नई दिल्ली, भारत, ७ अप्रैल २०१६ - आज प्रातः दिल्ली में दिन का प्रारंभ करते हुए परम पावन दलाई लामा ने भारतीय और तिब्बती छात्रों के श्रोताओं के समक्ष एनडीटीवी संवादों की सोनिया सिंह को एक साक्षात्कार दिया। यह पहली बार आज रात प्रसारित किया जाएगा। इनमें उन्होंने जो कुछ नेहरू से सीखा, उनकी पुनर्जन्म की संभावनाएँ और क्या वह अभी भी इस जीवन में पुनः तिब्बत को देखने की आशा रखते हैं जैसे विषय शामिल थे।
दिन के शेष भाग में परम पावन ने एक बैठक में भाग लिया, जो २०१५ के अंत में 'एमोरी-तिब्बत भागीदारी द्वारा संकलित और प्रकाशित शिक्षा में धर्मनिरपेक्ष नैतिकता' शीर्षक के पाठ्यक्रम से दिशा-निर्देशों को लागू करने के प्रथम चरण के परिणामों पर चर्चा करने के लिए बुलाई गई थी। प्रोफेसर मीनाक्षी थापन ने अवसर का परिचय देते हुए स्मरण किया कि परम पावन ने करुणा को एक केन्द्रित शैक्षिक आदर्श कहते हुए शिक्षा के क्षेत्र में सौहार्दता के महत्व पर बल दिया है। उन्होंने कहा कि उनका धर्मनिरपेक्ष दृष्टिकोण पर बल देना विशेष रूप से आकर्षक है।
उन्होंने समझाया कि उन शिक्षकों, जिन्होंने नई सामग्री का प्रयोग करने में रुचि दिखाई थी, को सलाह दी गई थी कि वे देखें कि दो प्रारूप- भावनात्मक सजगता और क्षमा व्यवहार में किस तरह कार्य करेंगे। उन्होंने परम पावन से सभा को संबोधित करने के लिए अनुरोध किया और परम पावन ने कृतज्ञता के शब्दों के साथ प्रारंभ कियाः
"सबसे पहले मैं आप सबको इन मुद्दों को गंभीरता से लेने और इस बैठक में सम्मिलित होने के लिए धन्यवाद देना चाहता हूँ। अभी इस समय हम सब आराम से यहाँ एक साथ हैं किन्तु विश्व के अन्य भागों में लोग एक दूसरे की हत्या कर रहे हैं - हिंसा अचिंन्तनीय है। इस बीच लाखों बच्चे भूख से मर रहे हैं, जबकि अन्य स्थानों पर और अधिक खतरनाक हथियार बनाने की तैयारियाँ जारी हैं। हिंसा को अपनाने का आग्रह बहुत अधिक जीवित है। भ्रष्टाचार पनप रहा है और अमीर और गरीब के बीच की खाई बढ़ रही है। यहाँ दिल्ली में कुछ लोग अच्छी सुविधाओं का आनंद लेते हैं, जबकि सड़कों पर भिखारी हैं। क्या हमारी आदी हुई सोच को बदलने का कोई उपाय है?
"सौभाग्य से, प्रयोगों के परिणामस्वरूप वैज्ञानिकों ने निष्कर्ष निकाला है कि आधारभूत मानव स्वभाव सकारात्मक है। और साथ ही ऐसे निष्कर्ष हैं जो सुझाते हैं कि निरंतर क्रोध, भय और संदेह हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली को दुर्बल करते हैं। हम सब अपनी माँओं द्वारा हमें जन्म देने का साझा अनुभव रखते हैं। क्रूर तानाशाहों के लिए भी यह सच है। अपनी माँ के प्रेम तथा स्नेह के बिना वे भी बच नहीं पाते। चूँकि वैज्ञानिकों का निष्कर्ष है कि बुनियादी मानव स्वभाव दयालु और प्रेम युक्त है, एक आशा विद्यमान है।
"अपनी बुद्धि का प्रयोग कर हम अपनी शिक्षा का विस्तार और विकास कर सकते हैं। हम सौहार्दता के मूल्य को देख सकते हैं और पूछताछ कर सकते हैं कि क्या क्रोध का कोई मोल है। हम अपनी बुद्धि का प्रयोग करते हुए अपनी स्वाभाविक सौहार्दता की भावना का विस्तार कर सकते हैं। हमें अपनी भावनाओं के बारे में जानने और एक तरह की भावनात्मक स्वच्छता के विकास की आवश्यकता है। हमें ऐसा करने में सहायता देने हेतु मेरे दोस्त पॉल एकमैन भावनाओं के एक मानचित्र को विकसित करने की ओर कार्य कर रहे हैं। कई अन्य वैज्ञानिक शंकाकुल थे कि मस्तिष्क के कामकाज के अतिरिक्त क्या कोई चित्त है, पर उनकी समझ में परिवर्तन हुआ है। उन्होंने न्यूरोप्लास्टिसिटि की खोज की है। यह बैठक एक शैक्षिक मंच नहीं अपितु चर्चा करने का एक अवसर है कि हम किस प्रकार विश्व को परिवर्तित कर सकते हैं।"
