नई दिल्ली, भारत - परम पावन दलाई लामा ने कल मध्याह्न में धर्मशाला से दिल्ली के लिए उड़ान भरी। आज प्रातः उनका कार्यक्रम सीबीएस के लिए एक साक्षात्कार और कैलाश सत्यार्थी बच्चों के फाउंडेशन के संस्थापक और २०१४ के नोबेल शांति पुरस्कार के सह विजेता कैलाश सत्यार्थी के साथ फेसबुक सीधी बातचीत से प्रारंभ हुआ।
सत्यार्थी के बच्चों के अधिकारों की रक्षा करने के कार्य के विषय में पूछे जाने पर परम पावन ने कहा कि यह बहुत अच्छा है तथा आगे कहा कि बच्चे एक बेहतर भविष्य के लिए हमारी आशा के आधार हैं।
"सम्प्रति विश्व में हम हिंसा, भ्रष्टाचार, निर्धनता और मासूम बच्चों को भूख से मरता देख रहे हैं। २०वीं सदी में हमने अपने आंतरिक मूल्यों की ओर बहुत कम ध्यान दिया और बल प्रयोग द्वारा समस्याओं के समाधान का प्रयास का चयन किया। यदि २१वीं सदी को अलग होना है तो, जो आज बच्चे हैं उन्हें एक और अधिक शांतिपूर्ण, करुणाशील विश्व बनाने का प्रयास करना चाहिए।" सत्यार्थी से बात करते हुए उन्होंने कहा, "मैं वास्तव में आपके प्रयासों की सराहना करता हूँ।"
परम पावन ने आगे कहा कि समस्याओं का एक प्रमुख स्रोत यह है कि चूँकि समकालीन शिक्षा भौतिकवादी लक्ष्यों को लेकर है, आंतरिक मूल्यों की भावना को बहाल करने की आवश्यकता है। उन्होंने उल्लेख किया कि वह वैज्ञानिक प्रमाण, कि आधारभूत मानव प्रकृति करुणाशील है, को आशा का एक वास्तविक स्रोत मानते हैं। यदि आधारभूत प्रकृति क्रोध होती तो ऐसा न होता। जब सत्यार्थी ने क्रोध की एक सकारात्मक भूमिका का सुझाव दिया तो उन्होंने प्रश्न भरी दृष्टि से देखा, परन्तु माना जब सत्यार्थी ने स्पष्ट किया कि उनका तात्पर्य ऐसे क्रोध से था जो 'न्याय के लिए एक आवेग' हो, जिसे परम पावन ने स्वीकार किया कि वह करुणा से प्रेरित हो। वे आगे भी सत्यार्थी के इस दावे से सहमत हुए:
"हमें बच्चों की गुलामी का विरोध करना चाहिए। हर बच्चे को एक बच्चे होने की स्वतंत्रता मिलनी चाहिए, बड़े होने की स्वतंत्रता।"
अपना फेसबुक लाइव संवाद प्रारंभ करते हुए कैलाश सत्यार्थी ने प्रेरणा की भावना का स्मरण किया जब वे पहली बार १९९० में बर्लिन में परम पावन से मिले थे। जब उन्होंने पूछा कि क्या परम पावन किसी इस तरह की प्रेरणा स्रोत का स्मरण करते हैं, तो उनका उत्तर था कि बुद्ध ने कहा था: "आप स्वयं अपने स्वामी हैं, अपने चित्त को प्रशिक्षित करो, अपनी भावनाओं से निपटो; दूसरों के आशीर्वाद पर निर्भर मत रहो।"
सत्यार्थी ने बताया कि एक छोटे स्कूल जाते बालक के रूप में उन्होंने अपनी ही उम्र के एक और लड़के को अपने पिता के साथ देखा, जो एक मोची था। उन्होंने पूछा कि वह लड़का भी स्कूल क्यों नहीं जा सकता और पिता ने उत्तर देते हुए कहा "हम काम करने के लिए पैदा हुए थे।" अपनी बारी में परम पावन ने सोवेटो में एक काले अफ्रीकी परिवार से मिलने और रंगभेद की समाप्ति के साथ जो नए अवसर उन्होंने प्राप्त किए थे, उस पर उन्हें बधाई दी। उन्हें धक्का सा लगा जब परिवार के एक सदस्य ने उन्हें बताया "हम गोरों के साथ प्रतिस्पर्धा नहीं कर सकते क्योंकि हमारे दिमाग निकृष्ट हैं।" परम पावन ने प्रतिवाद करते हुए कहा यह बिलकुल सच नहीं था, कि कोई भी विशेषज्ञ इस तरह के दृष्टिकोण का समर्थन न करेगा, पर वास्तव में जिसे स्वीकार किया जाता है, वह है आत्मविश्वास से प्रयास करना।
परम पावन की अंतिम टिप्पणी परिवर्तन लाने में गैर सरकारी संगठनों की भूमिका और व्यक्तियों को उनकी अच्छी कामनाओं पर कार्य करने की आवश्यकता से संबंधित थी, जैसा कैलाश सत्यार्थी ने किया है।
