नई दिल्ली, भारत - आज प्रातः टाटा सामाजिक विज्ञान संस्थान के निदेशक, प्रो.एस परशुरामन धर्मनिरपेक्ष नैतिकता के प्रशिक्षण कार्यक्रम में हुए विकास की सूचना देने के लिए परम पावन दलाई लामा से मिले। परम पावन की टिप्पणी के उत्तर में कि आधुनिक शिक्षा कई मायनों में अद्भुत है, परन्तु जब आंतरिक मूल्यों या नैतिक सिद्धांतों को जन्म देने की बात आती है तो वह अपर्याप्त है, प्रो. परशुरामन ने ३० घंटे के एक पाठ्यक्रम को रेखांकित किया गया, जो परम पावन के प्रकाशित लेखों से प्रेरित होकर विकसित की गई है । उन्होंने पांच विषयों का उल्लेख किया: १ मेरे सार्वभौमिक मूल्यों के स्रोत; विवेकपूर्ण परिवर्तन; ३ दूसरों के साथ नेतृत्व; ४ जवाबदेही और ५ नैतिक नेतृत्व।
अपनी सराहना व्यक्त करते हुए परम पावन ने टिप्पणी की, कि संभवतः भारत एकमात्र राष्ट्र हो सकता है, जो आधुनिक तकनीकी विकास को प्राचीन भारतीय प्रज्ञा के ज्ञान के साथ जोड़ सकता है।
' द ग्रेट एंड द गुड ' शीर्षक के एक वृत्तचित्र के लिए एक साक्षात्कार में रेणु मेहता ने पूछा कि हम विश्व में किस प्रकार और अधिक सामंजस्य बना सकते हैं। परम पावन ने उन्हें बताया कि हमें दूसरों को 'हम' और 'उन' के संदर्भ में देखने की प्रवृत्ति पर काबू पाने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि जब हम केवल स्वयं की देखभाल करते हैं तो स्वाभाविक रूप से भय और अविश्वास जन्म लेते हैं। रेणु मेहता ने पूछा कि क्या वहाँ ध्यान की कोई भूमिका थी।
"एक पक्ष शमथ अथवा एकाग्र ध्यान है, पर मैं उसे एक शांत करने वाली औषधि के रूप में देखता हूँ क्योंकि अल्पावधि में यह आप को शांत करती है परन्तु एक लम्बी अवधि में आपकी समस्या फिर भी बनी रहती है। यदि आप विश्लेषणात्मक, विपश्यना दृष्टिकोण अपनाएँ और उदाहरण के लिए परीक्षण कर देखें कि क्या क्रोध का कोई लाभ है, तो आप इसे रोक सकते हैं।"
यह पूछे जाने पर कि एक सफल व्यक्ति किस तरह बना जा सकता है, परम पावन ने उत्तर दियाः
"स्वयं और दूसरों के लिए सुख का परम स्रोत करुणा, दूसरों के प्रति चिंता तथा उनकी सेवा करना है।"
मध्याह्न भोजनोपरांत परम पावन गाड़ी से अशोक होटल गए, जहाँ तुषित ध्यान केन्द्र, नई दिल्ली, ने अपने २१वें धर्म उत्सव का आयोजन किया था। आगमन पर ज़ोपा रिनपोछे और तुषित की निदेशिका रेणुका सिंह ने उनकी अगुआनी की और सभागार में उनका अनुरक्षण किया, जो डॉ सिंह ने बताया कि ३५ वर्ष पूर्व प्रथम बार ऐसे धर्म उत्सव का आयोजन स्थल था।
परम पावन को दो पुस्तकों के विमोचन के लिए आमंत्रित किया गया, एक अरुणा वासुदेव द्वारा गुरु पद्मसंभव के बारे में और एक अन्य मोहिनी नून द्वारा नागार्जुन के विषय में। वासुदेव ने बताया कि ये भारतीय पाठकों के लिए छह पुस्तकों की एक श्रृंखला के प्रारंभिक खंड थे। परम पावन नागार्जुन की शिक्षाओं को लेकर प्रशंसा से भरे थेः
"मैं विगत ६० वर्षों से भी अधिक समय से उनकी शिक्षा पर चिन्तन कर रहा हूँ और मैं कह सकता हूँ कि इसका मेरी विनाशकारी भावनाओं को कम करने में प्रभाव पड़ा है।"
प्रवचन के लिए रेणुका सिंह के अनुरोध के उत्तर में परम पावन ने प्रारंभ कियाः
