टाशी ल्हुन्पो, बाइलाकुप्पे, कर्नाटक, भारत - दिसम्बर २८, २०१५- आज प्रातः परम पावन दलाई लामा तड़के ही टाशी ल्हुन्पो सभागार पहुँच कर जनमानस को देने से पहले बोधिसत्व संवर ग्रहण करने हेतु बुद्ध शाक्यमुनि की प्रतिमा के समक्ष मौन भाव से बैठे।
जब उन्होंने समाप्त कर लिया तो उन्होंने देक्यी लर्सो और लुगसम आवासों से ६० वृद्ध और शक्तिविहीन तिब्बतियों से भेंट की।
उन्होंने उनसे कहा "आप वयोवृद्ध लोग अपने जीवन के अंत के निकट पहुँच रहे हैं, बुद्ध शाक्यमुनि का देहावसान ८० वर्ष की आयु में हुआ, यहाँ तक कि नागार्जुन को भी अंततः जाना पड़ा। प्रमुख बात एक सार्थक जीवन जीने की है। आप जब छोटे थे आपने अपनी प्रार्थना की है तथा त्रिरत्न में शरण ली है। बुद्ध वह शिक्षक हैं जिन्होंने हमारे साथ अपनी समझ और अनुभव साझा किया। उन्होंने जो सीख दी उस पर ध्यान दें। वह हमारी भांति थे पर उन्होंने अभ्यास करने का प्रयास किया और अंततः बुद्धत्व प्राप्त किया। प्रार्थना करें कि अपर जीवन में आप बुद्ध की शिक्षाओं के सम्पर्क में आएँगे। और जब वास्तव में मरणासन्न हों, अपने अंतिम क्षणों में सकारात्मक हों भविष्य के विषय में सकारात्मक रूप से सोचें।"
बरामदा में सिंहासन के निकट का स्थान ताजा पुष्प मालाओं से सजाया गया था। जनमानस को संबोधित करते हुए परम पावन ने कहा:
"आज, हम प्रणिधि बोधिचित्तोत्पाद का समारोह करेंगे जिसके बाद बोधिसत्व संवर ग्रहण करने का समारोह होगा। पर उसके पूर्व मैं उपासकों को संवर प्रदान करूँगा। सबसे पहले हम साथ साथ सहज गति से सप्तांग प्रार्थना करेंगे। आपको अपने हाथ जोड़ने होंगे। चलिए हम सम्मान सहित करें। जब हममें किसी लौकिक वस्तु की धुन होती है तो हम वास्तव में उत्साहित होते हैं। अपने आध्यात्मिक विषयों के बारे में भी उतना ही उत्साहित हों।
"प्रार्थना का एक भाग अथवा एक अंग बुद्धों से धर्म चक्र प्रवर्तन की याचना है। परन्तु यदि हमारी बुद्ध से भेंट हो जाए और यह याचना उनके प्रत्यक्ष होकर करनी पड़े, तो वह कह सकते हैं कि मैं पहले ही चक्र प्रवर्तन कर चुका हूँ और जो देशना मैंने दी वह शास्त्रों में निहित है। तुम्हें उन्हें पढ़ने की आवश्यकता है।
"आपको अपने नेत्रों का उपयोग मात्र न केवल तुच्छ गतिविधियों के लिए करना चाहिए, अपितु धर्म को आत्मसात करने के लिए करना चाहिए। आप फिल्मों से गीत सुनने के बजाय महान आचार्यों के रिकार्ड किए शिक्षाएँ भी सुन सकते हैं। चलिए हम सच्चे भाव से प्रार्थना करें।"
परम पावन ने उपासकों के संवर समझाए और कहा कि आप डोम तोनपा के समान हो सकते हैं जिन्होंने अदत्तादान, मृषावाद, कामाभिचार और मदिरा सेवन और साथ ही ब्रह्मचर्य के पञ्च शीलों को ग्रहण किया। उन्होंने कहा कि यह व्यक्ति को निर्णय करना है कि वह कौन से संवर लें। उन्होंने लिंग रिनपोछे की कहानी सुनाई, जिन्होंने ये उपासक संवर प्रदान किए थे और एक वयोवृद्ध व्यक्ति निराश हो गया था कि उसने संवर लिया था कि वह मदिरा पान त्याग देगा, उसने रिनपोछे से कहा, 'मैं ऐसा नहीं कर सकता'। दया से लिंग रिनपोछे ने उससे कहा कि यदि वह पूरी तरह पीना नहीं छोड़ सकता तो कम से कम उसमें कमी कर सकता है तथा नशे में धुत होने से बच सकता है।
