नई दिल्ली, भारत, २३ मार्च २०१५ - आज की प्रातः खिली हुई थी जब परम पावन दलाई लामा एशिया में लोकतंत्र को सशक्त करने के विषय पर सम्मेलन के लिए उद्घाटन भाषण देने इंडिया इंटरनेशनल सेंटर पहुँचे। पर जैसे डॉ जॉर्ज मैथ्यू ने अपने स्वागत भाषण में स्पष्ट किया कि जिस कारण यह कार्यक्रम विशिष्ट था वह यह था कि यह दिग्गज भारतीय कार्यकर्ता और नेता जॉर्ज फर्नांडिस की विरासत को चिह्नित करने के लिए आयोजित किया जा रहा था। क्योंकि फर्नांडिस अपने दुर्बल होते स्वास्थ्य (वह अल्जाइमर सिंड्रोम और पार्किंसंस रोग से ग्रस्त है) सार्वजनिक रूप से उपस्थित होने की स्थिति में नहीं थे, उनके मित्र उनकी विरासत का एक आयोजन करना चाहते थे।
लोकतंत्र के लिए राष्ट्रीय अनुदान के अध्यक्ष कार्ल गर्शमेन ने जॉर्ज फर्नांडीस के जीवन के पहलुओं को स्पष्ट करने से पहले परम पावन और सिक्योंग डॉ लोबसंग सांगे का स्वागत किया। कोरिया की एन्सेल्मो ली ने उल्लेख किया कि, भारत में प्रथम बार एशियाई लोकतंत्र नेटवर्क ने एक बैठक में भाग लिया था। उन्होंने संकेत दिया कि २०१५ का यह वर्ष मैग्ना कार्टा का ८००वां वर्ष है जो मानव अधिकारों का वर्णन करने वाले पहले दस्तावेजों में से एक है। यह द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति की ७०वीं वर्षगंाठ है और इसलिए संयुक्त राष्ट्र की स्थापना का है।
लोकतंत्र वर्ल्ड मूवमेंट की ओर से सुश्री मेलिंडा क्युईटोंस डि जीसस ने कहा कि लोकतांत्रिक प्रक्रिया धैर्य और दृढ़ता दोनों की मांग करती है। उन्होंने महिलाओं और शांति के लिए विशेष ध्यान दिए जाने की आशा की और कहा कि २१वीं शताब्दी एशिया द्वारा दावा करने के लिए है। कार्ल गर्शमेन ने स्मरण कराया कि एक कर्मठ कार्यकर्ता के रूप में अपनी अवधि के दौरान कितनी बार जार्ज फर्नांडीस दूसरों द्वारा उनके साथ दिखाई गई एकजुटता के कारण लाभान्वित हुए थे। दूसरी ओर फर्नांडीस बहुत लंबे समय से परम पावन के मित्र रहे हैं और उन्होंने तिब्बती लोगों के प्रति निस्सकोंच एकजुटता दिखाई है।
"आदरणीय बड़े भाई और बहनों, यह एक विशेष सभा है। मैं इस बात की सराहना करता हूँ कि किस प्रकार आप में से प्रत्येक न केवल अपने हित के लिए पर साथ ही दूसरों के हित के लिए भी प्रतिबद्ध हैं," परम पावन के प्रारंभिक कथन थे। "इस विशेष अवसर पर मैं अपने पुराने मित्र जॉर्ज फर्नांडिस का स्मरण कर रहा हूँ जिन्होंने रक्षा मंत्री बनने के पश्चात भी सरल, आत्मनिर्भर जीवन शैली बनाए रखी। एक बार सत्ता में आने के बाद हममें से कुछ मित्रों के व्यवहार में परिवर्तन हुआ, पर जॉर्ज में नहीं। उनकी प्रारंभ से ही तिब्बत और तिब्बती मुद्दे के लिए सहानुभूति थी और वे उस संबंध में बोलने का कोई अवसर न चूकते थे। मेरी मृत्यु तक उनका चेहरा सदा मेरे हृदय में रहेगा और मैं अपने अपर जीवन में भी उन्हें याद रखूँगा।"
