स्ट्रासबर्ग, फ्रांस, १६ सितंबर २०१६ - आज प्रातः जब परम पावन दलाई लामा आधुनिक विज्ञान, संलग्नता और ध्यान के इंटरफेस में वैज्ञानिक समुदाय के साथ संवाद में भाग लेने के लिए शहर के दूसरे छोर पर स्थित स्ट्रासबर्ग विश्वविद्यालय के लिए गाड़ी से रवाना हुए तो नभ मेघाच्छन्न था। धर्मशास्त्री मिशेल डेनेकेन, जिनकी कल ही विश्वविद्यालय के नए अध्यक्ष के रूप में पदोन्नति हुई थी, मेडिकल स्कूल के डीन जीन सिबीलिया तथा रूमटालजिस्ट जीन गेरार्ड ब्लोक ने उनका स्वागत किया। उन्होंने सीधे एक छोटे सभागार के अंदर उनका अनुरक्षण किया, जहाँ १४० कर्मचारी एकत्र हुए थे, यद्यपि इमारत में कहीं और अन्य १३०० छात्र और कर्मचारी सीधे वेब प्रसारण के माध्यम से देख रहे थे।
मिशेल डेनेकेन ने परम पावन से यह पूछते हुए कि उन्हें किस तरह संबोधित किया जाए, कार्यक्रम की प्रक्रिया प्रारंभ की और यह टिप्पणी की कि परम पावन ने हाल ही में एक साक्षात्कारकर्ता से कहा था कि यदि भाई कहकर संबोधित किया जाए तो उन्हें खुशी होगी। परम पावन ने कहा कि उन्हें बहुत अच्छा लगेगा। डेनेकेन ने विश्वविद्यालय का परिचय देते हुए उसे यूरोप के महान विश्वविद्यालयों में से एक बताया, जो राइन के दोनों किनारों पर स्थापित है, कैथोलिक और प्रोटेस्टेंट, फ्रेंच और जर्मन और जो अपने खुलेपन के लिए जाना जाता है। उन्होंने यह कहते हुए समाप्त किया कि वह परम पावन की उपस्थिति से कितने खुश थे।
न्यूरोसाइंसस के प्रथम सत्र में सजग ध्यान द्वारा ध्यान और भावनाओं के नियमन की जाँच की गई, जिसका संचालन मिशेल डे मेथलिन ने किया। प्रतिष्ठित न्यूरोसाइंटिस्ट वुल्फ सिंगर, जो भौतिकता और आध्यात्मिकता के पारस्परिक संबंध में रुचि रखते हैं कि ध्यान किस तरह मानसिक अधःस्तर पर कार्य करता है और किस तरह अंतर्दृष्टि मस्तिष्क को प्रभावित करती है। परम पावन ने उत्तर देते हुए भारत में ३ - ४००० वर्षों से आए शमथ ध्यान का स्मरण किया, जिसमें चित्त एक वस्तु पर एकाग्र होता है। तत्पश्चात विपश्यना का जन्म हुआ, जो अधिक परीक्षणात्मक थी। एकाग्रता तथा विश्लेषण के माध्यम से ये अभ्यास चित्त के प्रकार्यों को समझने का आधार बन गए।
उन्होंने संवेदी चेतना का उल्लेख किया, जो मस्तिष्क और मानसिक चेतना से बहुत अधिक संबंधित हैं।
"साधारण मानसिक चेतना काफी स्थूल है," उन्होंने समझाया, परन्तु निद्रावस्था के दौरान, जब इंद्रियाँ सुप्त होती हैं तो चेतना और अधिक सूक्ष्म होती है। जब कोई स्वप्नावस्था नहीं होती तो वह और भी अधिक सूक्ष्म होती है और जब हम बेहोश होते हैं तो और अधिक सूक्ष्म। मेरे मित्र रिची डेविडसन अब सूक्ष्मतम चेतना, जो मृत्यु के समय प्रकट होती है का, परीक्षण कर रहे हैं। ऐसे मामले हैं और १९५९ से संभवतः ४० मामले हैं, जब हृदय गति रुक गई है, मस्तिष्क की मृत्यु हो गई है, पर शरीर ताजा बना हुआ है। मेरे अपने शिक्षक नैदानिक मृत्यु के बाद १३ दिनों तक इस अवस्था में बने रहे।"
