नई दिल्ली, भारत - पौ फटने पर दिल्ली में घना कोहरा छाया हुआ था, जो सूर्य के क्रमशः नभ में उठने पर शनैः शनैः छट गया। जब परम पावन दलाई लामा भारत के राष्ट्रपति के आवासीय परिसर के अंदर राष्ट्रपति भवन सांस्कृतिक केन्द्र पहुँचे तो दिन उज्ज्वल दिखाई दे रहा था। उन्हें कैलाश सत्यार्थी बाल फाउंडेशन द्वारा आयोजित बच्चों के शिखर सम्मेलन के लिए पुरस्कार विजेता और नेता के उद्घाटन सत्र में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया गया था। जब भारत के राष्ट्रपति माननीय श्री प्रणब मुखर्जी का आगमन हुआ तो बच्चों के लिए करुणा के भूमंडलीकरण के उद्देश्य के साथ शिखर सम्मेलन का प्रारंभ हुआ ।
अपनी प्रारंभिक टिप्पणी में कैलाश सत्यार्थी, जिन्हें २०१४ में उनके बच्चों को मुक्त करने और उनके उत्थान के लिए कार्य हेतु नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया थे, ने कहा कि भारत में इस तरह के प्रथम शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए आए लोगों का स्वागत करते हुए वे अत्यंत विनम्रता और गौरव का अनुभव करते हैं।
"इससे पहले विश्व में कभी भी इतने संघर्ष नहीं हुए हैं," उन्होंने कहा। "लाखों बच्चे बंधक बनाए जाते है, उन्हें बेचा जाता है और शिक्षा से वंचित किया जाता है - यह अस्वीकार्य है। हमें ऐसे संकल्पों की आवश्यकता है जो नवीन और समावेशी हों। जब मैंने ओस्लो में बच्चों के दासत्व की कहानियाँ बताईं तो कइयों को विश्वास करने में कठिनाई हुई।
"इस शिखर सम्मेलन में पुरस्कार विजेताओं और नेताओं को एकत्रित कर हम एक साथ सबसे अधिक हाशिए पर स्थित बच्चों के पक्ष में लहरें ले जाएँगे। बहनों और भाइयों, बच्चे परिवर्तन की आवाज हैं और हमें उन्हें सुनना चाहिए।"
अध्यक्षीय भाषण देने के लिए आमंत्रित किए जाने पर भारत के राष्ट्रपति, श्री प्रणब मुखर्जी ने इस देश में फलती फूलती विविधता की ओर संकेत किया। उन्होंने यह भी टिप्पणी की कि एक प्रथा हो गई है कि नोबेल शांति पुरस्कार १० दिसंबर, जो १९४८ के बाद से मानव अधिकार दिवस है, को प्रदान किया जाए।
"बच्चों को केंद्र स्थान लेना होगा", उन्होंने घोषित किया। "हमें असमानता पर काबू पाना होगा जो बच्चों को सुविधाओं से वंचित कर देते हैं। हमें उनके विकास और सुरक्षा के लिए एक प्रतिबद्धता लेनी होगी। हमें शिक्षा द्वारा इस घाटे की पूर्ति और शिक्षा के माध्यम से समान अवसर देना होगा। चलिए हम इस ग्रह को अपने बच्चों के लिए एक बेहतर आवास बनाते हैं।"
जब उनके संबोधन का अवसर आया तो परम पावन ने राष्ट्रपति और उनके सह सम्मानित अतिथियों का अभिनन्दन किया, पर जो एकत्रित थे उन्हें भाइयों और बहनों के रूप में संबोधित किया जैसा वे साधारणतया करते हैं, और कहाः
"मैं वास्तव में विश्वास करता हूँ कि हमारे राष्ट्र, विश्वास अथवा पद के बावजूद हम सब मनुष्य रूप में एक समान हैं। हम सब एक ही तरह से पैदा होते हैं, हम सब एक ही तरह से चले जाएँगे। हमारी कई समस्याएँ, जिनका हम सामना करते हैं, हमारी अपनी निर्मिति है। पर चूँकि हमने उन्हें जन्म दिया है तो उनका समाधान भी हमारी शक्ति और उत्तरदायित्व में निहित है। ऐसा करने हेतु साथ आने के लिए हमें एक मानव परिवार से संबंधित होने के कारण दूसरों की चिंता में निहित करुणा की आवश्यकता है।
"चूंकि २०वीं शताब्दी हिंसा का युग था, हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि २१वीं सदी को शांति का युग हो। पर हम यह किस तरह ला सकते हैं? प्रार्थना के माध्यम से? मैं एक बौद्ध भिक्षु हूँ, मैं प्रार्थना करता हूँ। पर जब विश्व के परिवर्तन की बात आती है तो मैं इसे लेकर आशंकित हूँ कि क्या हम मात्र प्रार्थना द्वारा ऐसा कर पाएँगे। विश्व में शांति, लोगों को प्राप्त आंतरिक चित्त की शांति से आती है। क्रोध हमारे जीवन का अंग हो सकता है, पर यदि हम विश्लेषण कर, इसमें क्या मूल्य है देखें, तो हम पाएँगे कि यह हमारे चित्त की शांति को विचलित करता है और लगभग सदैव नकारात्मक परिणामों की ओर ले जाता है।
