लेह, लद्दाख, जम्मू और कश्मीर, भारत - २९ जुलाई २०१५- पलगोन फगपा नेतन बकुला संस्थान हॉस्टल पृथ्वी की सतह से निकले एक चट्टानी अंश के चरणों पर है जिसके शीर्ष भाग पर स्पितुक विहार स्थित है। एक छोटी पैदल दूरी पर लंबे चिनार वृक्षों के बीच एक मंडप और ग्रीष्मकालीन उच्चतर बौद्ध परिषद के आज प्रातः उद्घाटन के लिए तैयार किया गया भूस्थल है।
जब परम पावन दलाई लामा ने अपना आसन ग्रहण कर लिया तो बकुला रिनपोछे के युवा अवतरण स्पितुक विहार के प्रमुख लामा ने उन्हें मंडल और प्रबुद्ध काय, वाक् और चित्त के तीन प्रतीक प्रस्तुत किए।
लद्दाख बौद्ध अध्ययान संस्थान के निदेशक, गेशे कोनछोक वांगदू ने अवसर का परिचय दिया। उन्होंने कहा कि यह ग्रीष्मकालीन शास्त्रार्थ सत्र धार्मिक शिक्षा के स्तर को ऊपर उठाने और लद्दाख में अंतर्धार्मिक सद्भाव को बढ़ावा देने के लिए समर्पित किया गया है। शास्त्रार्थ का मुख्य विषय प्रज्ञा-पारमिता की शिक्षाएँ हैं क्योंकि परम पावन इस बात को समझने की आवश्यकता पर बल देते हैं कि बौद्ध धर्म का अर्थ क्या है, आज इसकी प्रासंगिकता क्या है और इसे किस प्रकार चर्या में लाया जा सकता है। उन्होंने यह माना कि परम पावन के मार्गदर्शन के कारण ही इस क्षेत्र में हाल ही में बौद्ध समझ में बहुत सुधार हुआ है।
गेशे थुबतेन रबगे, जो लिंग रिनपोछे के शिक्षक हैं, ने परम पावन, गदेन ठि रिनपोछे, लद्दाख प्रशासन के अधिकारियों, भिक्षुओं, विद्वानों और अन्य सभी अतिथियों का स्वागत किया। उन्होंने कहा कि विगत वर्ष लिकिर विहार में हुए ग्रीष्मकालीन शास्त्रार्थ ने अनुपालन करने योग्य एक अच्छा उदाहरण प्रस्तुत किया था।
स्पितुक विहार के भिक्षुओं ने शास्त्रार्थ का प्रारंभ एक ऊर्जावान चर्चा के साथ किया कि, सत्वों की स्वभावगत सत्ता होती है अथवा नहीं। उनके पश्चात बकुला रिनपोछे के युवा अवतरण, जो अभी भी शास्त्रार्थ प्रशिक्षण की प्रारंभिक अवस्था में हैं, ने सहजता और शांतिपूर्ण आत्मविश्वास के साथ 'संग्रहित विषयों' से प्रश्नों का सामना किया। उनके प्रदर्शन का अभिनन्दन सौहार्दपूर्ण करतल ध्वनि से हुआ। स्थानीय स्कूल के बच्चों, लड़कियों और लड़कों के कई समूहों ने आधारभूत विषयों, जैसे चार आर्य सत्य, प्रणिधान और प्रस्थान बोधि चित्त के बीच का अंतर और उन्हें विकसित करने के उपायों पर शास्त्रार्थ किया।
जम्मू एवं कश्मीर राज्य के मंत्री छेरिंग दोर्जी ने जनसमुदाय को संबोधित करते हुए कहा कि परम पावन के मार्गदर्शन में ही स्थानीय विहारों ने सफलतापूर्वक बौद्ध दर्शन और शास्त्रार्थ का अध्ययन प्रारंभ किया है। उन्होंने इन ग्रीष्मकालीन शास्त्रार्थ की सराहना करते हुए उन्हें जीवन्त रखने योग्य प्रथा बताया। लद्दाख स्वायत्त पर्वतीय विकास परिषद के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (LAHDC), रिगज़िन स्पलबर ने टिप्पणी की, कि कुछ लद्दाखी युवक अपनी स्थानीय संस्कृति और परम्पराओं के मूल्य के बारे में भ्रमित हैं। उन्होंने कहा कि अतीत में माता पिता इन बातों की शिक्षा देते थे, पर आजकल, युवा लोग अपने माता-पिता की ओर कम ध्यान देते हैं। और इसी कारण यह विशेष रूप से मूल्यवान है, जब परम पावन उन्हें सम्प्रति बौद्ध शिक्षण की प्रासंगिकता को समझने में सहायता कर रहे हैं।
