टाशी ल्हुन्पो, बाइलाकुप्पे, कर्नाटक, भारत - १ जनवरी २०१६- आज का श्वेत तारा दीर्घायु अभिषेक और परम पावन दलाई लामा से दीर्घायु बने रहने का समर्पण नूतन टाशी ल्हुन्पो सभागार के अंदर सम्पन्न हुआ। आवश्यक तैयारी पूरी करने के उपरांत, जब प्रार्थनाओं का पाठ हो रहा था तो परम पावन ने उपाध्यायों, पूर्व उपाध्यायों, टुल्कुओं, भिक्षुओं, भिक्षुणियों और उपासकों के समूह को संबोधित किया।
"पिछले साढ़े तीन हफ्ते पहले ग्यूमे तांत्रिक महाविद्यालय में पहुँचने के बाद से मैं लगभग निरंतर रूप से प्रवचन देता आ रहा हूँ । आज पुण्य समर्पण के रूप में हम श्वेत तारा अभिषेक का संचालन करेंगे। मुझे ज्ञात हुआ है कि स्थानीय स्कूलों से ७०० छात्र आज हमारे साथ सम्मिलित हुए हैं, मैं आपको नव वर्ष की शुभ कामनाएँ देता हूँ। इस तरह के युवा छात्र अत्यंत महत्वपूर्ण हैं क्योंकि वे २१वीं सदी की पीढ़ी से संबंध रखते हैं। मैं और मेरे सहयोगी २०वीं सदी के हैं। हमारा समय बीत चुका है और हमारे जीवन लगभग समाप्त हो चुके हैं। दूसरी ओर २१वीं सदी की पीढ़ी मात्र प्रारंभ में हैं। उनके पास विश्व को परिवर्तित करने का एक यथार्थवादी अवसर है।
"हम सभी सुख की कामना और दुख से बचना चाहते हैं, और उसके लिए हमारे भीतर प्रेम और करुणा की अधिक बड़ी भावना का होना आवश्यक है। जहाँ तक बाहरी विश्व का प्रश्न है, इसके लिए पर्यावरण का संरक्षण और जलवायु परिवर्तन के अनुकूल होने के लिए गंभीर कदम उठाने की आवश्यकता है। इन दिनों वैज्ञानिकों को अधिक प्रमाण मिल रहे हैं कि प्रेम और करुणा के विकास का हमारे शारीरिक स्वास्थ्य और सामान्य स्वास्थ्य पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। मानवता व्यक्तियों से निर्मित है और हम उसी समय एक अधिक सुखी और शांतिपूर्ण समाज की प्राप्ति कर सकते हैं यदि वे व्यक्ति अपने अंदर अधिक सुखी तथा अधिक शांतिपूर्ण हों।
"मैं इस संबंध में आशावान हूँ। मेरा विश्वास है कि आधारभूत रूप में मानव प्रकृति सकारात्मक है और फिर वैज्ञानिकों को इसके समर्थन में प्रमाण मिल रहे हैं। शिशु, जो इतने छोटे हैं कि बोल नहीं सकते, के साथ प्रयोग और इस आधार पर उनकी धारणात्मक सोच सीमित होती है, दिखाते हैं कि उनकी एक दूसरे लोगों की सहायता करने के चित्रों को देख अनुकूल प्रतिक्रिया होती है। वे लोगों के एक दूसरे को हानि पहुँचाने अथवा बाधित करने के चित्रों को देख स्पष्ट प्रतिकूल प्रतिक्रियाएँ अभिव्यक्त करते हैं। और तो और वैज्ञानिकों ने दिखाया है कि निरंतर भय तथा क्रोध का हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली पर एक हानिकारक प्रभाव पड़ता है।
"हम यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि मानव प्रकृति मूल रूप से करुणाशील है, क्योंकि हम सभी जीवित रहने के लिए दूसरों पर निर्भर हैं। अतः स्नेह हमारी मूल प्रकृति का अंग है। यदि अन्यथा होता और हमारी प्रकृति क्रोध और घृणा की होती तो हम कुछ नहीं कर पाते, पर चूँकि हमारी प्रकृति स्नेहपूर्ण तथा करुणाशील है, अतः शिक्षा और प्रशिक्षण के माध्यम से हमारे लिए इन प्राकृतिक गुणों को विकसित करने के बारे में सोचना संभव है।
