थेगछेन छोलिंग, धर्मशाला, हि. प्र., भारत, आज प्रातः मंगल सुत्त, हृदय सूत्र इत्यादि के प्रथागत सस्वर पाठों के समापन के उपरांत परम पावन दलाई लामा ने श्रोताओँ को संबोधित किया।
"समूचे अंतरिक्ष में सभी सत्व सुखी रहना चाहते हैं और उनमें इस पृथ्वी के मानवों के पास भाषा और समझने की क्षमता है - पर इसके बावजूद वे हर तरह के गलत कार्यों में लगे रहते हैं। यहाँ तक कि भयंकर जानवर भी केवल उसी समय दूसरों का शिकार करते हैं जब वे भूखे होते हैं, पर मनुष्य संगठित हिंसा, जो युद्ध है, में शामिल होता है और उसने ऐसा सदियों से किया है।
"जब वर्ष १९३५ में मेरा जन्म हुआ तब से लगातार हिंसापूर्ण संघर्ष हो रहे हैं। परन्तु २०वीं शताब्दी के अंत में लोगों ने युद्ध के बारे में बात करना और विरोध प्रदर्शित करना प्रारंभ किया। उन्होंने यह अनुभव करना प्रारंभ किया कि हिंसा से कोई लाभ नहीं होता। वह तथा द्वितीय विश्व युद्ध के अंत में नष्ट हुए जापान और जर्मनी में विद्वेष का अभाव प्रगति का संकेत है।
"१९६० के दशक में, मैंने सिंगापुर की यात्रा की तथा चीनी भिक्षुओं को 'हृदय सूत्र' का सस्वर पाठ करते सुना। मुझे अपना उदास होने का स्मरण है कि किस तरह चीन में बौद्ध धर्म को नष्ट किया जा रहा है। आज वस्तुस्थिति परिवर्तित हो गई है और अब चीन में ४०० करोड़ बौद्ध इसके बारे में और अधिक जानने के लिए उत्सुक हैं। विश्व के अन्य भागों में भी बहुत से लोग, उनमें वैज्ञानिक भी शामिल हैं, जो बौद्ध धर्म में रुचि ले रहे हैं।
"यद्यपि हमने भौतिक विकास के संबंध में महत्वपूर्ण प्रगति की है, पर आंतरिक शांति चित्त से संबंधित है। मैं आज आप चीनियों को प्रवचन देते हुए भाग्यशाली अनुभव कर रहा हूँ तथा आशा करता हूँ कि आंतरिक रूपांतरण लाते हुए हम सभी विश्व शांति में योगदान दे सकते हैं। चूंकि ताइवान के लोग स्वतंत्र हैं, अतः आप वास्तव में चीनी बौद्ध परंपराओं के पुनरुत्थान में योगदान दे सकते हैं।"
परम पावन ने घोषणा की कि चंद्रकीर्ति के ग्रंथ को जारी रखने से पूर्व वे जे चोंखापा के 'प्रतीत्य समुत्पाद' का एक व्याख्यात्मक संचरण देंगे। उन्होंने कहा कि अपने जीवन के प्रारंभिक भाग में चोंखापा ने जो दृष्टिकोण अभिव्यक्त किया, जो मध्यमक दृष्टिकोण से मेल खाता था, बाद में वह प्रासंगिक मध्यमक से ताल मेल रखते हुए विकसित हुआ। ‘सुभाषित सुवर्ण माला’ में उन्होंने कहा कि यद्यपि वस्तुओं में रत्ती भर तक की स्वभाव सत्ता नहीं है, पर वे सांवृतिक रूप से अस्तित्व रखती हैं। 'मार्ग के तीन प्रमुख आकार' में उन्होंने अपने दृष्टिकोण को निम्नलिखित रूप से स्पष्ट किया:
दृश्य अविसंवाद प्रतीत्य समुत्पादित हैं
शून्य अनभ्युपगम की बोध है
जब तक इन दो को पृथक रूप से देखा जाता है,
तब तक बुद्ध के अभिप्राय को नहीं जाना है।
जब प्रत्येक न रखकर युगपद में
प्रतीत्य समुत्पन्न को अविसंवाद में देखने मात्र से निर्ज्ञान विषय की सभी ग्राहक नष्ट हो जाता है
उस समय दृष्टि का विश्लेषण पूरा होता है।
परम पावन ने उल्लेख किया कि लामा उमापा के मध्यस्थता पर निर्भर होकर चोंखापा को स्वयं गदोंग में मंजुश्री के दर्शन हुए। उन्होंने उन्हें नीली आभा के एक क्षेत्र के अंदर देखा और उनके समक्ष मध्यमक दृष्टि पर प्रश्न रखा। जब उन्होंने स्वयं को उत्तर समझने में असमर्थ पाया तो उन्हें अध्ययन तथा विश्लेषण द्वारा अपने अनुभव को व्यापक बनाने की सलाह दी गई।
परम पावन ने घोषणा की कि प्रतीत्य समुत्पाद महत्वपूर्ण है क्योंकि अज्ञान विकृति का मूल है। जबकि हम सुखी रहना चाहते हैं, हमारे अनियंत्रित चित्त दुखों का स्रोत हैं। क्लेश वस्तुएँ के वास्तविक स्वरूप को न समझने के कारण उत्पन्न होती हैं। प्रेम व करुणा हमारी कुछ नकारात्मक भावनाओं को कम कर सकते हैं, पर हमें स्वभाव सत्ता की ग्राह्यता की भ्रांति को संबोधित करने की आवश्यकता है - प्रतीत्य समुत्पाद की अवधारणा यह करती है।
जे चोंखापा का ग्रंथ पढ़ते समय, परम पावन ने दो छंदों पर ध्यानाकर्षित किया जो वे प्रत्येक दिन स्वयं दोहराते हैं:
प्रतीत्य समुत्पाद को देखते और उस पर बोलते हुए,
वे परम ज्ञाता, परम शास्ता थे
मैं नतमस्तक होता हूँ जिन्होंने जाना और देशना दी
विजेता प्रतीत्य समुत्पाद को।
अंत में उन्होंने टिप्पणी की कि प्रतीत्य समुत्पाद एक वैज्ञानिक दृष्टि से मेल रखता है जिसे हमारे अनुभव द्वारा पुष्ट किया जा सकता है।
चाय के एक अंतराल के उपरांत परम पावन ने 'मध्यमकावतार'का अपना पाठ जारी रखा। अध्याय दो बोधिसत्व की दूसरी भूमि से संबंधित है और शील पारमिता पर केंद्रित है। अध्याय तीन का केन्द्र क्षांति पारमिता है और इसे पढ़ते हुए परम पावन ने बताया कि एक वस्तु जिस पर क्रोधित होने के लिए हमारे पास कारण है, वह क्रोध है। उन्होंने चार और पांच अध्यायों को पूरा किया, जिनमें मात्र कुछ छंद हैं और अध्याय छह का पाठ प्रारंभ किया। उन्होंने टिप्पणी की कि उन्होंने इस अनुरोध पर सहमति जताई थी कि यदि वे इस समय पाठ को पूरा करने में असमर्थ हों, तो वह इसे दूसरे अवसर पर पूरा करेंगे।
दिन का सत्रांत इस घोषणा के साथ हुआ कि कल परम पावन उपासक संवर देंगे, बोधिचित्तोत्पाद हेतु समारोह का नेतृत्व करेंगे और तारा अनुज्ञा प्रदान करेंगे।