परम पावन अम्बेडकर विश्वविद्यालय के ५वें वार्षिक दीक्षांत समारोह में मुख्य अतिथि थे। परम पावन का पुरानी दिल्ली में स्थित परिसर में कुलपति श्याम मेनन द्वारा स्वागत किया गया, जहाँ वे दीक्षांत समारोह शोभा यात्रा में सम्मिलित हुए।
कार्यक्रम के अपने परिचय में कुलपति ने उल्लेख किया है कि विश्वविद्यालय विगत ८ वर्षों से कार्यरत था। इस ५वें दीक्षांत में ५४९ छात्र स्नातक होंगे जिनमें प्रथम पीएचडी भी शामिल हैं। उन्होंने यह भी टिप्पणी की, कि इस साल के स्नातकों में ६६% महिलाएँ थीं। प्राप्तकर्ताओं को उनसे संबंधित डिप्लोमा और स्नातक पत्र प्रदान किए गए।
कुलाधिपति नजीब जंग, जो दिल्ली के उप राज्यपाल भी हैं, ने विश्वविद्यालय के क्रमिक विकास की प्रशंसा की। मुख्य अतिथि के रूप में परम पावन का स्वागत करते हुए उन्होंने स्मरण किया, जो परम पावन ने अपने नोबेल शांति पुरस्कार स्वीकृति भाषण में कहा था, जब उन्होंने अहिंसक परिवर्तन के लिए आंदोलन के नेता के रूप में महात्मा गांधी को एक संरक्षक के रूप में स्वीकार किया। परम पावन ने यह भी कहा था कि अज्ञान, दुख का स्रोत है जबकि सुख एक दूसरे के साथ हमारे भाईचारे और भगिनीचारे की सराहना में पाया जा सकता है। जंग ने टिप्पणी की, कि अम्बेडकर विश्वविद्यालय में सार्वभौमिक उत्तरदायित्व की भावना एक प्रबल प्रभाव था।
अपने संबोधन में परम पावन ने सभी स्नातकों को बधाई दी और उनसे विनोद पूर्वक कहा कि यदि वे किंचित भी उनके समान हों तो उन्हें अपने अध्ययन के अंत में परीक्षा में सफलता के लिए बहुत परिश्रम करना होगा। उन्होंने शिक्षा के लिए मानव मस्तिष्क के विशेष उत्तरदायित्व का संदर्भ दिया। परन्तु यह देखते हुए कि सरल सौहार्दता सुख का एक स्पष्ट स्रोत है, उन्होंने चित्त और भावनाओं के कार्य के प्रति और अधिक ध्यान देने की सिफारिश की।
"इस संबंध में प्राचीन भारतीय ज्ञान बहुत कुछ कहता है। आधुनिक भारतीय अपने विरासत के इस पक्ष की उपेक्षा करते हैं, पर हम तिब्बतियों ने १००० से अधिक वर्षों से इसे जीवंत रखा है। यदि इसके प्रति आपमें रुचि नहीं है तो भूल जाइए, पर यदि आप इसे रुचिकर पाते हैं तो सोच कर देंखें कि आप इसे किस तरह कार्यान्वित कर सकते हैं।
"यदि आप ईमानदार, सच्चा और पारदर्शी हों तो आप एक अच्छे मानव होंगे और समाज में सकारात्मक योगदान करने में सक्षम होंगे। आशावादी होने के ये अच्छे आधार हैं --- धन्यवाद।"
मध्याह्न भोजनोपरांत जब सूर्य धुंधली हवा छनता हुआ चमक रहा था, परम पावन को तिब्बत हाउस, नई दिल्ली की ५०वीं वर्षगांठ और तिब्बती चिकित्सा एवं ज्योतिष संस्थान के स्थापना के १०० वर्ष के समारोह हेतु त्यागराज स्टेडियम में आमंत्रित किया गया था। ग्यूमे तांत्रिक महाविद्यालय के भिक्षुओं ने कार्यक्रम का शुभारंम्भ करने के लिए मंगल छन्दों का सस्वर पाठ किया। बुद्ध की प्रतिछवियों के उपहार परम पावन और उनके सह अतिथियों, दिल्ली के उपराज्यपाल नजीब जंग, गृह राज्य मंत्री किरण रिजुजू, केन्द्रीय तिब्बती प्रशासन के धर्म और संस्कृति मंत्री कर्मा गेलेग युथोग और इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र की पूर्व निदेशिका, डॉ कपिला वात्स्यायन को दिए गए।
असमिया बरुआ समुदाय के सदस्यों द्वारा बुद्ध, धर्म और संघ में शरण लेने के बारे में गीत प्रस्तुत किया गया, तिब्बती चिकित्सा एवं ज्योतिष संस्थान के सदस्यों ने तिब्बत के तीन प्रमुख क्षेत्रों से लिए गए नृत्यों का प्रदर्शन किया।
