बाइलाकुप्पे, कर्नाटक, भारत - १७ दिसम्बर २०१५- रोशी जोन हैलिफ़ैक्स ने आज अंतिम प्रातःकालीन सत्र का प्रारंभ यह कहते हुए किया कि माइंड एंड लाइफ के प्रतिभागी कितने आभारी थे कि उन्हें यहाँ सेरा लाची में धारणाएँ, अवधारणाएँ और आत्म पर चिंतन करने का अवसर मिला। उन्होंने श्रद्धेय मैथ्यु रिकार्ड और रिची डेविडसन को 'आत्म और नैतिकता, परोपकारिता का विज्ञान' पर चर्चा करने हेतु आमंत्रित किया।
रिकार्ड ने यह कहते हुए प्रारंभ किया कि एक बेहतर विश्व बनाने के लिए हम किस प्रकार एक साथ काम कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि ऐसे लोग हैं जो यह प्रश्न कर सकते हैं कि "मैं भविष्य की पीढ़ियों के लिए क्योंकर सोचूँ? उन्होंने मेरे लिए कुछ भी नहीं किया।" एक उत्तर है कि आत्म के संबंध में हमारी अवधारणा निरंतर परिवर्तित चेतना के प्रवाह से सम्बद्ध है। अन्योन्याश्रय की समझ पर आधारित होकर हम दूसरों के प्रति अपनी चिंता को विकसित करते हैं। यह परोपकार है, ऐसी इच्छा कि अन्य लोगों को सुख व सुख के कारण मिलें।
अन्य लोगों का उत्तर हो सकता है कि परोपकार एक अनुभवहीन या आदर्श व्यवहार है। उनका कथन है कि इसकी अर्थशास्त्र या राजनीति में कोई प्रासंगिकता नहीं है। पर यह चीज़ों को मात्र एक अल्पावधि दृष्टिकोण से देखना है। एक दीर्घकालीन दृष्टिकोण आगामी पीढ़ियों को भी सम्मिलित करता है। हमें दूसरों के प्रति चिंता की भावना की आवश्यकता है जब हम समृद्धि के बीच निर्धनता की सोचते हैं जो हम विश्व के ३६ सबसे धनाढ्य राष्ट्रों में पाते हैं। हमें यह भी सोचने की आवश्यकता है कि हम किस प्रकार जलवायु परिवर्तन के संबंध में ग्रहों की सीमाओं को एक व्यापक स्तर पर लांघ चुके हैं और अब ६वें विनाश की ओर अग्रसर हैं। तिब्बत में, परमाफ्रोस्ट पिघल रहा है जो वातावरण में मीथेन को छोड़ेगी जो कि CO2 से अधिक खतरनाक है। मांस उद्योग पशुओं को वस्तुओं के रूप में देखता है। परम पावन ने स्वीकार किया कि स्वार्थ इसी ओर ले जाता है।
रिकार्ड ने पूछा कि "हम क्या कर सकते हैं?" उन्होंने फ्रायड को उद्धृत किया जिन्होंने अधिकांश मनुष्यों को दुष्ट के रूप में वर्णित किया है जबकि लेखिका ऐन रेंड ने कहा "मैं परोपकार को बुराई मानती हूँ।" इस तरह के विचारों का सामना करते हुए हम आधारभूत मानवीय अच्छाई को सहज रूप मे लेते हैं। वास्तविकता यह है कि लोग सहयोग में आनंद पाते हैं। प्रतिस्पर्धा की तुलना में सहयोग अधिक महत्वपूर्ण है। जीवित रहने के संघर्ष में, साथ संघर्ष करना एक दूसरे के विरुद्ध होने से बेहतर है। रिकार्ड ने मार्टिन लूथर किंग जूनियर को उद्धृत किया जिन्होंने कहा था कि "हर मनुष्य को निश्चय करना होगा कि वह रचनात्मक परोपकार के प्रकाश में चलेगा अथवा विनाशकारी स्वार्थ के अंधेरे में।" उन्होंने नेपाल और तिब्बत में करुणा - सेचेन फाउंडेशन की गतिविधियों को रेखांकित किया।
