ल्यूरा, ब्लू माउंटेन, न्यू साउथ वेल्स, ऑस्ट्रेलिया - ७ जून २०१५- उज्ज्वल शीतकाल की धूप ने वातावरण में कुछ गरमाहट ला दी थी जब परम पावन दलाई लामा ने गाड़ी से पेड़ों के घुमावदार मार्ग और ऊपर नीचे होती पहाड़ियों से होते हुए पास के शहर कटूम्बा तक की एक छोटी यात्रा पूरी की। एक शामियाने में लगभग १४०० लोग, जिनमें ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड से १००० तिब्बती, २०० वियतनामी, लगभग ६० भूटानी, १० मंगोलियाई उनके दीर्घायु की प्रार्थना करने एकत्रित हुए थे। जब प्रार्थनाएँ हो रही थीं तो परंपरागत चाय और मीठे चावल जैविक रूप से नष्ट होने वाले भूरे रंग के कागज के कप और कटोरे में परोसा गए। अंत में परम पावन ने सभा को संबोधित किया।
"आप में से कई भारत से दूसरी बार शरणार्थियों के रूप में यहाँ आए हैं। और आपने तिब्बती मुद्दे के प्रति अपनी निष्ठा के कारण मेरे लिए दीर्घायु समर्पण किया है। हमारे साथ यहाँ वियतनाम, मंगोलिया और हमारे पड़ोसी भूटान के भाई और बहनें हैं, जो एक ही शिक्षक के अनुयायी हैं। मैं आप सभी का धन्यवाद करना चाहूँगा।
"ऑस्ट्रेलियाई तिब्बती समुदाय ने यह संक्षिप्त, अच्छी तरह से लिखी रिपोर्ट बनाई है जिसमें आपने तिब्बती समस्या का समर्थन करने और तिब्बती भावना को जीवित रखने के लिए अपनी ओर से श्रेष्ठ प्रयास करने का वचन दिया है। आपने केंद्रीय तिब्बती प्रशासन के लिए भी अपने समर्थन का वचन दिया है जिसने भारत सरकार की सहायता से बच्चों को शिक्षित करने और हमारी संस्कृति को जीवित रखने के लिए अवसर निर्मित किए हैं।
"हमने संयुक्त राष्ट्र से अपील की, पर जैसी पंडित नेहरू ने मुझे सलाह दी, संयुक्त राज्य अमेरिका तिब्बत को लेकर चीन के साथ युद्ध करने के लिए तैयार न था। हम इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि अंततः हमें चीन सरकार के साथ निपटना होगा। अब तक चीन नीति तिब्बती लोगों और उनकी संस्कृति को बदनाम करने की रही है, पर फिर भी हम पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना के अंदर अपनी संस्कृति और मूल्यों के संरक्षण को लेकर आशावान हैं। चीनी बुद्धिजीवियों के बीच, मध्यम मार्ग दृष्टिकोण को अच्छी तरह से समझा गया है। हमें चीनी लोगों के साथ संपर्क बनाए रखने की आवश्यकता है।
"आप ने भी दोलज्ञल के साथ कोई लेन देन न रखने का वचन दिया है। विगत ४०० वर्षों में जब से यह उत्पन्न हुई तब से दोलज्ञल सदैव विवादास्पद रहा है। मैंने इसे तुष्ट करने की भूल की और ऐसा करते हुए पिछले दलाई लामाओं की परम्परा से भटक गया। यह बड़े पैमाने पर सांप्रदायिकता को भड़काती है और जब मुझे इसकी कमियों का अनुभव हुआ तो मैंने अभ्यास बंद कर दिया। तब गदेन जंगचे महाविहार को निरंतर कई दुर्भाग्यपूर्ण परिस्थितियों का सामना करना पड़ा जिसके बारे में उन्होंने ठिजंग रिनपोछे से परामर्श किया। उन्होंने कहा कि उनकी मुख्य रक्षक, पालदेन ल्हामो असंतुष्ट हो गईं। उन्होंने मुझसे पूछा कि वे इस संबंध में क्या कर सकते हैं। मेरे परीक्षण ने स्पष्ट किया कि वह असंतोष उनके दोलज्ञल की तुष्टि से निकला है और मैंने उसे त्यागने का सुझाव दिया।
