आल्डरशोट, हैम्पशायर, ब्रिटेन - २९, जून २०१५ - दिन के कार्यक्रमों के लिए बाहर निकलने के पूर्व परम पावन दलाई लामा ने बीबीसी न्यूज़नाइट कार्यक्रम की एमिली मैटलिस को एक तीव्र इंटरव्यू दिया। उसने यह पूछते हुए प्रारंभ किया कि उनके कार्य का सबसे कठिन भाग कौन सा था। उन्होंने कहा कि १९५०-१९५२ के पश्चात स्थिति विशेष रूप से कठिन हो गई थी। उन्होंने यह अनुभव किया था कि चीनी साम्यवादियों की मूल प्रेरणा अच्छी थी। उनके नेता के रूप में, माओत्से तुंग की प्रेरणा अच्छी थी परन्तु शक्ति की प्राप्ति ने उन्हें बिगाड़ दिया था। १९४९ से पूर्व माओत्से तुंग तिब्बत को एक विदेशी देश के रूप में मानते थे। उसमें परिवर्तन हुआ और १९५६ और १९५९ के बीच कुछ अनुमानों के अनुसार, ३००,००० लोगों की हत्या की गई। परम पावन ने कहा , १९५९ तक तिब्बत में वे नौ वर्ष अत्यंत कठिन थे।
"१९५४ -५५ में, जब मैंने चीनी नेताओं से भेंट की तो वास्तव मेरी आशा बहुत बढ़ी कि चीनी साम्यवादियों की सहायता से हम तिब्बत का आधुनिकीकरण कर सकते थे। मैं सड़क पर एक चीनी जनरल से मिला जिसने मुझे बताया ः 'पिछले वर्ष मैं भय और आशंका से भरा हुआ आया पर अब उसके स्थान पर मैं आशा व आत्मविश्वास से भरा लौट रहा हूँ।' परन्तु १९५६ में परिस्थितियाँ बहुत बिगड़ गईं और १९५९ में, मैं एक शरणार्थी बन गया। यद्यपि माओ अनुभवी थे, पर उनके बाद की पीढ़ियाँ केवल प्रचार पर बड़ी हुई हैं। वे इस बात को समझने में विफल रहे कि हान लोगों की तरह, तिब्बत और सिनकियांग के लोगों में भी अपनी संस्कृति, अपनी भाषा और साहित्य पर गर्व है। इन कट्टरपंथियों ने सोचा कि केवल उनके मूल्य और जीवन का रूप किसी भी रूप से योग्य था।"
मैटलिस ने परम पावन से पूछा कि क्या वह अभी भी वही नेता हैं, वही व्यक्ति हैं, जो वे उस समय थे। उन्होंने कहा:
"आयु का अंतर है और उस समय मेरे सिर पर अधिक बाल थे। पर यद्यपि कुछ लोगों का कहना है कि, 'समय पैसा है', मैं कहता हूँ कि 'समय अनुभव है' और कठिन समय अधिक अनुभव प्राप्त करने के लिए उत्तम है।"
उन्होंने पैट्टी स्मिथ और उनके बैंड से जो एक दिन पहले कहा था उसे दोहराया कि यद्यपि सफेद बालों के कारण उनमें अधिक उम्र के लक्षण दिखाई देते हैं, पर वे युवा ऊर्जा से भरे थे जो उन्हें प्रेरणादायी लगा। मैटलिस ने पूछा कि क्या वे कुछ अलग करते और उन्होंने उत्तर दिया ः
"नहीं, मुझे नहीं लगता। कुछ त्रुटियाँ हुईं थीं पर सामान्यतया मुझे लगता है कि हम जो सबसे अच्छा कर सकते थे, हमने किया।"
जब उन्होंने उनकी प्रारंभिक स्मृतियों के विषय में उनसे पूछा, तो परम पावन ने स्मरण किया कि जब वह बहुत छोटे थे और अपने आप खड़े भी न हो सकते थे, उनके चचेरे भाई एक भिक्षु थे। जब गलती से उन्होंने अपने चचेरे भाई की प्रार्थना पुस्तक ज़मीन पर गिरा दी तो भिक्षु इतना क्रोधित हुए कि उन्होंने उन्हें बहुत मारा और उन्हें वह याद है। दूसरी बार वे बाहर बैठे हुए थे कि एक विशाल काला ऊँट उन पर झपटा और वे भयभीत होकर भाग गए।