रिची डेविडसन ने परोपकार के विज्ञान के विचार को चार शीर्षकों के अंतर्गत समझायाः लचीलापन, सकारात्मक दृष्टिकोण, ध्यान तथा दानशीलता। लचीलेपन के संबंध में, जिसमें एमिगदल सम्मिलित है, लोग तनाव से शीघ्र ही पूर्व स्थिति में आ जाते हैं। ऐसा पाया गया है कि परोपकारियों में एमिगदल बड़ा होता है। परम पावन जानना चाहते थे कि क्या उसके कारण परोपकारी थे या फिर उनकी परोपकारिता के कारण एमिगदल बड़ा था। वह यह भी जानना चाहते थे कि ऐसी बढ़त पाने के लिए क्या कोई दवा है।
चूँकि एक भटकता चित्त एक दुखी चित्त है, सुख में ध्यान की एक भूमिका है। डेविडसन ने कहा कि लचीलापन प्राप्त करने हेतु एरोबिक व्यायाम के साथ ध्यान को सुधारने के अभ्यास को करना प्रभावी होता है। परम पावन ने पूछा कि ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में शहरों में बढ़ती आत्महत्या की संख्या के संबंध में उन्हें क्या कहना है।
परोपकार के विषय में ऐन रेंड की उद्धृत टिप्पणी पर सोचते हुए परम पावन ने सुझाया कि शब्दों में विकृत दृष्टिकोण के सभी चिह्न थे जिसके विपरीत उन्होंने शांतिदेव को उद्धृत कियाः
इस लोक में जो भी सुख हैं
वह अन्यों के सुखी होने की कामना से आते है
और इस लोक में जो भी दुख हैं
वह सब स्वसुख की कामना से आते हैं।
मध्याह्न की प्रथम प्रस्तुतियाँ अधिकांश रूप से भिक्षुओं के लिए विज्ञान परियोजना पर केंद्रित थीं। गेशे ल्हागदोर ने तिब्बती ग्रंथ एवं अभिलेख पुस्तकालय, जिसके वे निदेशक हैं, के बारे में एक सूचनापूर्ण वीडियो दिखाया। एमोरी-तिब्बत विज्ञान परियोजना के तिब्बती पक्ष के सम्पर्क के रूप में पुस्तकालय की एक महत्वपूर्ण भूमिका रही है। गेशे लोबसंग तेनजिन नेगी, जो कि परियोजना के एमोरी पक्ष से हैं, ने समझाया कि एमोरी तिब्बत साझेदारी का उद्घाटन १९९८ में हुआ था। २००६ में एल टी डब्ल्यूए एक प्रमुख सहयोगी बना। गेशे डादुल नमज्ञल ने भोट भाषा में उचित वैज्ञानिक शब्दावली के अनुवाद तथा निर्माण में लिए गए सच्चे दृष्टिकोण के बारे में टिप्पणी की। यङसी रिनपोछे ने संक्षेप में शिक्षा केन्द्रों के लिए मान्यता के महत्व के बारे में बात की।
पाठ्यक्रम में विज्ञान का प्रारंभ करने पर भिक्षुओं के व्यवहार को प्रदर्शित करने वाला एक पाई चार्ट, जो दिखा रहा था कि अभी भी कुछ अनिच्छा बनी हुई है, की प्रतिक्रिया में परम पावन ने कहा।
