उलुरू, उत्तरी क्षेत्र, ऑस्ट्रेलिया - १३ जून , २०१५- आज प्रातः परम पावन दलाई लामा जब अपने होटल के प्रांगण से होकर जा रहे थे तो उलुरू में आए कई यात्री उनका अभिनन्दन करने, उनसे हाथ मिलाने और उनके साथ तस्वीरें खिंचवाने का अवसर पाकर खुश थे।
जब वे उलुरू- केट- ट्यूट राष्ट्रीय उद्यान के लिए गाड़ी से निकले तो एक शीतल रात्रि के बाद, सूर्य चमक रहा था और पृथ्वी को गर्म करने लगा था। पारम्परिक मालिकों के बोर्ड के अध्यक्ष, सैमी, एक दुभाषिए कैथ्रीन टोज़र और उद्यान के कर्मचारियों ने उनका स्वागत किया। उन्होंने मुतीतजुलु जल छिद्र की ओर चलना प्रारंभ किया और रास्ते में परम पावन के प्रश्नों के उत्तर देते रहे। विशाल महान लाल बलुआ पत्थर उलुरू चट्टान संगठन अपनी ऊँचाई से आस पास के सपाट रेगिस्तान पर हावी है। परम पावन वनस्पति, स्थानीय वन्य जीवन के बारे में जानना चाहते थे और जब दूरबीन मिल गई तो उन्होंने नीचे से चट्टान के चेहरे का परीक्षण करते हुए कुछ समय बिताया।
जल छिद्र के आधे रास्ते तक पहुँचकर समूह विश्राम करने के लिए रुका। परम पावन एक बेंच पर बैठ गए और उनके साथ अन्य पारंपरिक मालिक, महिलाएँ और बच्चे शामिल हो गए। सैमी ने इस अवसर पर उस क्षेत्र की सृजन कथा को संक्षेप रूप में प्रस्तुत किया, कि किस प्रकार नाग जीवों ने चट्टान को ज़ख्मी करते हुए उलुरू के चारों ओर युद्ध छेड़ दिया। लाल रेतीले मार्ग पर आगे चलते हुए वे मुतीतजुलु जल छिद्र पहुँचे। पारम्परिक मालिकों ने कहा कि उन्होंने आपस में विचार-विमर्श किया था कि वे किस प्रकार सबसे अच्छी तरह परम पावन का स्वागत करेंगे और निश्चय किया कि उचित रूप से करने के लिए यह स्थान ठीक होगा। उन्होंने संक्षेप में उत्तर दियाः
"मुझे जब भी उनसे मिलने का अवसर प्राप्त होता है, मैं सदा आदिवासी लोगों के लिए अपना सम्मान व्यक्त करता हूँ। वे जिस प्रकार अपनी संस्कृति और भाषा का संरक्षण करते हैं, उसका मैं बड़ा प्रशंसक हूँ। जब हम तिब्बतियों को अपना एकाकीपन तोड़ना पड़ा था तो हमें अन्य लोगों से मिलने और सीखने का अवसर मिला। अब हम बिना उस सुरक्षा के अपनी परम्परा के संरक्षण का प्रयास करते हैं।
"पहले एक अवसर पर जब मैं एक आदिवासी ऑस्ट्रेलियाई से मिला, तो मुझे उसे यह बताना स्मरण है कि मेरे विचार से आदिवासियों के लिए यह महत्वपूर्ण है कि वे अपना मूल नाम बनाए रखें और उसका उपयोग करें। फिर जब आप अपना परिचय देते हैं तो वह आपकी पहचान प्रस्तुत करता है। मैं आपको यह भी बताना चाहता हूँ कि औपनिवेशिक प्रभुत्व जो १८वीं और १९वीं शताब्दी की विशेषता थी, अब समाप्त हो गई है। अब विश्व आपके और आपकी संस्कृति और अस्मिता को बनाए रखने के अधिकार का समर्थन करता है।"
