"हम तिब्बतियों की अपनी भाषा और लिपि प्रणाली है। आज स्थिति ऐसी है कि आज तिब्बती भाषा, बौद्ध परम्पराएँ, जिनकी शिक्षा भारत के महान नालंदा विश्वविद्यालय में दी जाती थी, को समझाने के लिए सबसे सटीक भाषा है। इनमें चित्त और भावनाओं के ज्ञान के अतिरिक्त दर्शन और तर्कशास्त्र शामिल थे। इन परम्पराओं में अपनी शिक्षा के आधार पर ही, मैं लगभग विगत ३० वर्षों से आधुनिकों वैज्ञानिक के साथ संवाद में संलग्न हो पाया हूँ। और इसका एक परिणाम यह है कि आज कई वैज्ञानिक चित्त के विषय में प्राचीन भारतीय ग्रंथ जो सिखा सकते हैं, उसमें रुचि रखते हैं।"
श्रोताओं की ओर से प्रथम प्रश्न यह पूछा गया कि भविष्य में आने वाली कठिनाइयों का सामना हम किस प्रकार करेंगे। अपने उत्तर में परम पावन ने स्वीकार किया कि चूँकि आज जीवित ७ अरब मनुष्यों में १ अरब इस बात पर बल देते हैं कि वे किसी धार्मिक आस्था का पालन नहीं करते, हमें प्रेम और स्नेह की भावना को बढ़ावा देने के लिए नए उपायों की ओर देखने की आवश्यकता है। हम सब, वे भी जो अंततः आतंकवादी बनते हैं, अपनी माँ की देखरेख और स्नेह की छत्रछाया में बड़े होते हैं। पर जैसे जैसे हम बड़े होते हैं स्नेह की हमारे स्वाभाविक भावना ह्रास होती प्रतीत होती है। उन्होंने नैतिकता के लिए एक धर्मनिरपेक्ष दृष्टिकोण लेने के भारतीय उदाहरण का सुझाव दिया। यह एक ऐसा दृष्टिकोण है जो उनमें से किसी पर भी निर्भर हुए बिना धार्मिक परम्पराओं का सम्मान करता है और उनके विचारों का भी जिनकी कोई धार्मिक आस्था नहीं है। उन्होंने अपने श्रोताओं को बताया कि हमारी सामान्य शिक्षा प्रणाली में धर्मनिरपेक्ष, सार्वभौमिक आकर्षण लिए नैतिकता को प्रारंभ करने की दृष्टि से पाठ्यक्रम विकसित किए जा रहे हैं।
एक अन्य चिकित्सक जानना चाहते थे कि भावनाओं के साथ कैसे निपटा जाए और किस प्रकार चुनौतीपूर्ण प्रश्नों का निर्णय नैतिकता से लिया जाए। परम पावन ने उन्हें बताया कि विनाशकारी भावनाओं को कम करने के लिए हमें रचनात्मक भावनाओं को सशक्त करने की आवश्यकता है। उदाहरणार्थ क्रोध का मुकाबला करने के लिए हम प्रेम और करुणा का विकास करें। कारण और सामान्य ज्ञान सहायक होंगे पर करुणा के विकास का एक अतिरिक्त परिणाम आंतरिक शक्ति में वृद्धि है।
चिकित्सा नैतिकता के चुनौतीपूर्ण प्रश्नों के संबंध में, महत्वपूर्ण कारक प्रेरणा है। परम पावन ने कहा कि उन्होंने अपने ही चिकित्सकों को यह कहकर छेड़ा है कि शल्य क्रिया एक प्रकार की हिंसा है, पर हम इसे स्वीकार करते हैं क्योंकि प्रेरणा अच्छी है। उन्होंने सुझाया कि जहाँ साधारणतया गर्भपात से बचना बेहतर है, पर ऐसे अवसर होते हैं जबकि यह अधिक उपयुक्त कार्रवाई है। उन्होंने ऐसे मामलों में न केवल करुणा काम में लाने अपितु प्रज्ञा और सादे सामान्य ज्ञान की भी सिफारिश की।