गदेन ठि रिनपोछे ने आगे जोड़ा कि पुराने तरीके परिवर्तित हो रहे हैं और लोग प्रतिस्थापित परंपराओं में रुचि खो देते हैं। परन्तु उन्होंने कहा कि परम पावन के प्रयासों के कारण बौद्ध धर्म और उसकी समझ में रुचि पुनर्स्थापित हो रही है। यह मात्र पूर्वाग्रहों पर नहीं अपितु कारणों पर आधारित परम्परा है और मात्र ऐसी आध्यात्मिक परम्परा है जो प्रतीत्यसमुत्पाद की अवधारणा को प्रतिपादित करती है।
परम पावन ने सबका अभिनन्दन करते हुए अपना संबोधन प्रारंभ किया। उन्होंने भी लद्दाख में हुए परिवर्तन पर टिप्पणी की, जो सभी सकारात्मक न थी। उन्होंने यह सुनकर अपनी चिन्ता व्यक्त की, कि लद्दाख में आत्महत्या के समाचार अधिक हो रहे हैं, जहाँ ऐसा लगभग कभी न हुआ था। वे इसे विश्व को पीड़ित कर रहे एक व्यापक नैतिक संकट के एक प्रतिबिंब के रूप में देखते हैं। आज जीवित ७ अरब मनुष्यों के समक्ष आ रही समस्याओं में से कई मानव निर्मित हैं।
"हम इन समस्याओं के समाधान के लिए प्रार्थना कर सकते हैं," वे हँसे, "पर वास्तविक समाधान उसी समय मिलेगा जब हम स्वयं कार्रवाई करेंगे। यहाँ के वयोवृद्ध लोग २०वीं शताब्दी के हैं, वो समय जो अतीत बन चुका है, जो कि असाधारण रक्तपात का एक युग था। २१वीं सदी किस रूप में होगी, वो आप लोगों पर निर्भर करता है जो अभी भी युवा हैं। यह शांति और सुख का एक युग हो सकता है यदि आप उसके लिए काम करें, पर यदि आप क्रोधित व लालची हैं, तो यह संघर्ष और पीड़ा के एक और युग में परिवर्तित हो जाएगा। जब अंग्रेज़ों ने भारत पर शासन किया तो एक सकारात्मक बात जिस पर उन्होंने बल दिया, वह शिक्षा का मूल्य था। हमें उसे आज ऊपर रखना है पर साथ ही उसके साथ पारम्परिक आंतरिक मूल्यों को भी जोड़ना है।
"२१वीं सदी को शांति का युग बनाने के लिये हमें सीखने की आवश्यकता है कि किस प्रकार चित्त की शांति विकसित की जाए और किस प्रकार अपनी उद्वेलित करने वाली भावनाओं से निपटा जाए। जब हम शारीरिक रूप से रोगी होते हैं तो हम रोग की पहचान कर उसका निदान ढूँढते हैं। हमें एक स्वस्थ चित्त का निर्माण करने के लिए इसी प्रकार के दृष्टिकोण की आवश्यकता है। नशीली दवाएँ लेना या शराब पीकर नशा करना हमारी उद्वेलित करने वाली भावनाओं को रोक नहीं सकता। हमें वास्तविकता की एक स्पष्ट समझ और चित्त के कार्य कलापों के आधार पर एक भावनात्मक स्वास्थ्य को काम में लाने की आवश्यकता है।
"मैं बौद्ध विज्ञान, दर्शन और धर्म के बीच अंतर करता हूँ। जो लोग बौद्ध नहीं हैं उन्हें परम्परा के धार्मिक पहलुओं पर ध्यान देने की कोई आवश्यकता नहीं है, पर ऐसा कोई कारण नहीं कि विज्ञान और दर्शन मुक्त रूप से उन लोगों के लिए सुलभ न हों जो उनसे लाभान्वित होना चाहते हैं। इन दिनों प्रख्यात वैज्ञानिक इन स्रोतों में उपलब्ध वास्तविकता के गहन स्पष्टीकरण तथा चित्त के कार्यों में रुचि दिखा रहे हैं।"