इमोरी विश्वविद्यालय टीम के प्रतिनिधि, जिन्होंने धर्मनिरपेक्ष नैतिकता पर मसौदा पाठ्यक्रम संकलित किया है, ने अपने कार्य कि विषय में बात की। गेशे लोबसंग तेनजिन ने परम पावन द्वारा एक धर्मनिरपेक्ष नैतिकता की आवश्यकता को लेकर जो कहा उसके लिए वर्ल्ड हैप्पिनस रिपोर्ट २०१६ अद्यतन का संदर्भ दिया।
जेनिफर नॉक्स ने दिखाया कि किस प्रकार लोगों के विभिन्न तस्वीरों को देखने की प्रतिक्रियाएँ हमें सिखाने में सहायक हो सकती हैं कि हम किस तरह लोगों के विषय में निर्णय लेते हैं। उन्होंने इसे एक अमेरिकी महिला केली जिस्सेंदानेर, जिसे मृत्यु दंड दिए जाने के कई वर्षों के बाद सितंबर २०१५ में मार दिया गया था, की दो अलग-अलग तस्वीरों के साथ बताया। उन्होंने सुझाव दिया कि सोच के आदी हुए उपायों को बदलने में सक्षम होने के लिए विश्वास की आवश्यकता है।
परम पावन ने टिप्पणी की कि आंतरिक मूल्यों के विषय में शिक्षा छात्रों को प्रभावित करती है। यह हमारा आम अनुभव है कि जब हम अधिक करुणाशील होते हैं तो हमारा चित्त शांत होता है। गेशे लोबसंग तेनजिन ने टिप्पणी की कि करुणा के विकास के संबंध में योग्यता मापने के तरीके हैं।
स्प्रिंगडेल्स स्कूल, पूसा रोड, कॉन्वेंट ऑफ जीसस एंड मेरी, जीडी गोयनका पब्लिक स्कूल, गाजियाबाद, बाल भारती पब्लिक स्कूल, पूसा रोड और रोहिणी और ऋषि वैली स्कूल, आंध्र प्रदेश के शिक्षकों ने धर्मनिरपेक्ष नैतिकता पाठ्यक्रम के अग्रिम अध्ययन के दौरान अपने अनुभवों और निष्कर्षों का प्रस्तुतीकरण किया। उनमें से अधिकांश छोटे बच्चों के साथ काम कर रहे हैं और उन्होंने दूसरों को क्षमा करने के मॉड्यूल पर काम करने का चयन किया था। उन्होंने बच्चों को क्षमा की समझ और संघर्ष के समाधान में उसकी भूमिका तक पहुँचने में उनकी अपनी समझ तक उन्हें ले जाने के लिए कहानी बताने और नाटक के उपयोग का वर्णन किया। एक आठ वर्षीय के कथन को उद्धृत किया गया कि "जब मैं सॉरी कहता हूँ तो मैं खुश होता हूँ क्योंकि मेरे दिल से एक बोझ उठ जाता है।"
परम पावन ने 'अद्भुत कार्य' कहते हुए खोज की सूचनाओं को वर्णित किया। श्रद्धेय तेनजिन प्रियदर्शी ने एमआईटी में करुणा के लिए दलाई लामा केंद्र के कार्य और तकनीकी उपकरणों, गेमिंग और एप्स के उपयोग की संभावना के विषय पर बात की। उन्होंने टिप्पणी की कि हम मूल्यों की शिक्षा से अधिक मूल्यों के साथ शिक्षा देना चाहते हैं। एक व्यावहारिक बिंदु पर, इस पर ध्यान आकर्षित किया गया कि चिंतन के लिए समय निकालना बच्चों और शिक्षकों के लिए समान रूप से महत्वपूर्ण है, जिससे जो कुछ सीखा गया है उस पर मनन करें और उसे पचाएँ।
प्रातः का संक्षेपीकरण करते हुए मीनाक्षी थापन ने कहा कि जो कुछ विद्यालय में हो रहा है मूल्यों को उसका एक अंग होना चाहिए। जहाँ श्रेणी के संदर्भ में एक अच्छा छात्र पहले उपलब्धियाँ प्राप्त करता था, अब एक नूतन प्रारूप उभर रहा है। यह पाया गया कि पाठ्यक्रम को और अधिक लचीला और कम प्रबोधक होने की आवश्यकता है। परियोजना को स्पष्ट रूप से एक और अधिक समग्र दृष्टिकोण लेने की आवश्यकता है। उन्होंने यह पूछते हुए समाप्त किया कि हम जो अच्छे मानव बनने का प्रयास कर रहे हैं उसे पाठ्यक्रम किस तरह सम्प्रेषित कर रहा है।
भोजन के अंतराल के पश्चात परम पावन ने मध्याह्न के सत्र का प्रारंभ कियाः