परम पावन और पारम्परिक मालिकों में से एक, उद्यान गाड़ी से पार्किग स्थान पर लौट आए। प्रतीक्षा कर रहे पत्रकारों से बात करते हुए उन्होंने कहा कि एक बौद्ध भिक्षु के रूप वह वस्तुओं के प्रति एक उत्सुकता भरी, जाँच का दृष्टिकोण रखने के लिए प्रशिक्षित हैं और उन्हें यह जानने में दिलचस्पी होगी कि वैज्ञानिकों ने उलुरू के बारे में क्या खोजा है। उन्होंने विश्व भर में मिले विभिन्न आदिवासियों के बारे में बात की, जिनके मूल्यों और विरासत को स्थानीय पर्यावरण की स्थितियों ने आकार दिया है। कुछ अपना अलगाव रखना पसंद करते हैं, अन्य जैसे लैपलैंड के सैमी ने आधुनिक शिक्षा और कुछ प्रौद्योगिकी को गले लगाते हुए अपनी विरासत बरकरार रखी है।
मुतीतजुलु समुदाय से मिलते हुए जिसमें लगभग ३०० की संख्या में लोग थे, सैमी ने परम पावन का परिचय कराते हुए कहा ः
"यह सज्जन विश्व की यात्रा करता है और उन्होंने हवा से हमारा स्थान देखा। वे स्वयं देखना चाहते थे, और इसलिए अब यहाँ आए हैं।"
एक और पारंपरिक मालिक ने जोड़ा ः
"हम प्रत्याशा के साथ इस यात्रा की प्रतीक्षा कर रहे थे और हम आपका और आपके साथ आए अन्य आगंतुकों का स्वागत करना चाहेंगे।"
परम पावन उनके बीच बैठे और कइयों ने उन्हें उपहार भेंट किए। उन्होंने कहा:
"कई वर्षों से विभिन्न महाद्वीपों के आदिवासियों के प्रति मेरी रुचि है, आस्ट्रेलियाई आदिवासी और यह प्रसिद्ध पवित्र चट्टान। और आज मुझे इसे निकट से देखने का, यहाँ तक कि छूने का भी अवसर प्राप्त हुआ है। और इसके बारे में जो कहानियाँ आपने बताईं, वे मैंने सुनी और इन सबसे मुझे बहुत खुशी हुई है।
"मैं विभिन्न स्थानों में कई आदिवासियों से मिला हूँ, और वे सभी भाषा और परम्पराओं के संरक्षण का प्रयास कर रहे हैं। मुझे लगता है कि सफल होने के लिए आपको यथार्थवादी होना होगा। उनमें से कई, जैसे दक्षिण अमेरिका के अपना अलगाव बनाए रखना पसंद करते हैं। अन्य जैसे लैपलैंड के सैमी, न्यूजीलैंड में आपके पड़ोसी माओरी और कनाडा के प्रथम राष्ट्र के लोग अपनी विरासत को आधुनिक ज्ञान के साथ संरक्षित करने का प्रयास करते हैं। मेरे विचार से शिक्षा महत्वपूर्ण है और कुछ आधुनिक सुविधाओं को स्वीकार करना और अंग्रेजी सीखना आवश्यक है।"
वे सोच रहे थे कि क्या अधिक वृक्षारोपण से और फसल उगाने को लेकर प्रयोगों से लाभ होगा। यदि खेती सफल हुई तो वे बाद में भी कुछ छोटे पैमाने पर उद्योग भी प्रारंभ कर सकते हैं। उन्होंने इतनी सौहार्दता से उनका स्वागत करने के लिए उनका धन्यवाद किया।
मध्याह्न में भोजनोपरांत एसबीएस की लिविंग ब्लैक की प्रस्तुतकर्ता कार्ला ग्रांट से साक्षात्कार में परम पावन ने उनसे कहा कि वे वहाँ आकर और स्थानीय लोगों से मिलकर कितने प्रसन्न थे। उन्होने उन्हें वह बात भी बताई जो उन्होंने स्थानीय लोगों से परंपराओं के संरक्षण के महत्व के बारे में बताया था। उन्होंने उल्लेख किया कि किस प्रकार १९६० में भारत आते ही तिब्बतियों ने विद्यालयों की स्थापना कर दी थी जहाँ बच्चे अपनी परंपराओं और मूल्यों को सीखते हुए आधुनिक शिक्षा प्राप्त कर सकें। उन्होंने कहा:
"आज विश्व में जिन कई समस्याओं का सामना हम कर रहे हैं, वे हमारी अपनी बनाई हुई हैं। वे धन या शिक्षा की के अभाव के कारण नहीं हैं, अपितु मूल्यों की कमी के कारण हैं। चूँकि आधुनिक शिक्षा इस संबंध में अपर्याप्त है, मैं मानता हूँ कि हमें, जिसे मैं धर्मनिरपेक्ष नैतिकता कहता हूँ, को शामिल करने के उपायों को खोजने की आवश्यकता है, मूल्यों के प्रति एक ऐसा दृष्टिकोण जो धार्मिक और आदिवासी परम्पराओं का सम्मान करता है।"
सुश्री ग्रांट ने टिप्पणी की आदिवासी ऑस्ट्रेलियाई संस्कृति विश्व में सबसे प्राचीन संस्कृतियों में से एक मानी जाती है। परम पावन ने इसे स्वीकार किया, और टिप्पणी की, कि एक दार्शनिक दृष्टि के साथ आध्यात्मिकता केवल ५००० वर्ष पहले उभरी। उससे पहले विश्व के कई भागों में आत्मा इत्यादि में विश्वास था। तिब्बत में, ७वीं शताब्दी में बौद्ध धर्म के आगमन से पहले, हर पर्वत चोटी पर किसी न किसी आत्मा का निवास माना जाता था।
जब सुश्री ग्रांट ने उनसे सरकार की नीति में संभावित परिवर्तन, जो आदिवासियों को प्रभावित कर सकती है, के विषय में पूछा, तो उन्होंने कहा यह विशेषज्ञों के लिए है और टिप्पणी करने के लिए उनके पास पर्याप्त सूचना नहीं है, तिब्बत के बारे में एक प्रश्न ने उन्हें चीनी दस्तावेजों के आधार पर हाल ही में हुए एक शोध का संदर्भ देने के लिए प्रेरित किया जो एक हज़ार से अधिक वर्ष पूर्व चीनी, तिब्बती और मंगोल साम्राज्य के ऐतिहासिक अस्तित्व की पुष्टि करता है। परन्तु चूंकि तिब्बत एक बंदरगाह विहीन देश है और भौतिक रूप से पिछड़ा है इसलिए चीन की पीपुल्स गणराज्य के भीतर रहना तिब्बतियों के हित में हो सकता है। परन्तु इस कारण उनकी संस्कृति, भाषा और बौद्ध धर्म की समृद्ध परंपराओं के संरक्षण के उनके अधिकार को सीमित नहीं किया जाना चाहिए।
सुश्री ग्रंाट जानना चाहती थी कि उनकी यात्रा के सिलसिले में हो रहे विरोध प्रदर्शन करने को लेकर उनकी क्या प्रतिक्रिया थी। उन्होंने उसे बताया ः
"अब यह नियमित होता जा रहा है, मैं जहाँ जाता हूँ, वे प्रकट हो जाते हैं। नॉर्वे में हाल ही में १००० नॉर्वे के निवासी ओस्लो में मेरे स्वागत के लिए आए थे और मैंने उनका धन्यवाद किया पर साथ ही अपनी सराहना व्यक्त की, कि ये अन्य लोग अपनी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उपयोग कर रहे हैं। परन्तु जब इस विवादास्पद, लगभग चार शताब्दी पुरानी आत्मा के इतिहास को समझने की बात आती है, तो मुझे लगता है कि मैं उनकी तुलना में अधिक जानता हूँ। मैंने ७० के दशक तक इसकी तुष्टि की थी, पर जब मैंने पाया कि इस को लेकर ५वें और १३वें दलाई लामा ने कितनी आलोचना की थी, ५वें दलाई लामा ने इसे एक हानिकारक, दुरात्मा के रूप में संदर्भित किया था, मैंने इसे छोड़ दिया। इसके संबंध में लोगों को सलाह देना मेरा कर्तव्य है।"
