थेगछेन छोलिंग, धर्मशाला, हि. प्र., भारत - २१ जून २०१५ - आज प्रातः परम पावन दलाई लामा के ८०वें जन्मदिवस के दो दिवसीय समारोह के पहले दिन चुगलगखंग के परिसर और उसके समक्ष का प्रंागण लोगों से खचाखच भरा हुआ था। तिब्बतियों में कई भिक्षु, भिक्षुणियाँ और साथ ही अपने उत्तम वस्त्रों में साधारण लोग और तिब्बती स्कूलों के छात्र सम्मिलित थे।
८ बजे परम पावन का उनके निवास स्थल के द्वार से चुगलगखंग तक अनुरक्षण किया गया, जहाँ उन्होंने एकत्रित हुए अतिथियों का अभिनन्दन किया तथा सिंहासन पर अपना आसन ग्रहण किया। उनके समक्ष सिंहासन की एक पंक्ति में तिब्बती आध्यात्मिक परंपराओं के प्रमुख बैठे थे ः दाईं ओर सक्या दगठी रिनपोछे, मेनरी ठिजीन रिनपोछे, ज्ञलवा करमापा, डिगुंग छेछंग रिनपोछे, तकलुंग शबडुंग रिनपोछे और बाईं ओर गदेन ठि रिनपोछे, कथोग गेचे रिनपोछे और डुगछेन रिनपोछे के प्रतिनिधि थे। उनके पीछे महाविहारों के संघनायक और पूर्व संघनायक आसीन थे।
कई प्रार्थनाएँ, जिनमें बुद्ध स्तुतियाँ, 'नालंदा के सत्रह महापंडितों की प्रार्थना' और दलाई लामा के जातकों की प्रार्थना सम्मिलित थीं , दीर्घायु पूजा के पूर्व हुए। इसको केंद्रीय तिब्बती प्रशासन, दोमे समुदाय और गेलुक इंटरनेशनल फाउंडेशन द्वारा सक्या दगठी रिनपोछे की अध्यक्षता में प्रस्तुत किया गया। समारोह के दौरान छेरिंग छेङा और नेछुंग धर्मपाल समाधिवस्था में अलग अलग प्रकट हुए। उनमें से प्रत्येक ने परम पावन के प्रति अपना सम्मान व्यक्त किया तथा प्रार्थना करने के लिए आध्यात्मिक और राजनीतिक नेताओं को उनके समक्ष एकत्रित किया। सक्या दगठी ने मंडल व्याख्या के समर्पण के साथ लंबे स्तवन और दीर्घ काल तक बने रहने की याचना प्रस्तुत की। उन्होंने, सिक्योंग और तिब्बती जनप्रतिनिधि के अध्यक्ष के साथ साथ परम पावन को मंडल समर्पित किया। अष्ट मंगल चिह्न, राजसी सत्ता के ७ प्रतीक और ८ मंगल वस्तुएँ प्रस्तुत की गईं जबकि अन्य भेंटों की प्रस्तुति शोभा यात्रा के रूप में मंदिर में निकाली गई।
समारोह को पूर्ण करने के लिए परम पावन के दो शिक्षकों द्वारा रचित 'दीर्घायु परिनिष्पन्नता का गीत' जमयंग ख्येचे छोकी लोडो की एक और दीर्घायु प्रार्थना तथा गुरु रिनपोछे द्वारा कामनाओं की पूर्ति के लिए एक प्रार्थना के पाठ हुए।
परम पावन ने सभा को संक्षिप्त रूप से संबोधित किया। उन्होंने समझाया कि तिब्बती गणना के अनुसार उनका जन्म दिन ५वें महीने के ५वें दिन जो आज पड़ता है। तिब्बती चंद्र कैलेंडर में विभिन्नता होने के कारण ६ जुलाई को नियमित पारंपरिक कैलेंडर के अनुसार उनके जन्मदिन के रूप में स्वीकार कर लिया गया था। उन्होंने आगे कहाः
"केन्द्रीय तिब्बती प्रशासन, दोमे समुदाय और गेलुक इंटरनेशनल फाउंडेशन ने यह समर्पण प्रारंभ किया। मेरे जीवित भाई-बहन, ज्ञालो दोनडुब, जेचुन पेमा और तेनजिन छोज्ञल, मेरी कई भतीजियों और भतीजों के साथ यहाँ एकत्रित हुए हैं। सक्या दगठी रिनपोछे ने तिब्बत की धार्मिक परम्पराओं के प्रमुखों की उपस्थिति में समारोह की अध्यक्षता की है। आप सभी ने उत्साह से भरी प्रार्थना की है और मैं आपको धन्यवाद देना चाहूँगा।