लोकतंत्र के महत्व के संबंध में, परम पावन ने कहा कि जानवर भी स्वतंत्रता प्रेमी हैं। उन्होंने उस छोटे से कुत्ते तथा बिल्ली का उल्लेख किया जो जब भी दरवाज़ा खुला रहता है तो बाहर दौड़ना पसंद करते हैं। उन्होंने कहा कि यह महत्वपूर्ण है कि हम अपनी मानवीय सृजनात्मकता और बुद्धि का उपयोग इस अर्थ में करें। श्रोताओं की ओर देखते हुए परम पावन ने कहा कि अफ्रीका या अरब भूमि से शायद ही कोई प्रतिनिधि थे। उन्होंने सुझाव दिया कि भविष्य में उन्हें आमंत्रित किया जाए और कहा कि अफ्रीका अपनी महान क्षमता पूरी होने की प्रतीक्षा कर रही है।
"वर्तमान में अरब भूमि के कई क्षेत्रों में वास्तविक समस्याएँ हैं, पर इस प्रकार का स्मरण करना महत्वपूर्ण है कि आतंकवादी और उग्रवादी जो भय फैला रहे हैं, मनुष्य हैं। हमें उनसे मैत्री करने तथा उनका विश्वास जीतने की आवश्यकता है। बल का प्रयोग, काम करने का पूरी तरह से गलत तरीका है।
"आज हम अपने गौण मतभेदों, जैसे धार्मिक आस्था या राष्ट्रीयता पर बहुत अधिक बल देते हैं। यहाँ भारत में स्वतंत्रता और लोकतंत्र में जाति व्यवस्था एक बाधा है। २६०० वर्ष पूर्व बुद्ध शाक्यमुनि जातिगत भेदभाव के विरोधी थे। प्रजातंत्र के संदर्भ में केवल स्वतंत्रता ही नहीं पर समानता भी आवश्यक है।
"बोल्शेविक क्रांति ने ज़ार का विरोध किया और हटा दिया पर फिर लेनिन ज़ार की तरह ही एक तानाशाह बन गया। इसी तरह, चीनी साम्यवादियों ने सफलतापूर्वक सम्राट और शक्तिशाली सामंतों का विरोध किया पर स्वयं ही उनके जैसे सामंत बनने के लिए। आज लोकतंत्र के आंदोलन में विश्व के सभी लोगों को सम्मिलित किया जाना चाहिए जो अधिनायकवाद की संकीर्ण विचारधारा और अदूरदर्शिता वाले लोगों के विरोध में खड़े हैं।"
श्रोताओं के प्रश्नों के उत्तर देते हुए परम पावन ने कहा कि भारत विश्व का सबसे अधिक जनसंख्या वाला प्रजातंत्र है और चूँकि यहाँ कानून का शासन भी है, यह अपने पड़ोसियों में सबसे अधिक स्थिर देश है। इसकी तुलना में देंग जियाओपिंग ने देखा कि चीन का विश्व के अलग हिस्सों से कट कर रहना उसके हित में नहीं है। उन्होंने अपनी अर्थव्यवस्था खोल दी जिसके परिणामस्वरूप लाखों लोग गरीबी से ऊपर उठे हैं, पर अब ऐसे लोग हैं जो यह कह रहे हैं कि जब तक राजनीतिक व्यवस्था भी नहीं बदलती तो आर्थिक लाभ का कोई अर्थ नहीं।
परम पावन ने कहा कि अंततः चीनी लोग अधिनायकवाद का विरोध करेंगे, जैसे लियु ज़ियाबो ने विरोध किया है। परिवर्तन इसलिए भी होगा कि हज़ारों चीनी छात्र विदेश में अध्ययन कर रहे हैं। कार्ल गर्शमान ने लियु ज़ियाबो का स्मरण करने के लिए परम पावन का धन्यवाद किया और आशा व्यक्त की, कि वह भविष्य में इस तरह की एक बैठक में भाग लेने के लिए समय निकाल पाएँगे और उनके लिए जो समर्थन है, उसे जान पाएँगे।
