वाशिंगटन डीसी, संयुक्त राज्य अमेरिका, १५ जून २०१६ - एक ऐसा दिवस, जिसका उदय मेघाच्छन्न नभ की छाया में हुआ, परम पावन दलाई लामा ने ब्रूकिंग्स इंस्टीट्यूशन द्वारा संयोजित चीनी विद्वानों के साथ एक बैठक में भाग लेते हुए प्रारंभ किया। ब्रूकिंग्स अध्यक्ष, स्ट्रोब टालबोट ने उनका स्वागत तथा परिचय कराया जिनके साथ वरिष्ठ फेलो डेविड डॉलर थे।
परम पावन इस बैठक से व्हाइट हाउस गए, जहाँ राष्ट्रपति ओबामा ने उनका स्वागत किया। दोनों नेताओं ने मानवाधिकारों और जलवायु परिवर्तन जैसे आपसी हित के विषयों पर चर्चा की। उनकी पैंतालीस मिनट के साहचर्य के अंत में, राष्ट्रपति ओबामा रोज गार्डन होते हुए परम पावन को ले गए और उन्हें विदा करते हुए उन्हें कार में बिठाया।
कार्ल गेर्शमेन, नेशनल एंडाउमेंट फॉर डेमोक्रेसी के अध्यक्ष, जो १९८४ में उसकी स्थापना से अध्यक्ष रहे हैं, ने परम पावन का अन्य ३० अतिथियों के साथ भोजन करने के लिए स्वागत किया। उसके उपरांत जो कार्यक्रम था वह आशा और लोकतंत्र के विषयों पर केंद्रित था। जैसा कि गेर्शमेन ने कहा, "मानवीय गरिमा के लिए संघर्ष में आशा सदैव रहती है।" उन्होंने कांग्रेसी, पीटर रोसकम को बोलने के लिए आमंत्रित करने के पूर्व कार्यकर्ता वकील चेन गुआंगछेंग तथा श्रम आयोजक हान डोंगफांग का सभा में स्वागत किया। उन्होंने कहा कि अधिनायकवाद की आवाज के समक्ष, हममें से जो लोग उन्हें खोखला देखते हैं उन्हें स्पष्ट रूप से कहना चाहिए कि "यह सच नहीं है।" उन्होंने परम पावन की, सत्य को स्पष्ट शब्दों में कहने के लिए कि, लोकतंत्र का महत्व है, प्रशंसा की।
रिचर्ड गियर ने लम्पाडुसा में शरणार्थी शिविरों की यात्रा की बात की जब वे हाल ही में एक फिल्म को बढ़ावा देने के लिए सिसिली में थे। जिन अफ्रीकियों से वे वहाँ मिले वे बुरी सरकार और हिंसक लोगों से भागने की मांग कर रहे थे उन्होंने कहा कि "हमें हिंसक और जो बुरी सरकार को आगे बढ़ाते हैं उनकी ओर अपनी उंगली उठानी चाहिए"।
दो पुरस्कारों में प्रथम नेड ने अपना डेमोक्रेसी सर्विस मेडल मरणोपरांत तिब्बती बौद्ध भिक्षु, तेनज़िन देलेग रिनपोछे के साहसी कार्य के सम्मान में प्रदान किया। वे एक प्रमुख राजनीतिक कैदी थे जिनकी मृत्यु सिचुआन जेल में २०१५ में १३ वर्ष के कैद के बाद हुई। वह निरंतर इस बात पर बल देते रहे कि उन्हें ऐसे अपराधों में जो उन्होंने किए नहीं, फंसा कर मृत्यु दंड दिया गया है और कहा "मैंने सदा दूसरों को जीवन को आहत न करने की शिक्षा दी है, तो मैं ऐसा कार्य क्यों करूँगा जिसका वे मुझ पर आरोप लगाते हैं।" उनकी मृत्यु के पश्चात पुलिस ने गुप्त रूप से उनका अंतिम संस्कार किया और उनकी राख को ज़ब्त कर लिया।
पदक तेनज़िन देलेग रिनपोछे के चचेरे भाई गेशे जमयंग ञीमा ने ग्रहण किया जिन्होंने परम पावन दलाई लामा के प्रति रिनपोछे की गहन वफादारी को दोहराया। उन्होंने टिप्पणी की, कि तिब्बती लोगों के कल्याण के लिए रिनपोछे का समर्पण उनके द्वारा स्थापित विद्यालयों और क्लीनिकों में प्रतिबिम्बित होता है। उन्होंने बल देते हुए कहा कि यह महत्वपूर्ण था रिनपोछे की स्मृति में संघर्ष जारी रखा जाए और आशा न छोड़ी जाए।
तिब्बतियों के एक दीर्घ कालीन मित्र सीनेटर डाएन फेनस्टेइन ने सभा को संक्षिप्त रूप में संबोधित किया। उन्होंने पहली बार १९७८ में धर्मशाला में अपने पति के साथ परम पावन के साथ हुई भेंट का स्मरण किया। उसके बाद उन्हें परम पावन की ओर से चीनी प्रधानमंत्री जियांग जेमिन को पत्र देना था जिसमें उन्होंने घोषित किया था कि "हम स्वतंत्रता की मांग नहीं कर रहे, पर हम अपने कार्यों का प्रबंधन स्वयं करने में सक्षम होना चाहते हैं।"