"एक बार जब मैंने दोलज्ञल के अभ्यास पर प्रतिबंध का सुझाव दिया तो जो उसे बढ़ावा देते हैं उन्होंने अपने संगठन का गठन किया। शोध प्रकट करता है कि ५वें दलाई लामा ने दोलज्ञल का वर्णन करते हुए बताया था कि वह विकृत प्रार्थनाओं के परिणामस्वरूप उत्पन्न हुई है जो सत्वों तथा धर्म को हानि पहुँचाती है। जब मुझे यह पता चला तो मैंने अभ्यास बंद कर दिया, पर मैंने यह भी अनुभव किया कि दूसरों को भी सूचित करना मेरा उत्तरदायित्व था।
"लोगों ने मेरे विरोध में प्रदर्शन करना प्रारंभ किया। वे मुझे एक मुसलमान बुलाते हैं और मेरी एक मुसलमान टोपी पहने चित्र का प्रदर्शन करते हैं। वे कहते हैं कि मैं एक झूठा दलाई लामा हूँ और मेरे बदसूरत हास्य चित्र प्रदर्शित करते हैं।
"बौद्धों के रूप में हम आत्माओं को शरण की वस्तुओं के रूप में नहीं लेते। हम त्रिरत्न में शरण लेते हैं। जब चोंखापा के जन्मस्थान के स्थानीय देवता, माछेन पोमरा को केन्द्रीय तिब्बत में बुलाया गया, तो गदेन के विहारीय परिसर में उनके लिए एक मूर्ति की अनुमति नहीं दी गई। आप दोलज्ञल की तुष्टि करें अथवा न करें यह आप पर निर्भर करता है, पर ऐसा करना अच्छाई से अधिक हानि लाता है।"
परम पावन ने आगे कहा कि निर्वासन में लगभग २००,००० तिब्बतियों को तिब्बत में रह रहे तिब्बतियों के कल्याण के लिए काम करना चाहिए जिनके पास अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता नहीं है। उन्होंने उनकी भावना और साहस का वर्णन करते हुए कहा कि वह अद्भुत थी और टिप्पणी की, कि वह तिब्बत के छोटे बच्चों और युवाओं तक में स्पष्टतः जीवंत थी। वे दृढ़ बने हुए हैं और चीनी अधिकारी यह दिखावा नहीं कर सकते कि कोई समस्या नहीं है। तिब्बत में लोग खुश नहीं हैं। उन्होंने एकजुट होकर खड़े रहने के महत्व पर बल दिया।
उन्होंने एक अमेरिकी प्रोफेसर का उल्लेख किया जिन्होंने दुन्हुआंग दस्तावेजों के आधार पर ७ - ९ शताब्दी में तीन महान एशियाई शक्तियों का वर्णन किया ः चीनी जिनका संबंध राजनीति से था, मंगोल जो युद्ध से जुड़े थे और तिब्बती जो धर्म पर केंद्रित थे। इसके पश्चात तिब्बत खंडित हुआ जिसने समस्याओं को जन्म दिया। इसी कारण अब एकता और एकजुटता महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहाः
"हम तिब्बती आंदोलन का परित्याग नहीं कर सकते, तो हमें यह चर्चा करनी होगी कि इसे किस प्रकार आगे ले जाएँ।"
पूर्व तिब्बती प्रतिनिधि तेनजिन पी अतीश के एक अनुरोध के प्रत्युत्तर में परम पावन ने चेनेरेज़िंग प्रार्थना का एक पठन संचरण दिया और अपने श्रोताओं को सलाह दी कि वे उसे 'मार्ग के तीन प्रमुख आकार' और 'चित्त शोधन के अष्ट पदों' के पठन के साथ करें। उन्होंने अध्ययन के महत्व पर बल दिया और सलाह दी कि जब तक आप चित्त को रूपांतिरत नहीं करते आप चेनेरेज़िंग की अवस्था प्राप्त नहीं कर सकते।
काटुंबा के दूसरे भाग के कैरिंगटन होटल में परम पावन ने १०० चीनी बुद्धिजीवियों, लेखकों और लोकतंत्र कार्यकर्ताओं से भेंट की। जैसे ही उन्होंने कमरे में प्रवेश किया उनका सौहार्दपूर्ण रूप से उनका अभिन्नदन किया गया और उन्होंने उत्तर दिया ः