अपने बचपन में कुछ चंद लोगों के हाथ में आई बहुत अधिक सत्ता का स्मरण करते हुए परम पावन ने समझाया कि किस प्रकार उन्होंने सुधारों को लागू करने का प्रयास किया था। और केवल तिब्बतियों के निर्वासन में आने के पश्चात ही वह ऐसे कदम उठा पाए जिसका परिणाम अंततः एक राजनीतिक नेतृत्व के चुनाव में हुआ और उन्हें इस तरह के उत्तरदायित्वों से मुक्त होने का अवसर मिला।
हांगकांग के एक कार्यकर्ता ने उनकी सलाह माँगी और उन्होंने उत्तर दिया:
"चाहे कितना ही कठिन क्यों न हो अपने सिद्धांतों पर अड़े रहो। बंदूक की शक्ति और सत्य की शक्ति के बीच के संघर्ष में अल्पकाल में बंदूक की शक्ति अधिक सशक्त हो सकती है, परन्तु दीर्घ समय में सत्य की शक्ति ही बनी रहती है। शांति से अपनी मान्यताओं पर बने रहो।"
बांग्लादेश की एक महिला प्रतिनिधि ने प्रजातंत्र में भी महिलाओं के समक्ष आ रही कठिनाइयों के विषय में पूछा। परम पावन ने दोहराया कि प्रारंभिक मानव समाजों में नेतृत्व की आवश्यकता उभरी तो शारीरिक शक्ति की प्रमुख आवश्यकता थी जिसके कारण पुरुषों का प्रभुत्व हुआ। आज शिक्षा के विकास के साथ अधिक समानता है और यह आवश्यक है कि अधिक महिलाएँ नेतृत्व दें। पाकिस्तान से एक और महिला ने भारत और पाकिस्तान के बीच अधिक विश्वास के विकास के बारे में पूछा और परम पावन ने लोगों के बीच पारस्परिक आदान प्रदान पर बल दिया जो कि निहित स्वार्थों के प्रचार पर काबू पाने के लिए एक व्यावहारिक तरीका है।
कार्ल गर्शमेन ने सिक्योंग डॉ लोबसंग सांगे का परिचय कराया जिन्होंने परम पावन द्वारा लाए गए प्रजातांत्रिक परिवर्तन की सराहना अत्यंत उत्साह से की। उन्होंने कहा कि यद्यपि परम पावन ने उन्हें 'मेरा राजनीतिक बॉस कहकर संबोधित किया था, पर जहाँ वे मात्र एक सीमित अवधि के लिए सेवा करेंगे, जबकि परम पावन सम्पूर्ण जीवन के लिए आध्यात्मिक नेता हैं। उन्होंने जार्ज फर्नांडिस की भी भूरि भूरि प्रशंसा की जिन्होंने दशकों से तिब्बतियों के साथ निरंतर समर्थन और एकजुटता दिखाई थी।
डॉ ऐश एन रॉय ने धन्यवाद प्रस्ताव रखा।
मध्याह्न के भोजन के पश्चात परम पावन ने एम एन बी, द वोइस ऑफ मंगोलिया को एक साक्षात्कार दिया, जिसमें उन्होंने दोहराया कि शांति और सद्भाव प्रत्येक के हित में है। उन्होंने कहा कि सद्भाव निर्माण का उपाय पैसा और शक्ति, प्राप्त करके नहीं है, अपितु एक करुणाशील व्यवहार का विकास करने से है जो स्वाभाविक रूप से अधिक विश्वास तथा मैत्री की ओर ले जाता है। उन्होंने कहा कि मंगोलिया एक बौद्ध देश है और तिब्बत की तरह नालंदा परम्परा का अनुयायी है। उन्होंने प्रसन्नता व्यक्त की, कि मंगोलियाई प्रतिनिधि कल दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रारंभ होने वाले विज्ञान सम्मेलन में भाग लेंगे।