अध्ययन के पारंपरिक तरीकों के संबंध में, परम पावन ने समझाया कि भारत और तिब्बत के प्राचीन आचार्यों ने लेखन व शास्त्रार्थ में एक ऐसा दृष्टिकोण अपनाया, जिसमें उन्होंने दूसरों के विचारों का खंडन किया, अपने विचारों का मंडन किया और परिणामस्वरूप आईं आलोचनाओं का पुनर्खंडन किया। उन्होंने टिप्पणी की, कि नागार्जुन और उनके शिष्यों का यह दृष्टिकोण जिसका पालन धर्मकीर्ति, दिङ्नाग और शांतरक्षित ने किया, तिब्बत ले जाया गया और वहाँ कठोर अनुशासन में इसका संरक्षण हुआ। वैज्ञानिक प्रभावित हुए और उन्होंने जानना चाहा कि क्या इस दृष्टिकोण को अन्य विषयों के लिए लागू किया जा सकता है। परम पावन ने उल्लेख किया कि तिब्बती विद्यालयों और विहारों में छात्र अब विज्ञान और गणित के प्रश्नों पर शास्त्रार्थ कर रहे हैं। उन्होंने आगे जोड़ा कि अपनी बात के समर्थन के लिए प्रामाणिक उद्धरण का उदाहरण देना पारम्परिक रूप से स्वीकार्य है, पर उस उद्धरण को तर्क का समर्थन प्राप्त होना चाहिए, न कि इसके विपरीत।
"प्रतिस्पर्धा की एक सकारात्मक भावना भी शास्त्रार्थ में बहुत सहायक हो सकती है, पर मात्र इस इच्छा के संदर्भ में कि आप और आपके विरोधी दोनों अंततः सफल हों। अंत में मैं एक लामा की कहानी सुनाना चाहूँगा जिसने करजे, खम में भिक्षुओं और साधारण लोगों के लिए अध्ययन तथा शास्त्रार्थ प्रारंभ किया। वहाँ निकट एक ङगपा विहार भी था और गृहस्थ ङगपाओं को उनके लिए अनुष्ठान करने हेतु आमंत्रित करते थे। शीघ्र ही ङगपाओं ने शिकायत करनी प्रारंभ कर दी कि साधारण लोगों को शास्त्रार्थ की शिक्षा नहीं दी जानी चाहिए, क्योंकि जब वे उनके लिए अनुष्ठान करने आते थे, तो वे भाँति भाँति के प्रश्न करते थे जिनका उत्तर वे नहीं दे पाते थे। जो भी हो, अध्ययन का यह रूप जो 'संग्रहीत विषयों' से प्रारंभ हो एक एक चरण रखते हुए प्रज्ञा- पारमिता तक जाता है, वह विकास का एक स्रोत है।"
स्पितुक शास्त्रार्थ स्थान से परम पावन गाड़ी से शांति स्तूप के निकट एक सभागार और रंगभूमि, सिंधु संस्कृति केन्द्र गए। मुख्य कार्यकारी पार्षद (LAHDC), रिगज़िन स्पलबर ने ५०० आमंत्रित अतिथियों को समझाया कि चौथे पर्वतीय परिषद, जिसके वे अध्यक्ष हैं, की कई उपलब्धियाँ हैं, जैसे कि लेह की सफाई, प्रदूषण को कम करना, शिक्षा सुविधाओं में सुधार और बुनियादी ढांचे और कृषि को सकारात्मक रूप से प्रभावित करने के लिए विकास को पुनः स्वरूप देना। उन्होंने घोषणा की कि एक पुस्तक 'चौथे पर्वतीय परिषद की उपलब्धियाँ' तैयार की जा चुकी थी और उन्होंने परम पावन से इसके विमोचन करने का अनुरोध किया था।
सभा को संबोधित करने के लिए आमंत्रित किए जाने पर, परम पावन ने टिप्पणी की, कि वह स्वयं को ७ अरब मनुष्यों के बीच एक के रूप में देखते हैं। उन्होंने मिस्र, चीन और सिंधु घाटी के महान प्राचीन सभ्यताओं की ओर ध्यान आकर्षित किया और कहा कि यह स्पष्ट है कि सिंधु घाटी सभ्यता ने अब तक अधिक से अधिक संख्या में महत्वपूर्ण विचारकों, दार्शनिकों और आध्यात्मिक शिक्षकों को जन्म दिया है। अब यहाँ, २१वीं सदी में भी ऐसा है कि अहिंसा जैसी प्राचीन भारतीय अवधारणाएँ परम रूप से प्रासंगिक बनी हुई हैं। इसी प्रकार भारत विश्व के अन्य भागों के समक्ष उदाहरण रखता है कि विश्व की सभी धार्मिक परंपराओं के लिए सद्भावपूर्ण रूप से एक साथ मिलकर रहना संभव है।
