नई दिल्ली, २२ मार्च २०१५- लगभग हर सीट ली जा चुकी थी और सभागार एक प्रतीक्षा भरी शांति से भरा था जब परम पावन दलाई लामा आज प्रातः प्रदत्त किए जाने वाले श्वेत मंजुश्री की अनुज्ञा हेतु तैयारी प्रारंभ करने के लिए पहुंचे।
"मंजुश्री की यह 'अनुज्ञा' या आशीर्वाद तंत्र से संबंधित है," उन्होंने प्रारंभ किया, "पर कुछ लोग कहते हैं कि महायान और बौद्ध तंत्र बुद्ध द्वारा सिखाया नहीं गया। मैंने यहाँ तक सुना है कि बुद्ध संस्कृत नहीं जानते थे। परन्तु नालंदा आचार्य नागार्जुन, आर्यदेव और चन्द्रकीर्ति ने गुह्यसमाज तंत्र के बारे में व्यापक रूप से लिखा। शांतरक्षित जिन्होंने बाद में तिब्बत में बुद्ध की शिक्षाओं, विहारीय दीक्षा और तीन अधिशिक्षा की स्थापना की, ने अनुत्तर योग तंत्र पर भी लिखा। इसके पश्चात अतीश ने भी अपने 'बोधि पथ प्रदीप' में तंत्र की चर्या का उल्लेख किया।"
परम पावन ने आगे स्पष्ट किया कि नागार्जुन की दृष्टि यह है कि महायान में बुद्ध की शिक्षाएँ बोधिचित्तोत्पाद से संबंधित हैं। और तो और बौद्ध तंत्र में देव योग आता है जिसमें शून्यता की समझ का संदर्भ रखते हुए आप स्वयं को देव के रूप में परिवर्तन करने की भावना करते हैं। सभी बौद्ध तंत्र शून्यता की समझ पर बल देते हैं जो संकेत देता है कि यह बुद्ध की शिक्षा है। तंत्र का अभ्यास प्रभास्वरता वाले चित्त को प्रयोग में लाता है, एक ऐसा चित्त जो तीक्ष्ण, उन्मुक्त और बिना पूर्वाग्रह के हो।
बुद्ध ने यह स्पष्ट किया कि हमें स्वयं उनके द्वारा प्रकट किए गए मार्ग का अनुशीलन करते हुए अपनी अज्ञानता पर काबू पाना है। और इसका अर्थ है कि हमें अध्ययन की आवश्यकता है।
"बुद्ध पाप को जल से धोते नहीं,
न ही जगत के दुःखंो को अपने हाथों से हटाते हैं;
न ही अपने अधिगम को दूसरों में स्थान्तरण करते हैं;
वे धर्मता सत्य देशना से सत्वों को मुक्त कराते हैं । "
तिब्बती बौद्ध आचार्यों ने सुझाया है कि कुछ शिक्षाएँ मार्ग की सामान्य संरचना का वर्णन करती हैं, जबकि अन्य व्यक्तिगत आवश्यकताओं के अनुरूप हैं। परम पावन ने कहा कि प्रज्ञा पारमिता तथा विनय की देशनाएँ प्रथम वर्ग में आती हैं, जबकि अधिकांश तांत्रिक शिक्षाएँ दूसरे वर्ग में आती हैं। जब चर्या की बात आती है तो पहले उन शिक्षाओं का अध्ययन करना बेहतर होगा जो मार्ग की सामान्य संरचना प्रदान करते हैं। उसके पश्चात विशिष्ट शिक्षाएँ, जैसे तंत्र पर जाएँ जो शून्यता की अनुभूति कर उसे प्रज्ञा में परिवर्तन के लिए एक सूक्ष्म चेतना को काम में लाती हैं।
परम पावन ने स्पष्ट किया कि वह श्वेत मंजुश्री की 'अनुज्ञा' दे रहे थे जिसकी चर्या अधिकांश रूप से परोपकार और करुणा के साथ प्रज्ञा पर केंद्रित है। यह ऐसे संग्रह से आता है जो रिनजुंग ज्ञाचा के नाम से जाना जाता है जो उन्हें तगडग रिनपोछे से मिली जब वे छोटे थे। उन्होंने श्रोताओं का आवश्यक भावनाओं के माध्यम से मार्गदर्शन किया जिसमें एक संक्षिप्त बोधिचित्तोत्पाद की पुनरावृत्ति थी। अंत में उन्होंने घोषणा की कि इस वर्ष की शिक्षा श्रृखंला समाप्त हो चुकी है।
"वास्तविक परिवर्तन उसी समय संभव है यदि आप पर्याप्त ज्ञान से युक्त हो इस चर्या में रत हों," उन्होंने सलाह दी। "इसलिए आप को अध्ययन की आवश्यकता है और फिर कुछ और अधिक अध्ययन की आवश्यकता है। जब मैं छोटा था तो अध्ययन की ओर मेरा रुझान कम था। मैं स्वाभावतः आलसी था। जब मैं लगभग १६ वर्ष का हुआ तो मेरी रुचि बढ़ गई। मैंने अध्ययन किया है और जो अध्ययन किया उस पर चिन्तन किया। अब, जब मैं मुड़ कर देखता हूँ तो समझ पाता हूँ कि यह कितना सहायक सिद्ध हुआ है।"
राजीव मेहरोत्रा ने इस कार्यक्रम को संभव बनाने में उनकी कड़ी मेहनत के लिए फाउंडेशन फॉर युनिवर्सल रेसपांसिबिलिटी के कर्मचारियों के प्रति धन्यवाद व्यक्त किया। उन्होंने शिक्षा देने के निमंत्रण को स्वीकार करने के लिए परम पावन के प्रति आभार व्यक्त किया। अंत में उन्होंने परम पावन की दीर्घायु के लिए एक प्रार्थना के पाठ में वहाँ उपस्थित सब का नेतृत्व किया।