इस प्रश्न पर कि क्या वह अंतिम दलाई लामा होंगे, परम पावन ने कहा कि कुछ लोग इस प्रकार बोलते हैं, मानों तिब्बती बौद्ध धर्म के अस्तित्व के लिए दलाई लामा अपरिहार्य हैं, पर उन्होंने इंगित करते हुए कहा कि बौद्ध धर्म ही ऐतिहासिक बुद्ध की उपस्थिति के बिना २६०० वर्षों से बचा रह सका है। उन्होंने स्वीकार किया कि ५वें दलाई लामा तिब्बत में हुए विघटन को सुधारने और कुछ सीमा तक एकता की भावना को वापिस लाने में प्रभावी हुए थे। परन्तु अब २१वीं शताब्दी में लामा संस्थानों को सामंती व्यवस्था के संदर्भ में देखा जा सकता है। परिणामस्वरूप १९६९ के बाद से उन्होंने स्पष्ट कर दिया है कि चाहे एक और दलाई लामा हों अथवा न हों, भविष्य, तिब्बती लोगों के हाथों में है। जहाँ तक परम पावन का संबंध है, तिब्बत का शासन, एक लोकतांत्रिक संदर्भ में जिसमें लोग अपना नेता का चयन करते हैं, तिब्बती लोगों के हाथों में होना चाहिए।
इस बात पर कि क्या तिब्बत पुनः उनके जीवन काल में स्वतंत्र होगा, परम पावन ने यूरोपीय संघ के लिए अपनी प्रशंसा व्यक्त की, एक संघ जिसमें साझा हित अलग-अलग राज्यों की संप्रभुता से ज्यादा महत्वपूर्ण माना जाता है। उन्होंने साक्षात्कारकर्ता को स्मरण कराया कि सभी मनुष्य समान हैं और उनके समान अधिकार हैं और १९७४ के बाद से तिब्बतियों ने स्वतंत्रता की मांग नहीं की है।
तिब्बती आंदोलन की व्यापक विश्व में अपील के बारे में पूछे जाने पर परम पावन ने नालंदा की समृद्ध बौद्ध परंपराओं और बुद्ध के अपने अनुयायियों के लिए अनूठी सलाह, कि उन्होंने जो कहा है वे उसे उसी रूप में न लें, की ओर ध्यानाकर्षित किया । उन्होंने उन्हें सलाह दी, कि वे स्वयं उसका परीक्षण व जाँच करें तथा स्वयं के लिए सिद्ध करें। इस संदर्भ में, आधुनिक वैज्ञानिक इस बात में रुचि रखते हैं कि चित्त के प्रकार्य के संबंध में बौद्ध ज्ञान क्या कहता है।
सुश्री मैटलिस ने परम पावन से उन प्रदर्शनकारियों के बारे में समझाने के लिए कहा जो दोलज्ञल या शुगदेन के तुष्टि पर लगाए गए प्रतिबंध के उठाने की माँग करते हुए, उनकी यात्रा में वे जहाँ भी जाएँ, उनका पीछा करते हैं। उन्होंने उसे बताया ः
"इस अभ्यास पर कोई प्रतिबंध नहीं है। यदि आप दक्षिण भारत जाएँ तो पाएँगे कि जो इस आत्मा दोलज्ञल या शुगदेन के तुष्टि करते हैं उनका अपना विहार बड़े तिब्बती विहारों के बगल में है। यह मुद्दा विगत लगभग चार शताब्दियों से विवादास्पद रहा है। पिछले ८० वर्षों में, १३वें दलाई लामा के निधन के बाद यह अधिक भड़क गया है, और प्रबल रूप से सांप्रदायिकता के साथ जुड़ गया है।
"७० के दशक के पूर्वार्ध में मैंने इस आत्मा की तुष्टि की, पर एक परिणाम यह था कि इस भय से कि यह शुगदेन आत्मा कुछ कर न बैठे, अन्य परम्पराओं से शिक्षा प्राप्त करने का मेरा अधिकार प्रतिबंधित हो गया। मैंने जाँचने की ठान ली, विशेष रूप से ५वें दलाई लामा की जीवनी और अन्य रचनाओं को पढ़ने लगा। जब मैंने यह अभ्यास त्याग दिया तो अन्य बौद्ध शिक्षाओं की खोज के िलए मैं मुक्त हो गया, पर जब तक मैं यह अभ्यास कर रहा थी तो मुझे इस प्रकार की कोई स्वतंत्रता न थी। ५वें दलाई लामा ने दोलज्ञल को एक दुरात्मा कहा, तो मैं समझता हूँ कि यह मेरा कर्तव्य है कि मैं दूसरों को इस वास्तविकता के विषय में बताऊँ। फिर वे मेरी बात सुनें अथवा नहीं, यह उन पर निर्भर करता है। भिक्षु परिधान में ये युवा लोग चिल्ला रहे हैं 'झूठ बोलना बंद करो', पर उन्हें इस मुद्दे का पूरा इतिहास पता नहीं है। उन्हें इसके प्रभाव के विषय में और अधिक शोध करना चाहिए।"