"हम कितने ही अलग ढंग से बैठें अथवा वेश - भूषा में हों, हम सब एक समान हैं। हम सभी में विनाशकारी और सकारात्मक भावनाएँ हैं। कभी हम खुश होते हैं और कभी दुःखी। मानसिक, शारीरिक और भावनात्मक रूप से हम सब समान हैं। आप पिछले ३० वर्षों से वैज्ञानिकों के साथ हो रहे मेरे संवाद से परिचित होंगे। हाल ही में उनमें से कुछ वैज्ञानिक प्रमाण लेकर आए कि आधारभूत मानव प्रकृति करुणाशील है। हम सामाजिक प्राणी भी हैं, तो दूसरों को 'हम' और 'उन' के रूप में देखना गलत है। यह विभाजन और संघर्ष को उकसाता है।
"इस तरह जिन कई समस्याओं का सामना हम करते हैं वे हमारी अपनी निर्मित हैं। उनका समाधान हमें स्वयं ही करना है। उस पीड़ा के अनंतर जिसने २०वीं सदी को चिह्नित किया, हमारा प्रयास इसे न दोहराने का होना चाहिए। धन और सैन्य शक्ति सहायक न होगा। जो हमें करना है वह यह कि इस आधार पर कि हम मनुष्य के रूप में सभी एक समान हैं, एक दूसरे के प्रति स्नेह की अभिव्यक्ति करें। यह कुछ ऐसा है जिसके प्रति पूरे विश्व में जागरूकता लाने हेतु मैं प्रयास करता हूँ।"
परम पावन ने कहा कि उनकी दूसरी प्रतिबद्धता, एक बौद्ध भिक्षु के रूप में, अंतर्धार्मिक सद्भाव की थी। उन्होंने खेद व्यक्त किया कि आज वे परम्पराएँ, जो सहिष्णुता और क्षमा का स्रोत होने के उद्देश्य रखती थीं, संघर्ष और हत्या का आधार बन गई हैं। उन्होंने भारत में जिस तरह से स्वदेशी और आयातित धार्मिक परम्पराएँ, सदियों से कंधे से कंधा मिलाकर रही हैं, पर प्रकाश डाला। उन्होंने उल्लेख किया कि जिस प्रकार बुद्ध ने अपने श्रोताओं की रुचि, उनकी क्षमता और जिन परिस्थितियों में वे रहते थे उनके अनुसार विभिन्न रूप से शिक्षा दी, उसी प्रकार विभिन्न समयों पर कई अन्य धार्मिक परम्पराएँ अस्तित्व में आई हैं।
यह समझाते हुए कि यद्यपि २०११ से वे राजनीतिक उत्तरदायित्व से संन्यास ले चुके हैं, पर एक तिब्बती के रूप में परम पावन तिब्बत के प्राकृतिक पर्यावरण के संरक्षण और तिब्बती भाषा और संस्कृति के संरक्षण के लिए प्रतिबद्ध हैं। इस संस्कृति का मूल नालंदा परम्परा का बौद्ध धर्म है जिसमें श्रमसाध्य अध्ययन और अभ्यास की आवश्यकता होती है। इस संबंध में उन्होंने टिप्पणी की, कि कल वह दक्षिण भारत के लिए रवाना होंगे। जब वे वहाँ होंगे तो वे भिक्षुणियों के प्रथम समूह, जिन्होंने अपना बौद्ध अध्ययन पूर्ण कर लिया है, को गेशे-मा की उपाधि प्रदान करेंगे, जो कि एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है।
परम पावन ने विज्ञान, दर्शन और धर्म के संदर्भ में कांग्यूर और तेंग्यूर की सामग्री के पुनर्मूल्यांकन की भी चर्चा की। एक ओर चित्त का विज्ञान तथा दर्शन का अध्ययन बिना किसी धार्मिक प्रतिबद्धता के कोई भी कर सकता है, जिसका एक शैक्षणिक दृष्टिकोण हो। दूसरी तरफ अन्य बौद्ध देशों के कई लोग अब तिब्बती बौद्ध धर्म को प्रामाणिक नालंदा परम्परा के रूप में स्वीकार करते हैं और इसके बारे में अधिक सीखने पर रुचि दिखाते हैं।
श्रोताओं के प्रश्नों के उत्तर देते हुए परम पावन ने एक मित्र का स्मरण किया जिसने उन्हें बताया कि जहाँ वे वैज्ञानिक रुझान वाले प्रतीत होते हैं, वे हैरान हैं कि परम पावन जाहिर तौर पर भविष्यवाणी कर्ता के समारोह में विश्वास रखते हैं। परम पावन की प्रतिक्रिया थी कि जिन्हें हम देख तथा स्पर्श कर सकते हैं उनके अतिरिक्त कई तरह के सत्वों के अस्तित्व के संकेत हैं। पूछे जाने पर कि बच्चों को क्या अधिक करुणाशील बना सकता है, उन्होंने कहा, "शिक्षा"।