परम पावन ने युलारा ओवल जाते हुए, जहाँ वे ३००० से अधिक जनसमुदाय को संबोधित करने वाले थे, राष्ट्रीय आदिवासी प्रशिक्षण अकादमी की एक लघु यात्रा की। उनके मंच पर आते ही उत्साह भरी तालियों की गड़गड़ाहट हुई। उसके कुछ समय बाद मातीतजुलु समुदाय के सदस्यों ने भूमि पर उनका स्वागत किया। सबसे पहले महिलाओं के एक समूह ने नृत्य किया जबकि ज़मीन पर बैठे एक समूह ने वादन और गायन किया। इसके बाद रंगों से सजे शरीर वाले अकेले व्यक्ति ने नृत्य किया। यह समझाया गया कि यह उनके सृजन की कथाओं के एक भाग की अभिव्यक्ति थी।
अपना व्याख्यान प्रारंभ करते हुए परम पावन ने कहा कि इस पवित्र स्थान पर आकर और स्थानीय लोगों से मिलकर वह कितने प्रसन्न थे। परन्तु उन्होंने कहा कि प्रातः उन्होंने बड़े अटपटेपन का अनुभव किया, जब उन्हें कुछ कीड़े खाने के लिए प्रस्तुत किये। उन्होंने समझाया कि बिच्छु आदि कीड़े से प्रभावित नहीं होते, जिनसे अन्य लोग डरते हैं, पर बचपन से ही रेंगने वाले प्राणी जैसे इल्ली और ये कीड़े उन्हें असहज कर देते हैं। पहले से ही दबी हँसती हुई भीड़ ज़ोर से हँस पड़ी जब उन्होंने आश्चर्य भरे स्वर में कहा कि उनके मार्गदर्शक सैमी ने अभी अभी एक कच्चा खा लिया था।
उन्होंने आदिवासियों की अपनी संस्कृति और परम्पराओं के संरक्षण के अधिकार पर टिप्पणी की।
"आदिवासी लोग प्रकृति के भी बहुत निकट होते हैं, यह कुछ ऐसा है जिससे आधुनिक लोग सीख सकते हैं। उन्हें लगता है कि वे प्रकृति को नियंत्रित कर सकते हैं, पर प्रकृति हमारी माँ है और हमारे संरक्षण का अधिकार रखती है। आखिरकार यह ग्रह हमारा एकमात्र घर है।
"हम सब मनुष्य के रूप में एक जैसे हैं। हम एक ही प्रकार से पैदा हुए हैं और हम एक ही प्रकार से मरते हैं। पर हममें से कई, जो आधुनिक विश्व में रह रहे हैं, के भौतिकवादी दृष्टिकोण हैं। वे हमारी शिक्षा प्रणाली में भी व्याप्त हैं। हम कई बार अपने बाहर सुख खोजते हैं और अंदर नहीं देखते। पर फिर भी जब हम बहुत छोटे होते हैं तो अपने माँ की ममता में आनन्दित होते हैं। यह हमारे चित्त को सहज बनाता है और शारीरिक स्वस्थता भी प्रदान करता है। ऐसी सौहार्दता सुख का वास्तविक स्रोत है। यह विश्वास की ओर ले जाता है, और विश्वास मैत्री का आधार बन जाता है।"
अपने व्याख्यान के दौरान कई बार परम पावन ने अपने श्रोताओं से आग्रह किया कि वे आंतरिक मूल्यों, मानवीय मूल्यों, जैसे सौहार्दता पर और अधिक ध्यान दें। बल्कि जब उनसे पूछा गया कि वे अपने आने वाले ८०वें जन्मदिन पर क्या उपहार चाहते हैं, उन्होंने उत्तर दिया ः
"कुछ नहीं। यद्यपि जो कुछ मैंने कहा है उसमें आपको कुछ उपयोगी लगे तो वह मेरे लिए सबसे बड़ा उपहार होगा। धन्यवाद।"
उलुरू में अपने असाधारण प्रवास के बाद परम पावन कल भोर होते ही पर्थ के लिए निकल पड़ेंगे, जहाँ उनके कई कार्यक्रम हैं, जिनसे इस वर्ष के ओशन ऑफ विज़डम ऑस्ट्रेलिया यात्रा का समापन होगा।