अंत में, इस प्रश्न के संबंध में कि क्या राजनेता कुछ अच्छा कर सकते हैं, परम पावन ने कहा, कि किसी भी अन्य गतिविधि की तरह, यदि व्यक्ति की प्रेरणा अच्छी है तो वे जो करने का प्रयास कर रहे हैं, वह अच्छा होगा।
जब परम पावन आल्डरशोट के लिए मोटर गाड़ी से एक छोटी ड्राइव के बाद पहुँचे तो सूर्य चमक रहा था। आल्डरशोट, जो आम तौर पर 'ब्रिटिश सेना के घर' के नाम से भी जाना जाता है, जहाँ वे अधिकांश रूप से नेपाली बौद्ध समुदाय के अतिथि थे। उन्होंने परम पावन को ब्रिटेन के बौद्ध सामुदायिक केंद्र का उद्घाटन करने के लिए आमंत्रित किया था जिसकी प्रतिस्थापना उन्होंने वहाँ की है। आगमन के तुरंत बाद ही परम पावन ने द्वार पर औपचारिक रूप से केंद्र का उद्घाटन किया। बाहर मैदान में उन्होंने स्तूप तथा बुद्ध की प्रतिमा का शुद्धीकरण किया। नए टाशी दोङग छोलिंग विहार के मंदिर में उन्होंने बुद्ध, अवलोकितेश्वर और गुरु पद्मसंभव की छवियों और साथ ही कांग्यूर व तेंग्यूर शास्त्र संग्रहों के समक्ष अपना सम्मान व्यक्त किया और दीप प्रज्ज्वलित किया।
बौद्ध सामुदायिक केन्द्र के अध्यक्ष, काजी शेरपा, ने परम पावन का स्वागत किया और सभा को संबोधित करने के लिए उन्हें आमंत्रित किया।
"मैं यहाँ एक बार पुनः आकर बहुत प्रसन्न हूँ," परम पावन ने उत्तर दिया। "नेपाल पारम्परिक रूप से एक बौद्ध देश है और मैंने देखा है कि वियतनामी और कोरियाई की तरह जो कहीं और रह रहे हैं, नेपाली अपनी आस्था और संस्कृति बनाए रखते हैं। आपने जो प्रतिमाएँ यहाँ प्रतिस्थापित की हैं, मैं उनकी सराहना करता हूँ, पर जैसा मैंने कहा, जब भारत में छो पेमा (रिवालसर) में मुझसे गुरु रिनपोछे की एक विशाल प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा करने के लिए कहा गया था, कि मूर्ति अद्भुत है और १००० वर्ष तक बनी रह सकती है, पर उन १००० वर्षों में वह कभी बोलेगी नहीं। बुद्ध ने उनकी शिक्षाओं का परीक्षण करने के लिए, हमारी बुद्धि का प्रयोग करने के लिए हमें प्रोत्साहित किया। ज्ञान प्रधान कारक है।
"हमने प्राचीन नालंदा परम्परा का संरक्षण किया है जिसमें चित्त और भावनाओं का समृद्ध ज्ञान और साथ ही चेतना के और अधिक सूक्ष्म स्तरों का ज्ञान है। इसलिए आजकल जब भी मैं नए विहारों और इस प्रकार के केंद्रों की यात्रा करता हूँ, तो मेरा सुझाव होता है कि उनकी प्राथमिकता न केवल बौद्धों के लिए, पर सभी लोगों के हेतु शिक्षण का केन्द्र बनने की होनी चाहिए। हमारा मुख्य उद्देश्य अध्ययन और शिक्षा होना चाहिए।"
परम पावन ने दोहराया कि सभी तिब्बती बौद्ध परंपराओं का स्रोत नालंदा परम्परा में है। केंद्र के अध्यक्ष काजी शेरपा ने उन्हें संरक्षण का एक प्रमाण पत्र प्रस्तुत किया। अपनी बारी में, परम पावन ने कहा कि वे केंद्र को बुद्ध की एक प्रतिमा और नई पुस्तकों के एक सेट की प्रतियाँ भेंट कर रहे हैं जिनमें कांग्यूर तथा तेंग्यूर में पाया जाने वाला वैज्ञानिक ज्ञान निहित है।
उन्होंने धार्मिक परंपराओं के बीच सामंजस्य बनाए रखने के महत्व पर बल दिया और कहा कि शुगदेन समर्थक प्रदर्शनकारी जिनकी सड़क के बाहर कर्कश उपस्थिति से सब अवगत थे, दिलगो खेंचे रिनपोछे और करमापा की तस्वीरें जिन्हें वे देख रहे हैं, दीवार पर से उतार देंगे पर संभवतः कुछ सक्या गुरुओं के चित्रों को वहीं रहने देंगे। उन्होंने उनसे कहा कि वे भी इस दोलज्ञल का अभ्यास करते थे पर ७० के दशक में बंद कर दिया जब उन्होंने पाया कि यह लगभग ४०० वर्षों से विवादास्पद हो गया था। उन्होंने सभा को बताया कि ५वें दलाई लामा ने दोलज्ञल/शुगदेन को एक हानिकारक दुष्ट आत्मा के रूप में वर्णित किया था।