अंत में, कोई जानना चाहता था कि क्या कभी परम पावन कभी एक साधारण जीवन जीने की इच्छा रखते थे। उन्होंने याद करते हुए कहा कि जब वह काफी छोटे थे तो रीजेंट की उपस्थिति में पोताला में एकांत वास कर रहे थे। दिनांत पर रीजेंट सो जाते थे और परम पावन को पोताला के नीचे जोर से गा रहे लड़के और लड़कियों की आवाज़ सुनाई देती, जो अपने जानवरों को चराने के बाद उन्हें घर की ओर लौटा कर ले जा रहे होते थे। उन्होंने कहा कि क्षण भर के लिए उनकी इच्छा होती कि वे उनके जैसे होते। परन्तु, उन्होंने कहा कि उन्होंने समझा कि वह जिस पद पर हैं उसमें धर्म और सत्वों के कल्याण की महान क्षमता है।
जैसे ही परम पावन का व्याख्यान समाप्त हुआ, ज़ोपा रिनपोछे ने धन्यवाद के एक विस्तृत, भावनात्मक आभार व्यक्त किया जिसके बाद परम पावन शीघ्र ही राष्ट्रपति भवन के लिए रवाना हुए। वहाँ वे पुनः विजेताओं और नेताओं के साथ भारत के माननीय राष्ट्रपति, प्रणब मुखर्जी द्वारा १०० लाख के लिए १०० लाख अभियान के लिए हरी झंडी दिखाने के अवसर पर सम्मिलित हुए।
सम्पूर्ण भारत और भारत के बाहर से ५००० स्कूली बच्चे राष्ट्रपति भवन के प्रांगण में एकत्रित हुए थे। भवन के अंदर मुख्य आंगन में कैलाश सत्यार्थी ने बताया कि आज राष्ट्रपति की ८१वीं वर्षगांठ थी। तत्पश्चात उन्होंने शुरू होने वाले अभियान का एक भावुक परिचय दिया। उन्होंने घोषित किया कि जहाँ विश्व के १०० लाख बच्चे अभी भी पीड़ित हैं और शिक्षा से वंचित हैं परन्तु परिवर्तन बच्चों के पास है। उन्होंने समझाया कि उन्होंने एक ऐसे आंदोलन की परिकल्पना की है जिसमें १०० लाख सुविधा प्राप्त बच्चे १०० लाख त्यक्त बच्चों के समर्थन और सहायता करने के लिए स्वयं को प्रतिबद्ध करेंगे।
उन्होंने कहा, "हम एक ऐसा विश्व चाहते हैं जिसमें हम सब धन और शक्ति, का साझा करते हों।"
परम पावन और नोबेल पुरस्कार विजेता तवाकुल करमान और लेमाह बोवी, साथ ही पूर्व ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री जूलिया गिलार्ड और पनामा लोरेना कैस्टिलो की प्रथम महिला और अन्य नेताओं की उपस्थिति में भारत के राष्ट्रपति ने समर्थन व्यक्त किया। उन्होंने अभियान का प्रारंभिक स्थल राष्ट्रपति भवन, वह स्थान जो भारतीय गणराज्य के लोकतंत्र, बहुलवाद और धर्मनिरपेक्षता का प्रतीक के महत्व की ओर ध्यान आकर्षित किया। उन्होंने कहा:
"हमारे द्वारा विकास किए जाने के बावजूद १०० लाख बच्चे स्कूल में नहीं हैं। मानवता को देखना है कि जब तक हमारे बच्चे सकुशल और सुरक्षित न हों, जब तक कि वे मानवता के कल्याण हेतु कर्ता बनने का अवसर नहीं पाते तब तक कोई विकास नहीं हो सकता। हर बच्चा दरिद्रता, भय और शोषण से मुक्त हो। जय हिन्द।"
जब कैलाश सत्यार्थी प्रांगण में नीचे आए तो एकत्रित बच्चों ने उत्साह पूर्वक हर्ष प्रकट किया। परम पावन का भी उत्साह पूर्वक अभिनन्दन किया गया जब वे कैलाश सत्यार्थी के साथ शामिल हुए। जब राष्ट्रपति, पुरस्कार विजेता और नेताओं के साथ प्रांगण में मंच पर आए तो बच्चों ने "जन्मदिन मुबारक हो" गीत गाया। अभियान को हरी झंडी दिखाने में उनके साथ कई हाथ जुड़े और '१०० लाख के १०० लाख' - और - 'बच्चों के लिए अपना योगदान दो' का संदेश लिए गुब्बारे छोड़े गए जो आकाश में तैरने लगे। वातावरण आनंदोल्लासित हो गया।
कल परम पावन दक्षिण भारत के लिए दिल्ली से रवाना होंगे और मैसूर उनका प्रथम पड़ाव होगा।