उन्होंने टिप्पणी की, कि गुह्यसमाज की व्याख्या को पूरा करने पर, जे चोंखापा ने पूछा कि कौन इस शिक्षा का संरक्षण करेगा और इसे बनाए रखेगा। जे शेरब सेंगे उठ खड़े हुए और कहा, "मैं करूँगा।" समय चलते उन्होंने सेग्यु महाविहार तथा बाद में ग्युमे की स्थापना की। परम पावन ने उल्लेख किया कि नागार्जुन प्रज्ञापारमिता सूत्रों, शून्यता की व्याख्या की विषय स्पष्टता के प्रमुख प्रतिपादक थे। वे और उनके शिष्य आर्यदेव और चन्द्रकीर्ति ने गुह्यसमाज को अपने तांत्रिक अभ्यास का मुख्य केन्द्र बनाया और यही परम्परा केन्द्रीय तिब्बत के दो तांत्रिक महाविहारों ग्युमे और ग्युतो में बनी हुई है।
परम पावन ने स्पष्ट किया कि तांत्रिक अभिषेक प्रदान करना मात्र केवल कुछ अनुष्ठानों को पूरा करने का विषय नहीं है। आपको उससे अधिक व्यावहारिक होना है चूँकि आपको बोधिचित्तोत्पाद तथा शून्यता की समझ रखने वाली प्रज्ञा की मूल समझ की भी आवश्यकता है, जिन दोनों की व्याख्या सूत्रों में की गई है। उन्होंने कहा तांत्रिक अभ्यास का एक अंग स्वयं को देव के रूप में भावना करना है और ऐसा करने के लिए हमें शून्यता की कुछ समझ आवश्यक है, एक समझ कि वस्तुओं का एक ठोस स्वतंत्र अस्तित्व नहीं होता। इस प्रकार की समझ से ही हम अपने क्लेशों पर काबू पाते हैं।
बौद्ध धर्म की सामान्य संरचना के बारे में हमें अध्ययन करने की आवश्यकता है। जे चोंखापा ने कहा कि कई योगी ऐसे हैं जिनके पास शास्त्रों के अर्थ का विश्लेषण करने के लिए अधिक प्रशिक्षण या कौशल नहीं है। परम पावन ने उल्लेख किया कि सभा में ग्युमे और ग्युतो के कई विहार प्रमुख तथा पूर्व विहार प्रमुख, भिक्षु, भिक्षुणियाँ और साधारण लोग हैं, कई तिब्बती और विदेशियों में अच्छी खासी संख्या में चीनी भाई और बहनें हैं।
"हम सभी नालंदा परम्परा का पालन करते हैं और इसीलिए हम सबको यह जानने की आवश्यकता है कि बुद्ध की देशनाओं का क्या अर्थ है। इसी कारण हमें अध्ययन की जरूरत है। बुद्ध ने अपने अनुयायियों से कहा कि वे उनकी शिक्षाओं को जिस रूप में कहा गया है उस रूप में न लें, न ही इसलिए स्वीकार करें कि उन्होंने कहा था, पर उसकी जाँच, परीक्षण तथा प्रयोग करें। इसका यह भी अर्थ है कि 'शिक्षाओं को पुस्तकों में ही न छोड़ दो अपितु चर्या में उसका प्रयोग करो। जे चोंखापा ने भी टिप्पणी की कि कई विद्वान हैं जो अभ्यास के प्रमुख बिन्दुओं में अकुशल हैं। उन्होंने यह भी कहा कि मात्र आस्था पर नहीं, पर कारण और तर्क पर निर्भर रहो। इस संदर्भ में मैं यह कहना चाहूँगा कि जब मैंने पहली बार वैज्ञानिकों से मिलना प्रारंभ किया तो पुराने विहाराध्यक्ष चौकन्ने थे। अब मुझे लगता है कि दोनों पक्ष परस्पर लाभ को देखते हैं।"