परम पावन ने उल्लेख किया कि 'रत्नावली' में दस अकुशल कर्मों से बचने का सुझाव दिया गया है और उसमें छह और जोड़ दिए गए हैं, जैसे मदिरा न पीना, गलत आजीविका में न लगना और दूसरों को हानि न पहुँचाना। उन्होंने कहा कि यह अंतिम शील, दूसरों को हानि न पहुँचाना बहुत महत्वपूर्ण है। उन्होंने अपने श्रोताओं को बुद्ध, उनकी शिक्षा और जिन्होंने उनके गुणों को अधिग्रहण किया है, में शरण लेने की सलाह दी ।
"अपने अंदर धर्म उत्पन्न करने हेतु दृढ़ बनें", उन्होंने कहा। "प्रथम दलाई लामा गेदुन डुब ने सलाह दी 'अपने अंदर के इस वैरी, क्लेशों को कुचल दो'। मुक्ति की कामना करें जो कि नकारात्मक भावनाओं से मुक्ति है। यह सरल नहीं है, पर अपनी ओर से प्रयास करें। चूँकि लक्ष्य मुक्ति और बुद्धत्व है, हमें एक एक कर क्लेशों पर काबू पाने की आवश्यकता है।"
ज़ामर पंडित की 'विशिष्ट अंर्तर्दृष्टि पर भाष्य' के अंतिम पृष्ठों की ओर मुड़ते हुए परम पावन ने सभी तिब्बती पथ क्रम साहित्य में अतीश के 'बोधिपथ प्रदीप' के महत्व का उल्लेख किया। उन्होंने पथ क्रम वंशज में २,३,५,और ७वें दलाई लामाओं की भूमिका और उनके भी उस वंशज के सदस्य होने की बात की। उन्होंने तिब्बत के प्रति ५, ७, और १३ वें दलाई लामाओं की दया पर टिप्पणी की और सुधार लाने हेतु १३वें दलाई लामा के प्रयासों पर प्रकाश डाला। परन्तु उन्होंने कहा कि उनकी इच्छाएँ असफल रहीं और काफी हद तक अधूरी रहीं। जिस तरह लामा तिब्बत के मामलों को निपटा रहे थे उसे लेकर लुंगशर ने आलोचना की और आधुनिकीकरण को लागू करने का प्रयास किया। वह सफल न हुए। परम पावन ने कहा कि तिब्बती हर बात के लिए चीनियों पर दोषारोपण नहीं कर सकते, तिब्बती स्वयं लापरवाह थे।
पथ क्रम ग्रंथों के बारे में उन्होंने कहा: "मैंने आठ प्रमुख ग्रंथों और अन्य पथ क्रम ग्रंथ प्राप्त किए हैं, अतः वर्तमान लिंग रिनपोछे और गदेन शरचे उपाध्याय ने मुझसे इनकी शिक्षा देने का अनुरोध किया। हम अब इन शिक्षाओं के चौथे क्रम का अंत करने जा रहे हैं।"
ग्रंथ के अंत में, 'समाधिराज सूत्र' को उद्धृत किया गया है, 'सभी वस्तुएँ फेन, एक केले के वृक्ष और बिजली की कौंध की तरह हैं।' कहने का तात्पर्य है कि सब वस्तुएँ अवास्तविक, सारहीन और बिना अवधि के हैं। परम पावन ने पुष्पिका के पद पढ़े, जिसमें लेखक बोधिपथ क्रम की विशेष अंतर्दृष्टि के खंड के कठिन बिंदुओं पर प्रकाश डालने की इच्छा व्यक्त करता है।
लिंग रिनपोछे द्वारा स्मरण कराने पर परम पावन ने जे चोंखापा 'सभी गुणों के आधार' की तथा 'मार्ग के तीन प्रमुख अंग' का भी संचरण दिया। और चूँकि यह अंतिम प्रवचन टाशी ल्हुन्पो में दिया गया था अतः उन्होंने 'पूर्वी हिम पर्वत का गीत' शीर्षक की गेदुन डुब की जे रिनपोछे की स्तुति का भी पाठ किया, जिसके प्रथम दो पद निम्नलिखित हैं:
पूर्वी श्वेत हिम पर्वत की चोटियों के ऊपर
श्वेत मेघ नभ को जैसे छू रहे हैं
उसे देखते ही अकस्मात् गुरु की याद आती है
उनके कृपा को सोच सोच कर श्रद्धा आती है।
मंडराते श्वेत मेघों के पूर्व में
एकान्त गदेन महाविहार में,
अवर्णनीय जिसका नाम, उस महान कृपालु
मेरे आध्यात्मिक पिता सुमति कीर्ति विराजमान है।
यह सलाह देते हुए कि सुख का मूल सौहार्दता है, परम पावन ने प्रणिधि बोधिचित्तोत्पाद के समारोह का नेतृत्व किया जिसके पश्चात उन्होंने बोधिसत्व संवर प्रदान किए। अंत में उन्होंने कहा:
"स्वयं को हर दिन बोधिचित्त को प्रबल करने का स्मरण दिलाएँ और सक्रिय रूप से छह पारमिताओं का विकास करें। यदि आप कर सकें तो 'बोधिसत्व संवर के बीस पदों' को कंठस्थ कर लें पर कम से कम इसे पढ़ लें।"
