धर्मशाला, हिमाचल प्रदेश, आज प्रातः जब परम पावन दलाई लामा गाड़ी से धर्मशाला के राजकीय महाविद्यालय गए तो हवा में एक तीखी ठंड थी और उज्ज्वल नीले नभ की पृष्ठभूमि में धौलाधार पर्वत अलग खड़ा प्रतीत हो रहा था। उन्हें गांधी स्मृति और दर्शन समिति, जिसका उद्देश्य महात्मा गांधी के जीवन, उद्देश्य तथा विचार का प्रचार करना है, द्वारा विश्व शांति हेतु एक सम्मेलन में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया गया था, जिसका केन्द्र बुद्ध और गांधी का मार्ग था। आगमन पर परम पावन ने अग्र पंक्ति में बैठे श्रोताओं का अभिनन्दन किया, उनके साथ हाथ मिलाया और उनके साथ तसवीर खिंचवाई।
पूरा समूह राष्ट्रीय गान के लिए खड़ा हुआ जिसके पश्चात परम पावन दीप प्रज्ज्वलन में सम्मिलित हुए और बुद्ध और महात्मा गांधी के प्रतिमा को पुष्पांजलि अर्पित की। कुलु के छात्रों ने प्रार्थना प्रस्तुत की। मंच पर विभिन्न अतिथियों को उपहार प्रस्तुत किए गए।
हिमाचल प्रदेश के केन्द्रीय विश्वविद्यालय के कुलपति कुलदीप चंद अग्निहोत्री ने हिंदी में बोलते हुए टिप्पणी की, कि बुद्ध और गांधी का स्मरण आज विश्व शांति में योगदान दे सकता है क्योंकि धर्म का सार अहिंसा है। गांधी स्मृति और दर्शन समिति के श्री लक्ष्मी दास ने ऐसे विश्व में जहाँ आणविक अस्त्रों का अस्तित्व है, संघर्ष और अविश्वास के खतरों के बारे में बताया। प्रोफेसर समदोंग रिनपोछे ने आशा व्यक्त की, कि यह सभा युवा पीढ़ी को विश्व शांति की दिशा में निर्देशित करेगी। उन्होंने परम पावन दलाई लामा के उदाहरण की ओर ध्यानाकर्षित किया जो सुनिश्चित कर रहे हैं कि तिब्बत की स्वतंत्रता का संघर्ष अहिंसक हो।
"आदरणीय बड़े भाइयों और बहनों और विशेष रूप से, छोटे भाई-बहनों," परम पावन ने प्रारंभ किया। "मैं सदैव लोगों को इसी प्रकार संबोधित करता हूँ क्योंकि हम सभी मनुष्य रूप में समान हैं। इस संदर्भ में कि मनुष्य होने के नाते हम सभी समान है, धार्मिक विश्वास, जाति या राष्ट्रीयता का अंतर गौण हो जाता है। इस तरह के गौण भेदों पर ध्यान केंद्रित करना संघर्ष को जन्म देता है। इसी तरह हम स्वयं के लिए समस्याएँ निर्मित करते हैं और उन्हें कम करना हम में से प्रत्येक का उत्तरदायित्व है।
"इन दिनों, जब मैं प्रातः उठता हूं और ध्यान प्रारंभ करता हूँ, तो मैं प्रायः सोचता हूँ कि कितने लोग मारे गए और कितने बच्चे भुखमरी का शिकार हुए जब मैं शांति से निद्रा में लीन था।
"लोग इन समस्याओं का निर्माण करते हैं और लोगों को इनका समाधान करना होगा। हम में से जो २०वीं शताब्दी से संबंधित हैं वे दस से पन्द्रह वर्षों के बाद नहीं रहेंगे, पर आप में से जो २१वीं शताब्दी के हैं, उन्हें एक अधिक सुखी विश्व बनाने के लिए कार्य करना चाहिए। आपके पास यह करने का अवसर तथा उत्तरदायित्व है। सबसे पहले तो आपको आंतरिक शांति विकसित करनी है। क्रोध, घृणा और ईर्ष्या द्वारा विश्व में शांति नहीं निर्मित की जा सकती।
"बुद्ध शाक्यमुनि और महात्मा गांधी दोनों भारतीय थे, जो भारतीय परम्पराओं से प्रेरित थे जिसमें अपने आंतरिक विश्व का रूपांतरण था। उन्होंने मात्र प्रार्थना द्वारा नहीं अपितु अपनी नकारात्मक भावनाओं से निपटते हुए आंतरिक शांति प्राप्त की। चित्त की शांति पैदा करने की परंपरा आज महत्वपूर्ण है। हमें भी समझने की आवश्यकता है कि क्या है जो आंतरिक शांति को जन्म देती है और क्या इसे नष्ट करती है।"