"कुल मिलाकर आधुनिक शिक्षा प्रणालियाँ अपर्याप्त हैं, क्योंकि वे भौतिक विकास पर केंद्रित है और आंतरिक विकास, आधारभूत मानवीय मूल्यों के प्रशिक्षण की ओर कम ध्यान देती हैं। परन्तु ऐसे पाठ्यक्रमों की रूप रेखा तैयार करने में, जो मानक शिक्षा में धर्मनिरपेक्ष नैतिकता को शामिल करे, संयुक्त राज्य अमेरिका और कनाडा, यूरोप में और यहाँ भारत में भी परियोजनाएँ चल रही हैं। ऐसे परिवर्तनों को कार्यान्वित करने में अब कदम उठाने की आवश्यकता है। आज जो युवा हैं हम यदि उनमें आधारभूत मानवीय जीवन मूल्य पैदा कर सकें और पोषण कर सकें तो मेरा विश्वास है कि इस सदी के अंत तक हम एक अधिक सुखी और अधिक शांतिपूर्ण विश्व का निर्माण कर पाएँगे।
"छात्रों, कठोर परिश्रम करो, अच्छी तरह अध्ययन करो और अपने अवसरों का अधिकतम लाभ उठाओ" परम पावन ने सलाह दी।
तिब्बती संस्कृति की ओर अपना ध्यान मोड़ते हुए परम पावन ने टिप्पणी की कि एक हजार वर्ष से भी अधिक पहले भारतीय बौद्ध साहित्य का तिब्बती भाषा में अनुवाद किया गया। परिणाम स्वरूप नालंदा परम्परा को श्रेष्ठ तथा सही ढंग से अभिव्यक्त करने और समझाने के लिए भोट भाषा सबसे अनुकूल बनी हुई है। उन्होंने कहा कि यह गर्व करने योग्य है, ऐसा कुछ जो ज्ञान तक पहुँच प्रदान करता है जिससे तिब्बती समूची मानवता के लिए योगदान कर सकते हैं। आंतरिक शांति करुणा पर आधारित है जिसका विकास बौद्ध विज्ञान के क्षेत्र में विस्तार से बताया है। इस बीच तिब्बत के एशियाई पड़ोसियों में से कई जैसे कि चीन जहाँ सैकड़ों, करोड़ों बौद्ध हैं तिब्बती बौद्ध धर्म की शिक्षाओं में अधिक रुचि दिखा रहे हैं।
"बौद्ध परंपरा २५०० वर्षों से भी अधिक प्राचीन हो सकती है, पर ऐसे निर्देश कि क्लेशों से किस प्रकार निपटा जाए न केवल आज भी प्रासंगिक बने हुए हैं, पर बिना बौद्ध हुए भी लोग उनसे लाभान्वित हो सकते हैं। यह स्मरण रखना महत्वपूर्ण है कि सभी मनुष्य मौलिक रूप से एक हैं। हम सभी एक मानव परिवार से संबंधित भाई और बहनें हैं। हम एक ही तरह से जन्म लेते हैं और हम एक ही तरह से मरते हैं। पर फिर भी हममें जो समानताएँ है उनकी प्रशंसा किए बिना हम अपने बीच के अंतर पर ज़ोर देते हैं जैसे कि आस्था, राष्ट्रीयता, धनवान हैं अथवा निर्धन, शिक्षित हैं अथवा अशिक्षित, जो कि गौण हैं। हम एक दूसरे को 'हम' और 'उन' के संदर्भ में देखते हैं, जो एक अन्योन्याश्रित विश्व के संदर्भ में न केवल अवास्तविक है, पर तारीख से बाहर है।
"यदि हम एक दूसरे के प्रति अधिक स्नेहपूर्ण, सराहनापूर्ण और चिंता रखने वाला व्यवहार अपनाएँ तो हमारे जीवन और अधिक सार्थक हो जाएँगे। यदि हम समूचे विश्व के सुख और समृद्धि में योगदान कर सकें तो एक दीर्घ जीवन जीना सार्थक होगा।
"निस्सन्देह, सरल शारीरिक कारक हैं जो एक दीर्घ जीवन में योगदान दे सकते हैं। पहला आधारभूत स्वच्छता है। दूसरा यह कि जहाँ आपके पास अच्छी अस्पताल की सुविधाएँ है, पर आपके पास उनमें काम करने के लिए पर्याप्त योग्य स्वास्थ्य कर्मचारी नहीं हैं। यह विद्यालयों के समान है, जहाँ अधिक योग्य और समर्पित शिक्षकों की आवश्यकता है।
