पीसा, टस्कनी, इटली, आज प्रातः जब परम पावन दलाई लामा गाड़ी से पिसा के ऐतिहासिक शहर में ३७०० लोगों, जिनमें से १३०० छात्र थे, को संबोधित करने गए, तो सूरज खिला हुआ और गर्मी लिए हुए था। जब वे महापौर मार्को फिलिप्पेश्ची के साथ हाथों में हाथ डाले मंच पर आए तो चारों ओर उत्साह भरे स्वर गूँज उठे।
लामा चोंखापा संस्थान के निदेशक फिलिपो सियाना द्वारा एक संक्षिप्त परिचय के बाद, महापौर फिलिप्पेश्ची ने परम पावन का अपने नगर में स्वागत किया। बैठक के विषय को संबोधित करते हुए उन्होंने सुझाया कि जहाँ इंटरनेट कई लाभ लेकर आया है, पर सूचना और इसके वाणिज्यिक शोषण के दास बनने की संभावना है। उन्होंने कहा कि हमें इतने कम लोगों के हाथ में इतनी शक्ति के बारे में सोचकर चिंतित होना चाहिए।
आज, परम पावन ने खड़े होकर बोलने का निर्णय लिया ताकि वे अधिक पीछे बैठे छात्रों को देख सकें। उन्होंने उन्हें भाइयों और बहनों के रूप में संबोधित किया और इस अवसर का आयोजन करने वालों लोगों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त की।
"हम अभी भी २१वीं शताब्दी के प्रारंभिक वर्षों में हैं। लोगों के जीवन और तकनीकी विकास के स्तर में वृद्धि हुई है, पर प्रश्न यह उठता है कि इसके फलस्वरूप क्या हम खुश हैं। आज जीवित सभी ७ अरब मनुष्यों की एक सुखी जीवन जीने की इच्छा इस तथ्य से खंडित होती है कि हम जिन कई समस्याओं का सामना कर रहे हैं, वह हमारी अपनी ही बनाई हुई हैं। जब हमारे चित्त पर क्रोध और भय जैसे विनाशकारी भावनाएँ हावी हो जाती हैं तो हम अपने बुद्धि का उचित उपयोग नहीं कर सकते , बल्कि अपने आप के लिए कठिनाइयाँ पैदा करते हैं। हमें इसकी जांच करने की आवश्यकता है कि यह कैसे आता है।
"मध्य पूर्व और उत्तरी अफ्रीका में हिंसा है। यमन में बच्चे भूखमरी का सामना कर रहे हैं। म्यांमार, एक बौद्ध देश में, मुसलमान भाई और बहनें बौद्धों के हाथों त्रसित हैं - यह सब बहुत दुख की बात है।
"चूंकि हमारी वर्तमान शिक्षा व्यवस्था भौतिक लक्ष्यों की ओर उन्मुख है, इसलिए लोग अपने आंतरिक विश्व की उपेक्षा करते हैं। उन्हें नहीं पता कि चित्त की शांति कैसे लाई जाए। आप इसे सुपरमार्केट में नहीं खरीद सकते हैं और न ही आप इसे नशीली दवा अथवा शल्य चिकित्सा द्वारा प्राप्त कर सकते हैं।
"एक ओर हम ऐन्द्रिक सुखों का आनंद लेते हैं, जैसे कोई खेल देखना और संगीत सुनना। परन्तु क्रोध और भय मानसिक अनुभव हैं, वे ऐन्द्रिक क्षेत्र से संबंधित नहीं हैं। अतः वास्तविक परेशानी भावनाओं के क्षेत्र में है। मैं लोगों से कहता हूँ कि अगर वे वास्तव में सुख और आनन्द पाना चाहते हैं तो उन्हें चैतसिक और साथ ही शारीरिक स्तर को संबोधित करने की आवश्यकता है।
"जिस तरह हम अपने शरीर के स्वास्थ्य की देखरेख कर अपने शारीरिक स्वच्छता की देखभाल करते हैं, हमें भावनात्मक स्वच्छता को विकसित करने की आवश्यकता है यदि हम चित्त की शांति सुनिश्चित करना चाहते हैं। चूँकि हम जिन कई समस्याओं का सामना करते हैं, वे हमारे चित्त से संबंधित हैं, अतः हमें अपने चित्त में ही समाधान खोजना होगा। यह मात्र शारीरिक और चैतसिक कल्याण की बात है।