परम पावन ने २१वीं शताब्दी के लिए धर्मनिरपेक्ष नैतिकता की भावना को बढ़ावा देने के महत्व का संदर्भ दिया। ये मूल्य सार्वभौमिक अर्थ रखते हैं जिनका किसी विशेष धार्मिक परम्परा से कोई संबंध नहीं, पर इनकी शिक्षा सभी धार्मिक परम्पराओं और उनके लिए भी जो इस बात पर ज़ोर देते हैं कि उनकी किसी में आस्था नहीं है, के संदर्भ में दी जाती है। उन्होंने चित्त के कार्यों के संबंध में गहन ज्ञान और हमारे भावनाओं के प्रकार्य के संबंध में नालन्दा परम्परा से ग्रहण करने के लिए प्रोत्साहित किया। उन्होंने यह कहते हुए श्रोताओं को छेड़ा ः
"प्रार्थना करना और लामाओं और मंदिरों में धन समर्पित करना पर्याप्त नहीं है। यदि आपके पास अतिरिक्त धन है, तो उसे पुस्तकों पर खर्च करें और उन्हें पढ़ें। मैं ८० वर्ष का हो सकता हूँ, पर अभी भी जब भी संभव हो मैं अध्ययन करता हूँ। जब भी मुझे अवसर मिलता है, मैं पढ़ता हूँ। जैसा कि मैं सभी बौद्धों जिनसे मैं मिलता हूँ, कहता हूँ कि यदि आप २१वीं सदी के बौद्ध बनना चाहते हैं तो आपको समझना होगा कि बौद्ध धर्म क्या है, कि यह केवल बुद्धम् सरणम् गच्छामि के जाप से अधिक है। जैसा कि मैंने पिछले वर्ष वीएचपी की एक बैठक में कहा था कि आधुनिक विकास को पारंपरिक मूल्यों के साथ जोड़ने के उपाय ढूँढना महत्वपूर्ण है। मैं १९६६ में पहली बार लद्दाख आया था और तब से यहाँ मूलभूत व्यवस्थाओं तथा शिक्षा दोनों में भारी विकास हुआ है। मैं आशा करता हूँ कि मैं आगामी दस वर्ष आने में सक्षम रहूँगा, पर एक बार मैं ९० वर्ष का हुआ तो मैं नहीं जानता।"
परम पावन सभागार के पीछे रंगभूमि में मध्याह्न के भोजन के लिए सभी आमंत्रित अतिथियों के साथ सम्मिलित हुए। जब भोज का समापन हो रहा था तो आकाशवाणी के एक स्थानीय संवाददाता ने पूर्व राष्ट्रपति ए पी जे अब्दुल कलाम के निधन पर उनके विचार जानने चाहे और उन्होंने उससे कहाः
"जब मैंने सुना कि डॉ अब्दुल कलाम का निधन हो गया तो मुझे अत्यंत दुःख हुआ। वह एक बहुत अच्छे इंसान थे, एक विशेष व्यक्ति। सबसे पहले, मैंने सदा एक अच्छे इंसान के रूप में उनके गुणों की सराहना की। एक अन्य स्तर पर, वह एक मुसलमान हैं, एक महान वैज्ञानिक और ऐसे व्यक्ति जो इस महान देश के राष्ट्रपति बने। इसके बाद भी उनकी आधारभूत अच्छी मानव प्रकृति अपरिवर्तित रही। उन्होंने उन बौद्ध ग्रंथों के बारे में जो करुणा की शिक्षा देते हैं, और अधिक जानने में बहुत रुचि दिखाई। वे एक प्रिय मित्र थे जिन्हें मैं मृत्यु पर्यन्त याद रखूँगा और मैं परिवार के लिए अपनी संवेदना व्यक्त करना चाहता हूँ। मैंने सुना है कि उनके एक भाई हैं जो ९९ वर्ष के हैं। मैं आशा करता हूँ कि मैं भी उतने लम्बे समय तक जीऊँगा।"
कल, परम पावन एक लघु प्रवचन और दीर्घायु अभिषेक देंगे। तत्पश्चात चोगलमसर के आगे शिवाछेल प्रवचन स्थल पर उनके िलए एक दीर्घायु समारोह समर्पित किया जाएगा।