिमान है।
"अपनी 'रत्नावली' में नागार्जुन अभ्युदय प्राप्ति के विषय में लिखते हैं, जो अच्छे पुनर्जन्म और नैश्रेयस को संदर्भित करता है, जो प्रथमतः विनाशकारी भावनाओं से स्वतंत्रता को संदर्भित करता है और दूसरा उनकी छाप से भी स्वतंत्रता। 'बोधिसत्वचर्यावतार' के संदर्भ में नैश्रेयस का अंतिम लक्ष्य, पूर्ण प्रबुद्धता है बुद्ध का सम्यक संबुद्धत्व। नागार्जुन आगे कहते हैं कि स्वयं तथा दूसरों के लिए सर्वोत्कृष्ट प्रबुद्धता प्राप्त करने हेतु हमें करुणा, बोधिचित्त का मूल तथा शून्यता की समझ की आवश्यकता है। वे आगे कहते हैं - प्रज्ञा का केन्द्र प्रबुद्धता है और करुणा का केन्द्र सत्व हैं।
"करुणा के सच्चे अनुभव करने के लिए हमें दुख को जानने और यह समझने कि इसे दूर किया जा सकता है, की आवश्यकता है। बुद्धत्व प्राप्त करने के लिए हमें करुणा, बोधिचित्त और शून्यता की समझ रखने वाली अद्वैत प्रज्ञा की आवश्यकता है।"
परम पावन ने हर किसी को स्मरण कराया कि चूँकि कल उन्होंने 'बोधिचर्यावतार' के अध्याय ४ का पाठ समाप्त कर दिया था आज वे अध्याय ५ का पाठ प्रारंभ करेंगे। यह एक उचित सलाह के साथ प्रारंभ होता है, 'जो लोग अपनी की शिक्षा की रक्षा का कामना करते हैं उन्हें अत्यंत प्रयास से अपने चित्त की रक्षा रखना चाहिए'। जहाँ १७वाँ श्लोक 'चित्त के रहस्य' को संदर्भित करता है, परम पावन ने कहा कि इसका संबंध चित्त की शून्यता पर ही ध्यान देना है। उन्होंने कहा कि चित्त के लिए अपनी वास्तविक प्रकृति पर ध्यान केंद्रित करना बहुत शक्तिशाली है।
उन्होंने इस ग्रंथ की रचना के पारम्परिक विवरण के बारे में बताया, और कहा कि नालंदा में प्रत्येक भिक्षु द्वारा द्विपक्षीय देशना व पोषध समारोह का नेतृत्व करने और भिक्षु समुदाय को एक उच्च आध्यात्मिक शिक्षा प्रदान करने की एक परम्परा थी। अपने सह भिक्षुओं की आंखों में, शांतिदेव को लेकर कोई विशिष्टता न थी और वे मनोरंजन की आशा कर रहे थे जब वे स्वयं को मूढ़ प्रमाणित करेंगे। जब शांतिदेव ने पूछा कि क्या उन्हें कोई नूतन पाठ करना चाहिए अथवा जो पहले सिखाया जा चुका था, उन्होंने शांतिदेव से नए का अनुरोध किया। परिणाम, अपने साथियों के लिए विद्युत की आभा सम यह 'बोधिसत्वचर्यावतार' था। शांतिदेव ने 'सूत्र समुच्चय' की भी रचना की जो इस रचना का पूरक है और जो उन्होंने बताया था कि वे उनके कमरे के छज्जे में पाएँगे। ये दो ग्रंथ कदम्प के छह ग्रंथों में विशेष स्थान रखते हैं।
अपना पठन जारी रखते हुए परम पावन इस महत्व की ओर ध्यानाकर्षित किया कि जब आप किसी शिक्षक पर निर्भर होते हैं तो उनमें पूर्ण गुणवत्ता हो जो तीन अधिशिक्षाओं को धारण करना है। उन्होंने यह भी दोहराया कि जब आप चित्त की प्रकृति पर ध्यान करते हैं तो उसकी स्पष्टता और जागरूकता पर ध्यान केन्द्रित करना आवश्यक है।
परम पावन ने विकसित विश्व के रुझानों की ओर संकेत किया, जिसमें वे संगीत और फिल्म, अच्छे भोजन और फैशनेबल वस्त्र में आनंद ढूँढते हैं और ये सब ऐन्द्रिक संतुष्टि का एक ऐसा स्तर है जिसमें जानवर भी सक्षम हैं। जो वस्तु मनुष्य को अलग करती है वह उसकी अनूठी बुद्धि तथा चित्त की शांति के आधार पर सुख पाने की क्षमता है। उन्होंने सुझाया कि गहन मानसिक संतोष के लिए ऐन्द्रिक संतोष की आवश्यकता नहीं है। उन्होंने एक कैथोलिक भिक्षु का स्मरण किया जिनसे वह स्पेन में मॉन्टसेराट में मिले थे, जो पहाड़ की एक गुफा में पांच वर्ष तक मात्र रोटी और चाय पर ही जीवित रहे थे। परम पावन ने उनके अभ्यास के बारे में पूछा और जब भिक्षु ने उन्हें बताया कि वह प्रेम पर ध्यान कर रहे थे तो उन्होंने उनकी आँखों में एक स्पष्ट आभा देखी।
जहां ग्रंथ सूत्रों के पाठ का सुझाव देता है, परम पावन ने श्रोताओं को कांग्यूर के १०० खंडों तथा २०० से अधिक खंड तेंग्यूर संग्रह का स्मरण कराया। उन्होंने बौद्ध आचरण को अहिंसा के रूप में तथा बौद्ध दृष्टिकोण को प्रतीत्य समुत्पादित के रूप में संक्षेपित किया।
क्षांति के अध्याय ६ का पाठ प्रारंभ करते हुए परम पावन ने तीन पहलुओं की पहचान कीः परापकारमर्षणा क्षांति, दुःखाधिवासना क्षांति तथा धर्मनिध्यानाधिमोक्ष क्षांति। उन्होंने कहा कि अध्याय ८ में दिए गए परात्मपपरिवर्तन द्वारा बोधिचित्तोत्पाद के निर्देश के संबंध में भी क्षांति महत्वपूर्ण है।
बल प्रयोग से समस्याओं का संतोषजनक समाधान नहीं निकाला जा सकता, के कारणों में से एक यह है कि उनकी उत्पत्ति हमारे विकृत और अतिरंजित व्यवहारों में निहित होती है। परम पावन ने अमेरिकी मनोचिकित्सक हारून बेक ने जो उन्हें बताया था उसका उल्लेख किया। अमेरिकी मनोचिकित्सक हारून बेक ने उन लोगों का उपचार करते हुए, जो क्रोध से जूझ कर रहे थे, यह सीखा था कि यद्यपि कइयों के लिए उनके क्रोध की वस्तु पूर्णतया नकारात्मक थी, बेक इस निश्चय पर पहुँचे कि इनमें से ९०###span#< मानसिक प्रक्षेपण था। परम पावन का मानना है कि यह नागार्जुन के विचारों से मेल खाता हैः
कर्म और क्लेशों के क्षय में मोक्ष है,
कर्म और क्लेश विकल्प से आते हैं,
विकल्प प्रपञ्च से आते हैं,
शून्यता में प्रपञ्च का अंत होता है।
दिन के लिए अपने पठन का समापन करते हुए, परम पावन ने कल जारी रहने का वादा किया, जब वे श्वेत तारा दीर्घायु अभिषेक भी प्रदान करने वाले हैं।