एंटोनी लुट्ज़ ने अपने कार्य की चर्चा की, जो वे और गेल छेटलेट वृद्धावस्था और विशेषकर अल्जाइमर रोग से निपटने की कई रणनीतियों के बीच सजगता पूर्वक ध्यान के प्रभाव के परीक्षण से संबंधित है। उन्होंने अवसाद को कम करने, जो बढ़ती उम्र की समस्या है, की सफल भूमिका का उल्लेख किया।
नैदानिक पहलुओं के दूसरे सत्र में जीन गेरार्ड ब्लोक और गिल्स बर्टशी, जिसका संचालन कॉर्नेलियस वेइलर कर रहे थे, ने अवसाद और दर्द पर सजगता पूर्वक ध्यान के प्रभाव की बात की। अवसाद एक सार्वजनिक स्वास्थ्य मुद्दा है जिससे निपटने में माइंडफुलनेस बेज्ड कॉगनिटिव थेरेपी (एमबीसीटी) ३०% प्रभावी है। एमबीसीटी उस समय सहायता करती जान पड़ती है जब निपटने के लिए कठिन समस्याएँ हों।
ब्लोक ने परम पावन से पूछा कि क्या ध्यान करने के लिए भाषा की आवश्यकता है, जिसने परम पावन को धारणात्मक तथा गैर धारणात्मक विचार के बीच अंतर पर संक्षेप में बोलने के लिए प्रेरित किया। परन्तु उन्होंने पुष्टि की कि केवल ध्यान के निर्देशों को सम्प्रेषित करने के आधार स्तर पर भाषा आवश्यक थी। उन्होंने यह भी टिप्पणी की कि यह एक ऐसा क्षेत्र है जिसमें भोट भाषा संचार का सबसे सटीक माध्यम है।
ब्लोक ने परम पावन से यह भी पूछा कि क्या पीड़ा और दुःख के बीच अंतर है और परम पावन ने उसे बताया कि पीड़ा शारीरिक अनुभव से संबंधित है, जबकि दुःख अधिकतर एक मानसिक चरित्र है। ध्यान के बारे में, परम पावन ने स्पष्ट किया:
"मैंने पहले ही शमथ और विश्लेषणात्मक ध्यान में अंतर समझा दिया है। अंतर इसमें निहित है कि चित्त वस्तु के साथ किस प्रकार संलग्न होता है। एक परम्परागत दृष्टिकोण से चार स्मृत्युपस्थान को निम्नलिखित रूप से समझा जा सकता है। काय स्मृत्युपस्थान, दुःख की प्रकृति की समझ से संबंधित है; वेदना स्मृत्युपस्थान, दुख समुदय से संबंधित है; चित्त स्मृत्युपस्थान का संबंध निरोध से है; जबकि धर्म स्मृत्युपस्थान का संबंध मार्ग की समझ से है।"
मध्याह्न भोजन के अंतराल के बाद, तीसरे सत्र में, तानिया सिंगर और श्रद्धेय मैथ्यू रिकार्ड ने सहानुभूति और करुणा पर चर्चा की, जिसका संचालन डेनेकेन कर रहे थे। एक ओर तानिया सिंगर का शोध जांच कर रहा है कि सहानुभूति और करुणा पर ध्यान के स्थिर प्रशिक्षण का मस्तिष्क पर क्या प्रभाव पड़ता है, पर दूसरी ओर सहानुभूति की कमी होने का प्रारंभ, जो प्रायः चिकित्सा और अन्य देखभाल कार्यों में देखने को मिलता है, की भरपाई के लिए प्रशिक्षण और अभ्यास की खोज कर रहा है। वे सहानुभूति को वेदना या दूसरों की पीड़ा के साथ एकात्म के रूप में परिभाषित करती हैं जबकि करुणा उनके दुख को अनुभव कर उसके लिए कुछ करना है।
