ठिकसे, लद्दाख, जम्मू एवं कश्मीर, भारत, १२ अगस्त २०१६ - ठिकसे से रवाना होने से पूर्व परम पावन दलाई लामा ने ठिकसे विहार के ञरमा में गदेन छेतेनलिंग की यात्रा की। वहाँ जाते हुए रास्ते में वे मंदिरों और स्तूपों के खंडहर देखने के लिए रुके, जो तिब्बत के विख्यात अनुवादक लोकचक्षु रिनछेन ज़ंगपो द्वारा निर्मित विहार का अंग थे। जब परम पावन थोड़ी देर के लिए वैरोचन मन्दिर गए, तो उन्हें सूचित किया गया कि लोग वहाँ समय समय पर प्रार्थना करने तथा बौद्ध धर्म के विषय में विचार विमर्श करने के लिए एकत्रित होते हैं। उन्होंने उन्हें सलाह दी कि चूँकि यह स्थान रिनछेन ज़ंगपो की उपस्थिति से धन्य हुआ है, अतः उनकी धरोहर को बनाए रखने के लिए कम से कम वर्ष में एक बार ऐसी चर्चाओं का आयोजन और प्रज्ञा पारमिता सूत्रों के १६ संस्करणों का पाठ अच्छा होगा। उन्होंने कहा, यह उस स्थान पर एक शुभ वातावरण का निर्माण करेगा और बाधाओं को दूर करने में सहायक होगा। जब वे वहाँ से प्रस्थान कर रहे थे थे तो मंदिर की सीढ़ियों पर उन्होंने बल देते हुए कहाः
"यद्यपि मैं ८१ वर्ष की आयु का हूँ, पर मैं अभी भी अपने आपको एक छात्र के रूप में सोचता हूँ और जब भी संभव हो शास्त्रों पर चिंतन करता हूँ। आपके लिए भी ऐसा करना अच्छा होगा।"
गदेन छेतेनलिंग भिक्षुणी विहार पहुँचकर, जिसके प्रमुख ठिकसे रिनपोछे हैं, परम पावन का स्वागत वरिष्ठ भिक्षुणियों ने किया जिन्होंने मंदिर के पूजा सभागार के अंदर उनका अनुरक्षण किया जहाँ उन्होंने सम्मान व्यक्त किया और उनसे बात करने बैठ गए। स्थानीय लोगों को शिक्षित करने हेतु रिनछेन ज़ंगपो के प्रयासों का स्मरण करते हुए उन्होंने कहाः
"एक हजार से अधिक वर्षों से बुद्ध की देशनाओं के तीन पिटक जिनमें अनुशासन, प्रवचन और उच्चतर ज्ञान का समावेश है का संबंध शील, समाधि प्रज्ञा तीन अधिशिक्षाओं से है जिनका इस क्षेत्र में पोषण हुआ है। अब जब यहाँ आपका एक भिक्षुणी विहार है आप भिक्षुणियों को देशनाओं के अध्ययन का अवसर लेना चाहिए।"
यह देखते हुए कि तिब्बत और ट्रांस हिमालय क्षेत्रों की भिक्षुणियों ने हाल ही में अपने अध्ययन में इस तरह की प्रवीणता प्राप्त की है कि वे गेशे उपाधि की योग्यता रखती हैं, परम पावन ने कहा,
"कई वर्षों पूर्व मैंने निर्वासन में भिक्षुणी विहारों से बौद्ध दर्शन के अध्ययन को प्रारंभ करने का आग्रह किया। इस वर्ष के उत्तरार्ध में जिन्होंने सफलतापूर्वक अध्ययन पाठ्यक्रम का पालन किया वे गेशे-मा की उपाधि प्राप्त करने जा रही हैं। मैं आपसे भी शास्त्रीय ग्रंथों के अध्ययन का आग्रह करता हूँ।"
परम पावन ने मंजुश्री मंत्र का संचरण देकर समाप्त किया। उन्होंने समझाया कि मंजुश्री की प्रार्थना करने और उनके मंत्र का पाठ हमारे ज्ञान की वृद्धि में एक उत्प्रेरक के रूप में कार्य करता है परन्तु मुख्य कारक शिक्षाओं का अध्ययन करने और अपनी बुद्धि का प्रयोग करना है।
ठिकसे के रणवीरपुर कॉलोनी के शिया मस्जिद में, मुस्लिम धार्मिक और सांस्कृतिक सोसायटी के सदस्यों ने परम पावन का स्वागत किया। एक बार जब प्रत्येक व्यक्ति बैठ गया और स्वागत के शब्द कहे गए, परम पावन ने उत्तर दिया:
"यहाँ आपके समुदाय का दौरा करना मेरे लिए एक सम्मान की बात है - निमंत्रण के लिए आपको धन्यवाद।"
परम पावन ने भारत में धार्मिक सद्भाव के बारे में बात की, विशेषकर लद्दाख में, जहाँ मुस्लिम और बौद्ध समुदायों के बीच अच्छे संबंध अनुकरणीय हैं। परन्तु उन्होंने आग्रह किया कि यह सौहार्द भावना लद्दाख तक ही सीमित नहीं होना चाहिए, परन्तु देश के अन्य भागों और व्यापक विश्व में फैलना चाहिए विशेषकर अरब देशों में। परम पावन ने समझाया कि अमेरिका में ११ सितंबर की त्रासदी के बाद से, वे इस्लाम के एक मुखर रक्षक रहे हैं और 'इस्लाम और पश्चिम के बीच टकराव' के भ्रांत विकृत दृष्टिकोण को दूर करने के लिए चिंतित है। उन्होंने लद्दाख में अपने मुस्लिम मित्रों से आग्रह किया है अंतर्धार्मिक सद्भाव के लिए एक आंदोलन का निर्माण करें। उन्होंने उन्हें आश्वस्त कियाः
"यदि आप इस तरह का एक आंदोलन प्रारंभ करें तो मैं आपके साथ शामिल होने के लिए तैयार हूँ," तथा आगे कहा "जिस प्रकार मैं तकिया पहनने (मुस्लिम टोपी) में आपके साथ शामिल हूँ। हमें आज विश्व में कई धर्मों के अस्तित्व के प्रति लोगों के हृदयों को खोलने तथा भ्रातृत्व भाव से साथ रहने की आवश्यकता के बारे में काम करने की ज़रूरत है। परम पावन ने स्वीकृत रिवाज़ों और अभ्यासों का परीक्षण कर जो अब सार्थक नहीं हैं उन्हें दूर करने की सलाह दी।
परम पावन ने श्रोताओं के कई प्रश्नों के उत्तर दिए, अपने मेजबान को धन्यवाद दिया और ठिकसे विहार के निकट जम्पा आवास के लिए रवाना हुए। मध्याह्न भोजनोपरांत वे गाड़ी से शे के लमडोन मॉडल स्कूल (एलएमएस) गए, जो लद्दाख पर्वतीय परिषद के मुख्य कार्यकारी पार्षद द्वारा प्रारंभ किया गया था। जब वह मंच की ओर चले तो दोनों ओर लद्दाखी महिलाओं ने पारंपरिक स्वागत गीत गाए। छात्रों ने मंजुश्री की प्रार्थना, जिसके बाद मंजुश्री मंत्र का पाठ किया और उसके बाद भारतीय राष्ट्रीय गान गाया।
लद्दाख पर्वतीय परिषद के मुख्य कार्यकारी पार्षद ने बताया कि किस प्रकार स्कूल लमडोन मॉडल स्कूल की एक शाखा के रूप में स्थापित किया गया था और यह एक लंबे समय की इच्छा थी कि वहाँ परम पावन आएँगे।उन्होंने कहा कि समूचा विद्यालय उनकी उपस्थिति से सम्मानित था।
अपने उत्तर में परम पावन ने छात्रों द्वारा पाठ की गई मंजुश्री प्रार्थना की उस पंक्ति पर ध्यानाकर्षित किया, जिसमें आता है, "मंजुघोष मैं आपको प्रणाम करता हूँ, जो मेरे चित्त के अंधकार को दूर करता है।" उन्होंने कहा कि यह हमारे ज्ञान का अभाव है, अज्ञान का 'अंधकार' जिसे ज्ञान और प्रज्ञा द्वारा दूर किया जाना चाहिए। उन्होंने श्रोताओं से कहा कि कुछ समय पहले उन्होंने अपने एक चित्र पर हस्ताक्षर किए थे - बौद्ध दार्शनिक सिद्धांतों का प्रस्तावक - छात्रों को यह स्मरण दिलाने के लिए कि उन्हें अपनी मानक शिक्षा के अतिरिक्त बौद्ध दर्शन का अध्ययन करने की आवश्यकता है।
"प्रज्ञा केवल प्रार्थनाओं के पाठ से नहीं आएगी अपितु भली भांति अध्ययन करने से आएगी, उन्होंने उन्हें सलाह दी।
परम पावन ने सभी उपस्थित लोगों का आभार व्यक्त किया और शिवाछेल फोडंग में अपने आवास लौट आए।