ट्रॉनहैम, नॉर्वे ,९ फरवरी २०१५- यूरोप का केन्द्र बेसल से जहाँ फ्रांस,
स्विट्जरलैंड और जर्मनी के प्रदेश मिलते हैं, परम पावन दलाई लामा ने आज
प्रातः उत्तर दिशा में एक नगर, जो महाद्वीप के किनारे पर स्थित है, की ओर
उड़ान भरी। ट्रॉनहैम, नॉर्वे की एक हजार वर्ष से भी अधिक पुरानी पहली
राजधानी एक और अन्य मिलन का क्षेत्र है। निदेलवा नदी के मुहाने पर
ट्रॉनहैमफोर्ड के दक्षिण तट पर खड़ा, १९९० से ट्रॉनहैम विश्व का सबसे विशाल
अंतर्राष्ट्रीय छात्र समारोह का स्थान है। आइएसएफआइटि चर्चा और बहस के लिए
एक मिलने के स्थान के रूप में कार्य करता है, एक क्षेत्र जहाँ विचार जन्म
लेते हैं, मित्र बनते हैं और मूल्यवान सबक सीखे जाते हैं। यह हर दूसरे वर्ष
होता है।
भारतीय दूतावास के प्रतिनिधि और आइएसएफआइटि के छात्र परम पावन से मिले
जब वह ट्रॉनहैम हवाई अड्डे पर उतरे और क्लेरियन कॉनफरेंस सेंटर के निकट
उनके होटल तक उन्हें ले गए। भोजन कक्ष, जहाँ उन्होंने छात्रों के एक समूह
के साथ मध्याह्न के भोजन का आनंद लिया, से एक विशाल सागर का दृश्य दिखाई
पड़ता था। चर्चाओं में शामिल होने से पहले उनका परिचय इस वर्ष के छात्र
शांति पुरस्कार के विजेता आयत अलगोरमोज़ी से कराया गया, जिन्हें बहरीन में
उनके लोकतंत्र और मानवाधिकारों के अटूट संघर्ष के लिए सम्मानित किया गया
था।
जब उन्होंने सम्मेलन सभागार में प्रवेश किया तो १८०० छात्रों, विदेश के
५०० छात्रों की उल्लसित ध्वनि ने उनका स्वागत किया। आइएसएफआइटि के अध्यक्ष
मेरियस जोन्स ने अपनी परिचयात्मक टिप्पणी में समारोह को सम्पूर्ण विश्व से
आए छात्रों की एक सभा बताया जो भविष्य को परिवर्तित कर सकते हैं और एक
बेहतर दुनिया बना सकते हैं। इस वर्ष का विषय भ्रष्टाचार था।
परम पावन प्रथम बार १९९४ में आइएसएफआइटि में सम्मिलित हुए थे। संचालक
फ्रेड्रिक ग्रेसविक द्वारा सत्र प्रारम्भ करने हेतु कुछ टिप्पणी के िलए
आमंत्रित किए जाने पर उन्होंने प्रारंभ किया:
"गुड आफ्टरनून भाइयों और बहनों। मेरे लिए आप के साथ भेंट कर हमारे
विभिन्न अनुभवों पर चर्चा करना एक महान सम्मान की बात है। युवाओं के रूप
में आपके समक्ष एक लंबा भविष्य है, और मैं एक व्यक्ति के रूप में लगभग ८०
वर्ष का होने के नाते अनुभव रखता हूँ। समय की गति चलती रहती है। वह ठहरता
नहीं। अतीत जा चुका है, अतः हम उसे बदल नहीं सकते यद्यपि हम उससे सीख सकते
हैं। हम अभी भी २१वीं शताब्दी के प्रारंभ में हैं तो इसके अंत होने से
पूर्व एक बेहतर अधिक सुखी विश्व का निर्माण संभव है।"
उन्होंने २०वीं शताब्दी को शानदार विकास की अवधि, पर साथ ही हिंसा और