"आपको अपने स्वास्थ्य को बनाए रखने की आवश्यकता है। आहार और पौष्टिक भोजन के महत्व के बारे में उचित सलाह लें। कम सफेद चावल खाएँ। अधिक व्यायाम करें। जब आप अपनी प्रार्थना करें तो परिक्रमा करें। जानकार छात्रों और शिक्षकों के बुरे स्वास्थ्य को देख मुझे दुःख होता है। आशीर्वाद प्राप्त करने और अनुष्ठानों के करने से इस का समाधान नहीं होगा, आपको अधिक व्यावहारिक कदम उठाने की आवश्यकता है। अपने लिए एक दीर्घायु जीवन सुनिश्चित करने के लिए अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखना सबसे महत्वपूर्ण है। निस्सन्देह जैसा मैंने पहले ही कहा है, आंतरिक शांति और कम तनाव का आपके शारीरिक स्वास्थ्य पर भी एक लाभदायक प्रभाव पड़ता है।"
शिक्षा के विषय पर पुनः लौटते हुए, परम पावन ने चर्चा की कि एक बौद्ध प्रशिक्षित शिक्षक का संदर्भ धार्मिक अथवा आध्यात्मिक शिक्षक के रूप में न देकर क्या दर्शन शिक्षक के रूप में देना बेहतर न होगा। उन्होंने उस उद्धरण का उदाहरण दिया जो वे प्रायः देते हैं, कि बुद्ध पाप को जल से धोते नहीं, पर विमुक्ति के मार्ग को प्रकट करते हैं। दर्शन का शिक्षक समझाने में सक्षम हो सकते हैं कि सत्य द्वय, चार आर्य सत्य त्रिरत्न क्या हैं। वे यह समझाने में सक्षम हो सकते या सकती हैं कि बुद्ध किसका प्रतिनिधित्व करते हैं और उन्होंने क्या देशना दी।
श्वेत तारा अभिषेक देने से पहले परम पावन ने प्रसंग निर्धारित किया।
"हम यहाँ प्रथम दलाई लामा, गेदुन डुब द्वारा स्थापित टाशी ल्हुन्पो में हैं। उनका श्वेत तारा के साथ एक विशेष संबंध था और आज यह अभिषेक प्रदान करते हुए मैं विशेष रूप भाग्यशाली अनुभव कर रहा हूँ।"
जब अभिषेक पूर्ण हुआ तो मंत्राचार्य ने गुरु पूजा के आधार पर परम पावन से दीर्घायु बने रहने के अनुरोधों का समर्पण प्रारंभ किया। बोधिपथ क्रम प्रवचनों के संरक्षक, लिंग रिनपोछे ने प्रमुख मंडल समर्पण के दौरान स्तुति और अनुरोधों का पाठ किया। उन्होंने परम पावन सहित डोमतोनपा, गेदुन डुब और सभी दलाई लामाओं की तिब्बतियों के प्रति दया का स्मरण किया। परम पावन से दीर्घ काल तक बने रहने के अनुरोध से संबंधित क्रम से समर्पण प्रस्तुत किए गए। उनमें भिक्षु के पूरे चीवर, भिक्षा पात्र तथा भिक्षु दंड शामिल थे। साथ ही राजसी सात प्रतीक और अष्ट मंगल चिह्न के विस्तृत सेट भी थे।
एक बिंदु पर बाहर परम पावन का स्तुति गान बच्चों की स्पष्ट आवाज में सुनाई पड़ रहा था। दक्षिण भारत में पाँच तिब्बती आवासों के प्रतिनिधियों ने परम पावन की दीर्घायु के लिए अपनी प्रार्थनाएँ समर्पित कीं। भिक्षुओं ने अवलोकितेश्वर के अवतार और परम पावन के दो शिक्षकों द्वारा रचित दीर्घायु का पाठ किया। अंतिम मंडल समर्पण टाशी ल्हुन्पो के उपाध्याय और ज़ोपा रिनपोछे द्वारा किया गया।
भव्य अनुष्ठानों के समापन के पश्चात, अतिथि और गणमान्य व्यक्ति मध्याह्न भोजन के लिए परम पावन के साथ सम्मिलित हुए। कल प्रातः वे बाइलाकुप्पे से रवाना होकर गाड़ी से बंगलौर जाएँगे।