कैम्ब्रिज, इंग्लैंड - १७ सितंबर २०१५- आज जब परम पावन दलाई लामा एक छोटी ड्राइव के बाद क्रिप्स कोर्ट पहुँचे तो निरभ्र गगन में उज्ज्वल सूर्य दीप्तिमान था। प्रातः की चर्चा का विषय था 'शिक्षा के लिए एक दृष्टिकोण’ और एड केसलर संचालक थे।
लार्ड रोवन विलियम्स ने संवाद का प्रारंभ शिक्षा से संबंधित टिप्पणियों से किया। उन्होंने जीवन के प्रारंभिक महीनों और वर्षों के महत्व का उल्लेख किया और सुझाया कि कक्षाओं का आकार चिंता का एक कारण है। उन्होंने प्रश्न उठाया कि क्या शिक्षा एक पात्र से दूसरे में उसकी सामग्री को डालने से कुछ अधिक है, और पूछा कि हम किस प्रकार एक ऐसी व्यवस्था की कल्पना कर सकते हैं, जो एक सृजनात्मक और करुणाशील व्यक्ति को जन्म दे। उन्होंने स्मरण किया कि जब उनकी पत्नी विद्यालयों को अध्यापन सहायता दे रही थी तो ऐसे समय आए जब उन्होंने बच्चों से बात की जिनसे पहले किसी ने गंभीरता से बात न की थी।
परम पावन ने तिब्बत के एक ऐसे प्रारूप का वर्णन प्रारंभ किया जो कि प्राचीन भारत से आया था जिसमें एक शिक्षक कुछ छात्रों के साथ कार्य करता है। वह अत्यंत परिश्रम से सम्बद्धित ग्रंथ को समझाता है। छात्र अध्ययन करते हैं और फिर शास्त्रार्थ के प्रांगण में जो कुछ उन्होंने सीखा है उसका एक दूसरे के साथ अभ्यास करते हैं। तर्क द्वारा वे संवाद में शंका तथा संदेह लाते हैं जो चित्त को पैना करने के लिए सहायक है। उन्होंने ज्ञान के तीन चरण की रूपरेखा दीः
"शिक्षक के शब्द अथवा आपने जो पढ़ा वह स्रोत है। तत्पश्चात आप खोजें और जो आपने सीखा है उस पर चिन्तन करें, उस पर मनन करें। अन्य पुस्तकें और विवरण में कई अन्य दृष्टिकोण बिंदुओं को लें। बौद्ध तथा बौद्धेतर परम्पराओं की विविधता और इन दृष्टिकोणों को क्यों प्रस्तावित किया गया है, का अध्ययन करें। तीसरा चरण अनुभव के माध्यम से इस ज्ञान को गहन करना है।"
परम पावन ने उल्लेख किया कि इसको समझने के लिए कि, किस प्रकार चित्त तथा भावनाएँ कार्य करती हैं, उनके प्रभावों को देखना, उदाहरणार्थ क्रोध, व्याकुलता और हताशा, महत्वपूर्ण है। यह सभी मनुष्यों के एक होने की भावना को विकसित करने का परिप्रेक्ष्य देता है। हमारे भूमंडलीकृत विश्व के संदर्भ में प्राथमिक रूप से मेरे राष्ट्र, मेरे समुदाय के बारे में सोचना आज तारीख से बाहर है। उन्होंने ध्यान आकर्षित किया कि जहाँ चर्च मानवीय मूल्यों की भावना को बढ़ावा देता था, चूँकि उसका प्रभाव क्षीण हो गया है, पर यह उत्तरदायित्व विद्यालयों और शिक्षा संस्थानों द्वारा नहीं लिया गया है, ऐसा करने की आवश्यकता है, इसलिए परम पावन ने आधुनिक शिक्षा में धर्मनिरपेक्ष नैतिकता के समावेश का प्रस्ताव रखा है और ऐसा करने के लिए उचित पाठ्यक्रमों की संरचना को प्रोत्साहित किया है।
लार्ड विलियम्स ने सहमति व्यक्त की और सुझाव दिया कि धार्मिक संस्थाओं को भी मानव कल्याण और हमारी बढ़ती अन्योन्यश्रितता के विषय मे बोलने की आवश्यकता है। सभा के एक प्रश्न के उत्तर में उन्होंने कहा कि शिक्षा विश्वास की तुलना में निश्चितताएँ प्रदान करने के बारे में कम होना चाहिए। उन्होंने कहा कि वह विद्यालय के फाटक पर साइन बोर्ड लगाना चाहते हैं जिसमें लिखा हो, "घबराओ मत।"
