टोक्यो, जापान - ६ अप्रैल २०१५ - आज प्रातः परम पावन दलाई लामा की जापानी सांसदों के एक समूह के साथ सौहार्दपूर्ण बैठक हुई जिस दौरान उन्होंने आपसी हित और चिंता के विषयों पर विचार-विमर्श किया।
मध्याह्न भोजनोपरांत वे योमिउरी हॉल में ११०० के दर्शकों के समक्ष आगामी पीढ़ी के लिए एक वैश्विक पर्यावरण फोरम में भाग लेने के हेतु पैनल में शामिल हुए। परिचयों की समाप्ति के पश्चात परम पावन को बोलने हेतु आमंत्रित किया गया।
"भाइयों और बहनों, आप लोगों के साथ एक बार पुनः होना और फिर से पुराने मित्रों से मिल पाना मेरे लिए बहुत सम्मान की बात है। यह हमारी परम्परा है, और मुझे लगता है कि यह आपकी भी है कि एक बार जब हमने एक दूसरे को जान लिया तो हमारी मैत्री हमारे अंतिम दिन तक रहती है। आप लोगों में से कइयों से हुई भेंट ने मेरे हृदय को छू लिया है।"
"आज का विषय पर्यावरण है जिसके विषय में मैं अब भी सीख रहा हूँ। जब मैं पहली बार भारत आया मुझे पर्यावरण के महत्व के बारे में कुछ पता न था, पर धीरे-धीरे मैं इसका महत्व समझने लगा हूँ। इसमें एक पहलू हमारी बढ़ती जनसंख्या है। अब यह ७ अरब है और कुछ लोगों का कहना है कि इस शताब्दी के अंत तक यह १० अरब तक पहुँच सकती है। इस संदर्भ में बड़ी संख्या में लोग गरीबी में रहते हैं। धनाढ्यों और निर्धनों के बीच एक बड़ी खाई है जिसे हमें पाटना है तथा अधिक समानता सुनिश्चित करनी है।"
"फिर साथ ही हमारी शीघ्रता से बदलती जलवायु है, और प्राकृतिक आपदाएँ हैं जो और अधिक होती दिखाई देती हैं। प्रकृति और पर्यावरण की देखरेख की आवश्यकता बहुत ज़रूरी है। यह मानव अस्तित्व का प्रश्न है क्योंकि यह ग्रह ही हमारा एकमात्र घर है। हमें पर्यावरण को गंभीरता से लेना है। यद्यपि जलवायु स्वाभाविक रूप से परिवर्तित होती है पर हाल के परिवर्तन के दर और सीमा मानवीय गतिविधि का एक स्पष्ट परिणाम है। हमें इस बारे में और अधिक सीखने की आवश्यकता है और यह जानने की आवश्यकता है कि हम इस विषय में क्या कर सकते हैं।"
यदि हम जलवायु में परिवर्तन और नुकसान की तुलना युद्ध और हिंसा से करें तो हम देख सकते हैं कि हिंसा का हम पर तात्कालिक प्रभाव पड़ता है। कठिनाई यह है कि पर्यावरण की हानि छिपे रूप में होती है, अतः हम उसे उस समय देखते हैं जब कि प्रायः बहुत देर हो चुकी होती है। उस बिन्दु पर उसे बहाल करना बहुत कठिन है। हमें स्वयं को शिक्षित करने की आवश्यकता है और पर्यावरण की देख रेख, छोटे से छोटे रूप में जैसे कि कमरे से बाहर निकलते समय बत्ती बुझाने को अपने जीवन का एक अंग बनाने की आवश्यकता है।"
उन्होंने सुझाया कि हम अपनी जीवन-शैली का पुनर्मूल्यांकन करें ताकि गरीब लोगों की जीवन शैली के मानक ऊपर उठें और संसाधनों का उपयोग और समानता पूर्वक हो। उदाहरण के लिए, परम पावन ने कहा, राष्ट्र हथियारों पर बहुत अधिक धन खर्च करते हैं। कोई भी युद्ध नहीं चाहता, युद्ध का अर्थ हत्या है। यह एक अग्नि के समान है जिसका ईंधन मनुष्य है। यह ऐसी आग है जो हम सब को समाप्त कर सकती है। युद्ध मानव इतिहास का एक अंग है, पर वे विचार जो इसका निर्माण करते हैं, जैसे 'मेरा देश', 'मेरे लोग', 'हम' और 'वे' की भावना, जिस भूमंडलीकृत विश्व में हम रहते हैं उसमें अब प्रासंगिक नहीं रह गई है।
"हमें सभी मनुष्यों के विषय में सोचने की आवश्यकता है जो हमारी तरह एक सुखी जीवन जीना चाहते हैं। मेरा भविष्य दूसरों पर निर्भर करता है, और उनका मुझ पर निर्भर करता है।"