हाउस डेमोक्रेटिक नेता नैन्सी पेलोसी ने भी बात की और कहा कि परम पावन "हमें अपने नकारात्मक दृष्टिकोणों को त्यागने और एक अधिक करुणाशील दृष्टिकोण अपनाने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।"
कार्ल गेर्शमेन, नेशनल एंडाउमेंट फॉर डेमोक्रेसी के अध्यक्ष और एक पूर्व कांग्रेसी ने मार्टिन फ्रॉस्ट से केंद्रीय तिब्बती प्रशासन की लोकतांत्रिक उपलब्धियों को पहचानने का आग्रह किया। उन्होंने अमेरिका और तिब्बती निर्वासन संविधानों की प्रस्तावना की एक खचित प्रतिलिपि प्रस्तुत की। अपने स्वीकृति भाषण में डॉ सिक्योंग लोबसंग सांगे ने १९६० के एक अवसर का स्मरण किया जब परम पावन दलाई लामा ने डलहौजी, उत्तर भारत में तिब्बती सड़क श्रमिकों से मिलने आए। उन्होंने उनसे कहा थाः
"मैं यहाँ आपको प्रोत्साहन का संदेश देने के लिए आया हूँ। हमें निर्वासन में लोकतंत्र का निर्माण करना होगा।"
बाद में १९६० में निर्वासन में प्रथम संसद का निर्वाचन हुआ जिसके बाद १९६३ में, पहली महिला सदस्यों का चुनाव हुआ। सिक्योंग ने उल्लेख किया कि वर्तमान में ४५ सदस्यों की विधानसभा में १० महिलाएँ हैं। १९६३ में भी निर्वासन में पहला तिब्बती संविधान लागू किया गया था जिसमें परम पावन ने जोर देकर कहा था कि यदि आवश्यक हो तो उन पर महाभियोग चलाने के लिए एक प्रावधान शामिल करना चाहिए, यह बताने के लिए कि कोई भी कानून से ऊपर नहीं है। २००१ में परम पावन अर्द्ध सेवानिवृत्त हुए और २०११ में उन्होंने पूर्ण रूप से निर्वाचित नेतृत्व को अपना राजनीतिक उत्तरदायित्व सौंप दिया। सिक्योंग ने घोषणा की, कि परम पावन की उपस्थिति में यह पुरस्कार प्राप्त करना एक महान सम्मान की बात थी।
इसके उपरांत परम पावन को 'लोकतंत्र और आशा' विषय पर चार युवा कार्यकर्ताओं के साथ संवाद के लिए आमंत्रित किया गयाः अज़रबैजान के पत्रकार अर्ज़ु गेबुल्लायेवा, क्यूबा डिसाइड के रोजा मारिया पाया, एक सूडानी डिजिटल कार्यकर्ता अज़ज़ एलशमी और एक जार्डन कार्यकर्ता रामी सौद। चर्चा का संचालन, एशियाई और वैश्विक मामलों के वरिष्ठ निदेशक ब्रायन यूसुफ, नेड द्वारा संचालित किया गया।
अज़ज़ एलशमी ने परम पावन से पूछते हुए प्रथम प्रश्न रखा कि आध्यात्मिकता उनके लिए क्या मायने रखता है। उन्होंने उत्तर दिया कि इसका सार, सौहार्दता है और टिप्पणी की कि सभी प्रमुख धार्मिक परम्पराओं का संदेश प्रेम है। उन्होंने आगे कहा कि आध्यात्मिकता का बीज हर मनुष्य में रहता है तथा करुणा और सौहार्दता हमारे जीवन का आधार हैं।
घृणा के बारे में अर्ज़ु गेबुल्लायेवा के प्रश्न के उत्तर में परम पावन ने कहा:
"घृणा और क्रोध हमारे चित्त का अंग हैं, वे हमारी भावनाओं का भाग हैं। परन्तु प्रमुख मानवीय भावना प्रेम है, जबकि घृणा और क्रोध अपेक्षाकृत अल्पकालीन होते हैं। वे बने नहीं रहते। वह परिवर्तित होते हैं।"
जब रोज़ा मारिया पाया ने न्याय और क्षमा के बारे में पूछा तो परम पावन ने उसे बताया कि न्याय मुख्य रूप से सुख व आनन्द की रक्षा के विषय में है। क्षमा किसी गलत काम के होते हुए को देखकर क्रोध का परित्याग है फिर चाहे उसे रोकने के लिए आपको कोई प्रतिकारक काम करने पड़े। रामी सौद जानना चाहते थे कि ऐसे समय जब धर्म को संघर्ष के लिए ईंधन के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है तो इसकी सकारात्मक भूमिका को किस तरह बहाल किया जा सकता है। परम पावन ने उत्तर दिया कि आप धर्म को स्वीकारते हैं अथवा नहीं यह आपका एक निजी मामला है, पर यदि आप मानते हैं तो आपको गंभीरता से करना चाहिए। ईसाइयों को प्रेम के अभ्यास की शिक्षा दी जाती है। मुसलमानों को आदेश है कि वे अल्लाह के सब बंदों तक प्यार पहुँचाएँ, जिनमें आपसी शत्रुता रखने वाले भी शामिल हैं। उन्होंने स्वीकार किया कि धार्मिक परम्पराओं के बीच दार्शनिक मतभेद हैं, पर कहा कि उनका उद्देश्य प्रेम के अभ्यास को सशक्त करना है।
