लेह, लद्दाख, जम्मू एवं कश्मीर, भारत, ९ अगस्त २०१६ - परम पावन दलाई लामा ने चोगलमसर के अपने आवास से ठिकसे की यात्रा गाडी से तय की। मार्ग में वे शे ग्राम में एक नए स्मारक स्तूप को आशीर्वचित करने हेतु किंचित देर रुके। ठिकसे विहार के प्रवचन स्थल पर परम पावन का स्वागत ठिकसे रिनपोछे ने किया जो विहार के मुख्य लामा हैं और जे चोंखापा के शिष्य जंगसेम शेरब ज़ंगपो के ९वें अवतार हैं । ठिकसे रिनपोछे ने १९५३ से १९५९ तक तिब्बत में डेपुंग महाविहार में अध्ययन किया था ।
परम पावन को ठिकसे विहार में चतुर्थ महाग्रीष्म धार्मिक परिषद के उद्घाटन हेतु आमंत्रित किया गया था, जिसका आयोजन ९ अगस्त से २२ अगस्त तक किया गया है। ऐसी पहली बैठक २०१२ में हुई थी और परम पावन ने सुझाया था कि इसे वार्षिक आयोजन बनाना चाहिए। सभी परम्पराओं के बौद्ध भिक्षु तथा भिक्षुणियाँ, लेह के बीस विद्यालयों से भाग ले रहे स्कूली बच्चे, साथ ही जनता के सदस्य इस वर्ष परिषद में भाग ले रहे हैं।
नवनिर्मित शिक्षण सभागार में प्रवेश करने से पहले गदेन ठिपा रिज़ोंग रिनपोछे और ठिकसे रिनपोछे के साथ परम पावन ने उसके उद्घाटन के प्रतीक के रूप में द्वार पर बंधा फीता काटा, जब मंगल प्रार्थनाओं का पाठ हो रहा था। अंदर आसन ग्रहण करने के पश्चात परम पावन को ठिकसे रिनपोछे द्वारा उनके ८०वें जन्म दिवस के उत्सव के रूप में एक पदक प्रदान किया गया। ठिकसे रिनपोछे, डॉ सोनम दावा, लद्दाख स्वायत्त पर्वतीय विकास परिषद के मुख्य कार्यकारी पार्षद, शिया मुस्लिम समुदाय के शेख जावेद, सुन्नी मुस्लिम समुदाय के मौलवी, छेरिंग दोर्जे, जम्मू और कश्मीर के राज्य मंत्री और गदेन ठि रिनपोछे ने जनसमुदाय को संबोधित किया। उनके भाषणों के बीच छात्र, साथ ही भिक्षु तथा भिक्षुणियों के समूह शास्त्रार्थ में लगे रहे। ठिकसे लोगों की कृतज्ञता व्यक्त करने के प्रतीक के रूप में परम पावन से ठिकसे रिनपोछे को एक प्रमाण पत्र और पदक प्रदान करने का अनुरोध किया गया।
परम पावन ने अपनी टिप्पणियाँ प्रारंभ करते हुए कहा कि मनुष्य रूप में हम सभी आधारभूत रूप से समान हैं। दुर्भाग्वश, उन्होंने कहा कि हम अपने बीच के गौण अंतर जैसे जाति, रंग, धर्म और कि हम अमीर हैं अथवा या गरीब पर अधिक केन्द्रित रहते हैं। उससे भी अधिक महत्वपूर्ण हैं कि हम किन रूपों में समान हैं।
"जब मैं विश्व में यात्रा करता हूँ और लोगों से मिलता हूँ तो मैं सदा स्वयं को आज जीवित सात अरब मनुष्यों में से एक मानता हूँ। मैं स्वयं को तिब्बती अथवा एक बौद्ध के रूप में, यहाँ तक कि दलाई लामा के रूप में तक नहीं सोचता। मेरे कई मित्र हैं क्योंकि मैं सभी को समान भाव से, एक अन्य मनुष्य के रूप में देखता हूँ। यदि मैं अपने आपको कुछ विशिष्ट अथवा दलाई लामा समझूँ तो मेरे कोई मित्र नहीं होंगे।
"इन दिनों विश्व में और अधिक बढ़ती प्राकृतिक आपदाएँ देखने में आ रही हैं। हम एक नकारात्मक व्यवहार अपनाकर इन समस्याओं को बढ़ा रहे हैं। यह बात समझ में आ सकती है यदि हम जानवर होते, पर हम बुद्धिमान मनुष्य हैं जिनमें जो बातें सहायक है और जो नहीं उनमें अंतर करने की क्षमता है। केवल पारस्परिक सहायता करते हुए हम २१वीं सदी को सुख का एक युग बनाने में सक्षम होंगे।"
इस पर टिप्पणी करते हुए कि यह कितने दुख की बात है कि धर्म दुनिया में संघर्ष का कारण बन गया है, परम पावन ने कहाः
"सभी धर्म प्रेम, करुणा, क्षमा और सहिष्णुता की शिक्षा देते हैं अतः उनके बीच संघर्ष का कोई आधार नहीं है। एक बौद्ध भिक्षु के रूप में मैंने कई वर्षों से धार्मिक सद्भाव और समझ को बढ़ावा देने का प्रयास किया है। चूंकि अभ्यास में हममें इतना कुछ आम है, हमें एक दूसरे के साथ सम्मान का व्यवहार करना चाहिए ।