ग्रंथों की ओर मुड़ते हुए जिन्हें वे प्रारंभिक निर्देशों के रूप में पढ़ना चाहते थे, परम पावन ने जे चोंखापा की 'प्रतीत्य समुत्पाद स्तुति' से प्रारंभ किया जिसकी रचना उन्होंने उस समय की थी जब उन्होंने मध्यमक दर्शन का अपना अध्ययन पूरा कर लिया और अंततः शून्यता की समझ प्राप्त की। शून्यता की समझ के साथ यह समझ आती है कि निरोध संभव है। परम पावन ने कहा कि इस ग्रंथ की व्याख्या उन्हें खुनु लामा रिनपोछे से प्राप्त हुई थी, जिन्हें यह गेन रिगज़िन तेनपा से मिली और मौखिक संचरण ठिजंग रिनपोछे से प्राप्त किया।
उन्होंने 'पथक्रम अनुभव के गीत' का पाठ जारी रखा जो कि चोंखापा के पथक्रम के तीन प्रस्तुतियों में सबसे संक्षिप्त है। परम पावन ने पुनः शिक्षाओं को व्यवहार में लाने की सराहना की, जैसा कि छंद ११ और १२ में समझाया गया है।
फिर, इस और आगामी जीवनों की सभी कल्याणों के
शुभ कारणों के निर्माण का मूल
पथ प्रदर्शक सद्गुरु का प्रयत्न से
आशय तथा प्रयोग द्वारा अच्छी तरह सेवन में
देखकर प्राण के लिए भी न त्यागते हुए
आज्ञा अनुसार प्रतिपत्ति पूजा द्वारा संतुष्ट करते हैं
योगी मैने भी उस प्रकार के साधना किया है
मोक्षकामी आप भी वैसा ही करें।
उन्होंने वह भी स्मरण किया जो मिलारेपा ने कहा था ः
"मेरे पास मेरी चर्या के अतिरिक्त समर्पण के लिए कुछ और नहीं है।"
समापन में परम पावन ने उल्लेख किया कि 'पथक्रम अनुभव का गीत' अतीश के 'बोधि पथ प्रदीप' का सार है। तत्पश्चात उन्होंने चोंखापा के 'मार्ग के तीन प्रमुख आकार, का त्वरित पाठ किया, जो निःस्सारण, बोधिचित्त था शून्यता की समझ रखने वाली प्रज्ञा से संबंधित है। अंत में चोंखापा ञवंग डगपा को परामर्श देते हैं जिनको उन्होंने यह सलाह भेजी ः
पुत्र, इस प्रकार मार्ग के तीन प्रमुख आकार के
मर्म को स्वयं से यथा बोध होने पर
एकान्त में रहकर वीर्य बल से
अंतिम लक्ष्य को शीघ्र प्राप्त करो।
अंत में, परम पावन ने ७वें दलाई लामा द्वारा रचित 'चार स्मरणों का गीत' पढ़ा जो कि जे शेरब सेंगे द्वारा प्रारंभ किए गए एक शिक्षण पर आधारित था। उन्होंने कहा कि वह उन्हें योंगज़िन लिंग रिनपोछे से प्राप्त हुई थी। यह संक्षेप में शिक्षक के स्मरण, बोधिचित्त का स्मरण, जो प्रबुद्धता की कामना करता है, अपने शरीर को देव के शरीर के रूप में स्मरण, शून्यता की दृष्टि के स्मरण को समझाता है। जब तीसरे स्मरण की बात आई तो परम पावन ने खिलखिलाते हुए कहा ः
"यहाँ हमारे ये सभी भिक्षु हैं जो गुह्यसमाज का अभ्यास करते हैं, परन्तु जैसे एक कदमपा के आचार्य ने टिप्पणी कीः 'प्रत्येक के पास ध्यान करने के लिए एक देवता है, और हर के पास जाप के लिए एक मंत्र है, पर उसके विषय में सोचने के लिए सम्पूर्ण अभाव है'।"
इस ओर इंगित करते हुए कि जो ग्रंथ उन्होंने पढ़े वे गुह्यसमाज का समर्थन करते हैं तथा उसके पूरक हैं, परम पावन ने अपने श्रोताओं से आग्रह किया कि वे 'चार स्मरणों का गीत' कंठस्थ कर लें और अन्य ग्रंथों को बार बार पढ़ें। वे सोमवार तथा मंगलवार को गुह्यसमाज का अभिषेक देंगे और बुधवार को जमयंग शेपा के 'वज्रभैरव के सात अध्याय के तंत्र' की व्याख्या करेंगे।