परम पावन और लार्ड विलियम्स ने पुनः शिक्षा, संघर्ष समाधान और स्वतंत्रता की चर्चा करते हुए छोटी चर्चा समूहों में भाग लिया। परम पावन ने टिप्पणी की, कि उनका विचार है कि बुद्ध द्वारा अपने अनुयायियों को दी गई सलाह, कि उन्होंने जो भी शिक्षा दी वे उसे उसी रूप में न स्वीकारें पर उसका परीक्षण करें और उसे जाँचे कि उसमें कितनी सार्थकता है, आज प्रासंगिक दिशानिर्देश रखता है। उन्होंने कहा कि नैतिकता सिद्धांतों के बारे में है, कोई नियम नहीं, कार्य का प्रमुख गुण प्रेरणा है। उन्होंने उल्लेख किया कि आज कई लोग राजनीति को गंदा मानते हैं, पर राजनीति गंदी नहीं है, यह राजनीतिज्ञों की प्रेरणा का प्रश्न है। उन्होंने स्पष्ट किया कि स्वतंत्रता का अर्थ यह नहीं है कि आप मनमानी करें, पर ऐसी भावना पर आधारित है कि मनुष्य मूलतः करुणाशील हैं। अहिंसा की प्राचीन भारतीय परम्परा में सदैव एक उत्तरदायित्व की भावना निहित है। एक ओर यह, यदि आप से बन पड़े तो दूसरों की सेवा करना है, पर उससे कहीं महत्वपूर्ण वे अवसर हैं जब आप अहित कर सकते हैं, पर आप नहीं करते।
मध्याह्न में अंतिम पूर्ण चर्चा के संचालक दिल्ली में फाउंडेशन फॉर युनिवर्सल रेसपॉन्सिबिलिटी के सचिव राजीव मेहरोत्रा थे। कार्यक्रम के प्रारंभ में उन्होंने श्रोताओं से हाथ उठाकर संकेत देने को कहा कि क्या उन्हें लगता है कि क्या वे धार्मिक अथवा आध्यात्मिक या इन दोनों में से कुछ भी नहीं हैं। अधिकांश लोगों का दावा था कि वे आध्यात्मिक हैं, आवश्यक नहीं कि वे धार्मिक हों। कुछ ये मानते थे कि वे ये दोनों ही नहीं हैं।
मेहरोत्रा ने लार्ड विलियम्स से धर्म और अध्यात्म के बीच अंतर के विषय पर बोलने के लिए कहा। उन्होंने धर्म के विषय में प्रचलित पूर्वाग्रहों का उल्लेख किया, कि धर्म अनम्य या अवैयक्तिक है तथा आध्यात्मिक वह है जो आप स्वयं खोजते हैं। पर, उन्होंने सुझाया कि यदि धर्म खोज के बारे में नहीं है, तो वह रिक्त है और यदि आध्यात्मिकता वास्तविक विश्व जिसमें हम निवास कर रहे हैं, से जुड़ी नहीं है, तो वह भी रिक्त है। उन्होंने कहा कि वे श्रद्धा के विषय पर बोलना पसंद करेंगे, जिसके विषय में उन्होंने कहा कि उसमें विश्वास निहित हैं, जो कि शरण लेने के बौद्ध विचार के समान है। उन्होंने आगे कहा कि हममें से प्रत्येक के लिए जो आधारभूत है, वह यह कि किस प्रकार सच्चा, ईमानदार और पारदर्शी बना जाए।
परम पावन ने अपनी ओर से सुझाव दिया कि साधारणतया आध्यात्मिकता अच्छा होने के बारे में है, अतः वे एक धर्मनिरपेक्ष आध्यात्मिकता की कल्पना कर सकते हैं। धर्म में विश्वास शामिल है, और जहाँ कुछ लोग सोच सकते हैं कि इसके लिए भव्य भवनों की आवश्यकता है, यह अनिवार्यतः प्रेम के अभ्यास के विषय में है। विभिन्न धार्मिक परंपराओं के दर्शनों का संबंध वास्तविकता को विभिन्न रूप और उपायों से समझना है, विश्वास का प्रकार्य करुणा तथा प्रेम के अभ्यास को सशक्त करना है। यद्यपि आज ऐसे लोग दिखाई पड़ते हैं जो यह अनुभव करते हैं कि उनके दैनिक जीवन में अभ्यास की तुलना में उनका विश्वास अधिक महत्वपूर्ण है।
परम पावन ने स्वीकार किया, कि यह अवधारणा कि इस जीवन का सृजन ईश्वर द्वारा हुआ है और इसके द्वारा उससे सीधा संबंध है, बहुत शक्तिशाली है। उन्होंने एक व्यक्ति के अभ्यास के लिए एक सत्य और एक सच्चे धर्म की धारणा को प्रासंगिक बताया, पर घोषित किया कि कई सत्य हैं और कई धार्मिक मार्ग हैं। महत्वपूर्ण बात अपने अभ्यास में सत्यनिष्ठता है।