"मैं आपसे मिलकर प्रसन्न हूँ। मैं जहाँ भी जाता हूँ स्वयं को मात्र एक और मानव के रूप में देखता हूँ। मनुष्य होने के नाते हम सब एक जैसे ही हैं, अतः मानवता की एकता के बारे में चिंतन करना सार्थक है, यह सहज रूप से हमारे बीच के बैर की भावना को कम करता है। देखिए मध्य पूर्व में क्या हो रहा है जहाँ दुर्भाग्यवश लोग धर्म के नाम पर एक दूसरे की हत्या कर रहे हैं। आज सामना कर रही कई समस्याएँ हमारी स्वनिर्मित हैं हम सभी एक सुखी जीवन जीना चाहते हैं, पर फिर भी हम अपने लिए समस्याएँ निर्मित करते हैं। हम एक दूसरे को 'हम' और 'उन' के संदर्भ में देखते हैं। बल प्रयोग परिणामतः संघर्ष का समाधान नहीं कर सकता, हमें एक दूसरे से बात करना होगा।
"मैं एक बौद्ध भी हूँ और मेरी धार्मिक सद्भाव को बढ़ावा देने की एक प्रतिबद्धता है। भिन्न दार्शनिक पक्षों के बावजूद, सभी प्रमुख धार्मिक परम्पराओं का आम संदेश प्रेम, क्षमा, सहनशीलता और आत्म अनुशासन है। इसलिए हम उन सभी का सम्मान कर सकते हैं।
"तीसरा मैं एक तिब्बती हूँ। बौद्ध धर्म से प्रभावित तिब्बती संस्कृति, शांति और अहिंसा, करुणा की संस्कृति है। यह संरक्षण के योग्य है। इसी प्रकार तिब्बत का प्राकृतिक पर्यावरण रक्षणीय है। एक चीनी पर्यावरण विज्ञानी ने पाया कि वैश्विक जलवायु पर तिब्बती पठार का प्रभाव उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव सम है, अतः उसने उसे तीसरा ध्रुव कहा। एशिया की प्रमुख नदियों का उद्गम तिब्बत में होता है और १ अरब लोग उन पर निर्भर हैं, इसलिए तिब्बत के पर्यावरण का संरक्षण भी महत्वपूर्ण है।
"पिछले ३०-४० वर्षों में मैंने तिब्बतियों और चीनियों के बीच मैत्री को बढ़ावा दिया है। यद्यपि विगत ६० वर्षों में हमने कठिनाइयाँ झेली हैं, पर उससे हमारे २००० वर्ष प्राचीन संबंधों की हानि नहीं होनी चाहिए। मैं आप के प्रयासों की सराहना करता हूँ, जिन्होंने इस बैठक को संभव बनाया।"
परम पावन ने श्रोताओं की ओर से प्रश्न आमंत्रित किए। कुछ प्रतिभागियों ने इस अवसर पर उन्हें उनके ८०वें जन्मदिन की शुभकामनाएँ दीं और उनकी प्रज्ञा तथा साहस का गुणगान करता एक सूचीपत्र प्रस्तुत किया।
बर्मा में रोहिंग्या मुसलमानों के उत्पीड़न के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने उत्तर दिया कि उन्होंने बर्मा के बौद्धों से अपील की थी कि जब वे इन लोगों के प्रति क्रोधावेश से भर उठें, तो वे बुद्ध के मुख का स्मरण करें। उन्होंने कहा कि उन्हें विश्वास है कि यदि वे उपस्थित होते तो बुद्ध इन पीड़ितों की रक्षा करते। उन्होंने इस बात की भी पुष्टि की, कि उन्होंने इस विषय पर आंग सान सू ची से बात की है।
इस सुझाव पर कि दलाई लामा तिब्बती बौद्ध धर्म के संरक्षण के लिए महत्वपूर्ण हैं, उन्होंने उत्तर दिया कि २६०० वर्ष पूर्व बुद्ध का परिनिर्वाण हो गया था पर फिर भी अभी तक उनके अनुयायियों ने उनकी शिक्षाओं को बनाए रखा है। चीन की स्थिति के बारे में बोलते हुए उन्होंने कहा कि अब वहाँ ३०० लाख से अधिक बौद्ध हैं। उन्होंने शी जिनपिंग के पिता के साथ हुई बैठक का स्मरण किया और टिप्पणी की, कि उनकी माँ बौद्ध हैं। इस समय शी जिनपिंग भ्रष्टाचार को आमूल रूप से नष्ट करने में व्यस्त हैं। उन्होंने वूताईशान तीर्थ यात्रा पर जाने की एक इच्छा दोहराई जो उन्होंने १९५४ से समय समय पर व्यक्त की है। उन्होंने दो वर्ष पूर्व न्यूयॉर्क में चीनी बुद्धिजीवियों के साथ हुई बैठक का उल्लेख किया जिसमें उन्हें बताया गया था कि चीन अपने ५००० वर्षों के इतिहास में अब नैतिक रूप से निम्नतम बिंदु पर पहुँच गया है। कई कहते हैं कि मात्र बौद्ध धर्म ही एक आशा है।