"जहाँ तक गेलुक फाउंडेशन का संबंध है, भिक्षुओं, संघनायकों और पूर्व संघनायकों, गदेन ठि रिनपोछे के साथ यहाँ हैं, जो इस दीर्घायु समारोह से संबंधित एक सप्ताह तक चलने वाला अनुष्ठान कर रहे हैं। यह ५वें दलाई लामा के 'शुद्ध दृष्टि' में निहित निर्देशों का पालन करता है। ५वें दलाई लामा के पास चेनेरेज़िंग की दो प्रतिमाएँ थीं, जिनमें से एक ल्हासा में रह गई जबकि दूसरा क्यीरोंग में थी। उन्हें भाइयों की तरह माना जाता था। वे उनकी उपस्थिति में ध्यान एकांतवास करवाते थे और उन्हें एक के बाद एक कई दर्शनों की अनुभूति हुई। उस समय से उनसे निकाली गई शिक्षाओं के क्रम सभी दलाई लामाओं के अभ्यास रहे हैं और इस दीर्घायु अनुष्ठान के लिए पाठ उनमें से लिया गया है।
"मुझे तिब्बत में तगडग रिनपोछे से इन शिक्षाओं की दीक्षा तथा संचरण प्राप्त हुआ। जब मैं उन्हें ग्रहण कर रहा था तो मुझे स्वप्नों का अनुभव हुआ जिनके संबंध में मैंने उस समय विशेष ध्यान नहीं दिया। परन्तु उसके बाद से मैंने अनुभव किया है कि वे मंगल थे। आज, लोगों और तिब्बत के देवताओं ने मेरे दीर्घायु की प्रार्थना की है। डॉक्टर भी सुझाव दे रहे हैं कि मैं २० वर्ष और रह सकता है। मैं अब ८० का हूँ, चलिए, हम पुनः समारोह मनाने की योजना बनाएँ जब मैं ९० का हो जाऊँ।
"हालांकि तिब्बत में कोई स्वतंत्रता नहीं है, पर लोग वहाँ भी मेरे दीर्घायु के लिए प्रार्थना कर रहे हैं, यद्यपि वहाँ खुले रूप में तो ऐसा नहीं कर सकते, पर उनमें श्रद्धा, भक्ति और मेरे साथ एक विशेष संबंध है। मैं आप सबको धन्यवाद देना चाहता हूँ।"
परम पावन ने कहा, कि उनसे पूछा गया है कि वे जन्मदिन के उपहार के रूप में क्या चाहते हैं और उन्होंने उत्तर दिया है कि एक बौद्ध भिक्षु के रूप में उनकी कोई विशेष इच्छा नहीं है। परन्तु उन्होंने लोगों से आध्यात्मिक परिवर्तन में संलग्न होने का प्रयास करने का आग्रह किया। उन्होंने कहा कि हम सब में विश्व के लिए अच्छा करने की क्षमता है, पर हमें केवल उस पर बोलने के बजाय कार्य करने की आवश्यकता है।
दीर्घायु समारोह के समापन के बाद समारोह का दूसरा अंश चुगलगखंग के प्रांगण में सम्पन्न हुआ। जब परम पावन अपना आसन ग्रहण करने नीचे आए तो टिब्बटेन इंस्टिट्यूट ऑफ परफोर्मिंग आर्ट्स के छात्र के कलाकारों ने गीत प्रस्तुत किए।
पहले बोलने वाले अतिथि थे, अरुणाचल प्रदेश के माननीय मुख्यमंत्री नबम तुकी। अरुणाचल प्रदेश के लोगों की ओर से उन्होंने परम पावन के लंबे जीवन की प्रार्थना की। सिक्किम के मुख्यमंत्री की ओर से इसी प्रकार का एक संदेश पढ़ा गया। हिमाचली राज्यसभा सांसद श्रीमती विप्लव ठाकुर परम पावन की प्रशंसा कर रहीं थीं, जब मुख्य अतिथि, केन्द्रीय संस्कृति और पर्यटन मंत्री, डॉ महेश शर्मा और केन्द्रीय गृह राज्यमंत्री, किरण रिजीजू वहाँ पहुँचे।
अपने स्वागत भाषण में, सिक्योंग डॉ लोबसंग सांगे परम पावन को उनके नेतृत्व के लिए उनका धन्यवाद दिया और उत्साह से प्रार्थना की वह दीर्घ काल तक रहेंगे। तिब्बत के अंदर और बाहर निवास करने वाले तिब्बतियों की ओर से उन्होंने उनके एक सुखद ८०वें जन्मदिन की कामना की। उन्होंने यह भी कहा कि इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में डॉ महेश शर्मा का होना एक सम्मान की बात है।
अगले वक्ता परम पावन के पुराने िमत्र इतालवी अंतर्राष्ट्रीय कट्टरपंथी पार्टी के अध्यक्ष मार्को पनेलो थे। उन्होंने परम पावन को, विश्व में जो आनन्द वे लाते हैं, उसके लिए धन्यवाद दिया। विशिष्ट अतिथि, माननीय केन्द्रीय गृह राज्य मंत्री, और संयोग से जो अरुणाचल प्रदेश से हैं, किरण रिजीजू, ने कहा कि हर कोई परम पावन के शांति, मैत्री और सद्भाव के संदेश का स्वागत करता है। उन्होंने कहा कि चूँकि वे मानवता का प्रतिनिधित्व करते हैं, हम सब प्रार्थना करते हैं कि वह दीर्घ काल तक जिएँ।