परम पावन ने एक बुनियादी जैविक करुणा की भावना, जो पक्षपाती और एकतरफा और एक वास्तविक करुणा, जो ऐसे कारण पर आधारित है कि जैसे कि तर्क कि अन्य एक सुखी जीवन जीना चाहते हैं और दुख नहीं चाहते, जैसा मैं चाहता हूँ, में अंतर स्पष्ट किया। रिकार्ड ने महाकरुणा के विकास में कितना साहस शामिल है, उसकी ओर संकेत किया। उन्होंने यह भी कहा कि प्रतियोगिता की तुलना में सहयोग कहीं अधिक प्रभावी है।
चेतना का चौथा और अंतिम सत्र, बी एलन वालेस द्वारा संचालित किया गया। उन्होंने स्टीवन लॉरेस, न्यूरोलॉजिस्ट, जो कोमा का अध्ययन करते हैं और मिशेल बिटबोल, एक बहुश्रुत, जो एक दार्शनिक के रूप में कार्य करते हैं का परिचय दिया। लॉरेस, जो अपनी बात को समझाने के लिए अपने साथ एक मस्तिष्क लेकर आए थे, ने घोषणा की कि वह जानना चाहते हैं," जब भौतिक वस्तु चित्त हो जाता है क्या होता है?" परम पावन ने टिप्पणी की, "मुझे वास्तव में संदेह है कि ऐसा होता है।" और लॉरेस ने प्रतिवाद किया, "क्या आप अपने मस्तिष्क के बिना सचेत हो सकते है?" उन्होंने अपना दृष्टिकोण और स्पष्ट किया जब उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि मृत्यु के बाद जीवन के वैज्ञानिक प्रमाण में अंग दान शामिल है।
भोट भाषा में बोलते हुए जिसका एलन वालेस ने अनुवाद किया, परम पावन ने कहा:
"यदि आप केवल एक भौतिकवादी दृष्टिकोण अपनाएँ तो चेतना की व्याख्या करना कठिन है। हम जो कर सकते हैं वह हमारी अपनी चेतना पर शमथ ध्यान केंद्रित करना है। वह इसकी जागरूकता और जानने की स्पष्टता को प्रकट करता है।"
उन्होंने समझाया कि परीक्षण के आगे के चरण हैं, जो कि तंत्रों के तकनीकों के उपयोग से संबंधित हैं। उन्होंने कहा कि हिंदू और बौद्ध तंत्र एक दूसरे से मेल रखते हैं और कई विशिष्टताओं को साझा करते हैं। उनमें जिससे अंतर आता है वह बौद्धों की स्वभाव सत्ता की शून्यता का दृष्टिकोण है।
लॉरेस का कथन था कि: "चेतना का अस्तित्व है। मैं इसे समझने का प्रयास करता हूँ।" उन्होंने अपना प्रश्न दोहराया कि क्या परम पावन सोचते थे कि एक मस्तिष्क के बिना चेतना थी। चूँकि समय की कमी थी, बिटबोल ने बताया कि किस तरह एडमंड हसर्ल, जिनके फिनोमेनोलिजी पर किए गए काम ने २०वीं शताब्दी के अग्रगण्य दार्शनिक सार्त्र और हाइडेगर को प्रभावित किया था। बाद में फ्रांसिस्को वरेला, परम पावन के पुराने मित्र और माइंड एंड लाइफ के संस्थापक हसर्ल ने 'आत्म में चेतना' को लेकर जो कहा उसमें प्रेरणा पाई।
उत्साह भरी चर्चा के दिन का समापन करते हुए मिशेल डेनेकेन ने परम पावन को आने के लिए और संवाद में योगदान के लिए धन्यवाद दिया। परम पावन ने उत्तर दिया, "मैं आया क्योंकि आपने मुझे आमंत्रित किया।" कल स्ट्रासबर्ग में कहीं और, वे नागार्जुन के 'बोधिचित्त विवरण' पर प्रवचन प्रारंभ करेंगे।