रैंकफर्ट, जर्मनी, कल, तकनीकी समस्याओं के कारण परम पावन दलाई लामा की डेरी, उत्तरी आयरलैंड से फ्रैंकफर्ट की उड़ान में विलम्ब हुआ और अंततः वर्षा में उन्होंने उड़ान भरी। जब वे फ्रैंकफर्ट में उतरे तो देर दोपहर की गर्म धूप से ग्राम क्षेत्र चमक रहा था।
आज प्रातः सर्वप्रथम उन्होंने चीनी, मंगोल और उइघर्स-स्कोलर, छात्रों और व्यवसायी लोगों के एक विविध समूह से भेंट की और उन्हें बताया कि तिब्बती पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना (पीआरसी) के साथ बने रहने के लिए तैयार थे। उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि जब वे पहली बार उईघुर नेता रेबिया कदीर से मिले तो उन्होंने स्वतंत्रता प्राप्त करने हेतु हिंसा का प्रयोग करने की बात की थी, परन्तु परम पावन ने इसके बजाय उन्हें अहिंसा के मार्ग पर चलने के लिए मनाया। समय के साथ उन्होंने भी स्वायत्तता को अपने लक्ष्य के रूप में अपनाया।
परम पावन से चीन में मानवाधिकार के ह्रास की स्थिति के बारे में पूछा गया, जिसका उदाहरण लियू ज़ियोओबो की मृत्यु थी। उन्होंने उत्तर दिया कि उन्होंने सुना था कि शी जिनपिंग पार्टी के पुराने सदस्यों द्वारा सुधार के विरोध की शक्ति को देख स्तब्ध रह गए थे। उन्होंने यह आशा व्यक्त की कि आगामी पार्टी के सम्मेलन के दौरान, जब पोलित ब्यूरो के कई वयोवृद्ध सदस्य सेवा निवृत्त होंगे, तो उनके स्थान पर नए चेहरे स्थान लेंगे। तब परिवर्तन के अवसर हो सकते हैं। उन्होंने टिप्पणी की कि कई शिक्षित चीनी मध्यम मार्ग दृष्टिकोण का समर्थन करते हैं और आगे कहा कि सरकारें आती और जाती हैं, परन्तु लोग बने रहते हैं। उन्होंने टिप्पणी की है कि चीनी तिब्बती संबंध २००० वर्ष से अधिक पुराने हैं, जबकि चीनी साम्यवादी पार्टी का अस्तित्व एक शताब्दी से भी कम समय का है।
यह पूछे जाने पर कि किस तरह प्रगति की जा सकती है, परम पावन ने सुझाया कि जिस तरह उन्होंने ३० वर्षों से भी अधिक समय से वैज्ञानिकों के साथ सफल संवाद किया है, यह महत्वपूर्ण है कि निर्वासन में चीनी और तिब्बती, विशेषकर छात्रों को एक- दूसरे को बेहतर जानना चाहिए। इन दिनों, क्योंकि विश्व में कम लोग तिब्बत और शिनज़ियंग में मानव अधिकारों के बारे में बात करते हैं, अधिकारों और सांस्कृतिक अस्मिता के संरक्षण पर केंद्रित होकर तिब्बतियों, मंगोलों और उइघर्स के संघ को पुनर्जीवित करना सहायक होगा। परम पावन ने उनकी स्मृति को बनाए रखने के लिए लियू ज़ियाओबो की मूर्तियों के निर्माण के एक सुझाव को मंजूरी दी और सुझाया कि न्यूयॉर्क में चाइनाटाउन एक उपयुक्त स्थान होगा।
परम पावन निरंतर वर्षा में गाड़ी से सेंचुरी हॉल जह्रहंदेरथल पहुँचे। हसे राज्य के ६० विद्यालयों के १६०० छात्र वहाँ एकत्रित हुए थे ताकि वे परम पावन के साथ उनके १० सदस्यों की बातचीत सुन सकें जो उनके समक्ष अपना प्रश्न रखने वाले थे।
"भाइयों और बहनों," परम पावन ने प्रारंभ किया, "मैं आप युवा छात्रों से बात करने का अवसर प्राप्त कर बहुत प्रसन्न हूँ। मेरा मानना है कि मनुष्यों के रूप में हम सभी ७ अरब मनुष्य समान हैं। हमारी कई समस्याएँ जिनका सामना हम कर रहे हैं, हमारी अपनी बनाई हुई हैं। क्यूँ? क्योंकि हम मेरे लोग, मेरा राष्ट्र, मेरा धर्म के संदर्भ में सोचते हैं और इस तरह अपने गौण भेदों पर ध्यान केंद्रित करते हैं।