उन्होंने कहा कि जापान ने एक ऐसे देश के रूप में जिसने परमाणु आक्रमण झेला है, ने परमाणु हथियारों के विरोध का नेतृत्व किया है। हाल ही में रोम में हुई नोबेल शांति पुरस्कार विजेताओं की एक बैठक में प्रतिनिधि परमाणु विनिमय के बाद परमाणु शीत के वर्णन से हैरान थे। यह निर्णय लिया गया कि अब इन शस्त्रों के विरोध में बोलना मात्र पर्याप्त नहीं था, उनके उन्मूलन के लिए एक समय निर्धारण की और उन पर जिनके पास ये शस्त्र हैं, इस का पालन करने के लिए दबाव डालने की आवश्यकता है।
"मैं आपके परमाणु शस्त्रों के विरोध का अनुमोदन करता हूँ और इसे बनाए रखने का आग्रह करता हूँ।"
टोक्यो विश्वविद्यालय के प्रोफेसर रुइचि यामामोटो ने जलवायु परिवर्तन के संकटों की एक स्पष्ट प्रस्तुति दी। वैश्विक तापमान बढ़ रहे हैं। इंग्लैंड में बाढ़, ऑस्ट्रेलिया में सूखा, इंडोनेशिया में सुनामी है। जहाँ संयुक्त राज्य अमेरिका के कुछ भागों में शीत लहरों के प्रकोप है, वहीं कैलिफोर्निया विगत १२०० वर्षों में इस क्षेत्र के सबसे खराब सूखे के दौर से गुजर रहा है। ध्रुवीय बर्फ की क्षति स्पष्ट है और इसके चलते सामुद्रिक स्तरों में वृद्धि होगी।
योकोहामा विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अकीरा मियावाकी, जो स्वदेशी पेड़ों की सघन रोपण के अधिवक्ता हैं, ने एक समाधान दिया है। प्रोफेसर अकीरा मियावाकी अस्वस्थ थे और उनकी ओर से प्रोफेसर निकावा मकोटो ने प्रस्तुति की। उन्होंने समझाया कि मियावाकी सलाह देने मात्र से संतुष्ट नहीं हैं, वे कार्य करते हैं। उनके विचार से जीवन महत्वपूर्ण है और वन कई प्रकार से जीवन की रक्षा करते हैं। उन्होंने प्रदूषण फैलाने वाले बिजली स्टेशनों के आसपास के क्षेत्र में वन लगाए हैं, पर उन्होंने यह भी देखा है कि जहाँ भूकंप इमारतों को नष्ट करते हैं, वृक्ष कई बार खड़े रहते हैं। इसलिए वन एक आश्रय स्थल है।
अब तक लगाए ४० लाख वृक्ष लगाने के पश्चात मियावाकी मानते हैं कि वे भविष्य के लिए रोपण कर रहे हैं और उनके सघन रोपण का परिणाम २० वर्षों में उस प्रकार का होगा, जो यदि उसे अपने आप बढ़ने के लिए छोड़ दिया जाए तो उसके सघन वन बनने में २०० वर्ष लग जाएँगे। वे वृक्षारोपण को अपने प्रियजनों की रक्षा के रूप में देखते हैं। वे एक छोटी बच्ची की कहानी सुनाते हैं जिसके माता पिता चिंतित थे क्योंकि वह कभी हँसती नहीं थी। उन्होंने उसे वृक्ष लगाने में शामिल किया और उसने मुस्कराना प्रारंभ किया। मियावाकी मानव जाति की रक्षा के लिए जीवन का एक वन बनाने में विश्वास रखते हैं।
परम पावन के एक पुराने मित्र, डॉ मुराकामी काज़ुओ ने श्रोताओं को बताया कि महत्वपूर्ण शब्द जिस पर वह बोलने वाले हैं, वह 'जीन' था जिसका वर्णन बाद में उन्होंने एक स्विच के रूप में किया जो कार्य को प्रारंभ करता है अथवा बंद करता है। यह सिफारिश करने में कि हम नकारात्मक जीन को बंद कर दें और सकारात्मक को खोल दें, उन्होंने कहा कि एक हृदय परिवर्तन हमारे जीन को आश्चर्य में डाल सकता है। हम अपने चित्त की स्थिति को परिवर्तित कर उन्हें चालू कर सकते हैं। वे हँसी की सकारात्मक शक्ति के प्रस्तावक हैं। उन्होंने चूहों के साथ किए गए प्रयोगों के प्रमाण दिखाए। गुदगुदाहट उनके तनाव को कम करती है और उनके सकारात्मक जीनों को सक्रिय करती है। उन्होंने कहा कि वे इसी तरह प्रार्थना के उपचार मूल्य पर अनुसंधान कर रहे हैं, जो माउंट कोया के शिगोंन विहार के भिक्षुओं पर केंद्रित है।
