दिल्ली, भारत - २५ मार्च २०१५- आज प्रातः ९:०० के तुरन्त बाद दिल्ली विश्वविद्यालय में विज्ञान, नैतिकता और शिक्षा सम्मेलन का दूसरा दिन माइंड एंड लाइफ अनुभवी क्लिफोर्ड सारोन की एक प्रस्तुति के साथ प्रारंभ हुआ। वह शमथ परियोजना के प्रधान अन्वेषक हैं और उनका व्याख्यान किस प्रकार मननशील अभ्यास मानसिक और भावनात्मक प्रशिक्षण प्रदान कर सकते हैं, जो शिक्षकों के लिए सहायक है, के तरीकों पर केंद्रित था। उन्होंने परम पावन दलाई लामा से कहा कि २००९ में उन्होंने पूछा था कि वे साधारण लोगों को अपने चित्त की जाँच के लिए किस प्रकार प्रोत्साहित करें और उन्होंने उत्तर दिया था कि वह उन जैसे लोगों पर निर्भर था। उन्होंने कहा कि चूँकि जागरूकता की रुचि में महती वृद्धि हुई है, पर सभी सकारात्मक नहीं है। उन्होंने एक घोषणा का उदाहरण दिया "वॉल स्ट्रीट पर हत्या करें - ध्यान करना प्रारंभ करें"।
शमथ परियोजना के एक अंग के रूप में एक घन का ज्वलंत प्रदर्शन का उपयोग करते हुए सरोन ने प्रदर्शित वस्तु उन्मुखीकरण, स्वरूप का न ग्रहण करना, मैत्री, जागरूकता साथ ही, छिद्र, स्पष्टता, स्थिरता और प्रयास को ध्यान शांति और भावनात्मक संतुलन से संबंधित करते हुए स्पष्ट किया। इससे ध्यान संबंधी, भावनात्मक तथा मनोवैज्ञानिक प्रक्रियाएँ, तीन महीने की अवधि के दौरान किस प्रकार संशोधित होती हैं, का स्पष्ट आकलन किया जा सकता है।
परम पावन ने अपनी एक रुचि, जो वे पहले अभिव्यक्त कर चुके हैं, दोहराई जो धारणात्मक तथा गैरधारणात्मक के बीच का अंतर है। उन्होंने संवेदी धारणा और चित्त में एक वस्तु की छवि तथा जाँचकर्ता चित्त के स्तर पर अभ्यास के विषय में क्या जान सकते हैं, की ओर ध्यानाकर्षित किया। उन्होंने यह टिप्पणी भी कीः
"इससे अंतर पड़ता है कि जिस वस्तु पर आप ध्यान केंद्रित कर रहे हैं वह बाह्य वस्तु है अथवा स्वयं चित्त है। उन्होंने चित्त को ही ध्यान की वस्तु के रूप में केन्द्रित करने की सिफारिश की।"
राजन चांडी, जो राधिका हर्ज़बर्गर की तरह ऋषि वैली स्कूल में अध्यापन कराते हैं, ने इस बात पर बल देते हुए अपनी प्रस्तुति प्रारंभ की, कि एक व्यापक धारणा है कि ध्यान में चित्त को सभी विचारों से रिक्त करना पड़ता है। उन्होंने प्राचीन भारतीय अभ्यास में आम ज्ञान को लेकर त्रिविधीय व्यवहार को रेखांकित किया। इसमें शिक्षक से सुनना अथवा किसी विषय पर पठन, उस पर चिन्तन और भावना द्वारा आप जो समझे हैं उससे इतना परिचित हो जाना कि वह ज्ञान आपका अपना हो जाए, शामिल है ।
अपनी प्रस्तुति के दूसरे भाग में, चांडी ने सुझाव दिया कि छात्रों के लिए यह अच्छा होगा कि इस पर सोचें कि सामाजिक विकास क्या है जब वह दूसरों के प्रति चिंता के बजाय आत्म-केन्द्रितता द्वारा संचालित हो। उन्होंने इंगित किया कि यदि भारत विकास के प्रारूप के रूप में संयुक्त राज्य अमेरिका को बनाए रखना जारी रखेगा तो मोटर गाड़ियों की संख्या कितनी अधिक होगी और प्रदूषण और यातायात अराजकता कितनी अधिक होगी। पुनर्मूल्यांकन की आवश्यकता के लिए एक और उदाहरण एल्यूमीनियम का उपयोग है जो आधुनिक जीवन में बहुत आवश्यक हो गया है। अल्युमीनियम बॉक्साइट खनन से प्राप्त होता है, परन्तु भारत में बॉक्साइट खनन का अर्थ वनों का विनाश जन जातीय लोगों का विस्थापन है, जो ज़मीन पर निर्भर रहते हैं। प्रश्न जिनका विश्लेषण वे अपने छात्रों, आने वाली पीढ़ी के सदस्यों से चाहेंगे कि क्या कोई विकल्प है। परम पावन ने टिप्पणी की:
"आप उस विषय पर बात कर रहे हैं जिसे हम विपश्यना कहते हैं, जो अंतर्दृष्टि की ओर ले जाता है। आप ने आत्म पोषण के हानिकारक दीर्घ कालीन परिणामों के संबंध में एक महत्वपूर्ण प्रश्न उठाया है। पर दूसरी ओर यदि आप दूसरों की सहायता करें तो आपको मित्र मिलेंगे और आप सुखी होंगे। आपने जो कहा मैं उसकी सराहना करता हूँ।"
नंदिनी चटर्जी-सिंह, जो संज्ञानात्मक न्यूरोसाइंटिस्ट हैं और राष्ट्रीय मस्तिष्क अनुसंधान केंद्र में काम कर रही हैं, ने किस तरह संगीत भावनाओं को जन्म देते हैं, के अनुसंधान का साझा करने के लिए अपनी प्रस्तुति बदल दी। उन्होंने कहा कि भावनाएँ मानव अस्तित्व के केन्द्र में हैं और शास्त्रीय उत्तर भारतीय राग विशिष्ट भावनाओं को जन्म देने में सक्षम हैं। व्यवहार अध्ययन के एक ऑनलाइन आयोजन ने प्रकट किया कि राग विशिष्ट भावनात्मक प्रतिक्रियाएँ सामने लाती हैं, कुछ जो उत्साहित करती हैं और कुछ जो शांत और सुखदायी हैं। उन्होंने इंगित किया कि इससे अंतर पड़ता है यदि शिक्षक शांत स्थिति में कक्षा में प्रवेश करे और इसके पूर्व संगीत सुनने से यह संभव है। इसी तरह छात्र अध्ययन की ओर अधिक झुकाव रख सकते हैं यदि उनका दिन शांत संगीत से प्रारंभ हुआ हो।
परम पावन ने टिप्पणी की:
"मैं जानता हूँ कि लोग संगीत का आनन्द लेते हैं और मुझे उसका समर्थन करना चाहिए, पर व्यक्तिगत स्तर पर मैं संगीत की ओर कोई ध्यान नहीं देता। पर यदि आप सोचती हैं कि इसका एक सकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है तो सीरिया जैसे देशों में जहाँ लोग एक दूसरे की हत्या कर रहे हैं, मैं संगीत बजाने का समर्थन करूँगा।"
मध्याह्न में दूसरे सत्र के प्रारंभ में, मंगोलियाई प्रतिनिधिमंडल ने मंगोलिया की विज्ञान अकादमी की ओर से परम पावन को डॉक्टरेट की मानद उपाधि प्रदान की। उन्होंने उत्तर दियाः
"तिब्बत और मंगोलिया के बीच एक लम्बे समय से चले आ रहे संबंध के अस्तित्व के कारण यह पुरस्कार मेरे लिए एक विशेष महत्व रखता है। १३वीं शताब्दी में सक्या फगपा ने मंगोलिया में नालंदा परम्परा प्रारंभ की। उसके बाद मेरे पूर्ववर्ती सोनम ज्ञाछो ने मंगोलिया की यात्रा की और वहाँ उनकी मृत्यु हो गई। उन्हें मंगोलियाई नाम दलाई लामा दिया गया।
"जब मैं पहली बार १९७९ में वहाँ गया तो देश उस समय भी साम्यवादी नियंत्रण में था, पर गदेन महाविहार में उन्होंने तिब्बती में इतनी जोर से और तेज़ स्वर से पाठ किया कि उनके चेहरे लाल हो गए। उस समय जब कोई अनुवादक उपल्ब्ध न थे पर पुराने भिक्षु और मैं लिखित तिब्बती के माध्यम से संवाद करने में सक्षम थे। अब वे स्वतंत्र हैं और हम अभी भी समस्या का सामना कर रहे हैं। जब हम तिब्बत में थे तो उस समय कई अच्छे मंगोलियाई विद्वान थे। बल्कि मेरा प्रमुख शास्त्रार्थ सहायक का नाम ङोडुब छोगञी था।
यंजिनसुरेन सोदनोसदोर्ज, जो बौद्ध दर्शन और मंगोलियाई धर्म के ऐतिहासिक स्रोत सिखाते हैं, ने मंगोलिया में शिक्षा के बौद्ध नैतिक पक्षों पर एक श्रमसाध्य स्पष्टीकरण दिया। एक अच्छा छात्र और नागरिक होने के अर्थ के विषय में जागरूकता और ज्ञान में वृद्धि करने के लक्ष्य से, समकालीन मंगोलियाई में प्राथमिक, माध्यमिक और उच्च विद्यालय के छात्रों के लिए 'नागरिकता शिक्षा' शीर्षक से हस्तपुस्तिका प्रकाशित की गई हैं।