"हम अतीत को बदल नहीं सकते, पर हम अभी भी भविष्य को आकार देने में सक्षम हैं। जब से मेरा जन्म १९३५ में हुआ, मैं निरंतर हिंसा और युद्ध का साक्षी रहा हूँ। हम यहाँ शांतिपूर्वक और सौहार्दपूर्वक एक साथ बैठे हैं, परन्तु इस ग्रह पर कहीं और अन्य मनुष्य दुःखी हैं - मारे जा रहे हैं और भुखमरी का शिकार हो रहे हैं। क्या हम उदासीन रह सकते हैं? हमें मानवता की एकता को स्मरण रखने की आवश्यकता है, कि हम सभी भाई-बहन हैं। आपमें से जो २१वीं शताब्दी के हैं, आपका एक और अधिक शांतिपूर्ण विश्व निर्मित करने का उत्तरदायित्व है। यदि आप अभी प्रारंभ करें और प्रयास करें तो आप अपने जीवन काल में ऐसे परिवर्तन देख सकते हैं, यद्यपि मैं इसे देखने के लिए जीवित न हूँगा। इसकी नींव, जो चित्त की शांति होगी, के लिए सौहार्दता तथा बुद्धि के संयोजन की आवश्यकता होगी।"
यह पूछे जाने पर कि किस तरह आगे बढ़ा जाए, परम पावन ने शिक्षा में सुधार की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कहा कि जहाँ अतीत में चर्च ने मानवीय मूल्यों को विकसित करने पर ध्यान रखा था, धार्मिक प्रभाव का ह्रास हुआ है। अब मुख्यधारा की शिक्षा में नैतिक सिद्धांतों को सम्मिलित करने के लिए दूरदर्शिता तथा उत्साह की आवश्यकता है।
यूरोप में शरणार्थी समस्याओं के बारे में पूछे जाने पर, परम पावन ने स्पष्ट किया कि उनमें से अधिकांशों ने अपने देश से इस कारण पलायन किया है क्योंकि वहाँ अशांति है। उन्होंने समकालीन तिब्बती शरणार्थियों के साथ तुलना की जिन्होंने सदैव अंततः पूरी तरह से तिब्बत लौटने की आशा रखी है। उन्होंने कहा, कि आज शरणार्थियों को आश्रय दिया जाना चाहिए और युवाओं को शिक्षा और प्रशिक्षण प्रदान करना चाहिए, ताकि जब उनकी मातृभूमि में शांति बहाल हो जाए तो वे उसके पुनर्निर्माण के लिए लौट सकते हैं।
परम पावन ने व्यवहार में इस परिवर्तन की ओर संकेत किया कि २०वीं शताब्दी के पूर्वार्ध में जब युद्ध घोषित किया जाता था तो सभी गर्व से उसमें शामिल होते थे, पर शताब्दी के अंत में लोग युद्ध, हिंसा और आणविक शस्त्रों का विरोध करने लगे। शांति की प्रकट इच्छा प्रोत्साहजनक है, उन्होंने कहा और टिप्पणी की कि बर्लिन की दीवार के गिरने का कारण बल प्रयोग नहीं अपितु लोगों की इच्छा थी। उन्होंने यूरोपीय संघ की भावना के प्रति अपनी प्रशंसा व्यक्त की, जिसने विभाजन के स्रोत 'उन' और 'हम' की भावना का खंडन किया है।
"हमारी आधारभूत मानव प्रकृति सौहार्दतापूर्ण है," परम पावन ने बलपूर्वक कहा। "इसके बिना हम जीवित नहीं रह सकते। पर हमें अपनी बुद्धि का भी उपयोग करना चाहिए, उदाहरण के लिए स्वयं से पूछना, कि क्या क्रोध से कोई लाभ है। उत्तर यह है कि यह हमारे चित्त की शांति को नष्ट करता है। महिलाएँ अपने सौंदर्य को बढ़ाने के लिए प्रसाधनों का उपयोग करती हैं पर यदि उनके भाव क्रोध से भरे हुए हैं तो कोई भी उन्हें देखना नहीं चाहेगा।"