इस विषय पर कि कब स्थिति परिवर्तित होगी परम पावन ने कहा कि भविष्य अस्पष्ट है। संकेत मिश्रित हैं। हाल ही में एक अधिकारी का कथन इस प्रकार का था मानो वूताईशान की तीर्थ यात्रा की पूरी आशा है, पर कुछ ही समय में यह आशा धराशायी हो गई। उन्होंने कहा कि तिब्बत पर हाल ही के श्वेत पत्र की भाषा कड़ी थी।
यह पूछे जाने पर कि नैतिक समस्याओं को किस प्रकार हल किया जा सकता है, परम पावन ने उत्तर दिया कि यहाँ २१वीं शताब्दी में प्रत्येक भूमि उसके हक में है जो उस पर रहता है, उनके नहीं जो शासक या नेता हैं। उन्होंने वह बात दोहराई जो उन्होंने कहीं और कही थी कि १.३ अरब चीनी लोगों को वास्तविक, सच्ची सूचना का अधिकार है। उस आधार पर वे गलत और सही में अंतर कर सकते हैं इसलिए सेंसरशिप समाप्त किया जाना चाहिए। उन्होंने टिप्पणी की कि चीन में सब कुछ पीपुल्स यह और वह पर पूछा कि "यह सच है? उन्होंने स्मरण किया कि १९५४ - १९५५ में चीनी साम्यवादी सही अर्थों में लोक कल्याण के लिए समर्पित थे। पर तब से अब धनवानों और निर्धनों के बीच बहुत बड़ी एक खाई आ गई है, जिसमें पार्टी के सदस्य धनाढ्य हो गए हैं। उन्होंने पुनः कानून के शासन के महत्व और चीनी न्यायिक प्रणाली को अंतरराष्ट्रीय मानकों के स्तर तक उठाने पर बल दिया।
"मैं एक चीनी छात्र से मिला जिसने मुझे बताया कि एक चीनी के लिए यह बताना कितना कठिन है कि वे वास्तव में कैसा अनुभव करते हैं। दिल छोटा न करें। ईमानदार रहें और जो आप जो कुछ भी कर सकते हैं, करें।"
मध्याह्न में प्रवचन स्थल पर लौटकर परम पावन ने कहा कि तांत्रिक शिक्षण के प्रारंभ में एक सामान्य परिपाटी है, कि एक उपयुक्त अनुष्ठान मिष्ठान समर्पित किया जाए। इस अवसर पर उन्होंने एक साथ '६ सत्र गुरु-योग' पाठ का भी सुझाव दिया। गुह्यसमाज के पञ्च चरणों को समझाने की प्रस्तावना के दौरान अनुवादक ने गलती से 'मास्टर नागार्जुन' कहने के स्थान पर 'मिस्टर नागार्जुन' कहकर संबोधित किया जिसे सुनकर परम पावन ठहाका मारकर हँस पड़े।
"वास्तव में, मैं प्रायः नालंदा के इन १७ पंडितों को प्रोफेसर के रूप में संदर्भित करता हूँ," उन्होंने कहा, इसलिए शायद उन्हें मिस्टर नागार्जुन कहकर संबोधित करना ठीक है।" इसके अतिरिक्त मैं कभी कभी मित्रों को बुद्ध की प्रतिमा भेंट करता हूँ फिर चाहे वे बौद्ध हों या न हों। मैं उनसे कहता हूँ कि निश्चित रूप से वे बुद्ध हैं पर वह एक महान चिंतक भी थे और चूँकि उन्होंने परीक्षण को प्रोत्साहित किया, हम उन्हें एक वैज्ञानिक कह सकते हैं।
"वास्तव में, नागार्जुन एक रसायनविद थे। एक बार अकाल के समय वह नालंदा के भिक्षुओं के कल्याण के लिए उत्तरदायी थे, उन्होंने लोहे को सोने में परिवर्तित कर दिया। इसके बाद, आनुशासकों ने निश्चय लिया कि यह अुनचित जीविका है और उन्हें विहार से निकाल दिया। विरूपा की कहानी की तरह, वे वास्तव में बहुत सख्त थे।"
परम पावन ने दो घंटे प्रवचन दिया और कल जारी रखने का वादा किया।