जिनेवा, स्विट्जरलैंड, ११ मार्च २०१६ - जब परम पावन दलाई लामा कल शाम जिनेवा पहुँचे तो उनके स्वागतार्थ तिब्बतियों की एक बड़ी संख्या होटल के सामने एकत्रित हुई थी।
आज प्रातः पत्रकारों के साथ एक बैठक के दौरान उन्होंने अपनी तीन प्रतिबद्धताओं को समझाया। उन्होंने सुझाया कि शिक्षा में सौहार्दता, सहिष्णुता और क्षमा के आंतरिक मूल्यों पर बल देना चाहिए। उन्होंने कहा कि यद्यपि धर्म सहस्रों वर्षों से सुख का एक स्रोत रहा है, पर दुःख इस बात का है कि आज यह घृणा का एक स्रोत बनता जा रहा है।
उन्होंने स्पष्ट किया कि २०११ में जब वे अपने राजनीतिक उत्तरदायित्व से सेवानिवृत्त हुए, तो उन्होंने ऐसा पूरी तरह स्वेच्छा और गर्व से किया था, पर माना कि अभी भी ९९ प्रतिशत तिब्बती लोग उनके प्रति आशा और विश्वास बनाए रखे हुए हैं। अतः उन सबके लिए चिंता रखने के अतिरिक्त वे तिब्बती संस्कृति के संरक्षण और तिब्बत के प्राकृतिक पर्यावरण के लिए काम करने में लगे हुए है। उन्होंने स्पष्ट किया कि चूँकि तिब्बती संस्कृति शांति, अहिंसा और करुणा की संस्कृति है, यह प्रत्येक के हित में है कि इसका संरक्षण हो।
मध्याह्न में, परम पावन दलाई लामा, सह नोबेल पुरस्कार विजेता तवाकुल अब्दुल सलाम करमन और लीला अलिकरमी, नोबेल पुरस्कार विजेताओं का प्रतिनिधित्व करतीं एक ईरानी वकील और नोबेल पुरस्कार विजेता शिरीन इबादी ने ग्रेजुयट इंस्टिट्यूट ऑफ जेनेवा में विषय 'नोबल लॉरियट्स ऑन ह्यूमन राइट्स - ए व्यू फ्रम सिविल सोसाइटी' पर विचार विमर्श में भाग लिया। यह कार्यक्रम संयुक्त राष्ट्र के स्थायी मिशन, संयुक्त राज्य अमेरिका तथा कनाडा द्वारा मानवाधिकार परिषद के ३१वें सत्र की परिधि में आयोजित किया गया। संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार की उप उच्चायुक्त श्रीमती केट गिलमोर ने कार्यक्रम का संचालन किया।
परम पावन ने कार्यक्रम की मेजबानी के लिए संयुक्त राष्ट्र के लिए कनाडा और अमेरिका के स्थायी मिशनों के प्रति आभार व्यक्त किया। उन्होंने अपने दो पूर्व वक्ताओं के भावुक संबोधनों की भी चर्चा की।
"हम मानवता के भविष्य के विषय को लेकर बात कर रहे हैं," उन्होंने कहा। "चाहे हमारी आवाज़ कितनी ही छोटी क्यों न हो, पर यह आवश्यक है कि हम बोलें। कभी कभी लोग कहते हैं कि विश्व में सब कुछ ठीक है, पर वे गलत हैं। हमारे समक्ष कई समस्याएँ हैं। मेरे जीवनकाल में मैंने निरंतर संघर्ष और रक्तपात देखा है जिस दौरान लाखों लोगों की हत्या हुई है। हमें पूछने की आवश्यकता है कि हमने कहाँ गलती की, हममें किन गुणों का अभाव है और मानव अधिकारों का उल्लंघन क्यों होता है। इन प्रश्नों के उत्तर देने तथा शांति बनाने में प्रज्ञा व करुणा की आवश्यकता होगी।
"यद्यपि मैं एक बौद्ध भिक्षु हूँ, पर मुझे संदेह है कि मात्र प्रार्थना से विश्व शांति की प्राप्ति होगी। इसके स्थान पर हमें कार्रवाई करने में उत्साही तथा और आत्म विश्वासी होना होगा।"
उन्होंने कहा कि आज जो लोग विश्व में कठिनाइयाँ खड़ी कर रहे हैं और शांति भंग कर रहे हैं, वे भी आत्म विश्वास से भरे हैं परन्तु आधारभूत मानवीय मूल्यों से अपर्याप्त रूप से प्रभावित हैं। अतः भविष्य में यदि हमें एक और अधिक शांतिपूर्ण विश्व का निर्माण करना है तो अपनी सामान्य शिक्षा प्रणाली में हमें सौहार्दता और धर्मनिरपेक्ष नैतिकता को लाना होगा।
उन्होंने कहा कि जलवायु परिवर्तन तथा वैश्विक अर्थव्यवस्था के उतार-चढ़ाव की समस्याएँ हम सभी को प्रभावित कर रही हैं। वे राष्ट्रीय सीमाओं तक ही सीमित नहीं हैं। अपने बीच जाति, धर्म, राष्ट्रीयता और लिंग के गौण भेदों पर केंद्रित होकर वे 'हम' और 'उन' में लोगों को विभाजित करने को उकसाते हैं जो आसानी से संघर्ष का एक आधार बन जाता है। उन्होंने जोर देकर कहा कि यदि हम मानवता की एकता का स्मरण करें और एक दूसरे को भाई और बहनों के रूप में देंखें तो हम हिंसा की संभावना को दूर कर सकते हैं।
पैनल चर्चा के पश्चात, परम पावन गाड़ी से पेले दे नेशन्स गए जहाँ उन्होंने ३००० तिब्बतियों को संबोधित किया। उन्होंने उन्हें आश्वासन दिया कि उनका स्वास्थ्य अच्छा था और उनके सुस्वास्थ्य की प्रार्थना के लिए उन्हें धन्यवाद दिया।
कल तड़के ही वह जिनेवा से भारत लौटने के लिए रवाना होंगे।