मुराकामी ने समापन करते हुए कहा कि हमारी परेशानियों का एक भाग यह है कि हम केवल स्वयं के और अपने ही देश के बारे में सोचते हैं। उन्होंने कहा कि हमें अधिक सरल और सहज जीवन जीना सीखना होगा।
टिप्पणी करने के लिए आमंत्रित किए जाने पर परम पावन ने कहा कि वह प्रोफेसर के कार्य से कितने प्रभावित थे। वृक्षारोपण करने के इस विवरण ने उन्हें ऑस्ट्रेलिया में दिए गए सुझाव का स्मरण कराया कि यदि तट से अंदर तक वृक्ष निरतंर लगाए गए तो भूमि को और अधिक उर्वरक बनाया जा सकेगा। इसी तरह, उन्होंने विलवणीकरण संयंत्र चलाने के लिए सहारा में, जहाँ प्रचुर मात्रा में सूरज की रोशनी है भारी सौर ऊर्जा प्रतिष्ठानों की संभावना के बारे में अनुमान लगाया है। इस प्रकार उत्पादित मीठे पानी को मरुस्थल को हरित करने में काम में लाया जा सकेगा और लाखों लोगों को फसलें उपलब्ध कराई जा सकेंगी।
"भारत में मेरे मित्रों में से एक," परम पावन ने कहा, "गांधीवादी पर्यावरणविद् और चिपको आंदोलन के नेता सुंदरलाल बहुगुणा ने मुझसे कहा कि जब भी मैं कर सकूँ और मैं जहाँ भी रहूँ, मैं वृक्षारोपण के महत्व तथा उनकी देख रेख का प्रचार प्रसार करूँ। और मैं ऐसा करने के लिए राज़ी हो गया जैसा मैं अभी कर रहा हूँ।"
"पर्यावरण की देखभाल के महत्वपूर्ण पहलुओं में से एक पर्याप्त व्यापक दृष्टिकोण अपनाना है। कुछ वर्ष पूर्व कोपेनहेगन के एक शिखर सम्मेलन के परिणाम निराशाजनक रहे, क्योंकि अनेक प्रतिभागियों ने वैश्विक हित की तुलना में राष्ट्रीय हित को प्रमुखता दी। उन्होंने स्पष्ट प्रतीत होने वाले तथ्य को अनदेखा कर दिया कि यदि विश्व की स्थिति अच्छी हो तो हमारी स्थिति अच्छी होगी।
"शस्त्रों पर, जिनके प्रयोग की हम हिम्मत नहीं कर सकते, करोड़ों डॉलर व्यर्थ करने के बजाय, धन को किसी सकारात्मक कार्य में लगाया जाना चाहिए। और हमारे नेताओं द्वारा कार्रवाई करने की प्रतीक्षा करना व्यर्थ है, हम लोगों को इन युद्ध और हिंसा के इन उपकरणों के संबंध में अपनी अस्वीकृति दिखाने के लिए कार्रवाई करनी होगी। यह हमारे हित में है, क्योंकि निरपवाद रूप से जब परिस्थिति बिगड़ती है तो आम लोगों को झेलना पड़ता है।"
जैसे ही बैठक समाप्त होने वाली थी, प्रोफेसर रुइचि यामामोटो ने सुझाव दिया कि इस तरह के पैनल, जिनमें न केवल वैज्ञानिक पर नैतिकता के विशेषज्ञ भी शामिल थे, को सलाह देने के लिए बुलाया जाना चाहिए।
जापानी और अंग्रेजी में एक पर्यावरण घोषणा पढ़ी गई जो इस आधारभूत समझ के साथ प्रारंभ हुई कि हमारे ग्रह के प्राकृतिक वातावरण को एक गंभीर संकट का सामना करना पड़ रहा है। इसमें आगे कार्रवाई के लिए विशिष्ट दिशा निर्देश दिए गए ः
१ वैश्विक पर्यावरण की दिशा में एक गंभीर रुचि और नैतिक आचरण बनाए रखा जाए और जारी पर्यावरण शिक्षा और जागरूकता जुटाने की गतिविधियों को बनाया रखा जाए ताकि एक अंतर्राष्ट्रीय नैतिकता पैनल स्थापित की जा सके।
२ प्रत्येक व्यक्ति तीन वृक्षों का रोपण करे अथवा हरी धरती को बहाल करने के लिए रोपण किए जाने वाले उन पेड़ों को समर्थन प्रदान करे ।
३ सम्पूर्ण प्रकृति के साथ समन्वयात्मक एक सरल जीवन जीने के लिए मुस्कान और प्रार्थना द्वारा परोपकारिता के जीन को चालू करें।
श्रोतागणों को जो सोमवार होने के बावजूद वहाँ आए थे, परम पावन को आमंत्रित करने के लिए प्रोफेसर मुराकामी के प्रति; और परम पावन को अपना अमूल्य समय देने के लिए कृतज्ञता शब्द अभिव्यक्त किए गए। एक अंतिम अपील की गई:
"जैसा परम पावन सुझाते हैं, हम प्रतीक्षा न करें पर स्वयं को कार्य के लिए चालित करें।"