परम पावन ने उल्लेख किया कि उन्होंने ऐसे साधुओं के विषय में सुना है जो गहन पहाड़ों में नग्न होकर ध्यान करते हैं जहाँ वे अपनी साधना द्वारा आंतरिक उष्णता उत्पन्न करते हैं पर उन्हें अभी भी उनमें से किसी से भी मिलने तथा बात करने का अवसर प्राप्त नहीं हुआ है। उन्होंने दोहराया कि चित्त की शांति प्राप्त करने के लिए, हमें अपनी नकारात्मक भावनाओं से निपटना होगा। प्राचीन भारतीय मनोविज्ञान के पास इसका गहन ज्ञान था कि इसे किस तरह करना है। उन्होंने सुझाया कि आज हम ऐसे ज्ञान का प्रयोग धार्मिक भावना की तुलना में व्यावहारिक, धर्मनिरपेक्ष और शैक्षणिक दृष्टिकोण से अधिक करें।
बुद्ध की प्रसिद्ध उक्ति को उद्धृत करते हुए कि 'जिस तरह प्रज्ञावान स्वर्ण का परीक्षण जलाकर, काटकर और रगड़कर करता है, तो भिक्षुओं आप मेरे शब्दों को उनके परीक्षण के बाद स्वीकार करें, केवल मेरे प्रति सम्मान के कारण नहीं।’ परम पावन ने पुष्ट किया कि तर्क के प्रकाश में बुद्ध ने जो कुछ देशित किया, नालंदा विश्वविद्यालय के आचार्यों ने उसका परीक्षण किया। उन्होंने जिस ज्ञान का संचरण किया वे ३०० से अधिक खंडों के वाङ्मय में निहित हैं, जो अधिकांशतया संस्कृत से भोट भाषा में अनूदित हैं। उन्होंने घोषित किया उनके कुछ अंशों के संकलन का हिंदी, अंग्रेजी और अन्य भाषाओं में अनुवाद किया जा रहा है।
"जबकि आधुनिक भारत अच्छा भौतिक विकास कर रहा है, यहाँ प्राचीन ज्ञान की अपनी धरोहर को अनदेखा करने की प्रवृत्ति है। सौभाग्य से, हम तिब्बतियों, भारतीय गुरूओं के चेलों ने इस परंपरा के अधिकांश अंश को संरक्षित रखा है। आज जो महत्वपूर्ण है वह यह कि आधुनिक शिक्षा और तकनीकी कौशल के साथ चित्त तथा भावनाओं के प्रकार्य के प्राचीन ज्ञान को जोड़ा जाए जिसने बुद्ध और महात्मा गांधी को स्वरूप दिया। भारत एकमात्र ऐसा देश है जहाँ यह किया जा सकता है।
"आधुनिक वैज्ञानिकों के साथ मेरी चर्चा में मैंने क्वांटम भौतिकी के नए अंतर्दृष्टि के बारे में सीखा है। यद्यपि महान भौतिक विज्ञानी राजा रामण्णा ने मुझे बताया कि उन्होंने देखा था कि ये शताब्दियों पूर्व जो नागार्जुन ने लिखा था उसमें पहले ही बताई जा चुकीं थीं। इसी तरह, जहाँ आधुनिक वैज्ञानिक ऐन्द्रिक चेतना के संदर्भ में चित्त को देखते हैं, प्राचीन भारत में मानसिक चेतना की गहराई के बारे में अत्यधिक विकसित समझ थी।
"आपकी प्राचीन विरासत के आधार पर मेरा मानना है कि आप भारतीयों में मानव कल्याण हेतु एक महान योगदान देने की क्षमता है। बुद्ध शाक्यमुनि ने धर्मों की प्रतीत्य समुत्पाद पर बल दिया था पर उन्होंने करुणा के महत्व पर भी बल दिया। महात्मा गांधी याचक की तरह प्रतीत होते थे, पर वे अत्यधिक शिक्षित और बुद्धिमान थे। हमारे पास प्राचीन भारतीय परंपराओं का पालन करने का अवसर है, जिसने इन अनुकरणीय व्यक्तियों को जन्म दिया। यह कुछ ऐसा है जिसे हम कर सकते हैं - बस इतना ही, धन्यवाद।"
तत्पश्चात परम पावन अपने निवास लौट आए, पर बुद्ध और गांधी के मार्ग पर केंद्रित वैश्विक शांति का सम्मेलन और दो दिनों तक चलेगा।