" यहाँ लद्दाख में, मैं यह देखकर खुश हूँ कि बौद्धों और मुसलमानों के बीच अच्छे संबंध हैं और वे शांति से साथ साथ रहते हैं और शिया और सुन्नी मुसलमान भी एक साथ सद्भाव से रहते हैं। यह लद्दाख के विषय में कुछ मूल्यवान है जिसकी आपको रक्षा करनी चाहिए। यह एक निधि है जिसकी भारत में अन्य लोग और बड़े पैमाने पर विश्व में लोग प्रशंसा कर सकते हैं। आप उदाहरण द्वारा यह दिखा रहे हैं कि बहु-धार्मिक समुदाय शांति और सद्भाव से एक साथ रह सकते हैं।"
विशेष रूप से बौद्धों को संबोधित करते हुए परम पावन ने कहाः
"यह आपका चयन है कि आप बौद्ध होना चाहते हैं अथवा नहीं, पर यदि आप यह चयन करें तो आपको एक २१वीं शताब्दी का बौद्ध होना चाहिए। आपको अध्ययन और सीखना चाहिए कि एक बौद्ध होने का क्या अर्थ है। मात्र अंधी श्रद्धा पर्याप्त नहीं है।"
उन्होंने भिक्षुओं से परिश्रम से अध्ययन का आग्रह किया और अपनी समझ का विस्तार करने के लिए तर्क व शास्त्रार्थ को उपकरण के रूप उपयोग करने की सलाह दी और टिप्पणी की कि यह कोई नई सलाह नहीं है अपितु ऐसा है जिसे वे विगत लगभग ६० वर्षों से कह रहे हैं। हमने उनका आह्वान किया कि वे संकीर्ण चित्त वाले न हों अपितु अपने दृष्टिकोण को व्यापक बनाए रखें।
मध्याह्न भोजनोपरांत परम पावन ठिकसे शिक्षण सभागार में लेह से ३५० विद्यालय के बच्चों के प्रश्नों के उत्तर देने लौटे। जमयंग विद्यालय से एक छात्र ने पूछा कि जब विश्व में इतनी हिंसा है तो हम किस प्रकार वास्तविक शांति प्राप्त कर सकते हैं। परम पावन ने उत्तर दिया कि हमें स्मरण रखना चाहिए कि उदाहरणार्थ जाति या धर्म के अंतर बावजूद, मनुष्यों के रूप में हम सभी एक समान हैं। गौण भेदों पर ध्यान केंद्रित करने से हमारे बीच रोड़े उत्पन्न होते हैं। इसके स्थान पर हमें स्मरण रखना चाहिए कि हममें क्या आम है। हम सभी सुखी रहना चाहते हैं और जिस तरह हम चाहते हैं कि हमारा अहित न हो हमें दूसरों का अहित नहीं करना चाहिए । चाहे हम धार्मिक आस्था वाले हों अथवा नहीं, हम सब मनुष्य हैं ।
"वैज्ञानिकों ने प्रदर्शित किया है कि निरंतर भय और क्रोध हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली को दुर्बल करता है। उन्होंने यह प्रमाण भी पाएँ हैं कि आधारभूत मानव प्रकृति करुणाशील है। जब मुझे यह ज्ञात हुआ तो इसने मुझे सच्ची आशा और विश्वास दिया। यदि हमारा आधारभूत स्वभाव क्रोधित होने का होता तो वहाँ कोई आशा न होती। दुर्भाग्यवश आज शिक्षा बाह्य लक्ष्यों पर केंद्रित है। पर यदि उसका उद्देश्य सुखी, स्वस्थ मनुष्यों का निर्माण है तो उसे सौहार्दता पर भी केंद्रित करना चाहिए। यह सामान्य ज्ञान है।
यह पूछे जाने पर कि जब उन्हें अपनी पढ़ाई में बाधाओं का सामना करना पड़े तो छात्र क्या कर सकते हैं, परम पावन ने कहा कि यह असामान्य नहीं है। उन्होंने बताया कि ६ - ७ वर्ष की आयु में उन्हें अध्ययन में कोई रुचि न थी। उनके उत्साह का अभाव, क्योंकि वह शिक्षा का मूल्य नहीं जानते थे एक बाधा थी।
"मेरे बड़े भाई और मैंने एक साथ अध्ययन किया," उन्होंने स्मरण किया। "मेरे शिक्षक दो चाबुक रखते थे - मेरे भाई के लिए एक साधारण और एक पीले रंग का 'पवित्र कोड़ा', मेरे लिए। परन्तु मैं जानता था कि 'पवित्र पीड़ा’ उतनी ही बुरी होगी जितनी 'साधारण पीड़ा', तो प्रारंभ में मैं भय के कारण अपनी पढ़ाई पर ध्यान देता था। हालांकि अंततः मैं समझ गया था कि शिक्षा कितनी महत्वपूर्ण है।"
परम पावन ने छात्रों को सलाह दी कि जब वे तनाव का अनुभव करें तो उन्हें आराम करना चाहिए। उन्होंने कहा कि यह महत्वपूर्ण है कि एक ही बार में लंबे समय का अध्ययन न किया जाए अपितु बीच बीच में आराम किया जाए। उन्होंने उनसे कहा कि शांतिदेव कहते हैं कि जब आप गंभीरता से अध्ययन कर रहे हों और थक कर चूर हो जाएँ तो कुछ आराम करना महत्वपूर्ण है।
कल परम पावन अतीश के 'बोधिपथ प्रदीप' और नागार्जुन के 'बोधिचित्त विवरण' पर प्रवचन देंगे