दोमे समुदाय से अगला सांस्कृतिक अन्तराल एक लोकप्रिय गीत 'थुक-जे-छे' था जिसका जनसमुदाय ने उत्साह से स्वागत किया।
मुख्य अतिथि डॉ महेश शर्मा ने १.२५ अरब भारतीयों की ओर से बधाई प्रस्तुत की, जो सभी परम पावन के देश में उपस्थिति के आशीर्वाद से लाभान्वित होते हैं और जो उनकी दीर्घायु, अच्छे स्वास्थ्य और उनकी इच्छाओं की पूर्ति के लिए प्रार्थना करते हैं। उन्होंने टिप्पणी की, कि परम पावन का विश्व के लिए करुणा का संदेश कितना महत्वपूर्ण है।
अंत में, परम पावन को बोलने के लिए आमंत्रित किया गया। सदा की तरह उन्होंने उपस्थित सभी का अभिनन्दन 'प्रिय भाइयों और बहनों' के रूप में किया। उन्होंने अतिथियों की उपस्थिति को स्वीकार करते हुए तिब्बत के तीन क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करने वाले विभिन्न सांस्कृतिक दलों का उनके प्रदर्शन के लिए धन्यवाद दिया।
उन्होंने पुनः बौद्ध अध्ययन और अभ्यास के नालंदा परम्परा की सराहना की, जिनमें गहन और व्यापक मार्ग शामिल हैं जो कि तिब्बत में संरक्षित था। उन्होंने समझाया कि गहन मार्ग वास्तविकता की समझ से संबंधित हैं, जबकि व्यापक मार्ग में बोधिचित्तोत्पाद शामिल है। उन्होंने कहा कि विगत कुछ वर्षों में उन्होंने दोनों पर बहुत चिंतन किया है और पाया कि वे न केवल उपयोगी हैं, अपितु वे सुख के एक वास्तविक स्रोत हैं। उन्होंने कहा कि यह महत्वपूर्ण है क्योंकि हम सब सुख चाहते हैं और दुख नहीं चाहते, हम स्वयं के लिए समस्याएँ पैदा करते हैं। क्यों? क्योंकि हम एक उचित तरीके से अपनी बुद्धि का प्रयोग नहीं करते। उन्होंने पुष्टि की, कि यदि हम अपनी बुद्धि का प्रयोग ठीक से करें तो हम अपने जीवन को रूपांतरित कर सकते हैं और उल्लेख किया कि वैज्ञानिक पुष्टि करते हैं कि चित्त की शांति शारीरिक और मानसिक स्वस्थता सुनिश्चित करती है।
"बौद्धों के रूप में हम बुद्धों और बोधिसत्वों की से प्रार्थना कर सकते हैं, यद्यपि बुद्ध ने स्पष्ट रूप से कहा था ः
बुद्ध पाप को जल से धोते नहीं,
न ही जगत के दुःखंो को अपने हाथों से हटाते हैं;
न ही अपने अधिगम को दूसरों में स्थान्तरण करते हैं;
वे धर्मता सत्य देशना से सत्वों को मुक्त कराते हैं।
"हम मनुष्य सुख का निर्माण करने की हमारी क्षमता का उपयोग कर सकते हैं और मैं जहाँ भी जाता हूँ, लोगों के साथ इसे साझा करने का प्रयास करता हूँ। मेरे अपने ही संबंध में, मैंने अपनी बुद्धि का प्रयोग करने का प्रयास किया है और अनुभव का लाभ उठाया है। इसमें मुख्य रूप से तर्क और कारण के प्रयोग शामिल हैं, जो मैंने नालंदा परम्परा से सीखा है।"
यह मानते हुए कि आज का दिवस पूरे भारत में अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के रूप में भी मनाया जा रहा था, परम पावन ने शारीरिक योग का अभ्यास करने के लाभों को स्वीकार किया। उन्होंने अंतर-धार्मिक सद्भाव की भारत की लम्बे समय से चली आई परम्परा की भी प्रशंसा की और उल्लेख किया कि चूँकि उनका समस्त ज्ञान भारत से आया है वह स्वयं को भारत का एक पुत्र मानते हैं।
परम पावन दलाई लामा के ८०वाँ जन्मदिन के समारोह में भाग लेने और उसमें योगदान देने के लिए सबके प्रति एक संक्षिप्त धन्यवाद प्रस्ताव के बाद वहाँ उपस्थित सभी लोगों को थाली में परोसा भोजन दिया गया जो उन्होंने मिलकर खाया। परम पावन अपने निवास की ओर पैदल लौट गए और भीड़ तितर बितर हो गई।