उन्होंने सुझाव दिया कि कट्टरपंथी युवाओं के लिए दीर्घकालिक समाधान शिक्षा का विस्तार है जिसमें मानव मूल्यों में प्रशिक्षण शामिल है। उन्होंने जोर देकर कहा कि केवल शिक्षा को व्यापक और अधिक समग्र बनाकर यह संभव है कि पिछली सदी की तरह २१वीं सदी पीड़ा व रक्तपात से कलंकित न हो। उन्होंने कहा:
"मैं सत्य और ईमानदारी की शक्ति में विश्वास करता हूँ। चूँकि आधारभूत मानव प्रकृति करुणाशील है, आशा बची है।"
निर्वासन में समुदायों को सलाह देने के लिए कहे जाने पर परम पावन ने वियतनामी शरणार्थियों के प्रति प्रशंसा व्यक्त की जिनसे वे मिले हैं, जो वे जहाँ भी हों अपनी अस्मिता, संस्कृति और समुदाय की भावना को बनाए रखे हैं। उइघुर के बारे में एक प्रश्न पर उन्होंने ७० के दशक में एक समिति के गठन का स्मरण किया जिसमें तिब्बतियों, उइघुरों, मंगोलियाई तथा मंचूरियाई प्रतिनिधि थे और जो अनुभवों का आदान-प्रदान कर सकते थे। उन्होंने सुझाया कि उइघुर अपने संघर्ष के लिए एक निर्धारित अहिंसक दृष्टिकोण अपनाएँ।
बैठक तालियों की ज़ोरदार गड़गड़ाहट से समाप्त हुई।
फॉक्स न्यूज के ब्रेट बेयर के साथ एक संक्षिप्त साक्षात्कार में, परम पावन ने उन्हें बताया कि राष्ट्रपति ओबामा के साथ अपनी चर्चा में उन्होंने मानव सुख के सशक्त स्रोत के रूप में मानवीय मूल्यों को बढ़ावा देने की अपनी प्रतिबद्धता का उल्लेख किया था। उन्होंने कहा कि उन्होंने आशा व्यक्त की, कि उनकी सेवानिवृत्ति में राष्ट्रपति भी शिक्षा के माध्यम से चित्त की शांति को बढ़ावा देने के लिए काम करने में सक्षम होंगे।
यद देखते हुए कि इस तरह की बैठकों के लिए चीनी आपत्तियाँ दिनचर्या बन गए हैं, परम पावन ने इस बात को दोहराया:
"हम स्वतंत्रता की मांग नहीं कर रहे, हम तिब्बत को अलग करने की मांग नहीं कर रहे। चीन की पीपुल्स रिपब्लिक के साथ बने रहने में हमारा हित है पर यह आवश्यक है कि हम अपनी समृद्ध बौद्ध संस्कृति का संरक्षण कर सकें, न केवल हमारे लाभ के लिए पर चीनी बौद्ध धर्म के लाखों लोगों की सेवा करने में भी। और जब चीनी श्रमिक विकास परियोजनाओं में भाग लेने के लिए तिब्बत आएँ तो उन्हें तिब्बती संस्कृति का सम्मान करना चाहिए और बात करने के लिए भोट भाषा सीखना चाहिए।"
परम पावन ने कहा कि वह 'मुस्लिम आतंकवादी' लेबल से असहमत हैं ठीक उसी तरह जैसे उन्होंने 'बौद्ध आतंकवादियों' की चर्चा पर आपत्ति जताई थी। उन्होंने कहा कि न तो इस्लाम और न ही बौद्ध धर्म किसी को एक आतंकवादी बनने की शिक्षा देता है और ऐसे कार्यों का औचित्य ठहराने के लिए धर्म का उपयोग नहीं किया जा सकता। उन्होंने सुझाव दिया कि हमें आतंकवादियों का उल्लेख मात्र 'आतंकवादी' के रूप में करना चाहिए।
अंत में, पूछे जाने पर कि क्या वे आशावादी हैं, परम पावन ने कहा, "हाँ, क्योंकि आधारभूत मानव स्वभाव करुणाशील है। और उसके कारण हमें मानव भाइयों और बहनों के रूप में एक साथ रहना चाहिए।" जैसे ही वे भवन से बाहर निकले मित्र और शुभचिंतक उनके दीर्घायु के लिए प्रार्थना करते हुए बाहर फुटपाथ पर एकत्रित हुए थे। कल, वह लॉस एंजिल्स की यात्रा करेंगे।