"भय तथ चिंता सहजता से क्रोध व हिंसा के लिए रास्ता देते हैं। भय के विपरीत विश्वास है, जो सौहार्दता से संबंधित है, हमारे आत्मविश्वास में वृद्धि करता है। करुणा भय को भी कम करता है और दूसरों के हित के प्रति चिंता को दर्शाता है। यह धन व शक्ति नहीं जो वास्तव में मित्रों को आकर्षित करती है। जब चित्त करुणाशील होता है तो वह शांत होता है और हम अपने तर्क की क्षमता को बुद्धिमत्तापूर्वक काम में लाने में सक्षम होते हैं। जब हम क्रोध या मोह के बहाव में होते हैं तो हम स्थिति का पूर्ण और यथार्थवादी दृष्टिकोण लेने की अपनी क्षमता में सीमित हो जाते हैं।
छात्रों को सीधी तौर से संबोधित करते हुए परम पावन ने टिप्पणी की, कि वे तथा श्रोताओं के वरिष्ठ सदस्य २०वीं शताब्दी के हैं, एक समय जो बीत चुका है। २१वीं सदी की पीढ़ी से संबंधित, उन्होंने उनसे कहा कि वे विश्व का भविष्य हैं।
"२०वीं शताब्दी के प्रारूप का पालन न करें, अधिक यथार्थवादी और अधिक समग्र बनें - एक व्यापक दृष्टिकोण रखें। चित्त के आंतरिक विश्व को ध्यान में रखें और सोचें कि किस तरह शारीरिक और मानसिक दोनों के हितों को सुनिश्चित किया जाए। अपने आप को सभी ७ अरब मनुष्यों की एकता के बारे में स्मरण कराएँ। आधारभूत मानव प्रकृति करुणाशील है। यदि आप उसे बुद्धि के साथ विकसित कर सकते हैं तो आप एक अधिक सुखी और अधिक शांतिपूर्ण विश्व के निर्माण में सक्षम होंगे।"
श्रोताओं के प्रश्नों के उत्तर में, परम पावन ने सहमति व्यक्त की, कि प्रार्थना और ध्यान का उपयोग सकारात्मक भावनाओं को बढ़ावा देने के लिए किया जा सकता है जो आज प्रासंगिक है। ध्यान के दो प्रमुख दृष्टिकोणों, शमथ व विपश्यना, में से, परम पावन व्यक्तिगत रूप से विश्लेषण का समर्थन करते हैं। उन्होंने बताया कि कोई कर्म सकारात्मक है अथवा नकारात्मक वह उसकी प्रेरणा पर निर्भर करता है। उन्होंने कहा कि चूंकि लाखों लोगों ने अपने धार्मिक अभ्यास में चित्त की शांति पाई है, अतः मुसलमान या बौद्ध आतंकवादियों के रूप में संदर्भित करना गलत है। जब आतंकवादी हानिकारक व्यवहार में संलग्न होते हैं, तो वे अपनी आस्था त्याग देते हैं।
महिलाओं की भूमिका पर पूछे गए एक युवती के प्रश्न पर परम पावन का विचार था कि यदि और अधिक देशों में महिलाओं का नेतृत्व होता तो क्या विश्व एक अधिक शांतिपूर्ण स्थान न होगा। उन्होंने उनसे कहा कि इस बिंदु पर मैरी रॉबिन्सन ने उन्हें 'नारीवादी दलाई लामा' कहकर संदर्भित किया था।
पीसा कांग्रेस हॉल में पीसा विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित मध्याह्न के भोजन के बाद, परम पावन 'द माइंड-साइंस ऑफ रियलिटी' की पहली संगोष्ठी के उद्घाटन में सम्मिलित हुए। प्रोफेसर ब्रुनो नेरी और लामा चोंखापा इंस्टीट्यूट के निदेशक ने परिचय दिया जिसमें उन्होंने परम पावन की उपस्थिति की सराहना की। रिचर्ड गियर ने गैलीलियो विश्वविद्यालय में उनके साथ होने को एक असाधारण सम्मान और आनन्द कहकर घोषित किया। उन्होंने रेक्टर, पाउलो मैनकरेला की भी सराहना की जिन्होंने कार्यक्रम को आयोजित न करने के लिए चीनी दबाव का विरोध किया। उनके इस कथन के प्रत्युत्तर में ज़ोरदार तालियां बजीं।