"हमारी बैठक का दीर्घकालिक उद्देश्य इस बात की जाँच करना है कि शिक्षा और जागरूकता के माध्यम से किस तरह एक और अधिक शांतिपूर्ण विश्व का निर्माण किया जाए। हमें आंतरिक शांति की आवश्यकता है और हमें आनन्द आवश्यक है। हमें शैक्षिक दृष्टिकोण से भावनात्मक जागरूकता को प्रस्तुत करने की आवश्यकता है। हर कोई एक शांतिपूर्ण विश्व में रहना चाहता है, परन्तु यह समझना आवश्यक है कि जो शांति को नष्ट करता है, वह क्रोध और घृणा है। यही कारण है कि दीर्घकालीन लक्ष्य व्यक्तियों के भीतर आंतरिक शांति बनाना है और इस तरह एक अधिक करुणाशील मानवता के लिए योगदान देना है।"
उन्होंने उल्लेख किया कि अपने वर्तमान स्वरूप में पाठ्यक्रम मात्र एक मसौदा है। इसका प्रयोग तथा परीक्षण किया जाना चाहिए, परिणामों का अवलोकन किया जाना चाहिए और विषय सामग्री में यदि आवश्यक हो तो संशोधन किया जाना चाहिए। यदि यह सफल होता है तो इसे और अधिक व्यापक रूप से लागू किया जा सकता है। यदि निष्कर्ष और अनुभव के आदान प्रदान के लिए आगे और बैठकें बुलाई जाएँ तो एक सहज विकास संभव होगा।
फाउंडेशन फॉर युनिवर्सल रेसपॉंसिबिलिटि की ओर से राजीव मेहरोत्रा ने आंतरिक और बाह्य शांति - शांति का निर्माण, अहिंसा, सह- अस्तित्व और साथ ही नैतिक मूल्य और शिक्षा के विकास के लिए परियोजनाओं का वर्णन किया। परम पावन ने उत्तर दिया कि वे फाउंडेशन की गतिविधियों का विस्तार भारत के अन्य भागों और पड़ोसी देशों तक देखना चाहेंगे। उन्होंने टिप्पणी की कि यद्यपि उनकी सहायता के लिए कई हाथ हैं, पर अब समय आ गया है कि वे हाथ सक्रिय हों। कार्य करने की, प्रारंभ करने की एक तात्कालिक आवश्यकता है।
डॉ मीनाक्षी गोपीनाथ ने विस्कॉम्प - विमेन इन सेक्यूरिटी, कॉनफ्लिक्ट मेनेजमेंट पीस - साथ ही प्रज्ञा और करुणा की गतिविधियों पर एक प्रस्तुतिकरण दिया। विस्कॉम्प भारत-पाक संघर्ष और कश्मीर संकटों की मध्यस्थता और सुलह में प्रभावी रूप से संलग्न रहा है ।
समापन चर्चा में गेशे लोबसंग तेनजिन ने ध्यानाकर्षित किया कि पाठ्यक्रम की अधिकतर सामग्री परम पावन के लेखन, जैसे कि 'एथिक्स फॉर द न्यू मिलिनियम' और 'बियोंड रिलिजियन' से ली गई है। श्रद्धेय प्रियदर्शी ने नैतिकता को आकर्षक और प्रासंगिक बनाने की आवश्यकता पर बल दिया। गेशे ल्हागदोर ने सुझाव दिया कि यह जाँचने की आवश्यकता है कि २१वीं सदी में धर्मनिरपेक्ष नैतिकता के लिए कौन सी बाधाएँ हैं। उन्होंने यह भी कहा कि बातचीत का अधिकांश अंश उपाय के पहलू से संबंधित था जिसमें जागरूकता या प्रज्ञा के पक्ष पर चिंतन कम था। नरेश माथुर ने अरबिंदो आश्रम से जुड़े एक मित्र के अवलोकन को प्रस्तुत किया जो अभिन्न मूल्यों के क्षेत्र में कार्यरत हैं कि अपने वर्तमान स्वरूप में पाठ्यक्रम अत्यंत आदेशात्मक है। गेशे नवांग समतेन ने एक और अधिक समग्र दृष्टिकोण की आवश्यकता के साथ सहमति जताई।
अपने समापन में परम पावन ने सुझाया इस बिंदु पर महत्वपूर्ण बात यह है विचारों पर प्रयास कर परिणामों का अवलोकन किया जाए। जब उन्होंने एक वर्ष में पुनः बैठक का प्रस्ताव रखा तो मीनाक्षी थापन ने बीच में कहा और सुझाव दिया कि आने वाले सप्ताहों में और अधिक लगातार कार्यशालाओं का आयोजन गति को बनाए रखने और अब तक जो सीखा है उस पर निर्माण करने का अधिक प्रभावी उपाय होगा।
बैठक इस महत्वपूर्ण सत्र में जो सम्मिलित हुए और सहयोग दिया उनके प्रति आभार प्रदर्शन के साथ सम्पन्न हुई।