"पूछने के लिए कई प्रश्न हैं। विज्ञान का प्रारंभ भिक्षुओं के अध्ययन अवधि को किस तरह प्रभावित करता है। दूसरा क्या विज्ञान धर्म के अध्ययन को कम महत्वपूर्ण करता है। यदि उनका अभ्यास विश्वास में निहित है तो यह दुर्बल कर सकता है। पर यदि उनका अध्ययन तर्क पर आधारित है तो उन्हें अप्रभावित होना चाहिए। सत्य द्वय और चार आर्य सत्य और उनकी १६ विशिष्टताओं पर ध्यान रखते हुए वास्तविकता की समझ को उनके जीवन में प्रासंगिक बनाना संभव होना चाहिए। यदि आपका अध्ययन आलोचनात्मक चिंतन पर आधारित है तो कोई समस्या नहीं होनी चाहिए।
"जब लिंग रिनपोछे ने पहले बार पश्चिम की यात्रा की और दुनिया के चमक धमक पूर्ण आकर्षणों के प्रत्यक्ष हुए तो वह बिलकुल अप्रभावित रहे क्योंकि वह दृढ़ता से धर्म से जुड़े थे।"
परम पावन ने स्मरण किया कि प्रारंभिक दिनों में जब उन्होंने यहाँ दक्षिण भारत में तिब्बती आवासों की यात्री की थी, तो रात में अधिक छात्र ग्रंथों को कंठस्थ करते हुए दिखाई पड़ते थे। उन्होंने अनुमानित किया कि विभिन्न डिजिटल उपकरणों ने उसका स्थान ले लिया है।
"महाविहारों में विज्ञान को प्रारंभ कर आपका समय लेने के लिए मुझे दोष न दें", उन्होंने कहा।
जॉन डन ने पिछले चार दिनों में रखी गई प्रस्तुतियों की एक संक्षिप्त समीक्षा दी। तत्पश्चात रोशी जोन हैलिफ़ैक्स ने प्रस्तुतकर्ताओं से पूछा कि क्या वे इस बैठक के अनुभव के विषय में संक्षिप्त रूप में कुछ टिप्पणी करना चाहते थे।
इस विषय में कि महाविहारों में विज्ञान का अध्ययन किस तरह भिक्षुओं के अध्ययन को दुर्बल नहीं करता अपितु उनके अध्ययन में योगदान देता है, परम पावन की टिप्पणी का उत्तर देते हुए थुपतेन जिनपा ने प्रारंभ किया। उन्होंने कहा कि यद्यपि वे अब भिक्षु नहीं पर अब भी भिक्षुओं के जीवन की परवाह करते हैं। लेरा बोरोडिटस्की ने टिप्पणी की, कि एक वैज्ञानिक के रूप में उन्हें आश्चर्य है कि चित्त के विषय में कितनी कम जानकारी है। जॉन डन ने पूछा, "हम अपना दृष्टिकोण किस प्रकार बदल सकते हैं, क्या इस विषय में कुछ और अधिक कर सकते हैं?" पवन सिन्हा ने करुणाशील विज्ञान की बात की, विज्ञान, जिसमें हृदय व चित्त शामिल हों।
वासु रेड्डी विषयों को और अधिक सम्मानित 'आप' रूप से देखने की इच्छुक थीं। जे गारफील्ड इस बात से प्रसन्न थे कि दर्शन अच्छाई के लिए एक शक्ति हो सकती है। गेशे येशे थबखे ने टिप्पणी की कि सभी तरह के ज्ञान के लिए जो महत्वपूर्ण है, वह सम्मान है। मैथ्यु रिकार्ड ने वर्ष २००० के माइंड एंड लाइफ बैठक के परम पावन के शब्दों का स्मरण किया, "हम मानवता के लिए क्या योगदान कर सकते हैं, हमारा उद्देश्य दूसरों की सहायता करना है।"
कैथरीन केर को परम पावन की तात्कालिकता की भावना पर बल देने ने बहुत प्रभावित किया। कैरल वर्थमन ने उल्लेख किया कि हम जिस तरह सिखाते हैं उसमें बदलाव की आवश्यकता है। रोशी जोन हैलिफ़ैक्स ने सहमति जताई कि जलवायु परिवर्तन के पतन बिंदु पर जब हम पहुँच रहे हैं तो एक तात्कालिकता की भावना है। रिची डेविडसन ने जब अपनी बात रखी तो वे सबके विचार व्यक्त कर रहे थे "कि हम जो काम करते हैं वह दूसरों के कल्याण के लिए समर्पित है। परम पावन आप दीर्घायु हों और हमारे पुनः मिलने तक आप हमें प्रेरित करते रहें।"