परम पावन ने कहा कि जो गंभीर शोध उन्होंने प्रारंभ किया था वे उससे बहुत प्रभावित थे। बौद्ध संस्कृति के व्यापक सकारात्मक प्रभाव का एक उदाहरण के रूप में उन्होंने एक तिब्बती की कहानी सुनाई जो अपने व्यक्तिगत धार्मिक अनुपालन में मुसलमान है, पर बौद्ध संस्कृति से प्रभावित किया है। उन्होंने परम पावन से कहा मक्का की अपनी तीर्थ पर रिवाज़ के एक अंग के रूप में जिस जानवर की बलि चढ़ाई गई थी, उसके प्रति करुणा की भावना के अनुभव से वह स्वयं को अछूता न रख सका।
किम्बर्ली शोनर्ट - रेइची, जिन्होंने अपनी आजीविका एक शिक्षक के रूप में प्रारंभ की थी और जो अब शैक्षिक मनोवैज्ञानिक तथा माइंड एंड लाइफ इंस्टिट्यूट की फेलो हैं, ने विद्यालयों में चिन्तन विज्ञान शीर्षक के अंतर्गत हृदय की शिक्षा पर बात की। उन्होंने कुछ परिवर्तनात्मक शोधों की समीक्षा की, जो विद्यालयों में बच्चों की सामाजिक और भावनात्मक शिक्षा (एसईएल) को बढ़ावा देने के महत्व को दर्शाता है। सामाजिक और भावनात्मक कौशल बच्चों को अधिक खुश करने के लिए, यह सीखने के लिए कि अच्छा होना अच्छा होता है, में सक्षम करता है। अपने सभी विद्यालयों में (एसईएल) पाठ्यक्रम को बाल विहार से प्रारंभ कर हाई स्कूल तक ले जाने में ब्रिटिश कोलंबिया अग्रणी है। शोनर्ट - रेइची ने सहानुभूति के विकास के बारे में बात की, जब छात्रों के अतिरिक्त शिक्षकों को माइंड अप (एसईएल) कार्यक्रम में शामिल किया गया। परम पावन ने अपनी बी सी की चौथी यात्रा के दौरान विगत वर्ष के अंत में स्वयं यह देखा था।
जब श्रोताओं की ओर से प्रश्न आमंत्रित किए गए तो शांतुम सेठ ने परम पावन से पूछा कि शून्यता की समझ को विद्यालय की कक्षाओं तक लाने का क्या कोई उपाय हैं।
"मैं नहीं जानता," परम पावन की प्रारंभिक प्रतिक्रिया थी। "शून्यता की समझ के लिए बहुत विचार, बहुत तैयारी, श्रवण, चिंतन और ध्यान की आवश्यकता होती है जिसके विषय में हम पहले सुन रहे थे। सामान्य अवधारणा यह है कि स्वतंत्र आत्मा नहीं होती जिसके िवषय में बौद्ध दर्शन की सभी चार परम्पराएँ सहमत हैं। १९६० के दशक में, यद्यपि मैंने एक मध्यमक-प्रासंगिक की शब्दावली अपनाई, पर मेरे विचार प्रामाणिक ग्रंथों के अनुसार स्वातंत्रिक -मध्यमक से मेल खाते थे। क्रमशः वास्तविक भावना प्रबल होती गई।
"बौद्ध दृष्टिकोण अपनी बुद्धि का पूरी तरह उपयोग करना है। यह सरल नहीं है। कई वर्ष पूर्व मैंने अपनी समझ लिंग रिनपोछे, जो मेरे प्रमुख गुरु तथा भिक्षु, जिन्होंने मुझे पूर्ण उपसम्पदा दी, को अपनी समझ के संबंध में सूचित किया। उन्होंने उत्तर दिया 'अरे आप शीघ्र ही एक अंतरिक्ष योगी हो जाएँगे' जिससे मुझे प्रोत्साहन मिला। मैं आप तिब्बती और मंगोलियन छात्रों को प्रोत्साहित करता हूँ कि आपको उपाय तथा प्रज्ञा के विकास की आवश्यकता है। फिर आपके चित्त शांत और आराम की अवस्था में होंगे।"
प्रोफेसर टी एन मदन ने आभार व्यक्त किया। अनुराधा शर्मा ने कार्यवाही की एक सारांश रिपोर्ट पढ़ी और मीनाक्षी थापन ने उन सभी का धन्यवाद िकया, जिन्होंने इस सम्मेलन को संभव बनाया था। परम पावन ने अंत में कहा ः
"पिछले दो दिनों में हमारी एक उपयोगी बैठक हुई है। मैंने कई नई बातें सीखी हैं और अब आपके लिए अच्छा होगा कि आपने जो सुना है उस पर आपस में चर्चा करें। विश्लेषण महत्वपूर्ण और सहायक होता है। मैं दिल्ली विश्वविद्यालय का इस अवसर का आयोजन के लिए धन्यवाद करना चाहता हूँ और भविष्य में इस प्रकार की बैठकों की आशा करता हूँ। मैं आपको बता दूँ कि मैं पहले से ही 'मध्यमक विद्वानों के साथ क्वांटम भौतिक का संवाद' विषय पर एक बैठक बुलाने की सोच रहा हूँ और वह भी लाभदायक हो सकता है।"
कल प्रातः तड़के ही परम पावन धर्मशाला के लिए लौटेंगे।