रक्तपात का एक युग बताया। यदि परिणामस्वरूप विश्व एक बेहतर स्थान बन गया
होता तो उस रक्तपात को न्यायसंगत माना जा सकता था, पर ऐसी बात न थी।
उन्होंने भ्रष्टाचार को भी एक प्रकार की हिंसा समझा और ध्यानाकर्षित किया,
कि यहाँ तक कि धर्म भी कुछ भ्रष्ट लोगों को दूसरों का शोषण करने का एक अवसर
प्रदान करता है। उन्होंने स्पष्ट किया कि हिंसा और अहिंसा के बीच भेद किसी
कार्य की प्रकृति में कम है और जिस प्रेरणा के साथ की गई हो उसमें अधिक
निहित है। वे कार्य जो क्रोध और लोभ से प्रेरित हों, हिंसापूर्ण हो जाते
हैं जबकि जो दूसरों के प्रति करुणा और चिंता से प्रेरित होते हैं, वे
अहिंसक होते हैं। उन्होंने कहा कि हम प्रार्थना करते हुए शांति नहीं ला
सकते, हमें हिंसा और भ्रष्टाचार, जो शांति को बाधित करते हैं, से निपटने के
लिए कदम उठाने होंगे।
"हममें से जो ३० वर्ष से अधिक आयु के हैं, जो २० शताब्दी के हैं, ने कई
समस्याएँ निर्मित की हैं। दुर्भाग्यवश वे आप युवा लोगों द्वारा हल करने के
लिए अभी भी बने हुए हैं। एक बेहतर विश्व बनाने का आपका उत्तरदायित्व और
अवसर है। अपने उद्देश्यों को केवल अपने समुदाय अथवा राष्ट्र के िहतों तक
सीमित न रख सभी मनुष्यों की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए आपको एक व्यापक
ढंग से वस्तुओं को देखना होगा। इसके लिए इच्छा शक्ति, दूरदृष्टि और दृढ़
संकल्प की आवश्यकता होगी। और उसके लिए आप को एक प्रबल भावना की आवश्यकता
होगी कि मानवता एक परिवार है।"
"इस समय मैं आपके साथ यहाँ मात्र एक मानव के रूप में हूँ। हम मानसिक और
भावनात्मक, शारीरिक रूप से एक समान हैं, पर इसके स्थान पर हम अपने गौण
मतभेदों ध्यान केंद्रित करते हैं। यदि सभी ७ अरब मनुष्यों में मानवता की
एकता की भावना होती तो हमारे पास झगड़ने का कोई आधार नहीं होता। इसके बजाय
हमें एक दूसरे के साथ मित्रता बनाने पर ध्यान केंद्रित करना होगा। आप
युवाओं के पास एक महान अवसर है, आप में ऐसा करने की क्षमता है।"
परम पावन ने सुझाया कि हमारी आधुनिक शिक्षा प्रणाली भौतिकवादी लक्ष्यों
को िलए हुए है, जो हमारे मानसिक अनुभव की ओर ध्यान नहीं देती। भौतिक
वस्तुएँ प्रेम और स्नेह प्रदान नहीं करते जिनकी हमें आवश्यकता है। यदि आप
उद्विग्न हैं, तो एक हीरे की अंगूठी आप के साथ स्नेह का व्यवहार नहीं कर
सकती, जो कि एक कुत्ता या बिल्ली तक दे सकता है। केवल भौतिक वस्तुओं पर
ध्यान केंद्रित करने का अर्थ नैतिक मूल्यों की भावना की उपेक्षा करना है।
संचालक फ्रेड्रिक ग्रेसविक ने बीच में कहा "आपने कहा कि भ्रष्टाचार
हिंसा का एक रूप है, क्या आप मुझे और विस्तार पूर्वक बता सकते हैं?"