जमयंग खेंचे वंगपो की प्रथा का स्मरण करते हुए परम पावन सिंहासन पर खड़े हुए और हवा में पुष्प तथा अनाज का समर्पण बिखेरते हुए घोषणा की कि उन्होंने, बोधिसत्व संवर प्रदान कर दिया। एक बार पुनः बैठ कर उन्होंने इस तरह की सोच की प्रथा को तोड़ने के लिए तिब्बतियों को प्रोत्साहित करते हुए कि शास्त्रों का अध्ययन मात्र भिक्षुओं का ही कार्य है, प्रवचनों का समापन किया। उन्होंने प्रशंसा के साथ उल्लेख किया कि भिक्षुणियों को कई वर्षों से अध्ययन करने के लिए आग्रह करने पर अब भिक्षुणियाँ हैं जो गेशे मा की उपाधि से सम्मानित होने के कगार पर हैं।
इस बीच उन्होंने कहा कि उन्हें ज्ञात है कि तिब्बत में भी आम लोग और अधिक शास्त्रीय ग्रंथों का अध्ययन कर रहे हैं और शास्त्रार्थ में रत हैं।
अंत में उन्होंने प्रवचनों के आयोजकों, प्रायोजकों और जिन्होंने भोजन तैयार किया सबको धन्यवाद दिया और स्वीकार किया कि सब कुछ अच्छी तरह सम्पन्न हुआ।
मध्याह्न भोजन के बाद, परम पावन ने ७०० से अधिक एशियाइयों, ताइवान, मलेशिया, सिंगापुर, कोरिया, जापान, वियतनाम और चीन के लोगों से भेंट की जो प्रवचनों में सम्मिलित हुए थे। उनके साथ छोटे-छोटे समूहों में तस्वीरों के लिए पोज़ करने के बाद, उन्होंने सब को संबोधित किया।
"आपके लिए यहाँ आना कठिन है और सुविधाएँ भी बहुत अच्छी नहीं हैं, पर आपने सोचा कि यहाँ आना महत्वपूर्ण है - धन्यवाद। बौद्ध धर्म हमारे लिए कुछ नया नहीं है। आप में से अधिकांश नालंदा परम्परा का पालन करते हैं और 'हृदय सूत्र' का पाठ करते हैं। मैंने स्वयं ७० वर्षों से अधिक पाठ किया है, मैंने इस पर चिंतन किया है और मेरी समझ गहन हुई है। मैं आपको भी अध्ययन करने हेतु प्रोत्साहित करता हूँ। नागार्जुन की 'मूलमध्यमकारिका' चीनी में भी उपलब्ध है। इसे पढ़ें।"
उन्होंने अपनी तीन प्रतिबद्धताओं को रेखांकित किया: मानवीय मूल्यों को बढ़ावा देना, अंतर्धार्मिक सद्भाव और तिब्बत की शांतिपूर्ण, करुणाशील और अहिंसक संस्कृति के संरक्षण के लिए कदम उठाने का प्रोत्साहन। उन्होंने अपने एशियाई मित्रों को भी तिब्बत के पर्यावरण की रक्षा करने में रुचि लेने के लिए आमंत्रित किया।
बाहर मंदिर की सीढ़ियों पर उन्होंने विश्व के अन्य भागों से आए एक हजार से अधिक लोगों से भेंट की। उन्होंने पुनः राष्ट्रीयता या भाषा के अनुसार समूहों में उनके साथ तस्वीरों के लिए पोज़ किया और सभी मनुष्य जिसे पाने की कामना करते हैं उस सुख को प्राप्त करने के लिए आंतरिक शांति के विकास के महत्व पर उनसे संक्षिप्त रूप से बात की। इसके लिए सौहार्दता और एक व्यापक परिप्रेक्ष्य लेकर अदूरदर्शी संकीर्णता पर काबू पाने की आवश्यकता होती है। उन्होंने सुझाया कि हम जिन कई समस्याओं का सामना कर रहे हैं वह हमारी अपनी निर्मित हैं, उसका एक कारण है कि भौतिक लक्ष्य पर केन्द्रित हमारी शिक्षा व्यवस्था अपर्याप्त है। उन्होंने कहा कि शिक्षा में आंतरिक मूल्यों की भावना के सुधार की जरूरत है। उन्होंने अपने विश्वास पर बल दिया कहा कि यदि इसी समय से परिवर्तन किए जाएँ तो शताब्दी के अंत तक विश्व एक अधिक सुखी और अधिक शांतिपूर्ण स्थान हो सकता है।
"बस मुझे यही कहना है," उन्होंने कहा। "कठिनाइयों का सामना करने के बावजूद आपके आने के लिए धन्यवाद। मैंने अनुभव किया कि आपको देखना और साथ तस्वीरें लेना मेरा कर्तव्य था। धन्यवाद और शुभ रात्रि।"