थॉमस मर्टन, सहायता प्राप्त मृत्यु (इच्छा मृत्यु) और चेतना की प्रकृति के बारे में प्रश्न पूछे गए। लार्ड विलियम्स ने कहा कि धर्म यह नहीं कहता हर कीमत पर जीवन की रक्षा की जानी चाहिए, परन्तु कहा कि वे अब तक आश्वस्त नहीं हुए हैं कि सहायता प्राप्त मृत्यु, जाने का एक मार्ग है। उन्होंने और परम पावन ने थॉमस मर्टन के प्रति अपनी प्रशंसा व्यक्त की, जिन्हें वर्णित करते हुए परम पावन ने कहा कि वे ईसाई और बौद्ध धर्म के बीच एक मजबूत सेतु थे।
चेतना के विषय में बोलते हुए परम पावन ने कहा कि हमारी सामान्य जाग्रत चेतना में ऐन्द्रिक जागरूकता का प्राधान्य है। जब हम सोते और स्वप्न देखते हैं तो एक सूक्ष्म चेतना उत्पन्न होती है क्योंकि उसमें इंद्रियों का समावेश नहीं होता। गहन निद्रा, जब हम अचेतन होते हैं और जब हम मरते हैं तो अवस्थित चेतना उत्तरोत्तर सूक्ष्म होती जाती है। उन्होंने कहा कि २०वीं सदी के अंत तक अधिकांश वैज्ञानिक चेतना को दिमाग का एक प्रभाव मानते थे। परन्तु न्यूरोप्लास्टिसिटि की खोज के साथ इसमें परिवर्तन प्रारंभ हो गया है।
परम पावन ने तिब्बती समाज के लोगों के उन मामलों, अधिकांश आध्यात्मिक अभ्यासियों की बात की जिनके शरीर नैदानिक मृत्यु के बाद ताजा बने रहते हैं। उन्होंने कहा कि वैज्ञानिक इन मामलों में रुचि ले रहे हैं और आकलन करने के लिए उन्हें उपकरण उपलब्ध कराए हैं, जिसके दिलचस्प निष्कर्ष सामने आए हैं। तिब्बती स्पष्टीकरण यह है कि, ऐसे मामलों में सूक्ष्मतम चेतना मृत्यु के बाद कुछ समय तक के लिए अवशोषण में बनी रहती है।
परम पावन ने समझाया कि तिब्बती भाषा में अनूदित ३०० खंडों के बौद्ध साहित्य को विज्ञान, दर्शन और धर्म के संदर्भ में देखा जा सकता है। जहाँ धार्मिक भाग वास्तव में केवल बौद्धों के लिए रुचि रखते हैं हैं, वहीं वैज्ञानिक और दार्शनिक सामग्री शैक्षणिक दृष्टिकोण से किसी के लिए भी रुचिकर हो सकती है। इसे ध्यान में रखते हुए बौद्ध विज्ञान का एक संकलन पहले से ही तैयार किया जा चुका है और उसके परिणाम स्वरूप आई पुस्तक का अंग्रेजी सहित कई भाषाओं में अनुवाद किया जा रहा है। उन्होंने उसके समाप्त होने पर महाविद्यालय के लिए उसकी प्रतियाँ भेजने का वादा किया।
पूर्ण सत्र के समापन पर छोटे चर्चा समूहों के प्रवक्ताओं ने संक्षेप में अपने निष्कर्षों की सूचना सभा को दी। कुछ मामलों में पहले से ही चल रहे प्रेरणादायक परियोजनाओं के संदर्भ शामिल थे।
कैमरून टेलर ने आगे बढ़कर उन सभी को धन्यवाद दिया जिन्होंने भाग लिया था, जिन्होंने कार्यक्रम के आयोजन में सहायता दी थी और जिन्होंने उसमें समर्थन दिया था। उन्होंने श्रोताओं को याद दिलाया कि यह इंस्पायर डायलोग फाउंडेशन का उद्घाटन समारोह था और भविष्य में और कार्यक्रम होंगे और वे आशा करते हैं कि जो आज भाग ले रहे है, वे सम्पर्क बनाए रखेंगे और पुनः आएँगे। उन्होंने परम पावन, लार्ड विलियम्स और हिलेरी विलियम्स पेपवर्थ के प्रति विशिष्ट रूप से धन्यवाद ज्ञापित किया। कार्यक्रम का समापन अंतिम सामूहिक तस्वीर के साथ एक सौहार्द और मैत्रीपूर्ण वातावरण में सम्पन्न हुआ।
क्रिप्स कोर्ट से विदा लेने से पूर्व परम पावन ने तिब्बतियों के एक समूह से संक्षिप्त बातचीत की और उन्हें तिब्बत की भाषाई, सांस्कृतिक और धार्मिक धरोहर के प्रति गर्व का अनुभव करते हुए उसे जीवित रखने के लिए कहा। उन्होंने उन सबका उन्हें देखने के लिए आने के लिए और बाहर मार्ग पर एक रंगबिरंगे स्वागत के लिए धन्यवाद दिया। कल वे लंदन की यात्रा करेंगे।