अनुभव से सीखने के संदर्भ में, परम पावन ने स्पष्ट समझ विकसित करने के तीन चरण समझाए। प्रथम तो पढ़ना या जो अन्य कह रहे हैं उसे सुनना। दूसरा उस पर इतना चिन्तन करना कि वह चित्त में स्पष्ट हो जाए और तीसरा इस दृढ़ विश्वास के साथ इतनी भली भांति से परिचित हो जाना कि यह आपके अनुभव का अंग बन जाए।
उत्तर देने के लिए चुनौती दिए जाने पर कि क्या स्वतंत्रता अथवा सुरक्षा अधिक महत्वपूर्ण थी, परम पावन ने कहा:
"स्वतंत्रता - हमारे प्राकृतिक कौशल के कारण। हममें सृजनात्मकता की महान क्षमता है जिसके लिए स्वतंत्रता आवश्यक है, यदि अगर हम रुकाव से बचना चाहते हैं। कभी-कभी सुरक्षा को उस सृजनात्मकता की रक्षा के रूप में उद्धृत किया जाता है, पर इसे यह हमारे चिंतन को नियंत्रित करने के संदर्भ में नहीं होना चाहिए। सर्वाधिकारवाद साधारणतया सुरक्षा को प्रतिबंधों से जोड़ता है।"
परम पावन ने एक अन्य छात्र को बताया कि मनुष्य का सर्वोच्च लक्ष्य सुख की प्राप्ति है।
सोशियल मीडिया के बारे में उन्होंने कहा कि ऐसे अवसरों या तकनीकों, जो उनका समर्थन करते हैं, का दास नहीं बनना महत्वपूर्ण है, अपितु उनका बुद्धिमत्ता के साथ प्रयोग करना चाहिए और उनके हेरफेर में नहीं आना चाहिए। उन्होंने सिफारिश करते हुए बैठक का अंत किया कि छात्रों ने जो सुना था उसके बारे में सोचें। यदि वे इससे सहमत हैं और महत्वपूर्ण मानते हैं तो उन्होंने कहा कि उन्हें इसे अपने जीवन में कार्यान्वित करने का प्रयास करना चाहिए और उन्होंने जो समझा है उसे दूसरों के साथ साझा करना चाहिए। उन्होंने कहा कि यदि इसमें उन्हें कोई सार्थकता नहीं जान पड़ती तो वे इसे भुला सकते हैं।
मध्याह्न भोजनोपरांत लगभग ३००० लोगों को संबोधित करते हुए, परम पावन ने पुनः गौण भेदों पर ध्यान देने की प्रवृत्ति पर नियंत्रण करने की आवश्यकता और इस बात की अनुभूति, कि मूल रूप से इंसान होने के नाते हम समान हैं पर बल दिया। उन्होंने मानवता की एकता को स्वीकार करते हुए एक अधिक सुखी अधिक शांतिपूर्ण विश्व बनाने के महत्व पर बल दिया। उन्होंने कहा कि जब हम अस्पताल जाते हैं तो कोई नहीं पूछता कि हम कहाँ से हैं अथवा हमारी क्या आस्था है। हमें रोगियों की तरह देखा जाता है जिन्हें उपचार की आवश्यकता है।
"इसी तरह, यदि जंगल में भटके हुए हम अंततः दूर से किसी और को देखते हैं, तो हमारा पहला विचार यह नहीं होगा कि वे कहाँ से हैं या किस जाति या धर्म से संबंधित हैं, अपितु केवल एक और इंसान को देख कर राहत मिलेगी।"
परम पावन ने यूरोपीय संघ की भावना तथा इससे संबंधित अच्छे पड़ोसी की भावना को लेकर अपनी सराहना दोहराई। वह अफ्रीका, लैटिन अमेरिका और एशिया में इस तरह के एक संघ का विकास देखने की आशा रखते हैं। उन्होंने सुझाया कि इससे जुड़ा आपसी सम्मान स्वाभाविक रूप से विश्वास तथा अधिक मैत्रीपूर्ण संबंधों की ओर ले जाता है, जबकि संदेह समस्याओं को जन्म देता है। उन्होंने दोहराया कि दूसरों को 'उन' और 'हम' के संदर्भ की दृष्टि के फलस्वरूप केवल और विभाजन उत्पन्न होते हैं। अतः व्यापक विश्व में शांति के लिए मानवता की एकता की भावना पैदा करना महत्वपूर्ण है।