"वैज्ञानिक कहते हैं कि निरंतर क्रोध, भय और घृणा हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली को समाप्त करती है, तो यदि हम अच्छे स्वास्थ्य की आशा कर रहे हैं तो हमें चित्त की शांति विकसित करनी होगी। शिक्षा एक सहायक तत्व है, परन्तु हमारी वर्तमान शिक्षा व्यवस्था केवल भौतिकवादी लक्ष्यों की ओर जाती है। जो इसके माध्यम से शिक्षित हुए हैं उनका दृष्टिकोण भौतिकवादी और उनकी संस्कृति भौतिकवादी है जिसमें आंतरिक मूल्यों के लिए बहुत कम सम्मान है। संकटों का स्रोत स्वयं अपने अंदर है - हमारे क्लेश। हमें उनसे निपटना सीखना होगा।
"मेरे जैसे यहाँ राष्ट्रपति और कैलाश सत्यार्थी २०वीं सदी के हैं, एक समय जो जा चुका है। आप में से जो २१वीं सदी के हैं, जो अब ३०, २० या १५ वर्ष की आयु के हैं वे हमारी आशा के स्रोत हैं। यदि आप प्रयास करें तो शताब्दी के उत्तरार्ध में विश्व एक सुखी, अधिक शांतिपूर्ण स्थान हो सकता है।"
परम पावन ने चित्त की शांति का विषय जारी रखा, जिसका स्रोत उन्होंने कहा कि सौहार्दता थी। उन्होंने आगे कहा कि यदि हमारे हृदयों में सौहार्दता हो तो हम जिस से भी मिलेंगे, वह एक बहन या भाई की तरह होगा। बच्चे इस तरह होते हैं: सहज प्रकृति, एक दूसरे को स्वीकार करते और एक-दूसरे को साथ लेकर चलते हुए। पर जब वे बड़े होते हैं कि वे दूसरों को 'हम' और 'उन' के संदर्भ में देखना प्रारंभ करते हैं।
पूर्व ओलंपिक तैराक, मोनाको की राजकुमारी शार्लेन ने डूबने से रोकने का अभियान चलाया है, जो अन्यथा कई बच्चों की जान लेता है। रोडेशिया में जन्मी पर बाद में दक्षिण अफ्रीका में बड़े हुईं, उन्होंने नेल्सन मंडेला को उद्धृत किया जिन्होंने कहा था, "अपने बच्चों को हिंसा और भय से मुक्त एक जीवन देना हमारा उत्तरदायित्व है।"
जॉर्डन के राजकुमार अली बिन अल हुसैन ने शिखर सम्मेलन के आयोजन पर कैलाश सत्यार्थी को बधाई दी। उन्होंने पूछा कि आज क्यों हम इतने शरणार्थी बच्चों को लौटा रहे हैं और सलाह दी,
"यह अपने बच्चों के प्रति हमारा उत्तरदायित्व है कि हम अधिक, बेहतर और शीघ्रता से करें।"
नीदरलैंड की राजकुमारी लांरेंनशियन ने कहा जिस तरह भी हो बच्चों की रक्षा करना हमारा कर्तव्य है। उन्होंने उल्लेख किया कि मौजूदा संधियों के अनुसार बच्चों के विशेष रूप से ५४ अधिकार हैं।
उन्होंने कहा, "क्षमा चाहती हूँ, पर धनी और शक्तिशाली इस तरह के आराम में हैं कि वे किसी भी कार्य को लेकर अत्यावश्यकता के भाव का अनुभव नहीं करते।"
तिमोर-लेस्ते के पूर्व राष्ट्रपति, जोस रामोस होर्ता ने कहा कि बाल श्रम और गुलामी हम सभी के लिए कलंक है। परन्तु, उन्होंने कहा कि कुछ राष्ट्र इस व्यवस्था के परिवर्तन के लिए अत्यंत निर्धन हैं।
अंत में, सम्मेलन के एक बाल प्रतिनिधि, बचपन बचाओ आंदोलन द्वारा बचाए गए १६ वर्षीय इम्तियाज अली, एक पूर्व बाल मज़दूर ने कहा,
"हमें हर बच्चे के मुक्त होने और स्कूल जा सकने के लिए रास्ते ढूँढने की आवश्यकता है। हम बच्चों के प्रश्न हैं। मैं उन्हें आप तक लाता हूँ। हमें और कितनी लम्बी प्रतीक्षा करनी होगी?"
वहाँ एकत्रित लोग गोलमेज चर्चाओं के लिए समूहों में बैठ गए। जिस संवाद में परम पावन ने भाग लिया वह व्यापार में करुणा पर केंद्रित था। उन्होंने सुझाया कि कई व्यवसाय एक अच्छी प्रेरणा के साथ शुरु होते हैं, परन्तु क्रमशः वह टूट जाता है। उन्होंने दोहराया है कि सरल सौहार्दता मानवता की सेवा का एक आधार है। "यदि आपमें सौहार्दता हो तो आप अपनी मानव बुद्धि का उपयोग उचित, सकारात्मक रूप से करने में सक्षम हो सकेंगे।"
भवन के पीछे मध्याह्न के एक शानदार भोज के लिए सत्र के बीच अंतराल हुआ। विश्व के विभिन्न भागों से कई प्रतिनिधियों ने इस अवसर पर परम पावन से स्व परिचय कराया और उनके साथ सेल्फी ली। जब भोजन समाप्त हो गया तो परम पावन अपने होटल लौट आए।