परम पावन ने उत्तर दिया कि भारत, जो विगत ५६ वर्षों से मेरे लिए एक
दूसरे घर के समान है, में व्यापक भ्रष्टाचार है। यह हिंसा का एक रूप है
क्योंकि यह साधारण लोगों के अधिकारों का उल्लंघन करती है। उन्होंने कहा कि
चीन में भी विपुल भ्रष्टाचार है। अंतर यह है कि भारत में कानून का शासन, एक
स्वतंत्र न्यायपालिका और एक स्वतंत्र प्रेस है। चीन में अभिव्यक्ति की
स्वतंत्रता, कोई स्वतंत्र प्रेस और कानून का शासन नहीं है। ऐसा अनुमानित है
कि भ्रष्टाचार के कारण आवंटित धन का मुश्किल से आधा अंश उन परियोजनाओं तक
पहुँचता है जिसके िलए वे लगाए गए हैं।
"मेरे भारतीय मित्र बताते हैं कि यदि भ्रष्टाचार कम होता तो भारत का विकास बहुत जल्दी हो गया होता।"
उन्होंने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि नॉर्वे में भ्रष्टाचार कम है,
पर अन्य देशों में जहाँ उन्होंने लोगों से हाथ के संकेत से भ्रष्टाचार की
हद इंगित करने के लिए कहा वे यह दिखाने के िलए वह कितना व्यापक है वे हाथों
को फैला कर बताते हैं। उन्होंने आगे कहा कि यही बात धनवान तथा निर्धनों के
बीच की खाई को लेकर भी है।
"यदि लोगों में वास्तव में नैतिक मूल्यों, नैतिक सिद्धांतों के लिए,
कोई सम्मान होता तो कोई भ्रष्टाचार न होगा। हत्या, चोरी और बलात्कार असंभव
होंगे यदि लोग उचित रूप से एक दूसरे का सम्मान करें। हमें मानव गतिविधि के
सभी क्षेत्रों में नैतिक सिद्धांतों की आवश्यकता है, हमारी धार्मिक
परंपराओं में भी। हमें शिक्षा के लिए एक ऐसे दृष्टिकोण की आवश्यकता है, जो
बाल विहार से लेकर विश्वविद्यालय तक के छात्रों में नैतिक मूल्य पैदा कर
सके। यह एक विभिन्न दृष्टिकोण वाले लोगों को जन्म देगा। माइंड लाइफ
इंस्टिट्यूट, जिसमें वैज्ञानिक तथा विचारक शामिल हैं, जिनके साथ मैं लगभग
३० वर्षों से कार्य कर रहा हूँ वह एक ऐसे पाठ्यक्रम पर काम कर रहे हैं
जिसका नाम 'कॉल टु केयर' है। उन्होंने उनकी प्रतिक्रिया पर निगरानी रखते
हुए लोगों को अधिक करुणाशील रूप से िचंतन करने का प्रशिक्षण देने के लिए
कार्यशालाओं का भी आयोजन किया है। निष्कर्ष यह हैं कि परिणामस्वरूप लोगों
का शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार होता है।"
परम पावन ने सुझाया कि ऐसे विकास केवल वैज्ञानिक निष्कर्षों पर ही नहीं
अपितु सामान्य ज्ञान और सामान्य अनुभव पर भी आधारित होने चाहिए। उन्होंने
बताया कि माताएँ हम सभी को जन्म देती हैं और हमारे माता पिता स्नेह के साथ
हमारा पालन पोषण करते हैं।
यह पूछे जाने पर कि क्या बल द्वारा भ्रष्टाचार का विरोध किया जा सकता
है, परम पावन ने मीडिया की लम्बी नाक की आवश्यकता पर बल दिया, जो सार्वजनिक
रूप में और पर्दे के पीछे भ्रष्टाचार को सूँघ सके। भ्रष्टाचार को उजागर कर
भ्रष्ट व्यक्ति को दोषित ठहराया जा सकता है। इस संदर्भ में, कि भ्रष्टाचार
किन रूपों में हानिकारक है, उन्होंने कहा कि यह विश्वास को नष्ट करता है।
उन्होंने कहा कि इससे लड़ने के लिए हमें प्रत्येक मामले की परिस्थितियों की
जाँच करनी होगी।