"यह स्पष्ट करना मेरा कर्तव्य है, पर मैं जो कह रहा हूँ उसे कोई सुने अथवा नहीं यह उन पर निर्भर है। वे चिल्लाते हैं 'झूठ बोलना बंद करो,' पर मैं उलझन में हूँ कि वे क्या सोच रहे हैं कि मैं किस के बारे में झूठ बोल रहा हूँ। यह परंपरा बहुत सांप्रदायिक है और अपने को उससे अलग करके ही मैं दिलगो खेंचे रिनपोछे और चोज्ञे ठिछेन रिनपोछे जैसे गुरुओं से शिक्षा ग्रहण कर सका। इसलिए मैं शिकायत करता हूँ कि जब मैं यह अभ्यास कर रहा था तो मुझे कोई धार्मिक स्वतंत्रता न थी। धन्यवाद।"
परम पावन को आल्डरशोट फुटबॉल क्लब में मध्याह्न के भोजन का आतिथ्य दिया गया। उसके बाद वे फुटबॉल के मैदान के एक छोर पर बनाए गए छोटे मंच और मंडप की ओर पैदल चल पड़े, जबकि ६००० की संख्या में श्रोता अपने स्थानों पर बैठे रहे। नेपाल में हाल ही में भूकंप के पीड़ितों की स्मृति में एक मिनट का मौन रखा गया। इसके पश्चात नेपाली और ब्रिटिश राष्ट्रगान बजाए गए। बौद्ध सामुदायिक केंद्र के अध्यक्ष ने परम पावन तथा कई अन्य धार्मिक प्रतिनिधि, जो उनके साथ मंच पर बैठे थे, का स्वागत किया। रशमूर के महापौर ने उन सभी का आल्डरशोट में उनका स्वागत किया।
अपने संबोधन में, परम पावन ने कहा कि वे सदा स्वयं को ७ अरब मनुष्यों में से एक मानते हैं, जो मानसिक, शारीरिक और भावनात्मक रूप से एक जैसे हैं। उन्होंने कहा कि जहाँ हर कोई सुखी रहना चाहता है, हममें से कई आंतरिक मूल्यों की उपेक्षा करते हैं जो सुख का असली स्रोत हैं।
"यदि हम इस विषय पर गंभीरता से सोचें तो सुख की कुंजी चित्त की शांति है। पर आप इसे खरीद नहीं सकते। आंतरिक शांति ऐसी है जो हममें से प्रत्येक को अंदर से विकसित करनी है। दार्शनिक मतभेदों के बावजूद हमारी सभी धार्मिक परम्पराएँ प्रेम व सौहार्दता का एक ही संदेश वहन करती हैं, जो कि ऐसी शांति का स्रोत है।"
उन्होंने कहा कि आज वैज्ञानिक नालंदा परम्परा में बताई गई चित्त और भावनाओं के समृद्ध ज्ञान में रुचि दिखा रहे हैं। इससे, हम एक बात जो सीख सकते हैं, उन्होंने कहा, कि सिर्फ प्रार्थना करना या चढ़ावा चढ़ाना पर्याप्त नहीं है। यह तारीख से बाहर है। २१वीं शताब्दी में जो महत्वपूर्ण है, वह अध्ययन है। उन्होंने दोहराया कि जो बौद्धों को करना है, वह इसका अध्ययन और समझ का विकास है कि बुद्ध धर्म और संघ क्या हैं और बौद्ध शिक्षाओं का अर्थ क्या है।
वित्तीय बयान को पढ़ने से पहले, जिसमें स्पष्ट किया गया था कि उस कार्यक्रम के लिए अर्जित की गई धन राशि से बचा हुआ धन सहायतार्थ उद्देश्यों, विशेष रूप से नेपाल में उपयोग किया जाएगा, परम पावन के पास श्रोताओं के कई प्रश्नों के उत्तर देने के लिए समय था। धन्यवाद के शब्द ज्ञापित किए गए। शुगदेन समर्थकों द्वारा शोर भरा प्रदर्शन, जो कि दिन भर बना रहा, यहाँ तक कि मौन के क्षण और राष्ट्रगान के पालन के दौरान भी, ब्रिटेन में बौद्ध संगठनों ने एक बयान जारी किया है जो कि इस लिंक का पालन करके पढ़ा जा सकता है ः
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कल परम पावन संयुक्त राज्य अमेरिका के डलास की यात्रा के लिए लंदन से रवाना होंगे।