जब एक मनोचिकित्सक आत्महत्या को रोकने के लिए सलाह पर प्रश्न किया तो परम पावन ने एक तिब्बती आचार्य को उद्धृत किया जिन्होंने टिप्पणी की थी कि कुछ लोगों के जीवन की परिस्थितियाँ ऐसी होती हैं कि उनके जीवन का अल्पकालीन होना बेहतर है। उन्होंने टिप्पणी की, कि हमारे मानव जीवन को जो अनमोल बनाता है वह हमारा अद्भुत मस्तिष्क है। हममें करुणा के विकास की इस प्रकार की क्षमता है जैसा कोई अन्य प्राणी नहीं कर सकते और यही कारण है कि आत्महत्या इतनी बड़ी क्षति लगती है।
उन्होंने इंगित किया कि उदाहरण के लिए आधुनिक शहरी जीवन एक भारतीय गांव के जीवन की तुलना में एकाकी है। गांव में एक आत्मघाती व्यक्ति के लिए समुदाय की ओर से समर्थन और समझने की संभावना अधिक है। उन्होंने १५ वर्ष पूर्व सैन फ्रांसिस्को में सम्मिलित सम्मेलन का स्मरण किया, जिसमें युवाओं के विरोध अपराध पर चर्चा हुई थी। एकमत से आम सहमति यह थी कि एक मूल कारण समाज में स्नेह की एक सामान्य कमी थी। संभवतः यही आत्महत्या की घटना के लिए भी लागू होता है। उन्होंने सुझाया कि अधूरी इच्छा, प्रतिस्पर्धा और तनाव भी महत्वपूर्ण कारक हो सकते हैं।
वरिष्ठ चिकित्सकों ने सेवानिवृत्त वयोवृद्धों तथा समाज में कार्यरत युवा सदस्यों की संख्या में असंतुलन से आसन्न संकट के बारे में परम पावन की सलाह मांगी। उन्होंने उनसे स्वीडन में एक परियोजना के विषय में सुने जाने की बात की जिसमें वयोवृद्धों की बच्चों की देखरेख में एक भूमिका है। इसका परिणाम पारस्परिक लाभ है। जब उनके माता-पिता काम कर रहे होते हैं, तो बच्चे बड़ों के अनुभव से सीखते हैं, और बच्चे, जिस प्रकार का उत्साह बूढ़ों को देते हैं वह उनके मानसिक ह्रास, जो अन्यथा हो सकता था, को कम करने से रोकता है।
धर्मनिरपेक्ष नैतिकता के महत्व की ओर लौटते हुए परम पावन ने उल्लेख किया कि युवाओं को स्कूल में यह शिक्षा देना महत्वपूर्ण है कि, हिंसा समस्याओं के समाधान का एक निरर्थक व्यवहार है। हिंसा और बल का प्रयोग निश्चित रूप से अप्रत्याशित परिणामों और शायद ही किसी एक समाधान को जन्म देता है। बेहतर यह होगा कि बच्चे इस विचार से परिचित होकर बड़े हों कि समस्याओं के समाधान का उचित उपाय संवाद के माध्यम से है, पारस्परिक रूप से सहमत समाधान तक पहुँचने से है।
अंत में, परम पावन ने तिब्बती उक्ति उद्धृत की, कि एक अच्छे योग्य चिकित्सक, जिसकी चिकित्सा कम प्रभावशाली है क्योंकि वह उदासीन रहता है, की तुलना में कम-योग्य चिकित्सक की चिकित्सा अधिक प्रभावशाली है, क्योंकि उसमें सौहार्दता है। उन्होंने अपने स्वयं का अुनभव बताया कि जब चिकित्सक तथा परिचारिकाएँ सौहार्दतापूर्ण व्यवहार करते हैं तो उनके ठीक होने की संभावना अधिक है, बजाय इसके कि जो उन्हें इस प्रकार का अनुभव कराते हैं कि वे मात्र एक मशीन ठीक कर रहे हैं।
"परन्तु," उन्होंने कहा, "जिस तरह हम बुद्ध को वर्णमाला नहीं सिखाते, आप चिकित्सक हैं और मुझे विश्वास है कि आप यह सब कुछ जानते हैं।"
धन्यवाद के शब्द प्रस्तुत िकए गए और परम पावन ने सभी प्रतिभागियों को मंच पर रेशमी दुपट्टा प्रदान िकए। बाहर, प्रांगण में, परम पावन और जेडीए के अध्यक्ष ने अपनी यात्रा की स्मृतिचिह्न के रूप में वृक्षारोपण किया।