एक प्रश्नकर्ता ने इन सब में धर्म की भूमिका का प्रश्न उठाया और परम
पावन ने उत्तर दिया कि सभी प्रमुख धर्म प्रेम का एक ही संदेश संप्रेषित
करते हैं और उसे प्राप्त करने के लिए क्षमा, सहनशीलता और आत्म अनुशासन के
अभ्यास की सराहना करते हैं। उनमें दार्शनिक मतभेद हो सकते हैं, पर वे एक आम
लक्ष्य की प्राप्ति की ओर लक्षित हैं। एक ही सत्य और एक सच्चे धर्म की
भावना के संबंध में उन्होंने कहा कि यह एक व्यक्ति के स्वयं के अभ्यास के
संदर्भ में उचित हो सकता है, पर जहाँ तक व्यापक समुदाय का प्रश्न है, कई
सत्य और कई सच्चे धर्म हैं। महत्वपूर्ण बात यह है, जैसे भारतीय उदाहरण
दिखाता है कि उन सभी को एक दूसरे के साथ सद्भावपूर्ण ढंग से रहना चाहिए।
भ्रष्टाचार के प्रश्न पर लौटते हुए परम पावन ने कहाः
"भ्रष्टाचार मूल रूप से बेईमान होने के विषय में है अतः लोगों को इसे
छिपाना पड़ता है। कोई भी भ्रष्टाचार पर गर्व नहीं करता। इसके विपरीत
ईमानदारी, पारदर्शिता और खुलापन चित्त की शांति लाता है।"
शासन में धर्म की भूमिका के विषय में पूछे जाने पर उन्होंने उत्तर दिया
कि अतीत में एक भूमिका रही होगी, पर आधुनिक समय में नहीं है। उन्होंने
टिप्पणी की, कि धर्म, एक निजी, व्यक्तिगत रुचि की बात है, जबकि शासन का
संबंध पूरे समुदाय से है। जब एक छात्र ने पूछा कि हम सुखी कैसे हो सकते हैं
उन्होंने उसे बताया कि सुख संतुष्टि से जुड़ा जान पड़ता है। उन्होंने उसे
इस तरह जोड़ा जैसे कि सफलता प्राप्त करने के िलए एक खिलाड़ी कठिनाइयों को
झेलने के लिए तैयार रहता या रहती है। एक सार्थक जीवन जीना संतुष्टि का एक
स्रोत है। उन्होंने सुझाया कि जहाँ हम संतुष्टि के लिए ऐन्द्रिक अनुभवों की
ओर मुड़ते हैं, वह क्षणभंगुर और सतही है। अपने चित्त और मानसिक अनुभव से
संबंधित संतोष की खोज अधिक प्रभावी है। इस संदर्भ में उन्होंने कहा कि
वैज्ञानिक ऐन्द्रिक चेतना और मानसिक चेतना के बीच के अंतर को देखने की
शुरुआत कर रहे हैं।
संचालक फ्रेड्रिक ग्रेसविक ने कहा कि वहाँ १०० से अधिक देशों के छात्र
मौजूद थे और पूछा कि उनके लिए परम पावन की क्या सलाह थी। उन्होंने उत्तर
दिया ः
"मानवता की एकता पर ध्यान दें। मेरे अपने संदर्भ में, मैं अपने आपको
मात्र एक मानव के रूप में देखता हूँ। यदि मैं स्वयं को कुछ विशिष्ट अथवा
अन्य लोगों से अलग समझूँ तो इससे मात्र हम दोनों के बीच का अंतर बढ़ेगा।
हमें सकारात्मक का विकास करते हुए और नकारात्मक को कम करते हुए बुद्धिमानी
से अपनी भावनाओं से निपटने की आवश्यकता है। मानवता जिन समस्याओं का सामना
कर रही है वह हम सभी को प्रभावित करते हैं, पर यदि मानवता सुखी है, तो हम
सभी सुखी हो सकते हैं।"
ट्रॉनहैम के मेयर, रीता ओट्टरविक परम पावन के प्रति आभार व्यक्त करने
के लिए मंच पर आईं। आइएसएफआइटि के अध्यक्ष मेरियस जोन्स ने परम पावन का
वहाँ आने के लिए और उन्होंने उनसे जो कहा उसके लिए धन्यवाद दिया। उन्होंने
उन्हें एक ऊनी टोपी भेंट की, जो परम पावन ने तुरन्त पहन ली और सभागार
प्रेमभरी करतल ध्वनि से गूँज उठा।
कल, वह कोपेनहेगन, डेनमार्क की यात्रा करेंगे।