सुसन बॉयर-वू ने धन्यवाद ज्ञापित करते हुए कहा कि यह कितने आनन्द का विषय था कि माइंड एंड लाइफ की अध्यक्षा बनने के मात्र दो सप्ताह बाद वे इस बैठक में भाग ले रही थीं। उन्होंने परम पावन और सेरा जे और मे महाविहारों के उपाध्यायों का आभार व्यक्त किया और दलाई लामा ट्रस्ट और परम पावन दलाई लामा के कार्यालय के प्रति भी कृतज्ञता व्यक्त की। उन्होंने तिब्बती ग्रंथ एवं अभिलेख पुस्तकालय का विशेष रूप से धन्यवाद दिया जिन्होंने सभी पॉवर पॉइंट स्लाइड का भोट भाषा में अनुवाद किया था। उन्होंने ए वी चालक दल को उनके समर्थन के लिए धन्यवाद दिया। उन्होंने हर्षे परिवार द्वारा माइंड एंड लाइफ की गतिविधियों के लिए किए गए योगदान को स्वीकार किया। उन्होंने एम एंड एल बोर्ड और कर्मचारियों को धन्यवाद दिया।
परम पावन ने अंतिम शब्दों की अभिव्यक्ति की:
"प्रारंभ में यह संवाद मेरी इच्छा के कारण हुआ। पर जब मैंने देखा कि यह भिक्षुओं के लिए कितना लाभकर हो सकता था तो मैंने सोचा कि हमें विहारीय संस्थाओं में इन बैठकों का आयोजन करने का प्रयास करना चाहिए, जहाँ हजारों अध्ययन कर रहे हैं। मैंने ज्ञान के विस्तार का एक अवसर देखा।
"हम कई समस्याओं का सामना करते हैं, उनमें से कई मानव निर्मित हैं। उनका समाधान करना हमारा उत्तरदायित्व है। यह करने के लिए हमें अपनी मानव बुद्धि के उपयोग की आवश्यकता है। निस्सन्देह हम सबका एक सीमित जीवन काल है और मैं अब अपने ८१वें वर्ष में हूँ। हम वस्तुओं को अलग ढंग से देखने की बात कर रहे हैं। कोई भी दुःख ढूँढने नहीं जाता, हर कोई बस सुखी रहना चाहता है। परन्तु अदूरदर्शिता के कारण हम योजनाएँ बनाते हैं जो हमारे लिए मुसीबतें लाती हैं। हमें मानवीय समाधान खोजने की आवश्कता है। हमें आगामी पीढ़ी की आवश्यकताओं पर विचार करने की जरूरत है। आपको मुझे धन्यवाद देने की कोई जरूरत नहीं, चलिए हम आशा करें कि २२ और २३वीं पीढ़ियाँ हमें धन्यवाद देंगे।
"सभी तिब्बती बौद्ध ज्ञान अंततः भारत से लिया गया है, परन्तु आज कई भारतीय पाश्चात्य सभ्यता में इतना डूब चुके हैं कि वे इन प्राचीन स्रोतों की उपेक्षा कर रहे हैं। बौद्ध धर्म प्रचार करने का मेरा कोई उद्देश्य नहीं है। हमारा वास्तविक उत्तरदायित्व एक नए दृष्टिकोण, एक और अधिक समग्र दृष्टिकोण को ढूँढना है ताकि वर्तमान २१वीं सदी की पीढ़ी को इस विश्व को और अधिक शांतिपूर्ण बनाने का अवसर मिले। धन्यवाद।"
सेरा महाविहार परम पावन के लिए कल एक दीर्घायु समर्पण प्रस्तुत करेगा।