गर्म दोपहर के दौरान परम पावन का जिमखाना क्लब में एक उत्साहपूर्ण स्वागत किया गया जहाँ उन्होंने सहृदयता और बुद्धि को बढ़ावा देने की आवश्यकता के विषय पर बात की। उन्होंने श्रोताओं से कहा:
"हमारा समूचा ज्ञान भारत से आया। १५वीं सदी के प्रारंभिक दशक में एक महान तिब्बती गुरु ने टिप्पणी की, कि यद्यपि तिब्बत हिम के कारण नाममात्र उज्ज्वल है पर जब तक कि ज्ञान का प्रकाश भारत से नहीं आया, जब तक तिब्बत अंधकार में था।
"आप भारतीय हमारे गुरु हैं और हम शिष्य हैं, परन्तु मुझे लगता है कि हम विश्वसनीय चेले प्रमाणित हुए हैं क्योंकि हमने आप से प्राप्त ज्ञान को अच्छी तरह से संरक्षित कर रखा है।"
उन्होंने इस बात को स्वीकार करते हुए कि मनुष्य रूप में हम सभी समान हैं, नैतिकता को एक धर्मनिरपेक्ष रूप में बढ़ावा देने की आवश्यकता पर बात की।
"यदि हम ईमानदार, सच्चे और पारदर्शी हों तो यह विश्वास की ओर ले जाएगा और विश्वास मैत्री को जन्म देता है। हम जैसे सामाजिक प्राणियों के लिए मैत्री बहुत महत्वपूर्ण है। इसी जीवन में एक और अधिक नैतिक दृष्टिकोण अपनाना आत्मविश्वास और चित्त की शांति लाएगा।"
प्रश्नों के उत्तर देते हुए परम पावन ने बुद्ध द्वारा उनके अनुयायियों को उनकी शिक्षाओं पर प्रश्न उठाने तथा तर्क के साथ उनकी जाँच करने की स्वतंत्रता का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि बुद्ध ने अपने सुनने वालों के स्वभावानुसार विभिन्न अवसरों पर उन्हें अलग अलग व्याख्या दी थी।
जागरूकता के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने उल्लेख किया कि मोह के प्रतिकारक के रूप में शरीर के प्रति जागरूकता को काम में लाया जा सकता है, परन्तु भावनाओं और चित्त की जागरूकता भी है। स्वभावगत सत्ता की शून्यता के संबंध में, इसका अर्थ यह नहीं कि वस्तुओं का अस्तित्व होता ही नहीं। उन्होंने ११वीं शताब्दी के एक आचार्य को उद्धृत किया जिन्होंने कहा ः
"हाथ शून्यता है, अग्नि शून्यता है और जलना शून्यता है, पर यदि आप आग में अपने हाथ डालें तो पीड़ा होगी।"
कर्म के बारे में प्रश्न पूछे जाने पर परम पावन ने कहा कि कर्म शब्द का अर्थ कुछ कार्य करने से है। जहाँ कुछ लोग उन पर जो बीतती है उसका दोष आलस्यवश 'उनके कर्म' पर डालते हैं, वे रुककर यह नहीं सोचते कि कार्य करते हुए किसने इस कर्म को निर्मित किया है। उत्तर है कि उन्होंने किया है। समकालीन समाज में प्राचीन मूल्यों की उपस्थिति के विषय में संदेह को लेकर प्रश्न के उत्तर में उन्होंने कहा कि यह सच है कि समुदाय में सकारात्मक पारम्परिक मूल्यों की रक्षा करने का प्रयास करने की आवश्यकता है।
अंत में, क्लब के सचिव, श्री विद्या छिब्बर ने परम पावन को आने के लिए धन्यवाद दिया और उनकी प्रशंसा एक शांति पुरुष और एक दुर्लभ मानव के रूप में की। उनके निकलते समय सदस्य, जो उनकी निकट से एक झलक पाने के लिए उमड़ पड़े थे, इस बात से सहमत जान पड़े।