अपनी परिचयात्मक टिप्पणी में तिब्बत हाउस के निदेशक, गेशे दोर्जे डमदुल ने विगत नालंदा परम्परा, जो तिब्बती बौद्ध धर्म को सूचित करती है, के प्रति श्रद्धा भाव व्यक्त किया। उन्होंने यह कामना अभिव्यक्त की, कि परम पावन दीर्घायु हों और उनके स्वप्न साकार हों। तिब्बती चिकित्सा एवं ज्योतिष संस्थान के निदेशक, टाशी छेरिंग फुरी ने संस्था के मूल वाक्य 'स्वस्थ शरीर, स्वस्थ चित्त' की बात की। डॉ ललित कुमार ने तिब्बत हाउस द्वारा प्रारंभ किए गए नालंदा बौद्ध दर्शन पर स्नातोकोत्तर पाठ्यक्रम की सराहना की, जो कि अंग्रेजी में अपनी सुविधानुसार नालंदा परम्परा के अध्ययन करने का एक अवसर है। गेशे दोर्जे डमदुल ने परम पावन को पाठ्यक्रम सामग्री का सारांश प्रस्तुत किया।
डॉ नजीब जंग ने विश्व में एक नैतिक शक्ति के रूप में भारत की बात की और उपस्थित सभी से परम पावन के प्रेम, करुणा और समग्रता के संदेश को सुनने की सिफारिश की। किरण रिजुजू ने भी आशा जताई कि परम पावन की सलाह भविष्य की पीढ़ियों के लिए उचित मार्गदर्शन होगी। तत्पश्चात एंटोनेला माथुर ने परम पावन को संबोधन करने के लिए आमंत्रित किया।
"आदरणीय भाइयों और बहनों और छोटे भाइयों और बहनों," परम पावन ने प्रारंभ किया, "मैं आपके उत्साह और ऊर्जा की सराहना करता हूँ, जिसकी हमें आवश्यकता है यदि हम विश्व को परिवर्तित करना चाहते हैं। मैं इस अवसर के आयोजन के लिए तिब्बत हाउस और तिब्बती चिकित्सा एवं ज्योतिष संस्थान को धन्यवाद देना चाहता हूँ।"
उन्होंने तिब्बतियों के जीवन में, जब से वे निर्वासन में आए थे, शिक्षा की प्रमुख भूमिका की चर्चा की। उन्होंने अपने श्रोताओं से कहा कि वे बुद्ध को एक प्राचीन भारतीय वैज्ञानिक के रूप में देखते हैं और कहा कि वे स्वयं को आधे बौद्ध भिक्षु, आधे वैज्ञानिक के रूप में मानते हैं।
"मात्र ऐन्द्रिक संतुष्टि चित्त को सहजता प्रदान नहीं करती। ऐसा करने हेतु चित्त के साथ सीधे संलग्न होने की आवश्यकता है। इसी कारण प्राचीन भारतीय सोच में वर्णित चित्त तथा भावनाओं के कामकाज की समझ अत्यंत आवश्यक है। यदि हमें सही अर्थों में स्वस्थ होना है तो जिस तरह हमें शारीरिक स्वच्छता की आवश्यकता है, उसी प्रकार हमें भावनात्मक स्वच्छता की भी जरूरत है।"
परम पावन ने विज्ञान, दर्शन और धर्म के संदर्भ में कांग्यूर और तेंग्यूर के ३०० खंडों की सामग्री के एक पुनर्मूल्यांकन की बात की। उन्होंने कहा कि एक शैक्षणिक दृष्टिकोण से अध्ययन करने के लिए एक बौद्ध अथवा धार्मिक चित्त का होने की आवश्यकता नहीं थी। उन्होंने परमाणु भौतिक विज्ञानी राजा रामण्णा द्वारा नागार्जुन के विचारों की सराहना करने को उद्धृत किया जिनके अनुसार नागार्जुन के विचार क्वांटम भौतिकी में व्यक्त विचारों का पूर्व रूप थे। इसी तरह उन्होंने कहा, कि संज्ञानात्मक चिकित्सक हारून बेक का आकलन कि क्रोध और लगाव की भावनाएँ ९०% मानसिक प्रक्षेपण हैं, नागार्जुन द्वारा दी गई सलाह के अनुरूप हैं। उन्होंने जोर देकर कहा कि 'नालंदा प्रोफेसरों' के जो विचार थे उनमें से अधिकांश की प्रासंगिकता आज बनी हुई है।
श्रोताओं के प्रश्नों के उत्तर देते हुए परम पावन ने हिंसक और अहिंसक कार्रवाई के बीच के सीमांकन को प्रेरणा में निहित रूप में स्पष्ट किया। उन्होंने चित्त प्रशिक्षण में देने और लेने तथा परात्मसम परिवर्तन की महत्वपूर्ण भूमिका पर भी बात की।
धन्यवाद ज्ञापन, अपने सह अतिथियों को ‘खतग’ की प्रस्तुति और तिब्बत हाउस के नूतन स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के सदस्यों के साथ एक तस्वीर के लिए पोज़ करने के उपरांत परम पावन अपने होटल लौट आए।