मैनकरेला ने अपनी ओर से गर्व व्यक्त किया कि पीसा विश्वविद्यालय और लामा चोंखापा इंस्टीट्यूट के बीच समझ का ज्ञापन अंततः फलीभूत हुआ था। उन्होंने संगोष्ठी के उद्घाटन की घोषणा की।
प्रथम सत्र के संचालक के रूप में मिशेल बिटबोल ने परम पावन को प्रस्तुतियों से पहले उन्हें टिप्पणियाँ करने का अवसर दिया।
"मैं इस अवसर को दो उद्देश्यों रखते हुए देखता हूँ, "परम पावन ने उत्तर दिया "पहले हमारे ज्ञान का विस्तार करना है। अतीत में, वैज्ञानिकों ने बड़े पैमाने पर बाह्य घटनाओं, कणों इत्यादि पर ध्यान दिया है, पर चित्त की ओर नहीं। परिणामस्वरूप, कई मस्तिष्क के प्रकार्य के अतिरिक्त चित्त को कोई स्थान नहीं देते। जब २०वीं शताब्दी ने २१वीं के लिए रास्ता दिया, उन्होंने चित्त को एक विभिन्न प्रकाश में देखना प्रारंभ किया।
"दूसरा उद्देश्य धर्मनिरपेक्ष नैतिकता को बढ़ावा देने, सामान्य अनुभव, सामान्य ज्ञान और वैज्ञानिक निष्कर्षों के आधार पर शिक्षा में सार्वभौमिक मूल्यों को लागू करने से संबंधित है।"
परम पावन ने एक प्रश्न दोहराया, जो वे पहले पूछ चुके हैं। वे यह जानना चाहते हैं कि जो अंतर्दृष्टि क्वांटम भौतिकविदों ने प्राप्त की है कि किसी वस्तु का वस्तुनिष्ठ अस्तित्व नहीं होता क्या वह उनकी अपनी भावनाओं के प्रति संवेदनशीलता से प्रभावित होता है।
'माइंडसाइंस एंड क्वांटम फिजिक्स' के प्रारंभिक सत्र में, पहले प्रस्स्तुतकर्ता प्रोफेसर ग्यूसेप विटियेलो थे जिन्होंने 'पदार्थ, चित्त और चेतना: सूचना से अर्थ' तक पर बात की। उन्होंने टिप्पणी की, कि भौतिक विज्ञानी के गणित के उपकरण का प्रयोग नहीं किया जा सकता क्योंकि चित्त और मस्तिष्क खुली प्रणालियाँ हैं।
अगले वक्ता प्रोफेसर मास्सिमो प्रेग्नोलटो 'क्वांटम बायोलॉजी - साइकोपैथोलॉजी के एक नए प्रतिमान के आधार के रूप में' विषय पर बोले। उन्होंने क्वांटम जीव विज्ञान, मात्रात्मक मनोचिकित्सा और चित्त के गैर आकलन विज्ञान पर चर्चा की। अन्त में, प्रोफेसर फेडेरिको फेग्गिन ने 'अर्थ संबंधी और वाक्य विन्यास वास्तविकता के सह-उदय' पर बात की जिसमें उन्होंने हमारी आंतरिक और बाह्य विश्व की दो वास्तविकताओं के अंतर को समझाया।
इस ऊर्जापूर्ण सत्र की समाप्ति पर, परम पावन ने उनके प्रयासों के लिए प्रस्तुतकर्ताओं के प्रति अपनी प्रशंसा व्यक्त की। उन्होंने यह प्रश्न रखा कि जिन प्रश्नों के उत्तर वे खोज रहे हैं क्या वे दिखाई पड़ रहे हैं, पर उन्हें विश्वास था कि दशकों के बाद विद्वान और वैज्ञानिक इसे एक महत्वपूर्ण प्रारंभ के रूप में देखेंगे।
संगोष्ठी कल जारी रहेगी जिसमें 'माईंडसाइंस वर्सस न्यूरोसाइंस' पर एक सत्र होगा।