रोताओं द्वारा रखे गए प्रश्नों में, परम पावन से पूछा गया कि भय से किस तरह निपटा जाए। उन्होंने उत्तर दिया कि कुछ भय, जैसे कि एक पागल कुत्ते का भय, मूल्यवान है और मायने रखता है। परन्तु ऐसा भी भय है जो मात्र अपने बारे में बहुत अधिक सोचने में निहित है। उन्होंने सुझाव दिया कि जब इस तरह का भय उत्पन्न होता है तो अपने आप से पूछना मजेदार हो सकता है कि यह किस तरह का 'मैं' है जिसे लेकर आप इतने चिंतित हैं।
इस प्रश्न के उत्तर में कि लोग इतने लोभी क्यों हैं परम पावन का उत्तर था कि उनमें आधारभूत नैतिक सिद्धांतों तथा दूसरों के अधिकारों का सम्मान का अभाव है। वे यह समझने में विफल रहते हैं कि वास्तविक सुख शारीरिक संतुष्टि के स्थान पर चित्त से संबंधित है।
जब श्रोताओं में से एक ने उनसे उनके लिए प्रार्थना करने के कहा, क्योंकि वे बड़ी कठिनाइयों से गुज़र रहीं थीं, तो उन्होंने कहा कि वे ऐसा करेंगे तथा आगे कहा कि उनकी दैनिक प्रार्थना है:
जब तक हो अंतरिक्ष स्थित
और जब तक जीवित हों सत्व
तब तक मैं भी बना रहूँ
संसार के दुख दूर करने के लिए।"
अंत में, एक लम्बे दिन की समाप्ति करते हुए परम पावन ने उत्तरी यूरोप के विभिन्न भागों के १५०० तिब्बतियों से बात की। उन्होंने उनके आज वे जहाँ भी हैं वहाँ उनके निरंतर तिब्बती बने रहने की सराहना की तथा उनकी निष्ठा और अटल आस्था के लिए उन्हें धन्यवाद दिया। उन्होंने इस बात पर बल देते हुए कहा कि यह तिब्बत में रह रहे तिब्बतियों का दृढ़ निश्चय है जिसके कारण निर्वासन में रहने वाले अपनी भावना बनाए रख सकते हैं।
उन्होंने तिब्बती बौद्ध संस्कृति, नालंदा परम्परा के श्रमसाध्य अध्ययन के अवसरों को बढ़ाकर निर्वासन में जो प्राप्ति हुई है उसकी समीक्षा की। उन्होंने बल देकर कहा कि मात्र तिब्बतियों ने बुद्ध की शिक्षाओं को संशय, तर्क और कारण के आधार पर बनाए रखा है। इसके अतिरिक्त उन्होंने यह भी कहा कि भोट भाषा वह माध्यम है जिससे बुद्ध देशनाओं को सबसे सटीक रूप से व्यक्त किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त बौद्ध साहित्य में पाया जाने वाली चित्त व भावनाओं के प्रकार्य की विस्तृत व्याख्या आज महत्वपूर्ण रूप से प्रासंगिक हैं। यह, उन्होंने घोषणा की, कुछ ऐसा है जिस पर गौरवान्वित हुआ जा सकता है।
परम पावन ने इस वर्ष के एक अन्य अवसर का स्मरण किया जब वे एक तूफान के दौरान एक छोटे से विमान में गुवाहाटी से डिब्रूगढ़ तक उड़ान भर रहे थे जब वायुमंडल में हलचल के कारण उन्हें अपने जीवन के लिए भय समा गया। उन्होंने श्रोताओं को बताया कि उनकी मुख्य चिंता यह थी कि यदि वे दुर्घटनाग्रस्त हो गए तो जिन छह लाख तिब्बतियों ने उन पर अपनी आशाएँ बना रखी हैं उनका क्या होगा, दर्शकों की ओर से करतल ध्वनि हुई। उन्होंने उन्हें आश्वस्त किया कि उनका स्वास्थ्य अच्छा है और वे १५ - २० वर्ष तक जीवित रह सकते हैं, जिस दौरान तिब्बत में सकारात्मक परिवर्तन हो सकते हैं। उनसे विदा लेने से पूर्व उन्होंने उन्हें खुश तथा सहजता से रहने का आग्रह किया।
कल, परम पावन 'पाश्चात्य विज्ञान और बौद्ध परिप्रेक्ष्य' पर एक सम्मेलन में सम्मिलित होंगे और फ्रैंकफर्ट में नूतन तिब्बत हाउस की यात्रा करेंगे।